रहीम के दोहःगुरु से शिक्षा लेकर अपनी राह चलें


कहते को कहिं जान दे, गुरू की सीख तू लेय
साकट जन और स्वान को, फेरि जवाब न देय

कविवर रहीम कहते है कि कहने वालों को कुछ भी कहने दो अपने गुरू की सीख लें और फिर अपने मार्ग पर चलें। अज्ञानी लोग और श्वान के भौंकने पर ध्यान न दें

वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-लोगों का काम है कहना। सच तो यह है कि अपने जीवन में वह लोग कोई भी उपलब्धि प्राप्त नहीं कर पाते जो जो इस तरह कहने पर ध्यान देकर कोई कदम नहीं उठाते। अपने गुरू से चाहे वह आध्यात्मिक हो या सांसरिक ज्ञान देने वाला उसे शिक्षा ग्रहण कर अपने जीवन पथ पर बेखटके चल देना चाहिए। अगर उसके बाद अगर किसी के कहने पर ध्यान देते हैं तो अकारण व्यवधान पैदा होगा और अपने मार्ग पर चलने में विलंब करने से हानि भी हो सकती है। एक बात मान कर चलिए यहां ज्ञान बघारने वालों की कमी नहीं है। ऐसे लोग जिन्हें किसी भक्ति या सांसरिक क्षेत्र का खास ज्ञान नहीं होता वह खालीपीली अपनी सलाहें देते हैं और अपने अनुभव भी ऐसे बताते हैं जो उनके खुद नहीं बल्कि किसी अन्य व्यक्ति ने उनको सुनाये होते हैं।

इतना ही नहीं जब अपने माग पर चलेंगे तो दस लोग टोकेंगे। आपके कार्यो की मीनमेख निकालेंगे और तमाम तरह के भय दिखाऐंगे। इन सबकी परवाह मत करो और चलते जाओ। यही जीवन का नियम है। हम देख सकते हैं जो लोग अपने जीवन में सफल हुए हैं उन्होंने अन्य लोगों की क्या अपने लोगों भी परवाह नहीं की। जिन्होनें परवाह की ऐसे असंख्य लोगों को हम अपने आसपास देख सकते हैं।

यह इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति-पत्रिका’ पर प्रकाशित है। यह व्याख्या मौलिक है तथा इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति नहीं है।

यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अनुभूति पत्रिका’ पर लिखा गया है। इस पर कोई विज्ञापन नहीं है। न ही यह किसी वेबसाइट पर प्रकाशन के लिये इसकी अनुमति दी गयी है।
इसके अन्य वेब पृष्ट हैं
1. शब्दलेख सारथी
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

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