भक्त मौन है


भक्त से पूछा गया
‘बता राम कौन है’
जो मनुष्यदेह धारण किये हो
और पूछे ऐसा प्रश्न
इस अहंकार पर भक्त मौन है

रोम-रोम में बसते हैं
कण-कण में रहते हैं
रक्त की हर बूँद में
सदैव प्रवाहित हैं
जिस भक्त के हृदय के स्वामी है
वह कैसे इस प्रश्न का उत्तर दे कि
‘राम कौन है’

प्रश्न में छाया है अहंकार
पर भक्ति तो होती निरंकार है
मन के भाव होते हैं पवित्र
उन्हें व्यक्त करना बेकार है
अंहकार का सबसे अच्छा उत्तर मौन है

जिन्होंने खोजा उसे पाया
जिनके मन में अहंकार
वाणी से निकले शब्दों में है प्रहार
आत्ममुग्धता से भरा व्यवहार
उनके भी पास हैं पर देख नहीं पाया

अंतर्दृष्टि का अँधेरा
दैहिक चक्षुओं से भी प्रकाश की
अनुभूति को दूर कर देता है
इसलिये वह पूछते हैं कि
‘राम कौन है’
जिसके घट-घट में बसते हैं
हर पल देह में विचरते हैं
वह भक्त मौन है
जिसे अपनी अटूट भक्ति में विश्वास है
वह जानता है उनकी कृपा दृष्टि को
इसलिये सुनकर भी यह प्रश्न
अनसुना कर देते हैं भक्त कि
‘यह राम कौन है’
आत्मा और परमात्मा के बीच
सेतु की तरह है राम का नाम
इसलिये भक्त मौन है

Post a comment or leave a trackback: Trackback URL.

टिप्पणियाँ

  • Basant Arya  On सितम्बर 21, 2007 at 21:37

    कविता कमाल की लिखी . कल्पना भी विचार भी और दोनो का ताल्मेल भी

  • Basant Arya  On सितम्बर 21, 2007 at 21:37

    कविता कमाल की लिखी . कल्पना भी विचार भी और दोनो का ताल्मेल भी

  • रवीन्द्र प्रभात  On सितम्बर 21, 2007 at 21:17

    आपके प्रयास सराहनीय है और में अपने ब्लॉग पर आपका ब्लॉग लिंक कर दिया है। रवीन्द्र प्रभात

  • संजय तिवारी  On सितम्बर 19, 2007 at 01:22

    कुछ मुखर भी हो रहे हैं,

एक उत्तर दें

Please log in using one of these methods to post your comment:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  बदले )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  बदले )

Connecting to %s

%d bloggers like this: