ब्लाग लोकतंत्र का पांचवां नहीं चौथा स्तंभ ही है-आलेख (blog is forth pillar-hindi article)


भारत में इंटरनेट प्रयोक्ताओं की संख्या सात करोड़ से ऊपर है-इसका सही अनुमान कोई नहीं दे रहा। कई लोग इसे साढ़े बारह करोड़ बताते हैं। इन प्रयोक्ताओं को यह अनुमान नहीं है कि उनके पास एक बहुत बड़ा अस्त्र है जो उनके पास अपने अनुसार समाज बनाने और चलाने की शक्ति प्रदान करता है-बशर्ते उसके उपयोग में संयम, सतर्कता और चतुरता बरती जाये, अन्यथा ऐसे लोगों को इस पर नियंत्रण करने का अवसर मिल जायेगा जो समाज को गुलाम की तरह चलाने के आदी हैं।

यह इंटरनेट न केवल दृश्य, पठन सामग्री तथा समाचार प्राप्त करने के लिये है बल्कि हमें अपने फोटो, लेखन सामग्री तथा समाचार संप्रेक्षण की सुविधा भी प्रदान करता है। कहने का तात्पर्य यह है कि हम केवल प्रयोक्ता नहीं निर्माता और रचयिता भी बन सकते हैं। अनेक वेबसाईट-जिनमें ब्लागस्पाट तथा वर्डप्रेस मुख्य रूप से शामिल हैं- ब्लाग की सुविधा प्रदान करती हैं। अधिकतर सामान्य प्रयोक्ता सोचते होंगे कि हम न तो लेखक हैं न ही फोटोग्राफर फिर इन ब्लाग की सुविधा का लाभ कैसे उठायें? यह सही है कि अधिकतर साहित्य बुद्धिजीवी लेखकों द्वारा लिखा जाता है पर यह पुराने जमाने की बात है। फिर याद करिये जब हमारे बुजुर्ग इतना पढ़े लिखे नहीं थे तब भी आपस में चिट्ठी के द्वारा पत्राचार करते थे। आप भी अपनी बात इन ब्लाग पर बिना किसी संबंोधन के एक चिट्ठी के रूप में लिखने का प्रयास करिये। अपने संदेश और विचारों को काव्यात्मक रूप देने का प्रयास हर हिंदी नौजवान करता है। इधर उधर शायरी या कवितायें लिखवाकर अपनी मित्र मंडली में प्रभाव जमाने के लिये अनेक युवक युवतियां प्रयास करते हैं। इतना ही नहीं कई बार अपने ज्ञान की अभिव्यक्ति के लिये तमाम तरह के किस्से भी गढ़ते हैं। यह प्रयास अगर वह ब्लाग पर करें तो यह केवल उनकी अभिव्यक्ति को सार्वजनिक रूप ही नहीं प्रदान करेगा बल्कि समाज को ऐसी ताकत प्रदान करेगा जिसकी कल्पना वह नहीं कर सकते।

आप फिल्म, क्रिकेट,साहित्य,समाज,उद्योग व्यापार, पत्र पत्रिकाओं, टीवी चैनल तथा उन अन्य क्षेत्रों को देखियें जिससे बड़े वर्ग द्वारा छोटे वर्ग पर प्रभाव डाला जा सकता है वहां पर कुछ निश्चित परिवारों या गुटों का नियंत्रण है। यहां प्रभावी लोग जानते हैं कि यह सभी प्रचार साधन उनके पास ऐसी शक्ति है जिससे वह आम लोगों को अपने हितों के अनुसार संदेश देख और सुनाकर उनको अपने अनुकूल बनाये रख सकते हैं। क्रिकेट में आप देखें तो अनेक वर्षों तक एक खिलाड़ी इसलिये खेलता  है क्योंकि उसे पीछे खड़े आर्थिक शिखर पुरुष उसका व्यवसायिक उपयोग करना चाहते हैं। फिल्म में आप देखें तो अब घोर परिवारवाद आ गया है। सामान्य युवकों के लिये केवल एक्स्ट्रा में काम करने की जगह है नायक के रूप में नहीं। कहने का तात्पर्य यह है कि हमारे आर्थिक, सामाजिक तथा प्रचार के शिखरों पर जड़ता है। आप पत्र पत्रिकाओं में अगर लेख पढ़ें तो पायेंगे कि उसमें या तो अंग्रेजी के पुराने लेखक लिख रहे हैं या जिनको किसी अन्य कारण से प्रतिष्ठा मिली है इसलिये उनके लेखन को प्रकाशित किया जा रहा है। पिछले पचास वर्षों में कोई बड़ा आम लेखक नहीं आ पाया। यह केवल इसलिये कि समाज में भी जड़ता है। याद रखिये जब राजशाही थी तब यह कहा जाता था कि ‘यथा राजा तथा प्रजा’, पर लोकतंत्र में ठीक इसका उल्टा है। इसलिये इस जड़ता के लिये सभी आम लोग जिम्मेदार हैं पर वह शिखर पर बैठे लोगों को दोष देकर अपनी असमर्थता जाहिर करते हैं कि ‘क्या किया जा सकता है।’

इस इंटरनेट पर जरा गौर करें। अक्सर आप लोग देखते होंगे कि समाचार पत्र पत्रिकाओं में में उसकी चर्चा होती है। आप सुनकर आश्चर्य करेंगे कि इनमें से कई ऐसे आलेख होते हैं जिनको इंटरनेट पर ब्लाग से लिया जाता है-जब किसी का नाम न दिखें तो समझ लें कि वह कहीं न कहीं इंटरनेट से लिया गया है। यह सब इसलिये हो रहा है क्योंकि अधिकतर इंटरनेट प्रयोक्ता केवल फोटो देखने या अपने पढ़ने के लिये बेकार की सामग्री पढ़ने में व्यस्त हैं। उनकी तरफ से हिंदी भाषी लेखकों के लिये प्रोत्साहन जैसा कोई भाव नहीं है। ऐसा कर आप न अपना समय जाया कर रहे हैं बल्कि अपने समाज को जड़ता से चेतन की ओर ले जाने का अवसर भी गंवा रहे हैं। वह वर्ग जो समाज को गुलाम बनाये रखना चाहता है कि फिल्मी अभिनेता अभिनेत्रियों के फोटो देखकर आप अपना समय नष्ट करें क्योंकि वह तो उनके द्वारा ही तय किये मुखौटे हैं। आपके सामने टीवी और समाचार पत्रों में भी वही आ रहा है जो उस वर्ग की चाहत है। ऐसे में आपकी मुक्ति का कोई मार्ग नहीं था तो झेल लिये। अब इंटरनेट पर ब्लाग और ट्विटर के जरिये आप अपना संदेश कहीं भी दे सकते हैं। इस पर अपनी सक्रियता बढ़ाईये। जहां तक इस लेखक का अनुभव है कि एक एस. एम. एस लिखने से कम मेहनत यहां पचास अक्षरों का एक पाठ लिखने में होती है। जहां तक हो सके हिंदी में लिखे गये ब्लाग और वेबसाईट को ढूंढिये। स्वयं भी ब्लाग बनाईये। भले ही उसमें पचास शब्द हों। लिखें भले ही एक माह में एक बार। अगर आप समाज के सामान्य आदमी है तो बर्हिमुखी होकर अपनी अभिव्यक्ति दीजिये। वरना तो समाज का खास वर्ग आपके सामने मनोरंजन के नाम पर कार्यक्रम प्रस्तुत कर आपको अंतर्मुखी बना रहा है ताकि आप अपनी जेब ढीली करते रहें। आप किसी से एस. एम. एस. पर बात करने की बजाय अपने ब्लाग पर बात करें वह भी हिंदी में। ऐसे टूल उपलब्ध हैं कि आप रोमन में लिखें तो हिंदी हो जाये और हिंदी में लिखें तो यूनिकोड में परिवर्तित होकर प्रस्तुत किये जा सकें।
याद रखें इस पर अपनी अभिव्यक्ति वैसी उग्र या गालीगलौच वाली न बनायें जैसी आपसी बातचीत में करते हैं। ऐसा करने का मतलब होगा कि उस खास वर्ग को इस आड़ में अपने पर नियंत्रण करने का अवसर देना जो स्वयं चाहे कितनी भी बदतमीजी कर ले पर समाज को तमीज सिखाने के लिये हमेशा नियंत्रण की बात करते हुए धमकाता है।
प्रसंगवश यहां यह भी बता दें कि यह ब्लाग भी पत्रकारिता के साथ ही चौथा स्तंभ है पांचवां नहीं जैसा कि कुछ लोग कह रहे हैं। सीधी सी बात है कि विधायिका, कार्यपालिका, न्याय पालिका और पत्रकारिता चार स्तंभ हैं। इनमें सभी में फूल लगे हैं। विधायिका में अगर हम देखें तो संसद, विधानसभा, नगर परिषदें और ग्राम पंचायतें आती हैं। कार्यपालिका में मंत्री, संतरी,अधिकारी और लिपिक आते हैं। न्याय पालिका के विस्तारित रूप को देखें तो उसमें भी माननीय न्यायाधीश, अधिवक्ता, वादी और प्रतिवादी होते हैं। उसी तरह पत्रकारिता में भी समाचार पत्र, पत्रिकायें, टीवी चैनल और ब्लाग- जिसको हम जन अंतर्जाल पत्रिका भी कह सकते हैं- आते हैं। इसे लोकतंत्र का पांचवां स्तंभ केवल अभिव्यक्ति के इस जन संसाधन का महत्व कम करने के लिये प्रचारित किया जा रहा है ताकि इस पर लिखने वाले अपने महत्व का दावा न करे।

कहने का तात्पर्य यह है कि हिंदी के ब्लाग जगत में आपकी सक्रियता ही इंटरनेट या अंतर्जाल पर आपको प्रयोक्ता के साथ रचयिता बनायेगी। जब ब्लाग आम जन के जीवन का हिस्सा हो जायेगा तक अब सभी क्षेत्रों में बैठे शिखर पुरुषों का हलचल देखिये। अभी तक वह इसी भरोसे हैं कि आम आदमी की अभिव्यक्ति का निर्धारण करने वाला प्रचारतंत्र उनके नियंत्रण में इसलिये चाहे जैसे अपने पक्ष में मोड़ लेंगे। हालांकि अभी हिंदी ब्लाग जगत अधिक अच्छी हालत में नहीं है- इसका कारण भी समाज की उपेक्षा ही है-तब भी अनेक लोग इस पर आंखें लगाये बैठे हैं कि कहीं यह माध्यम शक्तिशाली तो नहीं हो रहा। इसलिये पांचवां स्तंभ या रचनाकर्म के लिये अनावश्यक बताकर इसकी उपेक्षा न केवल स्वयं कर रहे हैं बल्कि समाज में भी इसकी चर्चा इस तरह कर रहे हैं कि जैसे इसको बड़े लोग-जैसे अभिनेता और प्रतिष्ठत लेखक-ही बना सकते हैं। जबकि हकीकत यह है कि अनेक ऐसे ब्लाग लेखक हैं जो अपने रोजगार से जुड़े काम से आने के बाद यहां इस आशा के साथ यहां लिखते हैं कि आज नहीं तो कल यह समाज में जनजन का हिस्सा बनेगा तब वह भी आम लोगों के साथ इस समाज को एक नयी दिशा में ले जाने का प्रयास करेंगे। इसलिये जिन इंटरनेट प्रयोक्ताओं की नजर में यह आलेख पड़े वह इस बात का प्रचार अपने लोगों से अवश्य करें। याद रखें यह लेख उस सामान्य लेखक है जो लेखन क्षेत्र में कभी उचित स्थान न मिल पाने के कारण यह लिखने आया है।
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com

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यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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टिप्पणियाँ

  • Dr. Smt. ajit gupta  On अक्टूबर 27, 2009 at 08:58

    आपने प्रेरणास्‍पद लिखा है। हमारी युवापीढी यदि सृजनात्‍मकता की ओर मुड़ जाए तब इस देश का भविष्‍य ही नहीं वर्तमान भी सुधर जाएगा। बधाई।

  • महफूज़ अली  On अक्टूबर 26, 2009 at 23:07

    jee…… bahut achcha laga ….. (blog is forth piller-hindi article)"yahan fourth pillar hoga…. saadar dhanyawaad………….

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