अंतर्मन-हिंदी कविता (anatarman-nindi sahitya kavita)



आँखों से देखे का अहसास
कौन कराता है.
कानों से सुने का
अर्थ कौन समझाता है.
हाथों से छुए का स्पर्श कौन दिखाता है.
मुहँ के पकवान का
स्वाद कौन उठाता है.
अरे, उस अंतर्मन को तुम नहीं जानते
इसलिए भटकते हुए
जिंदगी की राह चले जा रहे हो
अपनी अंहकार की अग्नि में जले जा रहे हो
बोलता नहीं है वह
पर होकर मौन तुम्हें रास्ता दिखाता है.

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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

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टिप्पणियाँ

  • Sukhmangal Singh  On जून 8, 2016 at 05:29

    रचना सुन्दर ! आपकी रचना का आशय हो सकता है कि जीवन को बचाने के लिए सम्मान का भाव आवश्यक और वह सम्मान प्रकृति का , जिसने हमें जीवन जीने में सहायक ही नही उसीपर निर्भर हैं आकाश जो हमें थाम्हे है पृथ्वी जिसपर कर्मों सहित हम टिके हैं जल जिसे पीकर हम ज़िंदा रहते हैं और हवा में हम सांस लेते है इसीक्रम में नदी का भी सम्मान करना होगा जो जीवन दायनी देवी कही जाती रही है |

  • Sukhmangal Singh  On जून 7, 2016 at 05:06

    बहुत सुंदर रचना बधाई

  • परमजीत बाली  On अगस्त 3, 2009 at 15:26

    sundar racanaa hai.

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