फिर दुनियां हैरान क्यों, जरा बताना-हिन्दी व्यंग्य कविता


दूसरे की आस्था को कभी न आजमाना,
शक करता है तुम पर भी यह ज़माना।
अपना यकीन दिल में रहे तो ठीक,
बाहर लाकर उसे सस्ता न बनाना।
हर कोई लगा है दिखाने की इबादत में
फिर दुनियां हैरान क्यों, जरा बताना।
सिर आकाश में तो पांव जमीन पर हैं,
हद में रहकर, अपने को गिरने से बचाना।।
अपनी राय बघारने में कुशल है सभी लोग,
जिंदगी की हकीकत से हर कोई अनजाना।
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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anant-shabd.blogspot.com

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टिप्पणियाँ

  • Osho Rajneesh  On अगस्त 30, 2010 at 22:58

    अच्छी कविता लिखी है आपने ………. आभार
    ..
    कुछ लिखा है, शायद आपको पसंद आये —
    (क्या आप को पता है की आपका अगला जन्म कहा होगा ?)
    http://oshotheone.blogspot.com

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