नया साल और नशा-हिन्दी व्यंग्य कविताये(naya sal aur nasha-hindi satire poem


शराब पीते नहीं

मांस खाना आया नहीं

वह अंग्रेजी नये वर्ष का

स्वागत कहां कर पाते हैं।

भारतीय नव संवत् के

आगमन पर पकवान खाकर

प्रसन्न मन होता है

मजेदार मौसम का

आनंद भी उठाते हैं।

कहें दीपक बापू विकास के मद में,

पैसे के बड़े कद में,

ताकत के ऊंचे पद मे

जिनकी आंखें मायावी प्रवाह से

 बहक जाती हैं,

सुबह उगता सूरज

देखते से होते वंचित

रात के अंधेरे को खाती

कृत्रिम रौशनी उनको बहुत भाती है,

प्राचीन पर्वों से

जिनका मन अभी भरा नहीं है,

मस्तिष्क में स्वदेशी का

सपना अभी मरा नहीं है,

अंग्रेजी के नशे से

वही बचकर खड़े रह पाते हैं।

———————

चालाक और क्रूर इंसान के लिये

पूरा ज़माने के

सभी लोग खिलौना है।

कभी खून बहाते

दिल से उसमें नहाते

इंसानियत का प्रश्न

उनके सामने बौना है।

कहें दीपक बापू हथियारों पर

चलती है जिनकी जिंदगी

दया का अर्थ नहीं जानते,

खून और पानी में

अंतर नहीं मानते,

मिलाकर हाथ उनसे

अपना सुकून खोना है।

————————–

—-

 

Post a comment or leave a trackback: Trackback URL.

एक उत्तर दें

Please log in using one of these methods to post your comment:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  बदले )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  बदले )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  बदले )

Connecting to %s

%d bloggers like this: