इंसान को पंख नहीं
इसलिये आकाश में
उड़ नहीं पाता।
पर ख्याल तो बिना पंख ही
उड़ते हैं आवारा
जमीन पर पांव के बल
उनको चलना नहीं आता।
ख्यालों में खून नहीं बहता
इसलिये गिरकर घायल होने का
डर उनको नहीं होता
जख्म तो शरीर के हिस्सों पर ही आता।
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रोज सुबह घर के बाहर पड़े
कागज के उस पुलिंदे को
हाथ में पकड़कर
उस पर छपे अक्षर पढ़ने का
मन अब नहीं होता।
घर के अंदर चल रहे
उस बुद्ध बक्से के दृश्य देखने
और आवाज के शोर सुनने का
मन अब नहीं होता।
ऐसा लगता है कि
मेरे मन के भावों को
हथियार बनाकर उपयोग किया है
उन सौदागरों ने जो
सजा रहे है नारे और वाद बाजार में
देशभक्ति और जनकल्याण का दिया वास्ता
पर कभी खुद नहीं चले वह रास्ता
थकावट लगती है
अब तो अपना लक्ष्य ढूंढने की चाहत है
उनके दिखाये धोखे पर चलने का
मन अब नहीं होता।
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