गद्दार अपना शिकार चुन रहा हो-हिन्दी शायरी (gaddar aur shikar-hindi shayari)


अपनी कमीज़ वह दूसरे से
अधिक उजियारी जरूर करेंगे,
दौलत के साबुन से अपनी
छवि चमकाने की कोशिश में
चरित्र पर दाग भले ही लग जाये
मगर ज़माने में
अपनी गरीब छवि वह दूर करेंगे।
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देशभक्ति की बात करते हुए
अब सभी को डर लगता है
क्योंकि पता नहीं कब और
कौन गद्दार सुन रहा हो,
बिक रहे हैं पहरेदार सरेआम
बचाने निकले जब हम देश को
नज़र न पड़ जाये किसी गद्दार की
लिये ईमानदारी की शपथ जो
अपना शिकार चुन रहा हो।
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कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का  चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका

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