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अपने अरमानों का बोझ ढोने वाला-व्यंग्य कविता


बड़े आदमी बनने के लिये
सभी इंसान जूझ रहे हैं
सदियां बीत गयी हैं
पर कौन छोटा है या बड़ा
सभी इस पहली से जूझ रहे हैं।
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पद बड़ा कि शरीर का कद
बुरा क्या है
शराब या पैसे का मद
कामयाबी और दौलत में
आदमी तोड़ देता है अपनी हद
जिंदगी में सपनों के पीछे भागता आदमी
घोड़ा बन जाता
फिर अपने अरमानों का बोझ ढोने वाला
गधा बन जाता है
चलता जाता है बिना विचारे
सोचने से जो डरता है बेहद

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किसी इंसान का चेहरा
कोई गीत या गजल नहीं होता
जिसे सुर और संगीत में सजा लोगे
उसकी तस्वीर बना कर
दीवार पर टांग सकते हो
तारीफों में कुछ कसीदे भी
पढ़ सकते हो
अपनी जुबान
शोर मचाकर तुम
सभी लोगों को कान बहरे कर दोगे
पर अपने कारनामों से
जब तक कोई दिल में जगह न बना ले
कितना भी चाहो तुम
उसे हर दिल का अजीज नही बना लोगे
याद रखना इंसान का
चेहरा नहीं बदलता
पर चरित्र का कोई ठिकाना नहीं
तुमने खाया अगर धोखा
तब सभी हंसेंगे तुम पर
अपने ही शब्दों के बोझ तले तुम पड़े होगे

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