महंगाई तो यूं ही
बढ़ती जायेगी।
भावनायें होंगी सस्ती
हृदय में संवेदनशीलता
घटती जायेगी।
कहें दीपक बापू भरे पेट से
सर्वशक्तिमान की हो
या देश की
भक्ति सहजता से होती है,
रोटी की तलाश में नाकामी
अपने से ही विश्वास खोती है,
मजबूरी बढ़ेगी जितनी
इंसानों में वफादारी उतनी ही
घटती जायेगी।
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निरर्थक विषय पर
बोलें या मौन रहें
कई बार भ्रम हो जाता है।
इंसानों के वादे पर
यकीन करें या उपेक्षा
सोच का क्रम खो जाता है।
कहें दीपक बापू घरती पर
फरिश्ते पैदा होते नहीं
आकाश से टपकना भी मुश्किल
इंसान के बने अंतरिक्ष यानों के बीच
मार्ग ढूंढते ढूंढते ही
उनका पूरा श्रम हो जाता है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक ‘भारतदीप”,ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak ‘BharatDeep’,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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