Category Archives: hasya-vyangy

सोने कितना सोना है-हिन्दी चिंत्तन लेख एवं कविता (sona kitna sona hai-hindi chinttan article and poem)


इस संसार की रचना सत्य और माया के संयोग से हुई है। भारतीय अध्यात्मिक दर्शन का अध्ययन करें तो सत्य का कोई न रंग है, न रूप है, न चाल है चेहरा है और न ही उसका कोई नाम है न पहचान है। इसके विपरीत माया अनेक रंगों वाली है क्योंकि वह संसार को बहुत सारे रूप प्रदान करती है। वह पंचतत्वों से हर चीज बनाती है पर सबका रूप रंग अलग हो जाता है। इस धरती के अधिकतर लोग अपने मस्तिष्क में सत्य के तत्वज्ञान का संग्रह करने का प्रयास नहीं करते क्योंकि वह माया के रंग और रूप से मोहित हैं।
वैसे देखा जाये तो मनुष्य को क्या चाहिये? खाने को रोटी, पहने को कपड़े और रहने के लिये आवास! मगर इससे वह संतुष्ट नहीं होता। रोटी का संग्रह वह पेट में अधिक नहीं कर सकता। पेट में क्या वह लोहे की पेटी में भी कई दिन तक नहीं रोटी नहीं रख सकता। इसलिये गेंहूं खरीदकर रख लेता है। सब्जियां भी वह छह सात दिन से अधिक अपने यहां नहीं रख सकता। उसे हमेशा ताजी खरीदनी पड़ती हैं। इसे खरीदने के लिये चाहिये उसे मुद्रा।
मुद्रा यानि रुपया या पैसा। देखा जाये तो यह रुपया और पैसा तो झूठी माया में भी झूठा है। जितने में नोट या सिक्के का निर्माण होता है उससे अधिक तो उनका मूल्य होता है। राज्य के यकीन पर उसका मूल्य अधिक होता है। राज्य का यह वादा रहता है कि अगर कोई उस नोट या सिक्के का धारक उसके पास लायेगा तो वह उतने मूल्य का उसे सोना प्रदान करेगा। इस हिसाब से हम कह सकते हैं कि इस धरती पर माया का ठोस स्वरूप में सोना सबसे अधिक प्रिय है। सोना ठोस तथा दीर्घायु है पर उसका प्रतिनिधित्व कागज का जो नोट करता है वह समय के साथ पुराना पड़ जाता है। अब सोने का भी उपयोग समझ लें। उसे खाकर कोई पेट नहीं भर सकता। पेटी में रखकर लोग खुश रहते हैं कि उनका वह बड़ा सहारा है। यह सोच अपने आप में एक बहुत बड़ा भ्रम है। अगर कोई आपत्ति आ जाये तो उसी सोने को बाजा़ार में बेचकर फिर कागज के उसका प्रतिनिधित्व करने वाले रुपये या सिक्के प्राप्त करने पड़ते हैं। कहां दीर्घायु सोना अपने से अल्पजीवी कागज पर आश्रित हो जाता है।
एक विद्वान ने कहा था कि भारत में इतना सोना है कि सारी दुनियां एक तरफ और भारत एक तरफ। यकीन नहीं होता पर जिस तरह यहां गड़े धन मिलते हैं इस पर यकीन तो होता है कि यह देश हमेशा ही सोने का गुलाम रहा है। स्त्रियां गहने पहनती हैं। माता पिता दहेज में अपनी बेटी को गहने इस विश्वास के साथ देते हैं कि जब पहनेगी तो अपने मायके तथा ससुराल के में श्रीवृद्धि होगी। यदि कहीं उसे आर्थिक आपदा का सामना करना पड़ा तो वह सोना पितृतुल्य सेवा करेगा। उसके बाद कुछ लोग इस आशा से सोना करते हैं कि वही असली मुद्रा है। जैसे जैसे आदमी की दौलत बढ़ती है वह नोट और सिक्के की बजाय सोने की ईंटें रखने लगता है।
वह सोना सबको प्रिय है जो प्रत्यक्ष रूप से प्यास लगने पर पानी का एक घूंट नहीं पिला सकता और भूख लगने पर एक दाना भी नहीं खिला सकता मगर जिस अनाज से पेट भरता है उसे हमारे देश का आदमी पांव तले रौंदता है और जिस पानी से प्यास बुझती है उसे मुफ्त में बहाता है। सोना भारत में नहीं पैदा होता पर वह बड़ी मात्रा में इसलिये यहां है कि यहां प्रकृति की सबसे बड़ी कृपा है। दुनियां में भारत ही ऐसा देश है जहां भूजलस्तर सबसे ऊपर है। इसलिये यहां अधिकांश भाग में हरियाली बरसती है। जहां सोना या पेट्रोल पैदा होता है वहां रेत के पहाड़ हैं। लोग पानी को सोने की तरफ खर्च करते हैं।
माया स्वयं सक्रिय है और आदमी को भी सक्रिय रखती है। अपने आंख, कान, नाक और मुख को बाहरी दृश्यों में व्यस्त आदमी आत्म चिंतन नहीं करता। उसे अंदर झांकने से भय लगता है। कहीं न बोलने वाला सत्य बोलने लगा तो क्या कहेगा? न देखने वाला सत्य क्या देखेगा? उसके लिये लिये अंदर झांकने की सोचना भी कठिन है। ऐसे में वह माया के खेल में फंसा रहना ही वह जिंदगी समझता है। धीरे धीरे वह सत्य से इतना दूर हो जाता है कि लूट और मज़दूरी की कमाई का अंतर तक नहीं समझता। अनेक भ्रष्टाचारियों के यहां छापे मारने पर एक से दस किलो तक सोना मिला। इन घटनाओं से यह बात साबित हो गयी है कि हमारे देश में चिंतन की कमी है। यही कारण है कि दूसरे के मुंह में जाता निवाला भी लोग छीनकर उसे सोने में बदलते हैं।
प्रस्तुत है एक छोटी कविता
………………………………….
वाह ने माया तेरा खेल,
कभी बिठाती महल में
कभी पहुंचाती जेल।
इंसान है इस भ्रम में जिंदा है
कि वह तुझसे खेल रहा है,
अपनी अल्मारी और खातों में
कहीं रुपया तो कही सोना ठेल रहा है,
ज़माने का लहू चूसकर
अपने घर सजा रहा है,
नचाती तू हैं
पर लगता इंसान को कि वह तुझे नचा रहा है,
अपने आगोश में तू भी फंसाये रहती है
इस दुनियां के इंसानो को
फिर सोने के घरों से निकालकर
लोहे की सलाखों के पीछे पहुंचाकर
निकाल देती है पूरी जिंदगी का तेल।
————–
लेखक संकलक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा  ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
Editor and writer-Deepak Raj Kukreja ‘Bharatdeep’
http://deepkraj.blogspot.com

————————-
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन

मूर्ख लिखते हैं और समझदार पढ़ते हैं-हास्य व्यंग्य


ब्लोगर अपने घर के बाहर पोर्च पर अपनी पत्नी के साथ खडा था। उसी समय दूसरा ब्लोग आकर दरवाजे पर खडा हो गया। पहला ब्लोगर इससे पहले कुछ कहता उसने अभिवादन के लिए हाथ उठा दिए-”नमस्ते भाभीजी।

पहला ब्लोगर उसकी इन हरकतों का इतना अभ्यस्त हो चुका था कि उसने अपनी उपेक्षा को अनदेखा कर दिया। वह कुछ उससे कहे गृहस्वामिनी ने उसका स्वागत करते हुए कहा-”आईये ब्लोगरश्री भाईसाहब। बहुत दिनों बाद आपका आना हुआ है।”

पहले ब्लोगर ने प्रतिवाद किया और कहा-”हाँ, अगर उस सम्मानपत्र की बात कर रही हो जो यह कहीं से छपवाकर लाया और तुमसे हस्ताक्षर कराकर ले गया था तो मैं बता दूं उससे यह तय करना मुश्किल है कि यह ब्लोगश्री है कि ब्लोगरश्री। अभी उस भ्रम का निवारण नहीं हुआ है। अभी इसके नाम के आगे किसी पदवी का उपयोग करना ठीक नहीं है।”

गृहस्वामिनी ने दरवाजा खोल दिया। दूसरा ब्लोगर अन्दर आते हुए बोला-”यार, आज तुमसे जरूरी काम पड़ गया इसलिए आया हूँ।”
पहले ब्लोगर ने कहा-”तुम कल आना। आज मुझे एक जरूरी पोस्ट लिखनी है।
गृहस्वामिनी ने बीच में हस्तक्षेप किया और कहा-”आप कंप्यूटर के पास बैठकर बात करिये। मैं तब तक चाय बनाकर लाती हूँ। घर आये मेहमान से ऐसे बात नहीं की जाती है। ”
पहले ब्लोगर को मजबूर होकर उसे अन्दर ले जाना पडा। दूसरे ब्लोगर ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा–”मैं होली पर मूर्ख ब्लोगर सम्मेलन आयोजित करना चाहता हूँ। अपने शहर में तो बहुत कम लोग लिखते हैं कोई ऐसा शहर बताओ जहाँ लिखे वाले अधिक हों तो वहीं जाकर एक सम्मेलन कर लूंगा। तुम तो इंटरनेट पर लिखने वाले अधिकतर सभी ब्लोगरों को जानते हो.”
पहले ब्लोगर ने शुष्क स्वर में कहा-”हाँ, यहाँ तो तुम अकेले मूर्ख ब्लोगर हो। इसलिए कोई सम्मेलन नहीं हो सकता। किस शहर में मूर्ख ब्लोगर अधिक हैं मैं कैसे कह सकता हूँ।

दूसरा ब्लोगर बोला-”मैंने तुमसे कहा नहीं पर हकीकत यह है कि मेरी नजर में तुम एक मूर्ख ब्लोगर हो। जो ब्लोगर लिखते हैं वह मूर्ख और जो पढ़ते हैं वह समझदार हैं। समझदार ब्लोगर पढ़कर कमेन्ट लगाते हैं और कभी-कभी नाम के लिए लिखते हैं।”
पहले ब्लोगर ने कहा-”ठीक है। फिर इस मूर्ख ब्लोगर के पास क्यों आये हो? अपना काम बता दिया अब निकल लो यहाँ से।

दूसरा ब्लोगर बोला-”यार, मैं तो मजाक कर रहा था। जैसे होली पर मूर्ख कवि सम्मेलन होता है उसमें भारी-भरकम कवि भी मूर्ख कहलाने को तैयार हो जाते हैं। वैसे ही मैं ब्लोगरों का सम्मेलन करना चाहता हूँ।तुम तो मजाक में कहीं बात का बुरा मान गए.”

इतने में गृहस्वामिनी चाय लेकर आ गए, साथ में प्लेट में बिस्किट भी थे।
दूसरा ब्लोगर बोला-”भाभीजी की मेहमाननवाजी का मैं कायल हूँ। बहुत समझदार हैं।
पहले ब्लोगर ने कहा-”हाँ, हम जैसे मूर्ख को संभाल रही हैं।”
दूसरा ब्लोगर ने कहा–”नहीं तुम भी बहुत समझदार हो। वर्ना इंटरनेट पर इतने सारे ब्लोग पर इतना लिख पाते। ”
वह चली गयी तो दूसरा ब्लोगर बोला-”देखो, तुम्हारी पत्नी के सामने तुम्हारी इज्जत रख ली।”
पहले ब्लोगर ने कहा–”मेरी कि अपनी। अगर तुम नहीं रखते तो अगली बार की चाय का इंतजाम कैसे होता।
दूसरे ब्लोगर ने कहा–”अब यह तो बताओं किस शहर में अधिक ब्लोगर हैं।
पहले ने कहा-”यहाँ कितने असली ब्लोगर हैं और कितने छद्म ब्लोगर पता कहाँ लगता है। ”
दूसरे ने कहा-”ठीक है मैं चलता हूँ। और हाँ इस ब्लोगर मीट पर एक रिपोर्ट जरूर लिख देना।तुम्हारे यहाँ आकर अगर कोई काम नहीं हुआ। मुझे मालुम था नहीं होगा पर सोचा चलो एक रिपोर्ट तो बन जायेगी।”
पहला ब्लोगर इससे पहले कुछ कहता, वह कप रखकर चला गया। गृहस्वामिनी अन्दर आयी और पूछा-”क्या बात हुई?”
पहले ब्लोगर ने कहा-”कह रहा था कि मूर्ख ब्लोगर लिखते हैं और समझदार पढ़ते हैं?”
गृहस्वामिनी ने पूछा-”इसका क्या मतलब?”
ब्लोगर कंधे उचकाते और हाथ फैलाते हुए कहा-”मैं खुद नहीं जानता। पर मैं उससे यह पूछना भूल गया कि इस ब्लोगर मीट पर हास्य कविता लिखनी है कि नहीं। अगली बार पूछ लूंगा।”

नोट-यह हास्य-व्यंग्य रचना काल्पनिक है और किसी घटना या व्यक्ति से इसका कोई संबंध नहीं है. अगर किसी से मेल हो जाये तो वही इसके लिए जिम्मेदार होगा. इसका रचयिता किसी दूसरे ब्लोबर से नहीं मिला है।

ऐसी जोरदार कविता लिखो-कविता साहित्य


तुम्हारे अंतर्मन में पल रहे दर्द
तुम्हारे मस्तिष्क चल रहे द्वंद से
बन रहे काव्यात्मक शब्द
चौराहे पर जब सुने जाएं
तो लोग स्तब्ध रह जाएं
ऐसी जोरदार कविता लिखो

फल सब्जी की तरह शब्दों की
दलाली करने वालों के तंबू
तुम्हारे तेज से उखाड़ने लगें
असल माल की जगह
नक़ल माल बेचने की तरह
अपने शब्द बेचने वालों को
तुमसे होने लगे ईर्ष्या
ऐसी जोरदार कविता लिखो

दिखते हैं बाहर से ताक़तवर
अन्दर से हैं एकदम खोखले
लोग उनकी छबि से व्यर्थ डरते है
इसलिए उधार के लिए शब्दों लेकर
कुछ लोग उन पर राज्य करते हैं
तुम अपने पसीन से नहाए
जो तुम्हारे दिल में गायें
छद्म रूप धरने वालों को डरा सकें
ऐसी जोरदार कविता लिखो

जजबातों का व्यापार करते हैं
उनके दिल होते हैं खाली
लिखने-पढ़ने के लिए
शब्दों को ऐसे बिछाएं जैसे भोजन की थाली
तुम्हारे शब्दों के प्रहार से
विचलित हो जाएं
जहाँ से निकलें तुहरे शब्द निकलें
उस रास्ते को वह छोड़ दें
ऐसी जोरदार कविता लिखो

वह चला क्रिकेट मैच देखने


अपने गंजू को भी पता नहीं क्या धुन सवार हुई कहने लगा-”क्रिकेट मैच देखने स्टेडियम जाऊंगा। आप चलेंगे”
हमने कहा-”अखबार पढ़ते हो?”
वह बोला-”नहीं! इस बेकार के काम में मैं नहीं पड़ता, और जो पड़ते हैं उन पर रहम खाता हूँ। क्या सुबह-सुबह बुरी खबरें पढ़ना?”
हमने पूछा-”टीवी पर न्यूज चैनल देखते हो।”
गंजू बोला-”नहीं। उस पर इतने सारे मनोरंजक चैनल आते हैं, मुझ जैसा व्यक्ति क्यों समाचार देखने में वक्त गंवायेगा।”
हमने कहा-”हमारा दुर्भाग्य है की हम यह बेकार के काम करते हैं और उसमें मैचों को देखने वालों की जो हालत सुनते हैं उसके मद्देनजर स्टेडियम पर जाकर मैच देखने का साहस नहीं कर सकते।”
गंजू बोला-”ठीक है और कोई साथ ढूंढता हूँ। वह तो मेरा एक दोस्त बाहर चला गया इसलिए कोई साथ पाने के लिए आपके सामने प्रस्ताव रखा।”
हमने कहा-”इसके लिए शुक्रिया! तुम्हारा वह दोस्त भाग्यशाली है जो बच गया।”गंजू बोला-”आप नहीं चल रहे तो कोई और साथी ढूंढ लूंगा।”
हमने कहा-”हमारी तरफ से शुभकामनाएं स्वीकार कर लो। क्योंकि आजकल स्टेडियम के अन्दर जाकर क्रिकेट मैच देखना कोई सरल काम नहीं है।”
वह चला गया। हम भी भूल गए। मैच के अगले दिन हम सुबह देखा एक लड़का हाथ और सिर में पट्टी बांधे चला आ रहा है। वह हमारे सामने आकर खडा हो गया और नमस्कार की। पहले तो हमने उसे पहचाना नहीं फिर जब गौर से देखा तो एकदम मुहँ से चीत्कार निकल गई-”अरे गंजू तुम। यह क्या हाल बना रखा है। कहीं किसी ने पीट तो नहीं दिया।”
वह रुआंसे स्वर में बोला-”अपने यह नहीं बताया था कि इस तरह इतना बवाल भी मच सकता है। लोगों की इतनी भीड़ थी कि अन्दर जाने का मौका ही नहीं मिल पाया। पुलिस ने लाठीचार्ज किया।” ”क्या तुम्हें भी मारा-“
हमने पूछा वह बोला-” नहीं, भागमभाग में गिर गया। इससे तो अच्छा तो घर पर मैच देखता। वहाँ तो सारा समय अन्दर घुसने की सोचता निकल गया।”
”तुमने अखबार या टीवी देखा, हो सकता है उसमें तुम्हारे गिर कर घायल होने का फोटो छपा हो।”
हमने पूछा वह एक दम खुश हो गया और बोला-”ऐसा हो सकता है। मैं अभी जाकर देखता हूँ। मैं मैदान में कोई मैच-वैच थोडे ही देखना चाहता था, बल्कि यह सोचकर जाना चाहता था कि कहीं दर्शकों में मेरा फोटो आ गया तो अपनी गर्ल फ्रेंड पर रुत्वा जमाऊंगा। इसलिए इतनी मेहनत की। अब अगर आप कह रहे हैं तो देखता हूँ अखबार या टीवी में अगर मेरी फोटो आयी होगी तो मजा आयेगा।”
वह चला गया और हम हैरानी से सोचते रहे कि वह क्रिकेट के बारे में जानता भी है कि नहीं क्योंकि इससे पहले कभी उसने क्रिकेट पर चर्चा नहीं की।”

सम्मान तो मेरा, असम्मान तो तुम्हारा


पहला ब्लोगर उस दिन बाजार में सब्जी खरीद रहा था कि दूसरा ब्लोगर पुराने स्कूटर पर सवार होकर गुजरा और उसे देखकर रुक गया। उसने पहले ब्लोगर के कंधे पर पीछे से हाथ रख और बोला -“यार, सुबह से तुम्हें कितने ईमैल भेज चुका हूं और तुमने कोई जवाब नहीं दिया।”

पहला ब्लोगर बोला-“वैसे तो मैने तुम्हें बता दिया था कि मैं सुबह कंप्यूटर पर काम नहीं करता। अगर आज करता तो भी मैं तुम्हारा ईमैल नहीं पढ़ता। आखिर मेरी भी कोई इज्जत हैं कि नहीं। मेरे से रिपोर्ट लिखवा लेते हो पर कमेन्ट नहीं देते।”

दूसरा ब्लोगर-“अरे यार अब छोडो पुरानी बातों को अब मेरे साथ चलो। आज मेरा सम्मान हो रहा है। मैने सोचा तुम मेरे साथ रहोगे तो अपनी इज्जत बढ़ेगी।”

पहला-“क्या मुझे तुमने फालतू समझ रखा है जो तुम्हारी इज्जत बढ़वाने के लिए अपना समय खराब करूंगा।”

दूसरा -“नहीं तुम तो हिन्दी को अंतर्जाल पर फ़ैलाने के लिये प्रतिबद्ध हो। इसलिए तुम्हें तो खुश होना चाहिये कि एक ब्लोगर सम्मानित हो रहा है। तुम्हारा कर्तव्य है कि ऐसे कार्यक्रम की शोभा बढ़ाना चाहिए।”

पहला ब्लोगर खुश हो गया-“चलो ठीक है। तुम कह्ते हो तो चलता हूं। हो सकता है तुम्हें सदबुद्धि आ जाये, कुछ अच्छी कमेन्ट लिखने लगो।”

दूसरा-“इस सम्मान का लिखने से कोई मतलब नहीं है। यार, तुम कभी समझोगे नहीं। वैसे तुम वहां मेरे लिखे-पढ़े की चर्चा मत करना। यह भी मत बताना कि तुम एक ब्लोगर हो।”

पहला ब्लोगर्-”तो तुम्हें एक चमचा चाहिऐ , यह दिखाने के लिये तुम कितने बडे ब्लोगर और तुम्हारा लिखा कोई पढता भी है।

दूसरा-“नहीं यार एक से भले दो होते हैं, हो सकता है कि आगे तुम्हें भी कभी सम्मानित किया जाये। तब मैं तुम्हारे साथ चलूंगा।

पहला ब्लोगर बोला-”वैसे तो इसकी संभावना लगती नहीं है पर तुम कह रहे हो तो चलता हूँ।’

दोनों स्कूटर पर उस स्थान की ओर रवाना हुए जहां सम्मान होना था। वहां और भी बहुत लोग जमा थे पर हाल का दरवाजा बंद था। दोनों वहां खड़े उस भीड़ को देख रहे थे।वहां खड़े एक सज्जन से दुसरे ब्लोगर ने पूछा-“अभी कार्यक्रम शुरू होने में कितनी देर है।”

तब वह सज्जन बोले-“आज का कार्यक्रम तो स्थगित हो गया है, हम सबने अपने सम्मान के लिये जिस आदमी को पैसे दिये थे वह अपने किसी रिश्तेदार के यहां सगाई में शामिल होने बाहर चला ग्या है।उसने फोन कर माफ़ी मांगी है और अब यह कार्यक्रम बाद में कब होगा यह पता नहीं, क्या आप भी सम्मानित होने आये हैं।”

दूसरे ब्लोगर ने फ़ट से अपनी ऊँगली पहले ब्लोगर की तरफ़ उठाई और कहा-“मेरा नहीं इनका सम्मान होना है।”

पहला ब्लोगर हक्का बक्का रह गया। इससे पहले वह कुछ बोले दूसरे ने उसका हाथ खींच लिया और बोला-“चलो यार आज का दिन खराब हो गया।

पहला ब्लोगर थोडी दूर चलकर बोला-”यह क्या मतलब है तुम्हारा?सम्मान तुम्हारा और असम्मान मेरा। तुम उससे क्या कह रहे थे?”

दूसरा बोला-”यार, तुम समझते नहीं? जब हम किसी से बात कर रहे हैं तो अपना अच्छा या बुरा पक्ष नहीं रख सकते। अगर तुम उससे बात करते हुए मेरे सम्मान की बात करते तो ठीक रहता। मुझे अपनी बात करते हुए अपनी नजरें नीचीं करनी पड़ती और बिचारों जैसा चेहरा बनाना पड़ता जो कि मुझे मंजूर नहीं। तुम्हें इसकी कोई जरूरत नहीं पड़ती।

पहले ब्लोगर ने कहा-“इसमें पक्ष और विपक्ष की क्या बात थी? वैसे क्या तुमने अपने सम्मान के लिये पैसे दिये हैं।”

दूसरा-“नहीं! तुमने क्या मुझे पागल समझ रखा है? सम्मान करने वाले का मुझ पर उधार है इसलिए उसे वसूल करने के लिये वह सम्मान कर रहा है। वह कोई अपना खर्च थोडे ही करेगा, वह इन अन्य सम्मानीय लोगों के पैसे से ही एडजस्ट करेगा। अब तुम जाओ मुझे दूसरा काम निपटाना है।”

पहला ब्लोगर गुस्से में बोला-“कमाल करते हो यार! यह मैं झोला लेकर कहां घूमूंगा। पहले मुझे मेरे घर तक पहुंचाओ फ़िर कहीं भी जाओ।”

दूसरा बोला-“यार जिस काम के लिये तुम्हें लाया था वह तो हुआ ही नहीं। बताओ मैं कैसे अब तुम्हें छोड्ने के लिये इतनी दूर कैसे चल सकता हूं, तम अभी टेम्पो से निकल जाओ बाद में तुम्हें पैसे दे दूंगा।”

पहला ब्लोगर समझ गया कि इससे माथा मच्ची करना बेकार है, और वह चलने को हुआ तो पीछे से दूसरा ब्लोगर बोला-“और हां सुनो। यह ब्लोगर मीट नहीं थी इसका मतलब यह नहीं है कि तुम रिपोर्ट नहीं लिखो। इस सम्मान समारोह पर जरूर लिखना, भूलना नहीं। तुम तो ऐसे ही लिख देना….यार कुछ भी लिख देना।

“पहले ब्लोगर ने व्यंग्य और गुस्से में पूछा-‘इसका शीर्षक क्या लिखूं? मेरे ख्याल से ‘सम्मान मेरा और असम्मान तुम्हारा’ शीर्षक ठीक रहेगा।”

दूसरा ब्लोगर बोला-“यार!इतना मैं कहाँ जानता हूँ तुम खुद ही सोच लेना।”

इससे पहले कुछ और बात पहला ब्लोगर उससे पूछ्ता वह स्कूटर से चला गया। इधर सामान्य होने के बाद पहला ब्लोगर सोच रहा था कि-मैने यह तो पूछा ही नहीं कि इस पर हास्य कविता लिखूं या नहीं? ठीक है इस बार भी हास्य आलेख ही लिखूंगा।”

ब्लोगर चला क्रिकेट मैच खेलने


ब्लोगर की कालोनी में क्रिकेट टीम में एक खिलाडी काम पड़ रहा था और उनकों दूसरी कालोनी से फेस्टिवल मैच खेलना था. पडोसियों को पता था कि ब्लोगर जब घर में होता है तो कंप्यूटर पर बैठा रहता है और शायद वह न चले. चूंकि मैच फेस्टिवल था और उसमें बड़ी उम्र के खिलाडी ही शामिल होने थे और लोग चाहते थे कि एकदम बड़ी उम्र के खिलाडियों की बजाय मध्यम उम्र के खिलाडी मैदान में उतारे जाएं और फिर उनकी कुछ अलग से पहचान हो। डाक्टर, वकील, प्रोफेसर और फिर उसमें एक ब्लोगर हो तो……इस ख्याल की वजह से ब्लोगर को टीम में खेलने के लिए राजी कर लिया गया।

अपनी कालोनी की प्रतिष्ठा के लिए प्रतिबद्ध एक लड़का उनके पास गया और तमाम तरह की बातें कर उनसे बोला-‘लोग तो और भी हैं पर आप तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर के ब्लोगर हैं यह बात हमें उन कालोनी वालों को बताना है। अरे! इस पूरे इलाके के आप अकेले ब्लोगर हैं और हमारी कालोनी में रहते हैं और जब आप क्रिकेट खेलेंगे तो सब दंग रह जायेंगे। आप पहले क्रिकेट खेलते रहे हैं हमें यह बात पता है।’

ब्लोगर ने कहाँ-‘यार तुम लोग तो कभी मेरा लिखा पढ़ते नहीं हो और वहाँ इस बात को मानेगा कौन? कभी कमेन्ट वगैरह तो देते नहीं हो।”

लड़के के कहा-”आप क्या बात करते हैं। यहाँ कई लोग आपका लिखा पढ़ते हैं।पर यह कमेंट क्या होता है आपने बताया ही नहीं।”

ब्लोगर ने कहा-‘अगर तुम पढ़ते होते तो मैं फ्लॉप ब्लोगर नहीं कहलाता। खैर! तुम कह रहे हो तो चलूँगा।’

निर्धारित दिन को वह मैदान में पहुंचा। उसकी कालोनी के कप्तान ने टास जीता और ओपनिंग में ब्लोगर को इसलिए भेजा कि वह पुराना खिलाडी है कुछ रन तो बना ही लेगा। ब्लोगर भी पूरी तैयारी के साथ अपने पुराने पैड, दास्ताने, और टोपी पहनकर बल्ला लेकर मैदान में पहुचा। उधर गेंदबाज गें फैंकने की तैयारी में था इधर विकेटकीपर ने उससे कहा-‘क्या आप ब्लोगर हैं?’

ब्लोगर ने उसकी बात को सुना और जवाब देने की बजाय इधर उधर देखा कहीं भी दर्शक दीर्घा में कालोनी के लोगों कोई दिखाई नहीं दिया। वह वापस लौट पडा। पीछे-पीछे प्रतिपक्षी टीम के खिलाड़ी चिल्ला रहे थे-‘जनाब कहाँ जा रहे हैं?’ अरे, मैच शुरू हो रहा है।’

मगर ब्लोगर ने किसी की नहीं सुनी और पैविलियन में अपने कप्तान के पास पहुच गया और बोला-” अभी मैच शुरू मत करो। यहाँ मेरे लिए कमेन्ट देने वाला कोई नहीं है। मेरे दो शिष्य और दो शिष्याएं अभी आने वाले है।उनको मैंने कमेन्ट देने के लिए बुलाया है।’

सब हक्के-बक्के रह गए और एक दूसर से बोले-यह ब्लोगर है यह तो हमने सुना है, पर कमेन्ट का क्या लफडा है।’

इतने में उसके शिष्य और शिष्याएं वहाँ कमेंट के होर्डिंग लेकर पहुचं गए। उन पर लिखा था-‘बहुत सुंदर’, ‘मजा आ गया’, ‘बहुत खूब’ और आदि। एक शिष्य बोला-‘सर!वह पेंटर ने हमें बहुत लेट से यह सामग्री दी। इसलिए हमें देरी हो गयी।’

ब्लोगर ने उनकी भी नहीं सुनी और होर्डिंग पढ़ने लगा और बोला-‘इसमे ”वाह क्या जोरदार हिट है’ वाला होर्डिंग नहीं दिखाई दिया। मैंने उसे पैसे तो पूरे दिए थे।”

उसकी एक शिष्या सहमते हुए बोली-‘सर, उस पर गलत लिख गया था।’ वाह क्या जोरदार हेट है’ लिखा था। पेंटर ने कहा मैं ठीक कर देता हूँ पर हमें सोचा कि देरी हो जायेगी।”

ब्लोगर का मूड उखड गया फिर भी मैदान में उतरा। अब मैच भी जिस तरह होना था हुआ। ब्लोगर ने रन तो बनाए दो, पर गेंद फैंकने वाले इधर-उधर फैंकते कि वह वाइड होकर बाहर चली जाती और उस पर उनकी टीम को चार-चार रन कई बार मिले-पर इससे क्या? उसके दूर बैठे शिष्य यही सोच कर होर्डिंग लहराते रहे कि उनके गुरूजी का शाट है। उसकी वजह से दर्शकों को भी गलतफहमी हो जाती कि ब्लोगर ही रन बना रहा है। वह आउट होकर लौट रहा था तब भी होर्डिंग लहराये जा रहे थे। उसके लौटने पर कप्तान ने कहा-क्या खूब रन बनाए।’

ब्लोगर ने बोलिंग नहीं की पर उनकी टीम जीत गयी। वापस लौटते हुए एक शिष्या अपने साथी से कहा-‘हमारे सर ने रन तो दो ही बनाए। मैंने स्कोरर से पूछा था।’

एक शिष्य ने उससे कहा-चुप! तुझे ब्लोग बनाना सीखना है कि नहीं, और सीख गयी है तो बाद में कमेन्ट चाहिए कि नहीं।

शिष्या चुप हो गयी और ब्लोगर विजेता की तरह सीना ताने चलता रहा।