अपने मन में है बस व्यापार
बाहर ढूंढते हैं प्यार
मन में ख्वाहिश
सोने, चांदी और धन
के हों भण्डार
पर दूसरा करे प्यार
मन की भाषा में हैं लाखों शब्द
पर बोलते हुए जुबान कांपती है
कोई सुनकर खुश हो जाये
अपनी नीयत पहले यह भांपती है
हम पर हो न्यौछावर
पर खुद किसी को न दें सहारा
बस यही होता है विचार
इसलिए वक्त ठहरा लगता है
छोटी मुसीबत बहुत बड़ा कहर लगता है
पहल करना सीख लें
प्यार का पहला शब्द
पहले कहना सीख लें
तो जिन्दगी में आ जाये बहार
—————–
यह कविता/लघुकथा पाठ मूल रूप से इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर लिखा गया है। इस पर कोई विज्ञापन नहीं है। न ही यह किसी वेबसाइट पर प्रकाशन के लिये इसकी अनुमति दी गयी है।
इस लेख के अन्य बेवपत्रक/पत्रिकाएं नीचे लिखी हुईं हैं
1. अनंत शब्दयोग
2.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
4.दीपक भारतदीप की हिंदी पत्रिका
कवि एवं संपादक-दीपक भारतदीप
उधार की बैसाखियाँ
आकाश में चमकते सितारे भी
नहीं दूर कर पाते दिल का अंधियारा
जब होता वह किसी गम का मारा
चन्द्रमा भी शीतल नहीं कर पाता
जब अपनों में भी वह गैरों जैसे
अहसास की आग में जल जाता
सूर्य की गर्मी भी उसमें ताकत
नहीं पैदा कर पाती
जब आदमी अपने जज्बात से हार जाता
कोई नहीं देता यहाँ मांगने पर सहारा
इसलिए डटे रहो अपनी नीयत पर
चलते रहो अपनी ईमान की राह पर
इन रास्तों की शकल तो कदम कदम पर
बदलती रहेगी
कहीं होगी सपाट तो कहीं पथरीली होगी
अपने पाँव पर चलते जाओ
जीतता वही है जो उधार की बैसाखियाँ नहीं माँगता
जिसने ढूढे हैं सहारे
वह हमेशा ही इस जंग में हारा
यह कविता/लघुकथा पाठ मूल रूप से इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर लिखा गया है। इस पर कोई विज्ञापन नहीं है। न ही यह किसी वेबसाइट पर प्रकाशन के लिये इसकी अनुमति दी गयी है।
इस लेख के अन्य बेवपत्रक/पत्रिकाएं नीचे लिखी हुईं हैं
1. अनंत शब्दयोग
2.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
4.दीपक भारतदीप की हिंदी पत्रिका
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
टिप्पणियाँ
बहुत बढिया कहा-
जीतता वही है जो उधार की बैसाखियाँ नहीं माँगता
जिसने ढूढे हैं सहारे
वह हमेशा ही इस जंग में हारा