मन ने कहा उस शिखर पर
चढ़ जाओ
जहाँ से तुम सबको दिख सको
लोग की जुबान और तुम्हारा नाम चढ़ जाये
चल पडा वह उस ऊंचाई पर
जो किसी-किसी को मिल पाती है
जो उसे पा जाये
दुनिया उसी के गुण गाती है
जो देखे तो देखता रह जाये
मन को फिर भी चैन नही आया
शिखर के चरम पर
उसने अपने को अकेला पाया
अब मन ने कहा
‘उस भीड़ में चलो
यहाँ अकेलेपन का
डर और चिंता के बादल छाये’
वह घबडा गया
बुद्धि ने छोड़ दिया साथ
उसने सोचा
‘जब तक इस शिखर पर हूँ
लोग कर रहे हैं जय-जयकार
उतरते ही मच जायेगा हाहाकार
जो जगह छोड़ दी अब वहाँ क्यों जाये’
अब अंहकार भी अडा है सामने
शिखर के चरम पर खडा है वह
अपने ही मन से लड़ता जाये
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अच्छा लग पढ़कर.