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मनुस्मृति:युद्ध से विरक्ति वाले राजा को सभी लोग छोड़ देते हैं


लुब्धस्यासंविभागित्वान्न युद्धयन्तेःलुजीविनः
लुब्धानुजीवितैरेव दानभिन्र्नौनर््िनहन्यते

लोभी के धन देने के कारण उसके अनुजीवी (धन लेकर काम करने वाले) युद्ध नहीं करते हैं और लोभी दान न देने के कारण उनके द्वारा ही मार दिया जाता है।

सन्त्यज्जते प्रकृतिभिर्विरक्तप्रकृतिर्युधि
सुखाभिज्जयो भवति विषयेऽप्यतिसक्त्मान्

जो राजा युद्ध से विरक्त होता है उसे सभी छोड़ जाते हैं और जो विषयों में अति आसक्ति पुरुष है उसे बड़े आराम से जीत लिया जाता है।

अनेकचित्तमन्त्रस्तु द्वेष्यो भवति मन्त्रणाम्
अनवस्थितचित्तत्वात्कायै तैः स उपेक्ष्यते

अनेक मंत्रियों की सम्मति के कारण राजा का मन दूषित हो जाता है और अनवस्थित चित्त होने से कार्य में मंत्री उसकी उपेक्षा कर देते हैं।

मनुस्मृति: प्राणायाम करने से पाप तथा विकार नष्ट हो जाते हैं।


संरक्षणार्थ जन्तुनां रात्रवहनि वा सदा
शरीरस्यात्यये चैव समीक्ष्य वसंधां चरेत्

सन्यासी को रात दिन तकलीफ उठाते हुए भी दूसरे मनुष्यों की रक्षा करना चाहिए। उसका इतना ज्ञानी होना चाहिए कि छोटे से जीव पर दया करे ।

प्राणायामः ब्राह्मणस्य त्रयोऽपि विधिवत्कृताः
व्याहृति प्रणवैर्युक्ताः दोषाः प्राणस्य निग्रहात्

विद्वान और ज्ञानी जनों का तीनों विधियों-प्रणव,ओम,व्याहृति-द्वारा किये गये प्राणायाम को भी तप माना जाना चाहिए।

दह्नान्ते ध्यायमानानां धातूनां हि यथा मलाः
तथेन्द्रियांणां दह्नान्ते दोषाः प्राणस्य निग्रहातफ

अग्नि में सोना, चांदी आदि धातुओं को डालने से जिसे प्रकार उनकी अशुद्धता दूर हो जाती है उसी प्रकार प्राणायाम की साधना करने से इंद्रियों के सारे पाप तथा विकार समाप्त हो जाते हैं।
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