यह तत वह तत एक है, एक प्रान दुइ गात
अपने जिये से जानिये, मेरे जिय की बात
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि सभी लोगों की देह में जीव तत्व एक ही है। आपस में प्रेम करने वालों में कोई भेद नहीं होता क्योंकि दोनो के प्राण एक ही होता है। इस गूढ रहस्य को वे ही जानते हैं जो वास्तव में प्रेमी होते हैं
प्रीति ताहि सो कीजिये, जो आप समाना होय
कबहुक जो अवगुन पडै+, गुन ही लहै समोय
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि प्रीति उसी से करना चाहिए, जो अपने समान ही हृदय में प्रेम धारण करने वाले हों। यह प्रेम इस तरह का होना चाहिए कि समय-असमय किसी से भूल हो जाये तो उसे प्रेमी क्षमा कर भूल जायें।
वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-प्रेम किया नहीं हो जाता है यह फिल्मों द्वारा संदेश इस देश में प्रचारित किया जाता है। सच तो यह है कि ऐसा प्रेम केवल देह में स्थित काम भावना की वजह से किया जाता है। प्रेम हमेशा उस व्यक्ति के साथ किया जाना चाहिए जो वैचारिक सांस्कारिक स्तर पर अपने समान हो। जिनका हृदय भगवान भक्ति में रहता है उनको सांसरिक विषयों की चर्चा करने वाले लोग विष के समान प्रतीत होते हैं। यहां दिन में अनेक लोग मिलते है पर सभी प्रेमी नहीं हो जाते। कुछ लोग छल कपट के भाव से मिलते हैं तो कुछ लोग स्वार्थ के भाव से अपना संपर्क बढ़ाते हैं। भवावेश में आकर किसी को अपना सहृदय मानना ठीक नहीं है। जो भक्ति भाव में रहकर निष्काम से जीवन व्यतीत करता है उनसे संपर्क रखने से अपने आपको सुख की अनुभूति मिलती है।