खुद से बेवफाई


जब भी मिले राह पर चलते हुए
कभी हमने उनके घर का पता पूछा नहीं
कई बार मुलाकात अकस्मात ही हुई
उनका हिसाब हमने रखा नहीं
जब भी मिले बहुत गर्मजोशी दिखाई
हर मौके पर काम आने की कसम खाई
रिश्ते का नाम दिया कभी मोहब्बत और
तो कभी कहा दोस्ती
हमने कभी नहीं मांगी सफाई
मिलना फिर बंद हो गया
समय-दर समय गुजरता रहा
हम राह तकते रहे
चेहरा उनका कभी नजर नहीं आया
हमने समझा हो गई जुदाई
कई बरस बाद फिर मिले उसी राह पर
चेहरा बुझा हुआ और
उम्र से अधिक लग रही थी काया
हमने जब वजह पूछी तो कहा
‘किसी के कहने पर बदला था रास्ता
चले उसी के कहने पर
ठोकरे थी नसीब में वही पायी
अपना नाम तक भूल गए
अपनी पहचान तक गंवाई
अपनी देह और दिल से उठाते रहे
अपने ही सपनों का बोझ
जो कभी नही बने सच्चाई
वह एक चमकीला पत्थर था जिसके पीछे
हमने अपनी उम्र गंवाई
वह क्या देता
हमने की खुद से बेवफाई

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टिप्पणियाँ

  • Udan Tashtari  On अक्टूबर 20, 2007 at 00:44

    उसी चमकीले पत्थर के लिये सब बेवफा हुए जा रहे हैं.

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