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रामनवमी पर पिछले साल न पढा जा सका लेख अब प्रस्तुत



यह लेख मैने पिछले वर्ष रामनवमी पर कृतिदेव में लिखा था और इसका शीर्षक यूनिकोड में था। उस समय मेरा नारद पर कोई ब्लाग नहीं था पर वहां के सक्रिय ब्लागर -जिनका काम हिंदी के ब्लागरों को ढूंढना था- मेरे शीर्षक तो पढ़ पा रहे थे पर बाकी उनके पढ़ने में नहीं आ रहा था। मेरे बहुत सारे ऐसे लेखों पर बाद में अनेक ब्लागरों ने कहा था कि मैं उनको यूनिकोड में लाऊं पर बड़े लेख होने के कारण ऐसा नहीं कर सका। अब चूंकि कृतिदेव का यूनिकोड मिल गया है तो अपने ऐसे लेख प्रस्तुत कर रहा हूं।

सौम्यता, सहजता, सरलता और समभाव का प्रतीक हैं भगवान श्रीराम
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आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार मनाया जा रहा है। राम हमारे देश के लोगों के हृदय के नायक है। यह स्वाभाविक ही है कि लोग राम का नाम सुनते ही प्रफुल्लित हो उठते हैं। राम की महिमा यह कि जिस रूप में उन्हें माना जाये उसी रूप में आपके हृदय में स्थित हो जाते है। राम उनके भी जो उनको माने और राम उनके भी जो उन्हें भजें और वह उनके भी हैं जो उन्हें अपने हृदय में धारण करें।
मैं बचपन से भगवान विष्णू की उपासना करता आया हू। स्वाभाविक रूप से भगवान श्री राम के प्रति भक्तिभाव है। इसका एक कारण यह भी रहा है कि मैं मूर्ति तो भगवान विष्णू की रखता हूं पाठ बाल्मीकी रामायण का करता हूं। कुल मिलाकर भगवान विष्णू ही मेरे हृदय में राम की तरह स्थित हैं। मतलब यह मेरे लिये भगवान राम ही भगवान विष्णू है। यह समभाव की प्रवृति मुझे भगवान राम के चरित्र से मिलती है।
भगवान राम के प्रति केवल भारत में ही बल्कि विश्व में भी उनकी अनुयायियों की भारी संख्या है। मतलब यह कि भगवान श्रीराम का चरित्र केवल देश की सीमाओं में नहीे सुना और सुनाया जाता है वरन् देश के बाहर भी उनके प्रति लोगों के मन में भारी श्रद्धा है। जब मै आज भारत के अंदर चल रहे हालातेों पर नजर डालता हूं तो लगता है लोग केवल नाम के लिये ही राम को जप रहे है। भगवान राम के चरित्र की व्याख्यायें बहुत लोग कर रहे है पर केवल लोगों में फौरी तौर पर भक्ति भाव जगाकर अपनी हित साधने तक ही उनकी कोशिश रहती है। मैं अक्सर जब परेशानी या तनाव में होता हूं तो उनका स्मरण करता हूं।
यकीन मानिए भगवान राम के मंदिर में जाकर कोई वस्तू या कार्यसिद्ध की मांग नहीं करता वरन् वह मेरे मन और बुद्धि में बने रहें इसीलिये उनके समक्ष नतमस्तक होता हूं। जब संकट में उन्हें याद करता हूं तो केवल इसीलिये कि मेरा घैर्य, आस्था और विश्वास बना रहे यही इच्छा मेरी होती है। थोड़ी देर बाद मुझे महसूस होता है कि वह शक्ति प्रदान कर रहे है।
भगवान श्रीराम का चरित्र कभी किसी अविश्वास और अकर्मणता का प्रेरक नहीं हो सकता। जो केवल इस उद्देश्य से भगवान राम को पूजते हैं कि उन पर कोई संकट न आये और उनके सारे कार्य सिद्ध हो जायें-वह राम का चरित्र न तो समझते है न उन्हें कभी अपने विश्वास को प्रमाणित करने का अवसर मिल पाता है।
भगवान श्री राम की कथा पढ़ना और सुनना अच्छी बात है पर उन्हें अपने हृदय में धारण कर ही जीवन में आनंद ले पाते है। ऐसे विरले ही होते है। भगवान राम के चरित्र में जो सौम्यता, सहजता, सहृदयता, समभाव और सदाशयता है वह विरले ही चरित्रों में मिल पाती है। यही कारण है कि भारत की सीमाओं के बाहर भी उनका चरित्र पढ़ा और सुना जाता है। अगर मनुष्य के रूप में की गयी उनकी लीलाओं का चर्चा की जाये तो वह कभी विचलित नहीं हुए। कैकयी द्वारा बनवास, सीताजी के हरण और रावण के साथ युद्ध में श्रीलक्ष्मण जी के बेहोश होने के समय उन्होंने जिस दृढ़ता का परिचय दिया वह विरलों में ही देखने को मिलती है। रावण के साथ युद्ध में एक ऐसा समय भी आया जब सभी राक्षसों को ऐसा लगा रहा था कि भगवान राम ही उनके साथ युद्ध कर रहे है। वह घबड़ा कर इधर उधर भाग रहे थे जहां जाते उन्हें राम देखते। मतलब यह कि राम केवल उनके ही नहीं है जो उनके पूजते बल्कि उनके भी है जो उन्हें नहीं पूजते-नहीं तो आखिर अपने शत्रूओं को दर्शन क्यों देते? यह उनके समभाव का प्रतीक है। क्या हम उन्हें मानने वाले ऐसा समभाव दिखा पाते है। कतई नहीं। यकीनन हमेें अब आत्ममंथन करना चाहिए कि क्या केवल भगवान श्रीराम की मूर्ति लगाकर उनके प्रति दिखावे की आस्था प्रकट करना ही काफी है। हमें उनके पूर्ण स्वरूप का स्मरण कर उसे अपने मन और बुद्धि में स्थापित करना चाहिए। याद रहे मनुष्य की पहचान उसकी बुद्धि से है। अगर आप अपनी बुद्धि में अपने इष्ट को स्थापित करेंगे तो धीरे धीरे उन जैसे होते जायेंगे। एक विद्वान का मानना है कि मूर्ति पूजा का प्रत्यक्ष रूप से लाभ कुछ नहीं होता पर उसका यह फायदा जरूर होता है आदमी जब भगवान की पूजा करता है तो उसके हृदय में उनके गुणों का एक स्वरूप स्थापित होता है जो आगे चलकर उसका स्थायी हिस्सा बन जाता है। शर्त यही है वह आदमी उस समय किसी अन्य भाव का स्थान न दे।
इस दुनिया में हमेशा मूर्तिपूजा का विरोध करने वालों की संख्या ज्यादा रही है। दरअसल वह इससे होने वाले मनोवैज्ञानिक फायदों को नहीं जानते। प्रत्यक्ष रूप से तो इसका फायदा नही होता दिखता पर अप्रत्यक्ष रूप से जो व्यक्ति में शांति और दृढ़मा आती है उसको किसी पैमाने से मापना कठिन है। मुख्य बात है अपने अंदर भाव उत्पन्न करना। आखिर कोई भी व्यक्ति काम करता है तो उसके पीछे उसके विचार, संकल्प और निश्चयों के साथ ही चलता है। जब उनमें दोष है तो किसी सार्थक कार्य के संपन्न होने की आशा करना ही व्यर्थ है। अब लोग किसी और को तो नहीं अपने आपको धोखा देते है। मंदिरों में जाकर वह भगवान के सामने नतमस्तक तो होते है पर स्वरूप के अंतर्मन में ध्यान करने की कला में कितने दक्ष है यह तो वही जाने। अलबत्ता सबसे बड़ी बात राम की भक्ति के साथ उन्हें मन और बुद्धि में धारण भी जरूरी है। मूर्तियां तो उनका वह स्वरूप है जो आखों से ग्रहण करने के लिए स्थापित किया जाता है ताकि उसे हम अपने अंतर्मन में ले जा सके।
भगवान राम का चरित्र कभी न भुलाये जाने वाला चरित्र है। उनके प्रति अपार श्रद्धा के साथ उनके संदेशों पर चलने की जरूरत भी है। उन्होंने नैतिक आचरण, समभाव, सहजता और सरल दृष्टिकोण से जीवन जीने का जो तरीका प्रचारित किया उस पर चलने की जरूरत है। हमें समूह नहीं एक व्यक्ति के रूप में यह विचार करना चाहिए कि क्या हम उनके द्वारा निर्मित पथ पर चले रहे है या नहीं। दूसरा व्यक्ति क्या कर रहा है यह हमें नहीं सोचना चाहिए। भगवान श्रीराम को अपने हृदय में धारण करन चाहिए जिससे केवल न हम स्वयं बल्कि समाज को भी संकट से उबारने की शक्ति अर्जित कर सकें।

मूर्ख लिखते हैं और समझदार पढ़ते हैं-हास्य व्यंग्य


ब्लोगर अपने घर के बाहर पोर्च पर अपनी पत्नी के साथ खडा था। उसी समय दूसरा ब्लोग आकर दरवाजे पर खडा हो गया। पहला ब्लोगर इससे पहले कुछ कहता उसने अभिवादन के लिए हाथ उठा दिए-”नमस्ते भाभीजी।

पहला ब्लोगर उसकी इन हरकतों का इतना अभ्यस्त हो चुका था कि उसने अपनी उपेक्षा को अनदेखा कर दिया। वह कुछ उससे कहे गृहस्वामिनी ने उसका स्वागत करते हुए कहा-”आईये ब्लोगरश्री भाईसाहब। बहुत दिनों बाद आपका आना हुआ है।”

पहले ब्लोगर ने प्रतिवाद किया और कहा-”हाँ, अगर उस सम्मानपत्र की बात कर रही हो जो यह कहीं से छपवाकर लाया और तुमसे हस्ताक्षर कराकर ले गया था तो मैं बता दूं उससे यह तय करना मुश्किल है कि यह ब्लोगश्री है कि ब्लोगरश्री। अभी उस भ्रम का निवारण नहीं हुआ है। अभी इसके नाम के आगे किसी पदवी का उपयोग करना ठीक नहीं है।”

गृहस्वामिनी ने दरवाजा खोल दिया। दूसरा ब्लोगर अन्दर आते हुए बोला-”यार, आज तुमसे जरूरी काम पड़ गया इसलिए आया हूँ।”
पहले ब्लोगर ने कहा-”तुम कल आना। आज मुझे एक जरूरी पोस्ट लिखनी है।
गृहस्वामिनी ने बीच में हस्तक्षेप किया और कहा-”आप कंप्यूटर के पास बैठकर बात करिये। मैं तब तक चाय बनाकर लाती हूँ। घर आये मेहमान से ऐसे बात नहीं की जाती है। ”
पहले ब्लोगर को मजबूर होकर उसे अन्दर ले जाना पडा। दूसरे ब्लोगर ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा–”मैं होली पर मूर्ख ब्लोगर सम्मेलन आयोजित करना चाहता हूँ। अपने शहर में तो बहुत कम लोग लिखते हैं कोई ऐसा शहर बताओ जहाँ लिखे वाले अधिक हों तो वहीं जाकर एक सम्मेलन कर लूंगा। तुम तो इंटरनेट पर लिखने वाले अधिकतर सभी ब्लोगरों को जानते हो.”
पहले ब्लोगर ने शुष्क स्वर में कहा-”हाँ, यहाँ तो तुम अकेले मूर्ख ब्लोगर हो। इसलिए कोई सम्मेलन नहीं हो सकता। किस शहर में मूर्ख ब्लोगर अधिक हैं मैं कैसे कह सकता हूँ।

दूसरा ब्लोगर बोला-”मैंने तुमसे कहा नहीं पर हकीकत यह है कि मेरी नजर में तुम एक मूर्ख ब्लोगर हो। जो ब्लोगर लिखते हैं वह मूर्ख और जो पढ़ते हैं वह समझदार हैं। समझदार ब्लोगर पढ़कर कमेन्ट लगाते हैं और कभी-कभी नाम के लिए लिखते हैं।”
पहले ब्लोगर ने कहा-”ठीक है। फिर इस मूर्ख ब्लोगर के पास क्यों आये हो? अपना काम बता दिया अब निकल लो यहाँ से।

दूसरा ब्लोगर बोला-”यार, मैं तो मजाक कर रहा था। जैसे होली पर मूर्ख कवि सम्मेलन होता है उसमें भारी-भरकम कवि भी मूर्ख कहलाने को तैयार हो जाते हैं। वैसे ही मैं ब्लोगरों का सम्मेलन करना चाहता हूँ।तुम तो मजाक में कहीं बात का बुरा मान गए.”

इतने में गृहस्वामिनी चाय लेकर आ गए, साथ में प्लेट में बिस्किट भी थे।
दूसरा ब्लोगर बोला-”भाभीजी की मेहमाननवाजी का मैं कायल हूँ। बहुत समझदार हैं।
पहले ब्लोगर ने कहा-”हाँ, हम जैसे मूर्ख को संभाल रही हैं।”
दूसरा ब्लोगर ने कहा–”नहीं तुम भी बहुत समझदार हो। वर्ना इंटरनेट पर इतने सारे ब्लोग पर इतना लिख पाते। ”
वह चली गयी तो दूसरा ब्लोगर बोला-”देखो, तुम्हारी पत्नी के सामने तुम्हारी इज्जत रख ली।”
पहले ब्लोगर ने कहा–”मेरी कि अपनी। अगर तुम नहीं रखते तो अगली बार की चाय का इंतजाम कैसे होता।
दूसरे ब्लोगर ने कहा–”अब यह तो बताओं किस शहर में अधिक ब्लोगर हैं।
पहले ने कहा-”यहाँ कितने असली ब्लोगर हैं और कितने छद्म ब्लोगर पता कहाँ लगता है। ”
दूसरे ने कहा-”ठीक है मैं चलता हूँ। और हाँ इस ब्लोगर मीट पर एक रिपोर्ट जरूर लिख देना।तुम्हारे यहाँ आकर अगर कोई काम नहीं हुआ। मुझे मालुम था नहीं होगा पर सोचा चलो एक रिपोर्ट तो बन जायेगी।”
पहला ब्लोगर इससे पहले कुछ कहता, वह कप रखकर चला गया। गृहस्वामिनी अन्दर आयी और पूछा-”क्या बात हुई?”
पहले ब्लोगर ने कहा-”कह रहा था कि मूर्ख ब्लोगर लिखते हैं और समझदार पढ़ते हैं?”
गृहस्वामिनी ने पूछा-”इसका क्या मतलब?”
ब्लोगर कंधे उचकाते और हाथ फैलाते हुए कहा-”मैं खुद नहीं जानता। पर मैं उससे यह पूछना भूल गया कि इस ब्लोगर मीट पर हास्य कविता लिखनी है कि नहीं। अगली बार पूछ लूंगा।”

नोट-यह हास्य-व्यंग्य रचना काल्पनिक है और किसी घटना या व्यक्ति से इसका कोई संबंध नहीं है. अगर किसी से मेल हो जाये तो वही इसके लिए जिम्मेदार होगा. इसका रचयिता किसी दूसरे ब्लोबर से नहीं मिला है।

क्या इतिहास हमेशा सत्य बोलता है


क्या इतिहास में हमेशा सच लिखा होता है? मेरा मानना है कि बिलकुल नहीं। अपने सामने ही जब कई ऐसी घटनाएँ देखता हूँ और फिर जब उनकी प्रस्तुति लेखन के रूप में होती है तो यह साफ लगता है कि उनमें कुछ तो तथ्यों को तोडा मरोडा जाता है तो कुछ उसमें ऐसे मिलाया जाता है कि वह लिखने वाले के तथ्यों को सही माने। अगर लिखने वाला पूर्वाग्रही हुआ तो उसके शब्द वैसे ही आगे जायेंगे जैसा वह चाहता है। साथ ही यह भी मानना पड़ेगा के लिखने वाले अधिकतर पूर्वाग्रही होते ही हैं।

अधिक दूर जाने की क्या जरूरत है। अभी बेनजीर की हत्या को ही लें। जो सामान्य लेखक लिख रहे हैं वह किसी संग्रहालय में नहीं रखा जायेगा न उसे कोई आगे ले जाने के लिए कोई संस्था है न प्रकाशक। उसमें तो वही बात दर्ज होने वाली है जो वहाँ की सरकार दर्ज कराएगी। सब जानते हैं कि उसकी मौत गोली लगने से हुई पर इतिहास में दर्ज होगा कि उसकी मौत अपनी कार से सिर टकराने से हुई। यह बात सरकारी अभिलेखों में होगी और आज से चार सौ साल बाद भी इसे इसी रूप में पढा जायेगा तब कोई प्रत्यक्षदर्शी नहीं होगा सच बयान करने के लिए।
इस सबको देखते हुए तो यही लगता है कि पुराने लिखे को पढ़ना चाहिए तो केवल वैचारिक और तकनीकी विषयों पर ही दृष्टिपात करना चाहिए न कि तथ्यात्मक घटनाओं का अध्ययन करना चाहिए। मैंने इतिहास में बहुत सारे विरोधाभास देखे हैं और साथ ही उसमें किन्हीं नायकों को गढ़ने के लिए जिस तरह उन्हें चमत्कारी और नैतिकतावान बताया जाता है वह सामान्य मानवीय देह से मौजूद कमियों से दूर लगता है, जबकि मानवीय देह में मन, बुद्धि और अंहकार ऐसे तत्व हैं जो उसे कभी न कभी गलतियां करने को मजबूर करते हैं, अत कोई भी मानवीय देह धारण करने वाला व्यक्ति हमेशा नैतिक और वैचारिक मोर्चे पर हमेशा अजेय नहीं हो सकता है और इतिहास लिखने वाले अपने पात्र को ऐसा ही प्रदर्शित करते हैं।