आजकल जेलों को लेकर तमाम तरह की चर्चाएँ प्रचार माध्यमों में आती रहती हैं-जिनमें वहां कयी कैदियों को फाइव स्टार होटलों जैसी सुविधाओं के साथ ऎसी सुविधाएं भी मिलती हैं जिन्हें कानून सामान्य तौर पर अपराध मानता है। अभी मेरठ की जेल का वाकया तो बहुत चर्चा में है। वहां कीं जांच के लिए गया पुलिस अधिकारियों के दल पर कैदियों ने हमला कर दिया। इस मामले में पुलिस अधिकारीयों ने जेल प्रशासन पर आरोप लगाया है कि उसने कैदियों को उन पर हमले के लिए उकसाया । अगर उनका आरोप सही है तो यह अत्यंत चिता का विषय है । देश के संविधान की रक्षा का दायित्व पुलिस का है और अगर उस पर इस तरह के हमले होंगे तो वह भी उसके घर में तो फिर सवाल यह है हम आख़िर किस व्यवस्था का अनुकरण कर रहे हैं। क्या लोकतंत्र के नाम पर लूट तंत्र को खुला छोड़ सकते हैं – और मानवाधिकारों की रक्षा के नाम पर अमानवीय तत्वों को कुचलने से परहेज कर सकते हैं।
सतही , मनोरंजक और सनसनीखेज विषयों पर प्रचार मध्यम लम्बी-चौड़ी बहस चलाकर अपने लिए दर्शक और श्रोता तो जुटा रहे हैं पर क्या समाज के लिए सबसे बडे ख़तरे के रुप में स्थापित गिरोहों जिसके सदस्य सफेदपोश ज्यादा हैं पर द्रष्टि डालने के लिए पर्याप्त समय दिया जा रहा है। एक नहीं ऎसी अनेक घटनाये हो चुकी हैं जिसमें अपराधी पूर्व घोषणा के अनुसार अपराध कर जाते हैं और कोई कुछ नहीं कर पाता। वैसे संविधान को लेकर कोई प्रतिकूल टिप्पणी की जाये तो उस पर अवमानना का मामला लादा जाता है पर संविधान को इस तरह अपमानित करने वालों को जेल में फाइव स्टार होटलों जैसी सुविधाये दीं जाएँगीं तो फिर एक आदर्श क़ानूनी व्यवस्था स्थापित करने का वादा हमारे देश के नेता कैसे निभा सकते हैं। क्या कहकर अपराध करना या जेल की परवाह ना करते हुए दुष्कर्म करना संविधान को अपमानित करना नहीं है?
सबसे बड़ा सवाल है कि कानून व्यवस्था कीं रक्षा करने वाली दो एजेंसियों में आपस में ही टकराव एक गंभीर संकट का संकेत नहीं देतीं हैं । अगर कोई यह कहता है कि जेल अधिकारिओं के तथाकथित उकसाने पर कैदियों द्वारा पुलिस अधिकारीयों पर किया गया हमला मामूली है तो उसकी नासमझी ही कही जा सकती है। अभी तक जेल का भय न होने कीं वजह से अपराधी किसी मामले मैं पुलिस कीं बजाए अदालत में सीधे आत्मसमर्पण ताकि थाने में न बैठना पडे । अगर ऎसी घटनाये होती रहीं पुलिस का भय भी अपराधियों से खत्म हो जाएगा -पुलिस अधिकारीयों और कर्मचारियों का मनोबल खत्म होगा । अत: समस्त राज्यों और केंद्र सरकारों को इस विषय पर गम्भीरता से सोचना चाहिऐ । आख़िर ऐसे मामलों से केवल देश में ही लोगों का विशवास कम न होगा बल्कि विश्व में भी हमारे देश कीं छबि खराब होगी।
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