हरियाली मिटाकर रेगिस्तान बनाया


आसमान से बरसती आग में
झुलसता हुआ बदन
तरस जाता है ठंडी हवा के लिए
जहाँ तक दृष्टि जाती है
सूरज के शोले बिखरे दिखाई देते हैं
तरसे हैं चक्षु
धरती-पुत्र वृक्षों को देखने के लिए
शहर में खडे पत्थर के महलों में भी
खाली हैं बरतन
आदमी तरस रहा है पानी के लिए
आसमान में उड़ने के लिए
विकास का काल्पनिक विमान बनाया
अपने हाथ से ही हरियाली को मिटाया
अब खङा आदमी आकाश की ओर
टकटकी लगाए देख रहा है
पानी बरसने के लिए
———————-
बादल नहीं जाते जहाँ- जहां
ऐसे कई रेगिस्तान बन गये
हरियाली मिटाकर
रेगिस्तान बनाकर
आदमी खडा है इन्तजार में
पर बादल रेगिस्तान
समझकर बिन बरसे चले गये
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टिप्पणियाँ

  • हरिराम  On जून 12, 2007 at 11:54

    आइए, अब रेगिस्तानों को नखलिस्तान में बदलें। पर्यावरण के लिए विशेष उपाय अपनाएँ।

  • अनूप शुक्ल  On जून 12, 2007 at 07:34

    बहुत बुरा किया। रेगिस्तान बना दिया।

  • Udan Tashtari  On जून 12, 2007 at 04:49

    वाह, दीपक भाई-बहुत बड़ा मुद्दा बड़ी सुन्दरता से उठाया है, बधाई.

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