सिडनी टेस्ट पर उठे विवाद का पटाक्षेप हो गया है, पर यह संतोषजनक नहीं है। इसमें भारतीय खिलाडियों पर नस्लभेद का आरोप लगाया गया है जो बहुत गंभीर है। एक बात याद रखने वाली बात यह है कि आस्ट्रेलिया के गोरे समाज से जुडे खिलाडियों ने यह आरोप बहुत चालाकी से अपने यहाँ के आदिवासियों के समुदाय के सदस्य एंड्रू साइमंस को आगे कर लगाया है-क्योंकि ऐसा करने से उन्हें अपने देश की सहानुभूति के साथ पूरे विश्व का अपने साथ आने की संभावना लगी होगी। हरभजन सिहं पर नस्लवाद का आरोप उसके व्यवहार की वजह से नही बल्कि एंड्रू साईमंड के काले होने की वजह से लगाया गया है-मतलब यह कि अगर हरभजन सिहं अगर कोई कड़वी बात रिकी पोंटिंग से कह देते तो उस पर नस्लवाद का आरोप नहीं लगता। यह एक साजिश है। आस्ट्रेलिया वाले कहते हैं कि जो हम बदतमीजी करते हैं वह हमारे खेल का हिस्सा है, पर अगर भारत के खिलाड़ी अगर अपने-अपने कुसंस्कारों के साथ इस राह पर चलें तो आप जानते हैं कि उनके खजाने में जितने अभद्र शब्द हैं उतने दुनिया में शायद किसी भाषा में हों और वह अपनी ही भाषा में भंडास निकालने लगे तो आईसीसीआई को कई तो अनुवादक ढूँढने पड़ेंगे।
असल बात करें यहाँ माईक प्रोक्टर की जो दक्षिण अफ्रीका से खेलते थे पर तब जब उस पर नस्लवाद के चलते प्रतिबन्ध लगे थे और इसलिए भारत के खिलाफ उनको कभी भी खेलने का अवसर नहीं मिला। इसके बावजूद उनको भारत से चिढ हो सकती है। यह एक एतिहासिक घटना है और बताती है कि नस्लवाद के खिलाफ भारत ने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ टेनिस की सग्से बड़ी प्रतियोगिता के डेविस कप में फाईनल मैच खेलने से मना कर दिया था। सन मुझे याद नहीं है पर उस समय विजय अमृत राज और और आनंद अमृत राज अपने खेल जीवन के चरम शिखर पर थे और अगर भारत दबाव में झुक कर खेलता तो कप उसकी झोली में आना तय था। भारत न तो वहाँ जाकर खेलने को तैयार था और न ही उसकी टीम को अपने देश में आने देने के लिए तैयार हुआ। तमाम तरह के दबाव के बावजूद भारत नहीं झुका और कप उसके हाथ से चला गया। आज भी इतिहास में भारत के नाम पर डेविस कप दर्ज नहीं है तो केवल इसी नस्लवाद के खिलाफ अपनी जंग के कारण।
एक अश्वेत खिलाड़ी, अश्वेत अंपायर और फिर नस्लवाद का आरोप फिर माईक प्रोक्टर की मौजूदगी कई तरह के संशयों को जन्म देती है। इस पर साईमंस कहते हैं कि मैंने हरभजन सिहं को उकसाया। अब सवाल यह है कि संयोग या योजना बनाई गयी है। भारत ने दोनों अंपायर हटाने की मांग की थी और हटाया गया एक अंपायर वह भी अश्वेत बकनर को। हालांकि इस बारे में परस्पर विरोधी समाचा हैं। एक में कहा जाता है कि दोनों अंपायरों को हटाने की मांग हो रही है और एक में कहा जाता है कि केवल बकनर को हटाने की मांग है। कुल मिलकर भारत को एक साजिश का शिकार बनाया जा रहा है।
हालांकि मैं यह नहीं कहता कि माईक प्रोक्टर कोई भारत से बदला ले रहा है पर जब वह चरम शिखर पर था तब इस बात की बहुत कोशिश हुई थी कि भारत को दक्षिण अफ्रीका से क्रिकेट खेलने को राजी किया जाये पर जब भारत ने टेनिस में डेविस कप ही छोड़ दिया तो उसके बाद वह भी बंद हो गयीं ऐसा कहा जाता है। माईक प्रोक्टर ने जिस तरह इस मामले में जल्दबाजी की उसको देखकर तो ऐसा ही लगता है। भला वह कैसे भूल सकता है कि भारत ने उसके देश के नस्लवाद के चलते उसके साथ फाइनल मैच खेलने से मना कर विश्व मैं अपनी जिस दृढ़ता को स्थापित किया उसको लोग भूल न जाएं यही बताने के लिए मैंने अपना यह आलेख अपने विचारों के साथ लिखा है।