उसकी पुकार पर सर्वशक्तिमान प्रकट हुए और वरदान मांगने को कहा तो वह बोला
‘सर्वशक्तिमान आप तो सब जानते है। आप हमारी मनोकामना पूरी करो इसलिये आपको मानते हैं। मैं ऊंचा उठना चाहता हूं । जमीन पर कीड़ों की तरह बरसों से रैंगते हुए बोर हो गया हूं। मुझे दायें बायें ऊपर नीचे बंगला, गाड़ी, दौलत और शौहरत के पर लगा दो ताकि आकाश में उड़ सकूं। यह जीना भी क्या जीना है?’
सर्वशक्तिमान ने मुस्कराते हुए कहा-‘मैंने तो इस तरह के पर बनाये ही नहीं जिनका नाम बंगला,गाड़ी,दौलत और शौहरत हो। लगता है कि तुम इंसानों ने ही बनाये हैं इसलिये ऐसे पंख तो तुम इस धरती पर ही ढूंढो। जहां तक मेरी जानकारी है ऐसे पर नहीं बल्कि बोझ है जिनके पास होते हैं वह इंसान उनके बचाने की सोचकर और जिनके पास नहीं होते वह उसके ख्वाबों का बोझ ढोता हुआ जमीन पर वैसे ही रैंगता है जैसे कीड़े। जो जीव आकाश में उड़ते हैं वह कभी ऐसी कामना भी नहीं करते। उड़ने के लिये आजादी जरूरी है पर तुम तो बोझ मांग रहे हो और वह मैं तुम्हें नहीं दे सकता।’
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बड़े आदमी बनने के लिये
सभी इंसान जूझ रहे हैं
सदियां बीत गयी हैं
पर कौन छोटा है या बड़ा
सभी इस पहली से जूझ रहे हैं।
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पद बड़ा कि शरीर का कद
बुरा क्या है
शराब या पैसे का मद
कामयाबी और दौलत में
आदमी तोड़ देता है अपनी हद
जिंदगी में सपनों के पीछे भागता आदमी
घोड़ा बन जाता
फिर अपने अरमानों का बोझ ढोने वाला
गधा बन जाता है
चलता जाता है बिना विचारे
सोचने से जो डरता है बेहद
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किसी इंसान का चेहरा
कोई गीत या गजल नहीं होता
जिसे सुर और संगीत में सजा लोगे
उसकी तस्वीर बना कर
दीवार पर टांग सकते हो
तारीफों में कुछ कसीदे भी
पढ़ सकते हो
अपनी जुबान
शोर मचाकर तुम
सभी लोगों को कान बहरे कर दोगे
पर अपने कारनामों से
जब तक कोई दिल में जगह न बना ले
कितना भी चाहो तुम
उसे हर दिल का अजीज नही बना लोगे
याद रखना इंसान का
चेहरा नहीं बदलता
पर चरित्र का कोई ठिकाना नहीं
तुमने खाया अगर धोखा
तब सभी हंसेंगे तुम पर
अपने ही शब्दों के बोझ तले तुम पड़े होगे
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