राम और रावण की भूमिका-लघुकथा


वह स्वस्थ्य सुंदर युवक रामलीला मंडली में भगवान श्री राम की भूमिका निभाता था। इसी कारण लोग उसको राम जैसा सम्मान देते थे। उसका आचरण भी बहुत अच्छा था। उसके अंदर कोई व्यसन नहीं था। वह हमेशा मीठी वाणी में बोलता, दूसरों की सहायता करता और अपने काम से समय मिलने पर भक्ति करता था। समय ने करवट ली। उसकी आयु बढ़ने लगी। मंडली के संचालक अनुभव करने लगे कि राम का पात्र निभाने के लिये जो कोमल वाणी और चेहरा चाहिये वह उसमें नहीं रहा। चूंकि वह कलाकार अच्छा था इसलिये उसे रावण का रोल दिया जाने लगा।
उसका जैसे चरित्र ही बदल गया। अब वह शराब पीने लगा। घर पर पत्नी और बच्चों से मारपीट कर वह पूरे मोहल्ले में बदनाम हो गया। लोग कहते थे कि ‘जैसे रावण की भूमिका करता है वैसा ही उसका चरित्र हो गया है।
वह शराब पीकर सड़कों पर गिरता। लोगों से अनावश्यक बहस करता। धीरे धीरे उसका अपने अभिनय पर बुरा प्रभाव पड़ने लगा। तब उसे मंडली ने निकाल दिया। वह गिड़गिड़ाया और कहने लगा कि ‘मैं अकेला ही घर में कमाने वाला आदमी हूं। मेरे जवान बच्चे हैं और पढ़ रहे हैं। पूरा घर तबाह हो जायेगा।’
तब एक संचालक ने उससे कहा-‘अब तुम रामलीला में अभिनय लायक नहीं रहे। हां, तुम अपना घर को बचाना चाहते हो तो अपना बड़ा लड़का राम के अभिनय के लिये हमें दे दो। हम उसको अच्छा मेहनताना देंगे।’
वह तैयार हो गया। जिस दिन उसका लड़का पहली बार अभिनय करने जा रहा था तो उसने उससे कहा-’जब तक राम के पात्र का अभिनय करने को मिले ठीक है पर कभी रावण के पात्र का अभिनय मत करना। जब इस तरह की भूमिका का प्रस्ताव मिलने लगे तब यह व्यवसाय छोड़ देना।’
बेटे ने पूछा-‘क्यों पापा?’
उसने प्रतिप्रश्न किया-जब तू छोटा था तब मैं तुझे कैसा लगता था।’
बेटे ने कहा-‘बहुत अच्छे!’
उसने फिर पूछा-‘अब कैसा लगता हूं?’
बेटा खामोश हो गया तो पिता ने कहा-‘जब मैं राम का अभिनय करता था तब मेरे अंदर वैसे ही भाव आते थे। भले ही अभिनय के बाद मैं राम नहीं रहता था पर मेरे भाव हमेशा ही मेरे साथ रहते थे। जब रावण के पात्र के रूप में अभिनय करने लगा तब मेरे अंदर वैसे ही भाव आते गये। आज मेरी छबि खराब है पर पहले अच्छी थी। रामलीला में करें या जिंदगी में जैसा अभिनय आदमी करता है वैसे ही उसके भाव हो जाते हैं। तुम कभी भी रावण का अभिनय नहीं करना।’
बेटे ने स्वीकृति में सिर हिलाया और बाहर निकल गया।
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