इन्टरनेट का ताला और पाठ चोर (हास्य व्यंग्य)


कभी कभी यह मन होता है कि किसी ब्लाग लेखक के लिखे पाठ के विषय पर कुछ हम भी लिखें। इसका कारण यह है कि किसी भी विषय के अनेक दृष्टिकोण होते हैं और किसी अन्य लेखक के विषय ने अपने दृष्टिकोण से लिखा होता है तो हमारे मन में यह आता है कि अन्य दृष्टिकोण से उस पर लिखें और इसके लिये अगर उस लेखक की कुछ पंक्तियां अपने पाठ में उद्धृत करें तो अच्छा रहेगा। अंतर्जाल पर लिखते हुए इस मामलें में एक आसानी होती है कि उस लेखक की पंक्तियां कापी कर उसे अपने पाठ पर लिखें ताकि पाठकों को यह पता लगे कि अन्य लेखक ने भी उस पर कुछ लिखा है। इससे दोनों लेखकों का दृष्टिकोण पाठकों के समक्ष आता है।

मगर अब समस्या यह आने लगी है कि दूसरों की देखा देखी हमने भी अपने ब्लाग पर ताला लगा दिया है। इसलिये किसी की शिकायत तो कर ही नहीं सकते क्योंकि अंतर्जाल पर अपने पाठों की चोरी की समस्या से अनेक लेखक परेशान हैं। हमारे लिये कभी अधिक परेशानी नहीं रही क्योंकि हमारा लिखा चुराने लायक हैं यह नहीं लगता पर दूसरों की देखा देखी ताला लगा दिया तो लगा दिया। हम किसी के पाठ की चोरी नहीं करते पर जिसका विषय पसंद आये उस पर लिखते हैं और उस लेखक का उल्लेख करने में हमें कोई झिझक नहीं होती-सोचते हैं हो सकता है कि उसके नाम से हम भी कहीं हिट हो जायें। अब जाकर अपने ब्लाग/पत्रिका पर ताला भी इसलिये नहीं लगाया कि हमें अपने पाठ के चोरी होने का खतरा है बल्कि पाठकों और मित्रों को लगे कि ऐसा लिखता होगा कि उसे चोरी का खतरा अनुभव होता है।

बात करें ब्लाग/पत्रिका पर ताले के चोरी होने की। यह एक ऐसा साफ्टवेयर है जिसको अपने ब्लाग पर लिंक करने पर उसके पाठ की कोई कापी नहीं कर सकता। हालांकि इसका कोई तोड़ नहीं होगा यह कहना कठिन है क्योंकि अंतर्जाल पर अनेक तकनीकी खिलाड़ी ऐसे हैं जो तालों को तोड़ने वाले हथोड़े या तालियां बनाकर उसे तोड़ भी सकते हैं। वैसे भी मनुष्य में रचनात्मक विचार से अधिक विध्वंस की भावना अधिक होती है। इस ताले की वजह से हमें तीन चार बार स्वयं ही परेशानी झेलनी पड़ी। उस दिन एक मित्र ब्लाग लेखक का पाठ हमें बहुत अच्छा लगा। सोचा चलो कि उसके अंश लेकर अपने ब्लाग/पत्रिका पर चाप देते हैं और साथ में अपनी बात भी जोड़ लेंगे। जब उसकी कापी करने लगे तो वहां कर्सर काम नहीं कर रहा था। बहुत माथापच्ची की। फिर उनके ब्लाग का मुआयना किया तो देखा कि वहां एक साफ्टवेयर का लिंक है जो इसके लिये इजाजत नहीं देगा हालांकि उसके साथ ताले का लिंक भी था पर हमें वह दिखाई नहीं दिया। मन मारकर हमें अपना इरादा बदलना पड़ा। तब हमने उसी साफ्टवेयर का लिंक अपने ब्लाग पर लगाया। मगर देखा कि अनेक लोग अपनी टिप्पणियों में हमारे पाठ की कापी कर टिप्पणियां कर रहे हैं। तब हैरानी हुई। हमने सोचा चलने दो। दो तीन दिन पहले एक ब्लाग के ताले पर नजर पड़ी। तब वहां से हमने ताले का साफ्टवेयर लिया और अपने ब्लाग@पत्रिकाओं पर लगा दिया। इस तरह अपना ब्लाग सुरक्षित कर लिया।

किसी ने विरोध नहीं किया पर आज एक ब्लाग से जब पाठ का अंश लेने का विचार आया तो देखा कि वहां ताला लगा हुआ है। सच बात तो यह है कि यह ताला इसलिये लगाया जाता है कि कोई मेहनत से लिखे गये पाठों से कापी नहीं कर सके मगर मुश्किल इसमें यह आने वाली है कि इससे आपस में एक दूसरे से जुड़े ब्लाग लेखक उन ब्लाग के पाठों की कापी नहीं कर पायेंगे जिन पर ताले लगे हुए हैं और वह उन पर लिखना चाहते हैं। हालांकि इसका एक तरीका यह भी है कि अपने मित्र ब्लाग लेखक को ईमेल कर उस पाठ की कापी मांगी जा सकती है और वह दे भी देंगे पर लिखने का एक मूड और समय होता है। ईमेल भेजने और उत्तर आने के बीच मूड और समय के बदलने की पूरी गुंजायश होती है।

वैसे भी ताले केवल सामान्य इंसान का मार्ग अवरुद्ध करता है। चोर उठाईगीरे और डकैतों के लिये निर्जीव ताले कोई अवरोध नहीं खड़े कर पाते। अंतर्जाल पर जिस तरह की घटनायें सुनने को मिलती हैं उससे तो नहीं लगता कि ताला उनके लिये कोई अवरोध खड़ कर पायेगा। जिस तरह समाज की स्थिति है उससे अंतर्जाल अलग तो हो नहीं सकता। जिस तरह समाज में विध्वसंक और विलासी लोगों के बाहुल्य है वैसी ही हालत इंटरनेट पर भी है। रचनात्मक लोगां की कमी यहां भी है अगर ऐसा नहीं होता तो हिंदी में लिखने वालों की संख्या देश की हिंदी आबादी के हिसाब से इतनी कम नहीं होती। इतने सारे इंटरनेट कनेक्शन हैं और सर्च इंजिनों पर हिंदी भाषियों की खोज का दृष्टिकोण देखें तो वह फिल्मी अभिनेत्रियों पर केंद्रित है।
भले ही किसी ब्लाग लेखक का पाठ उपयोग न हो पर ताला तोड़कर अपनी तकनीकी शक्ति का प्रदर्शन करने वाले भी यहां आत्मसंतुष्टि के लिये कर सकते हैं। हो सकता है कि कुछ तकनीकी जानकार पढ़ने लिखने की बजाय ब्लाग पर लगा ताला देखकर ही उसका तोड़ निकालने में ही अपना समय नष्ट करें क्योंकि कुछ लोगों को विध्वंस करने में मजा आता है। हम अपने आसपास कई ऐसे लोग देख सकते हैं जो किसी बेहतर चीज को देखकर उससे प्रसन्न होने की बजाय उसके नष्ट होने के उपायों पर विचार करने लगते हैं।
………………..

यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की हिन्दी-पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिकालेखक संपादक-दीपक भारतदीप

Post a comment or leave a trackback: Trackback URL.

टिप्पणियाँ

  • adhooribaat  On अप्रैल 7, 2009 at 18:25

    satya vachan…….

  • अनूप शुक्ल  On मार्च 25, 2009 at 17:09

    हम अपने आसपास कई ऐसे लोग देख सकते हैं जो किसी बेहतर चीज को देखकर उससे प्रसन्न होने की बजाय उसके नष्ट होने के उपायों पर विचार करने लगते हैं।
    सत्य वचन!

एक उत्तर दें

Please log in using one of these methods to post your comment:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  बदले )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  बदले )

Connecting to %s

%d bloggers like this: