Category Archives: कहानी

आम भक्त,विशिष्ट भक्त-लघु हास्य व्यंग्य


गुरुजी टूथपेस्ट कर रहे थे और खास चेला पास में खड़ा था। गुरुजी ने पूछा-‘बाहर की क्या खबर है?’
चेले ने कहा-‘गुरुजी, आज तो बहुत सारे विशिष्ट भक्त आये हैं। आपसे मिलने को आतुर हो रहे हैं। मैंने सबसे कह दिया कि गुरु जी तो इस समय ध्यान कर रहे हैं। इसलिये देर से दर्शन होंगे।
गुरुजी ने कहा-‘कल तुम्हारे चक्कर में अधिक पी ली तो आज देर से नींद खुली है। अभी चाय पीकर टूथपेस्ट कर रहा हूं। फिर नहाधोकर आता हूं। तब तक लोगों से कहो कि गुरुजी आज खास ध्यान कर रहे हैं। वैसे बाहर कितनी भीड़ है?’
चेले ने कहा-‘भीड़ से क्या मतलब? विशिष्ट भक्तों में पान वाले सेठजी, दारूवाले साहब और कई साहूकार आये हैं। आम भक्त से क्या मिलता है? आप तो पहले विशिष्ट भक्तों से मिलें। मेरे विचार से आम भक्तों से मिलने का आपको आज समय ही नहीं मिल पायेगा। आम भक्तोें से कह देता हूं कि आप आज ध्यान में पूरे दिन लीन रहेंगे।
गुरुजी ने कहा-‘तुम पगला गये हो। हमारे विरोधियों ने कभी हमारे खिलाफ प्रचार किया तो हम अपने आश्रम को कैसे बचायेंगे? हमें तब धर्म पर हमला कहकर बचाने के लिये इन्हीं आम भक्तों की जरूरत पड़ती है। इसलिये उनको भी दर्शन देना जरूरी है। आम भक्त केवल उसी समय संक्रमण काल मेंबरगला कर अपने साथ लाने के लिये है। इसलिये उनको पहले पांच मिनट दर्शन देकर विशिष्ट भक्तों से मिल लेते हैं। उनके लिये तो पूरा दिन है।’
चेला बोला-‘वाह गुरुजी! आप वाकई महान हैं।
गुरु ने कहा-‘अगर ऐसा न होता तो क्या तुम गुरु मानते। आम भक्त तो केवल दिखाने के लिये है। असली काम तो विशिष्ट भक्तों से है। आम भक्त यह देखकर आता है कि हमारे पास विशिष्ट भक्त हैं और विशिष्ट भक्त इसलिये आता है कि इतने सारे आम भक्त हैं। जिनको दोनों का सानिध्य मिलता है उनके ही आश्रम हिट होते हैं नहीं तो फ्लाप शो हो जाता है।
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मूर्ख लिखते हैं और समझदार पढ़ते हैं-हास्य व्यंग्य


ब्लोगर अपने घर के बाहर पोर्च पर अपनी पत्नी के साथ खडा था। उसी समय दूसरा ब्लोग आकर दरवाजे पर खडा हो गया। पहला ब्लोगर इससे पहले कुछ कहता उसने अभिवादन के लिए हाथ उठा दिए-”नमस्ते भाभीजी।

पहला ब्लोगर उसकी इन हरकतों का इतना अभ्यस्त हो चुका था कि उसने अपनी उपेक्षा को अनदेखा कर दिया। वह कुछ उससे कहे गृहस्वामिनी ने उसका स्वागत करते हुए कहा-”आईये ब्लोगरश्री भाईसाहब। बहुत दिनों बाद आपका आना हुआ है।”

पहले ब्लोगर ने प्रतिवाद किया और कहा-”हाँ, अगर उस सम्मानपत्र की बात कर रही हो जो यह कहीं से छपवाकर लाया और तुमसे हस्ताक्षर कराकर ले गया था तो मैं बता दूं उससे यह तय करना मुश्किल है कि यह ब्लोगश्री है कि ब्लोगरश्री। अभी उस भ्रम का निवारण नहीं हुआ है। अभी इसके नाम के आगे किसी पदवी का उपयोग करना ठीक नहीं है।”

गृहस्वामिनी ने दरवाजा खोल दिया। दूसरा ब्लोगर अन्दर आते हुए बोला-”यार, आज तुमसे जरूरी काम पड़ गया इसलिए आया हूँ।”
पहले ब्लोगर ने कहा-”तुम कल आना। आज मुझे एक जरूरी पोस्ट लिखनी है।
गृहस्वामिनी ने बीच में हस्तक्षेप किया और कहा-”आप कंप्यूटर के पास बैठकर बात करिये। मैं तब तक चाय बनाकर लाती हूँ। घर आये मेहमान से ऐसे बात नहीं की जाती है। ”
पहले ब्लोगर को मजबूर होकर उसे अन्दर ले जाना पडा। दूसरे ब्लोगर ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा–”मैं होली पर मूर्ख ब्लोगर सम्मेलन आयोजित करना चाहता हूँ। अपने शहर में तो बहुत कम लोग लिखते हैं कोई ऐसा शहर बताओ जहाँ लिखे वाले अधिक हों तो वहीं जाकर एक सम्मेलन कर लूंगा। तुम तो इंटरनेट पर लिखने वाले अधिकतर सभी ब्लोगरों को जानते हो.”
पहले ब्लोगर ने शुष्क स्वर में कहा-”हाँ, यहाँ तो तुम अकेले मूर्ख ब्लोगर हो। इसलिए कोई सम्मेलन नहीं हो सकता। किस शहर में मूर्ख ब्लोगर अधिक हैं मैं कैसे कह सकता हूँ।

दूसरा ब्लोगर बोला-”मैंने तुमसे कहा नहीं पर हकीकत यह है कि मेरी नजर में तुम एक मूर्ख ब्लोगर हो। जो ब्लोगर लिखते हैं वह मूर्ख और जो पढ़ते हैं वह समझदार हैं। समझदार ब्लोगर पढ़कर कमेन्ट लगाते हैं और कभी-कभी नाम के लिए लिखते हैं।”
पहले ब्लोगर ने कहा-”ठीक है। फिर इस मूर्ख ब्लोगर के पास क्यों आये हो? अपना काम बता दिया अब निकल लो यहाँ से।

दूसरा ब्लोगर बोला-”यार, मैं तो मजाक कर रहा था। जैसे होली पर मूर्ख कवि सम्मेलन होता है उसमें भारी-भरकम कवि भी मूर्ख कहलाने को तैयार हो जाते हैं। वैसे ही मैं ब्लोगरों का सम्मेलन करना चाहता हूँ।तुम तो मजाक में कहीं बात का बुरा मान गए.”

इतने में गृहस्वामिनी चाय लेकर आ गए, साथ में प्लेट में बिस्किट भी थे।
दूसरा ब्लोगर बोला-”भाभीजी की मेहमाननवाजी का मैं कायल हूँ। बहुत समझदार हैं।
पहले ब्लोगर ने कहा-”हाँ, हम जैसे मूर्ख को संभाल रही हैं।”
दूसरा ब्लोगर ने कहा–”नहीं तुम भी बहुत समझदार हो। वर्ना इंटरनेट पर इतने सारे ब्लोग पर इतना लिख पाते। ”
वह चली गयी तो दूसरा ब्लोगर बोला-”देखो, तुम्हारी पत्नी के सामने तुम्हारी इज्जत रख ली।”
पहले ब्लोगर ने कहा–”मेरी कि अपनी। अगर तुम नहीं रखते तो अगली बार की चाय का इंतजाम कैसे होता।
दूसरे ब्लोगर ने कहा–”अब यह तो बताओं किस शहर में अधिक ब्लोगर हैं।
पहले ने कहा-”यहाँ कितने असली ब्लोगर हैं और कितने छद्म ब्लोगर पता कहाँ लगता है। ”
दूसरे ने कहा-”ठीक है मैं चलता हूँ। और हाँ इस ब्लोगर मीट पर एक रिपोर्ट जरूर लिख देना।तुम्हारे यहाँ आकर अगर कोई काम नहीं हुआ। मुझे मालुम था नहीं होगा पर सोचा चलो एक रिपोर्ट तो बन जायेगी।”
पहला ब्लोगर इससे पहले कुछ कहता, वह कप रखकर चला गया। गृहस्वामिनी अन्दर आयी और पूछा-”क्या बात हुई?”
पहले ब्लोगर ने कहा-”कह रहा था कि मूर्ख ब्लोगर लिखते हैं और समझदार पढ़ते हैं?”
गृहस्वामिनी ने पूछा-”इसका क्या मतलब?”
ब्लोगर कंधे उचकाते और हाथ फैलाते हुए कहा-”मैं खुद नहीं जानता। पर मैं उससे यह पूछना भूल गया कि इस ब्लोगर मीट पर हास्य कविता लिखनी है कि नहीं। अगली बार पूछ लूंगा।”

नोट-यह हास्य-व्यंग्य रचना काल्पनिक है और किसी घटना या व्यक्ति से इसका कोई संबंध नहीं है. अगर किसी से मेल हो जाये तो वही इसके लिए जिम्मेदार होगा. इसका रचयिता किसी दूसरे ब्लोबर से नहीं मिला है।

देशी गुरु और अंग्रेजी शिष्य


एक अंग्रेज ने हिन्दी भाषा और संस्कार सीखने के अपना एक गुरु बनाया जब वह हिन्दी सीख चुका तो गुरु ने उससे कहा की अब तुम जाकर व्यवहारिक अनुभव प्राप्त करो। भारत के टीवी चैनल पर सामाजिक कार्यक्रमों को देखो और इससे तुम्हारी हिन्दी और संस्कार दोनों में ही बहुत अनुभव प्राप्त होगा।

अंग्रेज शिष्य चला गया और फिर कुछ दिन बाद लौट आया और बोला-”गुरुजी, मैने भारत के सारे हिन्दी चैनल देखे पर उसमें जो सामाजिक सीरियल हैं वह तो हारर शो अधिक लगते हैं और उनमें हिन्दी कम और अंग्रेजी अधिक होती है। वहाँ तो ऐसा लगता है की हम अंग्रेजों को दिखाने के लिए सीरियल बनाते हैं। उनको देखकर जितनी हिन्दी और वहाँ के संस्कार जितना सीखा हूँ वह और भूल जाऊंगा।”
गुरूजी ने कहा-”अच्छा कुछ हिन्दी फिल्मों को देखो, उससे तुम्हें लाभ होगा।
शिष्य उनसे आज्ञा लेकर चला गया और फिर कुछ दिन बाद लौटा और बोला-”गुरूजी, उसमें तो हमारी फिल्मों की कहानी की नक़ल होती है और हिन्दी भी वैसी नहीं है जैसी आपने सिखाई है।गांधी के सन्देश को गांधीगिरी कहते है और मुझे मजाक लगता है।”

गुरूजी ने कहा-“अच्छा तुम वहाँ के अखबार और पत्रिकाएँ पढा करो। उसमें तुम्हें कुछ ज्ञान और अनुभव जरूर प्राप्त होगा।

शिष्य वहाँ से चला गया-”उनमें तो केवल मारपीट की खबरें और जो वहाँ से हमारे देश में आकर जो व्यापार करते हैं उन लोगों की तारीफों की खबरें ही छपतीं हैं। उससे क्या सीख पाऊंगा? ”
गुरूजी ने कहा-”तुम नये ज़माने के हो और कंप्यूटर भी जानते हो, इसलिए अंतर्जाल पर हिन्दी के ब्लोगरों को पढो।”

इस बार तो शिष्य उसी दिन लौट आया और बोला-”एक तो यह उन्होने कई वर्ग बना रखे हैं समझ में नहीं आ रहा किसको पढूं, और एक जगह तो मैंने शीर्षक में ही गाली देखी तो में लौट आया।”
गुरूजी ने अपना माथा पीट लिया और कहा-”मेरे ख्याल से तो हिन्दी तो तुम्हारी अब वैसे ही बहुत अच्छी हो गयी है क्योंकि तुम्हें पता लग गया है कि हिन्दी में भारत के ही लोग कहाँ गलती कर रहे हैं और संस्कार भी तुम्हारे अन्दर वैसे ही अच्छे है क्योंकि तुम्हें वह लोग पसंद नहीं आ रहे जो तुम्हारे समाज के पदचिन्हों पर चल रहे हैं। इसलिए अब तुम्हें अब और कुछ सीखने की जरूरत नहीं है।”

शिष्य चला गया तो गुरूजी आकाश की तरफ देखकर बोले-”अच्छा ही हुआ, यह बहुत कुछ मुझे सीखा गया वरना में अपने देश के लोगों के बारे में ग़लतफ़हमी पालकर अपने शिष्यों को भटकाता रहता।

नोट-यह एक काल्पनिक हास्य-व्यंग्य रचना है.

सास-बहु का झगडा, पडोसियों के मत्थे पडा


उनके दोनो बेटे-बहु प्रतिवर्ष की भांति भी इस वर्ष अपने माता-पिता के पास रहने के लिए आये। अब पति-पत्नी अकेले ही रहते थे। पति अब रिटायर हो गये थे, और दोनों ही सुबह, दोपहर और शाम एक मंदिर में जाते थे। उनके दोनों लड़के पढने के बाद शहर से बाहर नौकरी कर रहे थे और उनकी अच्छी आय थी। अपने माता-पिता से मिलने वह साल में पांच-छ: बार जरूर आते थे पर विवाह के बाद पिछले तीन वर्षों में यह आगमन केवल एक वर्ष तक रह गया था। इधर उनके पिताजी भी रिटायर हो गये थे। रिटायर होने से पूर्व भी पति महोदय दिन में दो बार अपनी पत्नी को सुबह-शाम जरूर मंदिर गाडी पर बैठा कर जरूर ले जाते थे, अब वह क्रम तीन बार हो गया था। उनकी पत्नी अपने मंदिर जाने का प्रदर्शन पडोस में जरूर करतीं और बार-बार अपने धर्मभीरू होने की चर्चा अवश्य करती थी। और कभी-कभी बिना किसी आग्रह के ज्ञान भी देतीं देती थी। उनका मंदिर घर से दो किलोमीटर दूर था और किसी दिन गाडी खराब हो या पति महोदय का स्वास्थ्य ठीक न हो तो उन्हें अनेक ताने सुनने को मिलते। वह कभी घर से मंदिर तक पैदल नहीं गयीं।

उस दिन वह अपनी बहुओं पर अपना ज्ञान बघार रहीं थीं-“अपने शरीर को चलाते रहना चाहिए, वरना लाचार हो जाता है अब देखो तुम्हारे ससुर कभी नाराज होकर मंदिर नहीं ले जाते तो मैं पैदल ही चली जाती हूँ कभी भी झगडा नहीं करती- अपने पति से कभी भी झगडा नहीं करना चाहिए। बिचारे पुरुष तो जीवन भर कमाने में ही समय गंवाते हैं।” वगैरह……..वगैरह।

इधर वह अपने पति के साथ मंदिर गयी और उधर उनकी बहुओं ने पडोसियों से बातचीत शुरू की और फिर उसने सासके दावे की इस तरह सत्यता का पता लगाने का प्रयास किया कि वह बिचारे समझ नहीं पाए ।

एक पडोसन बोली -“हमने तो कभी भी तुम्हारी सास को पैदल जाते हुए नहीं देखा, अगर गाडी खराब हो या उनका मन न हो या उनके कोई रिश्तेदार आ गये हौं तो मंदिर न ले जाने के लिए उनको हजार ताने देतीं हैं। तुम्हारे ससुर तो सीधे हैं सब सह जाते हैं।”

बहुओं की ऑंखें खुल गयीं, उन्हें अपनी सास पर वैसे भी यकीन नहीं था- और अब तो पडोसियों से भी पुष्टि करा ली थी। उन्होने अपने-अपने पतियों को उनकी माँ की पोल बतायी-हालांकि पडोसन ने आग्रह किया था कि वह ऐसा न करे क्योंकि उनके जाने के बाद उनकी सास उनसे लडेगी।

इधर उनके बहु-बेटे अपने घरों को रवाना हुए और उधर वह अपने पडोसियों पर पिल पडी-“तुम लोगों से किसी का सुख देखा नहीं जाता। मेरी बहुओं को भड़काती हो। अब देखना जब तुम्हारे घर में बहुएँ आयेंगी तो मैं भी यही करूंगी।”

एक पडोसन बोली-“हमें क्या पता था कि तुम्हारी बहुएँ चालाकी करेंगी। पता नहीं तुमसे क्या बात नमक मिर्च लगाकर कह गयीं हैं।” मगर वह नहीं रुकीं और बोलतीं गयी-“तुम लोगों का क्या मतलब? मैं अपनी बहुओं से कुछ भी कहूं। तुन कौन होती हो बीच में दखल देने वाली …..”

उन्होने और भी बहुत कुछ कहा और इस तरह सास-बहु का झगडा पडोसियों के मत्थे आ चूका था।
नोट-यह कहानी काल्पनिक है