वह अपने भाषण में गरज़ रहे थे-‘आज हमारे शहर की कानून व्यवस्था की स्थिति बहुत खराब है। कोई भी सुरक्षित नहीं है। माता बहिनों को घर से निकलते हुए डर लगता है। कोई आदमी अधिक पैसा जेब में रखकर डरता सड़क पर चलता है। अरे, पर कई लोग तो इसलिये पैसे जेब में रखकर निकलते हैं कि कोई लुटेरा लूटने के लिये हथियार लेकर रास्ते में खड़ा हो और न देने पर निराशा में कहीं हमला न कर बैठै। हा……..हा….’’
एक श्रोता बोल पड़ा-‘आप क्यों कानून व्यवस्था की फिकर करते हैं। आपके साथ तो चार बंदूकधारी पहरेदार है न! कोई खतरा नहीं है फिर कानून व्यवस्था की स्थिति खराब कैसे हैं?’
इससे पहले कि वह कुछ कहते उनके चेले चपाटों ने मंच से उतरकर उस श्रोता पर अपने हाथ साफ कर दिये। वहां खड़े अन्य श्रोताओं ने उसको अधिक पिटने से बचाया।
तब वह बोले-‘अरे भाई, देख लिया न कितनी कानून व्यवस्था की स्थिति खराब है! यह देखो बंदूकधारी पहरेदार खड़े देखते रहे और तुम पिटते रहे। वैसे मेरे चेलों के लिये यह शर्म की बात है।’
फिर वह अपने चेलों ने बोले-‘हट जाओ, ऐसे किसी पर हमला नहीं करना चाहिये। तुम्हें अपनी दमदार आदमी की छबि बनानी है ताकि लोग डरें तो भाई मुझे भले आदमी की छबि बनानी है। एक बात याद रखना हमारी छबि खराब हुई तो तुम्हारी भी बनने वाली नहीं है।’
फिर वह उस श्रोता से बोले-‘हमारा उद्देश्य हम जैसे बड़े लोगों से नहीं तुम जैसे आम आदमी की सुरक्षा और अन्य परेशानियों से है। तुम इतना नहीं समझते! आइंदा ध्यान रखना वरना ऐसे हादसे होते रहेंगे। बड़े लोग भले हों पर उनके चेले चपाटे भी वैसे हों यह जरूरी नहीं है, और कानून व्यवस्था के खराब होने का मतलब तो तुम समझ ही गये होगे।’
वह श्रोता दुःखी मन से वहां से चला गया और भाषण जारी रहा।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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