जिन्दगी का मर्म


पल भर में बिखर जाती है जिंदगी
बरसों बनाये में लगते हैं
पर हवा के ऐक झौंके में
बडे-बडे महल ढह जाते हैं
छा जाती है मुर्दानगी
फ़िर भी जीवन है चलने का नाम्
अपना कर्म ही है बंदगी
यही सोचकर चलते रहो
बढते रहो अपने कर्तव्य पथ पर
छोडो न अपनी निष्ठा और धर्म
यही है जीवन का मर्म्
करो न किसी इंसान की पूजा
परमेश्वर के अलावा नही कोई दूजा
करते रहो बस उसकी बंदगी

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टिप्पणियाँ

  • Nishikant Tiwari  On अगस्त 31, 2007 at 14:26

    दिल की कलम सेनाम आसमान पर लिख देंगे कसम सेगिराएंगे मिलकर बिजलियाँलिख लेख कविता कहानियाँहिन्दी छा जाए ऐसेदुनियावाले दबालें दाँतो तले उगलियाँ ।NishikantWorld

  • Udan Tashtari  On अगस्त 31, 2007 at 07:44

    परमेश्वर के अलावा नही कोई दूजाकरते रहो बस उसकी बंदगी–वही कर रहे हैं.

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