अपना खून सभी को
प्यारा है
पराया पानी लगता है।
दूसरे के दर्द पर
झूठे आंसु बहाते
या हास्य रस बरसाते
अपने दिल पर लगे भाव जैसा
नहीं सानी लगता है।
कहें दीपक बापू औपचारिकता से
निभाते हैं लोग संबंध,
नहीं रहती आत्मीयता की सुगंध
भावनाओं की आड़ में
हर कहीं शब्दों का
दानी ही सभी को ठगता है।
———————–
सम्मान पाने के मोह में
संत कवि और समाज सेवक का
वेश लोग बना लेते हैं।
एक से काम बन जाये
दूसरा भी आजमाते
कमजोर दिमाग के होते
मजबूत दिखने के लिये
सिर और मुख पर
केश भी तना लेते हैं।
कहे दीपक बापू प्रचार पाने के लिये
कोई चुटकुले सुनाता,
कोई शायरी गुनगनाता,
पर्दे पर जमे रहने के लिये
हर कोई नया रास्ता बनाता है,
जनहित से वास्ता जताता है,
जरूरत पड़े तो
अपना इलाका देश भी बना लेते हैं।
———————-
दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक ‘भारतदीप”,ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak ‘BharatDeep’,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका