आम इंसानों के हालत कभी हमें बदलते नहीं दिखते,
भलाई के सौदागर तख्त पर बैठ जाते नये वादे लिखते।
कहें दीपक बापू नया चेहरा पर्दे पर ताजगी ले आता है,
अदायें होती पुरानी वह जल्दी स्वाद में बासी हो जाता है।
गरीब को अमीर बनाने की रोज बनती यहां नयी योजना,
फिर भी सड़क पर कचड़े में भूखों को रोटी पड़ती है खोजना।
इतिहास पर लिखे गये ढेरों कागज की स्याही में नहाये हैं,
मेहनतकशों के पसीने से बने सोने सफेदपोश लुटेरों ने पाये हैं।
बैखौफ हैं बहशी इंसान पहरेदारों से कर ली यारी,
कसूरवारों चुका रहे हफ्ता नहीं आती फंसने की बारी।
खबरचियों को सनसनी पर बहस में चाहिये रोज मसाला,
ज़माने की भलाई के दावे कमाई के आगे नहीं टिकते।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश
writer and poet-Deepak raj kukreja “Bharatdeep”
Gwalior Madhyapradesh
लेखक और संपादक-दीपक “भारतदीप”,ग्वालियर
poet, writer and editor-Deepak ‘BharatDeep’,Gwalior
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