गुलाम राज-त्रिपदम (gulam raj-tripadam)


गुलाम राज
कर रहे हैं यहां
गुलाम पर।

कोई छोटा है
कोई उससे बड़ा
यूं नाम भर।

हुक्म चले
नहीं पहुंचता है
मुकाम पर।

कागजी नाव
तैरती दिखती है
यूं काम पर।

बड़ा इलाज
महंगा मिलता है
जुकाम पर।

खोई जिंदगी
ढूंढ रहे हैं
लोग दुकान पर।

दर्द पराया
सस्ता बतलाते
जुबान पर।

शिक्षा के नाम
पट्टा बंध रहा है
गुलाम पर।

जड़ शब्द
कैसे तीर बनेंगे
कमान पर।

आजादी नारा
मूर्ति जैसे टांगे हैं
गुलाम घर।

जो खुद बंधे
आशा कैसे टिकायें
गुलाम पर।
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कवि,लेखक और संपादक, दीपक भारतदीप,ग्वालियर
http://dpkraj.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
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टिप्पणियाँ

  • Jandunia  On अक्टूबर 22, 2009 at 20:41

    गुलामी पर अच्छी कविता है…उम्मीद है इस तरह की कविताएं आगे भी पढ़ने को मिलती रहेंगी

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