Tag Archives: मस्त राम

संत कबीरदास के दोहे-भगवान के साथ चतुराई मत करो


सिहों के लेहैंड नहीं, हंसों की नहीं पांत
लालों की नहीं बोरियां, साथ चलै न जमात

संत शिरोमणि कबीर दास जी के कथन के अनुसार सिंहों के झुंड बनाकर नहीं चलते और हंस कभी कतार में नहीं खड़े होते। हीरों को कोई कभी बोरी में नहीं भरता। उसी तरह जो सच्चे भक्त हैं वह कभी को समूह लेकर अपने साथ नहीं चलते।

चतुराई हरि ना मिलै, ए बातां की बात
एक निस प्रेही निराधार का गाहक गोपीनाथ

कबीरदास जी का कथन है कि चतुराई से परमात्मा को प्राप्त करने की बात तो व्यर्थ है। जो भक्त उनको निस्पृह और निराधार भाव से स्मरण करता है उसी को गोपीनाथ के दर्शन होते हैं।

वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-लोगों ने तीर्थ स्थानों को एक तरह से पर्यटन मान लिया है। प्रसिद्ध स्थानों पर लोग छुट्टियां बिताने जाते हैं और कहते हैं कि दर्शन करने जा रहे हैं। परिणाम यह है कि वहां पंक्तियां लग जाती हैंं। कई स्थानों ंपर तो पहले दर्शन कराने के लिये बाकायदा शुल्क तय है। दर्शन के नाम पर लोग समूह बनाकर घर से ऐसे निकलते हैं जैसे कहीं पार्टी में जा रहे हों। धर्म के नाम पर यह पाखंड हास्याप्रद है। जिनके हृदय में वास्तव में भक्ति का भाव है वह कभी इस तरह के दिखावे में नहीं पड़ते।
वह न तो इस समूहों में जाते हैं और न कतारों के खड़े होना उनको पसंद होता है। जहां तहां वह भगवान के दर्शन कर लेते हैं क्योंकि उनके मन में तो उसके प्रति निष्काम भक्ति का भाव होता है।

सच तो यह है कि मन में भक्ति भाव किसी को दिखाने का विषय नहीं हैं। हालत यह है कि प्रसिद्ध तीर्थ स्थानों पर किसी सच्चे भक्त का मन जाने की इच्छा भी करे तो उसे इन समूहों में जाना या पंक्ति में खड़े होना पसंद नहीं होता। अनेक स्थानों पर पंक्ति के नाम पर पूर्व दर्शन कराने का जो प्रावधान हुआ है वह एक तरह से पाखंड है और जहां माया के सहारे भक्ति होती हो वहां तो जाना ही अपने आपको धोखा देना है। इस तरह के ढोंग ने ही धर्म को बदनाम किया है और लोग उसे स्वयं ही प्रश्रय दे रहे हैं। सच तो यह है कि निरंकार की निष्काम उपासना ही भक्ति का सच्चा स्वरूप है और उसी से ही परमात्मा के अस्तित्व का आभास किया जा सकता है। पैसा खर्च कर चतुराई से दर्शन करने वालों को कोई लाभ नहीं होता।
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गद्दार अपना शिकार चुन रहा हो-हिन्दी शायरी (gaddar aur shikar-hindi shayari)


अपनी कमीज़ वह दूसरे से
अधिक उजियारी जरूर करेंगे,
दौलत के साबुन से अपनी
छवि चमकाने की कोशिश में
चरित्र पर दाग भले ही लग जाये
मगर ज़माने में
अपनी गरीब छवि वह दूर करेंगे।
———-
देशभक्ति की बात करते हुए
अब सभी को डर लगता है
क्योंकि पता नहीं कब और
कौन गद्दार सुन रहा हो,
बिक रहे हैं पहरेदार सरेआम
बचाने निकले जब हम देश को
नज़र न पड़ जाये किसी गद्दार की
लिये ईमानदारी की शपथ जो
अपना शिकार चुन रहा हो।
———–

कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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अंधेरे की तरफ बढ़ता देश-हिन्दी क्षणिकायें


महंगाई पर लिखें या
बिज़ली कटौती पर
कभी समझ में नहीं आता है,
अखबार में पढ़ते हैं विकास दर
बढ़ने के आसार
शायद महंगाई बढ़ाती होगी उसके आंकड़ें
मगर घटती बिज़ली देखकर
पुराने अंधेरों की तरफ
बढ़ता यह देश नज़र आता है।
———–
सर्वशक्तिमान को भूलकर
बिज़ली के सामानों में मन लगाया,
बिज़ली कटौती बन रही परंपरा
इसलिये अंधेरों से लड़ने के लिये
सर्वशक्तिमान का नाम याद आया।
———–
पेट्रोल रोज महंगा हो जाता,
फिर भी आदमी पैदल नहीं नज़र आता है,
लगता है
साफ कुदरती सांसों की शायद जरूरत नहीं किसी को
आरामों में इंसान शायद धरती पर जन्नत पाता है।
———-

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महंगाई और बिज़ली कटौती-हिन्दी क्षणिकायें (mahangai aur bijli katauti-hindi vyangya kavitaen)

अयोध्या में राम मंदिर और टीवी चैनल की सफलता-हास्य कविता (ayodhya mein ram mandir aur tv chainal ka time-hindi hasya kavita)


टीवी चैनल के कर्मचारी ने
अपने प्रबंध निदेशक से पूछा
‘सर, आपका क्या विचार है
अयोध्या में राम जन्म भूमि पर
मंदिर बन पायेगा
यह मसला  कभी सुलझ पायेगा।’

सुनकर प्रबंध निदेशक ने कहा
‘अपनी खोपड़ी पर ज्यादा जोर न डालो
जब तक अयोध्या में राम मंदिर नहीं बनेगा,
तभी तक अपने चैनल का तंबू बिना मेहनत के तनेगा,
बहस में ढेर सारा समय पास हो जाता है,
जब खामोशी हो तब भी
सुरक्षा में सेंध के नाम पर
सनसनी का प्रसंग सामने आता है,
अपना राम जी से इतना ही नाता है,
नाम लेने से फायदे ही फायदे हैं
यह समझ में आता है,
अपना चैनल जब भी राम का नाम लेता है
विज्ञापन भगवान छप्पड़ फाड़ कर देता है,
अगर बन जायेगा
तो फिर ऐसा मुद्दा हाथ नहीं आयेगा
कभी हम किसी राम मंदिर नहीं गये
पर राम का नाम लेना अब बहुत भाता है,
क्योंकि तब चैनल सफलता की सीढ़िया चढ़ जाता है,
इसलिये तुम भी राम राम जपते रहो,
इस नौकरी में अपनी रोटी तपते रहो,
अयोध्या में राम मंदिर बन जायेगा
तो उनके भक्तों का ध्यान वहीं होगा
तब हमारा चैनल ज़मीन पर गिर जायेगा।

———————
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पिंजरे में फंसा धर्म-हिन्दी दिवस पर विशेष लेख (pinjre me fansa dharma-hindi diwas par vishesh lekh)


कैमरे के सामने फोटो खिंचवाने का सभी को शौक होता है। जिन लोगों की रोजी रोटी ही कैमरे के सामने होने से चलती है उनके लिये तो अपनी अदाऐं दिखाना ही धंधा हो जाता है। यह धंधा करने वाले इसके इतने आदी हो जाते हैं कि उसे छोड़ना तो दूर उसका सोचना भी उनको डरा देता है। कैमरर उनके लिये एक महल की तरह होता है जिसमें एक बार आने पर हर कोई रहना चाहताहै पर कुछ लोगों के लिये यह पिंजरा भी बन जाता है। एक तो पिंजरा उनके लिये होता है जो मज़बूरी की वजह से इसके सामने टिके रहना चाहते हैं क्योंकि यहीं से उनकी रोजी रोटी चलती है पर मन उनका नहीं होता। दूसरे वह लोग हैं जिनको जबरन तस्वीर बनाकर इसमें लाया जाता है।
आजकल यही कैमरा टीवी चैनल तथा खोजी पत्रकारों के लिये पिंजरा (sting operation) बन गया है और वह इसे लेकर पकड़ अभियान-स्टिंग ऑपरेशन  (sting operation) चलाते हैं। कभी अभिनेता, कभी नेता, कभी अधिकारी तो कभी संत इस कैमरे में ऐसे कैद होते हैं जैसे कि पिंजरे में चूहा।
बड़ा दिलचस्प दृश्य टीवी पर चलता है जब इसमें कैदी की तरह फंसे खास शख्सियतों का असली रूप सामने आता है। उस समय हंसते हुए पेट में बल पड़ जाते हैं क्योंकि यह देखकर मजा आता है कि ‘देखो, कैसे धंधे पानी की बात कर यह आदमी जाल में फंस रहा है।’ जैसे मछली कांटे में फंसती है और जैसा चूहा पिंजर में फंसकर छटपटाता है।
शिक्षण संस्था में प्रबंधक पद पर व्यक्ति आसीन लोग बड़े आदर्श की बातें करते हैं पर जब कैमरे में कैद होते हैं तो क्या कहते हैं कि ‘इतनी रकम दो तो मैं तुम्हें कॉलिज में प्रवेश दिला दूंगा। इस विषय में इतने तो उस विषय में इतने पैसे दो। इसकी रसीद नहीं मिलेगी।’
बिचारा धंधा कर रहा है पर उसे पता नहीं कि वह चूहे की तरह फंसने जा रहा है। बड़े विद्वान बनते हैं पर लालच उनकी अक्ल को चूहे जैसा बना देती है। हा…हा…
फिल्मी लाईन वाले कहते हैं कि उनके यहां लड़कियों का शोषण नहीं होता पर उनका एक अभिनेता-खलपात्र का अभिनय करने वाला-एक लड़की से कह रहा था कि ‘यहां इस तरह ही काम चलता है। आ जाओ! तुम मेरे पास आ जाओ।’
कुछ जनकल्याण का धंधा करने वाले भी फंसे गये जो केवल सवाल उठाने के लिये पैसे मांग रहे थे।
ऐसे में हंसी आती है। यह देखकर हैरानी होती है कि कैमरा किस तरह पिंजरा बन जाता है। यह फंसने वाले कोई छोटे या आम आदमी नहीं होतें बल्कि यह कहीं न कहीं आदर्श की बातें कर चुके वह लोग दिखाई देते हैं जिनका समाज में प्रभाव है।
सबसे अधिक मजा आता है संतों का चूहा बनना। अधिकारी, नेता और अभिनेता तो चलो बनते ही लोग पैसा कमाने के लिये हैं पर संतों का पेशा ऐसा है जिसमें आदर्श चरित्र की अपेक्षा की जाती है। यह संत भारतीय अध्यात्म में वर्णित संदेशों को नारों की तरह सुनाते हैं
‘काम, क्रोध, लोभ और मोह में नहीं फंसना चाहिये।’
‘यह जगत मिथ्या है।’
‘सभी पर दया करो।’
‘किसी भी प्रकार की हिंसा मत करो।
‘अपनी मेहनत से कमा कर खाओ।’
आदि आदि।
जब यह बोलते हैं तो ऐसा लगता है कि कितने मासूम और भोले हैं। इनमें सांसरिक चालाकी नहीं है तभी तो ऐसे उल्टी बातें-जी हां, अगर आम आदमी ऐसा कहे तो उसे पागल समझा जाता है-कर रहे हैं शायद संत हैं इसलिये।
मगर कैमरे में यह बड़े संत चूहे की तरह फंसते नज़र आते हैं तब क्या कहते हैं कि
‘चिंता मत करो। तुम्हारा काम हो जायेगा। अरे यहां कोई तुम्हारा बाल बांका भी नहीं कर सकता। यहां तो बड़े बड़े ताकतवर लोग मत्था टेकने आते हैं।’’
‘तुम कहंीं से भी धन लाओ हम उसका सलीके से उपयोग करना सिखा देंगे।’
‘हम तुम्हें ठेका दिला देंगे, हमारा कमीशन दस प्रतिशत रहेगा। हमें कार और पिस्तौल दिलवा देना।’
ऐसी ऐसी विकट बातें सुनकर कानों में यकीन नहीं होता। सोचते हैं कि-अरे, यार इसे तो रोज टीवी पर देखते हैं, कहां इसे संत और विद्वान समझते हैं यह तो बिल्कुल एक मामूली दुकानदार की तरह बात करने के साथ ही मोलभाव भी कर रहा है।’
पिंजरे में फंसे संत कहते हैं कि ‘चिंता मत करो, हमारे यहां तो तुमसे भी बड़े खतरनाक लोग आसरा पाते हैं’।
तब हम सोचते हैं कि यह रावण और कंस के विरुद्ध प्रतिदिन प्रवचन करने वाले उनसे भी खतरनाक लोगों को पनाह देते हैं। यहां यह बता दें कि कंस और रावण खतरनाक तत्व थे पर फिर भी कहीं न कहीं के राजा थे और उनके कुछ सिद्धांत भी थे पर आज के यह खतरनाक तत्व ऐसे हैं कि पुराने खलनायक हल्क नज़र आते हैं।
यह संत लोग कैमरे में फंसे पिंजरे में कहते हैं कि ‘कितना भी काला धन लाओ कमीशन देकर उसे सफेद पाओ।’
ऐसे प्रसंगों में एक संत की यह बात सबसे अज़ीब लगी कि ‘अमेरिका में कोई भी काम हो एक मिनट में हो जायेगा।’
मतलब वहां भी ताकतवर इंसानों की खरीद फरोख्त कर लेते हैं-वाकई धर्म की आड़ में अधर्म कितना ताकतवर हो जाता है। अभी तक अमेरिका और ब्रिटेन के बारे में यह धारणा हमारे यहां रही है कि वहां के लोग देशभक्त होते हैं और इस तरह नहीं बिकते पर एक मिनट में काम होने वाली बात से तो यही लगता है कि बाज़ार के वैश्वीकरण के साथ ही अपराध और आतंक का भी वैश्वीकरण हो गया है। उसके साथ ही हो गया है उनको धर्म की आड़ देने का व्यापार।
किस्सा मज़ेदार है। पकड़ अभियान-स्टिंग ऑपरेशन  (sting operation) करने वालों ने संत को बताया कि उनके साथ जो महिला है वह अमेरिका से आर्थिक अपराध कर भागी है। उसे शरण चाहिये। वह संत अपने आश्रम में शरण देने को तैयार है और कहता है कि
‘यहां तुम किसी को कुछ मत बताना! कहना यह कि ध्यान और दर्शन के लिये आयी हूं।’
बेसाख्ता हमारे मन में बात आयी कि ‘जैसे यह ध्यान और दर्शन करा रहे हैं।’
क्या सीख है! दर्शन और ध्यान की आड़ में छिप जाओ। यही संत कैमरे के सामने जब बोलते हैं तो उनके भक्त मंत्रमुग्ध हो जाते हैं पर इन पकड़ कर्ताओं ने उनको अपने गुप्त कैमरे को पिंजरा बनाकर चूहे की तरह फंसा डाला।
फिल्म वालों ने एक अंधविश्वास फैला रखा है कि भूत केवल आदमी को दिखता है मगर कैमरे में नहीं फंसता। एक फिल्म आई थी नागिन! जिसमें एक नागिन रूप बदल कर अपने नाग के हत्यारों से बदला ले रही थी। उसमें वह हत्यारों को तो अपनी इंसानी प्रेमिका में दिखती थी और बाद में उनको डस कर बदला लेती थी। उसमें एक नायक उसे पहचान लेता है क्योंकि वह कांच में नागिन ही दिखाई देती है। कैमरे में ही यह दर्पण भी होता है। जिस तरह वह रूपवती स्त्री कांच में नागिन दिखाई देती थी वही कैमरे की भी असलियत होती है। यह धर्म भी शायद एक भूत है जो पिंजरा बन जाने पर कैमरे में अधर्म जैसा दिखाई देता है। रहा धर्म का असली रूप में दिखने का सवाल तो उसके लिये चिंतन का होना जरूरी है क्योंकि वह एक अनुभूति है जो बाहर हमारे आचरण के रूप में अभिव्यक्त होती है और उसके बारे में निर्णय दूसरे लोग करते हैं और सबसे बड़ी बात यह कि सच्चे धर्म वाले कभी किसी पिंजरे में नहीं फंसते।
आखिरी बात यह कि यह व्यंग्य का विषय नहीं बल्कि गंभीर बात है कि श्रीमद्भागवत गीता एक कैमरे का रूप है जिसका अध्ययन कर उसकी बात समझें तो अपना चित्र स्वयं ही खीचकर देख सकते हैं और साथ ही माया के पिंजरे में फंसे लोगों की अदायें देखने का लुत्फ् भी उठा सकते हैं। गीता सिद्ध जानते हैं कि धर्म क्या है और उसकी रक्षा कैसे होती है। उनके लिये कैमरा कभी पिंजरा नहीं बन पता क्योंकि वह उसके सहज अभ्यासी होते हैं और कथनी करनी में अंतर न होने की वजह से कभी चूहे नहीं बनते।
———

कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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कुदरत का करिश्मा-हिन्दी व्यंग्य क्षणिकायें (kudrat ka karishma-hindi vyangya kavitaen)


नदियां यूं ही नहीं देवियां कही जाती हैं,
तभी तक सहती हैं
अपने रास्तों पर आशियानों बनना
जब तक इंसानों की तरह सहा जाता है,
बादलों से बरसा जो थोड़ा पानी
उफनती हुई अतिक्रमण विरोधी अभियान चलाती हैं।
——–
यह कुदरत का ही करिश्मा है कि
विकास के मसीहाओं को भी
उसका सहारा मिल जाता है,
जब तक आगे बढ़ने का सहारा मिलता है
झूठे आंकडों से
वह अपनी छाती फुलाते हैं
बरसती है जब कहर की बाढ़
खुलती है पोल
तब दोष देते हैं कुदरत को
फिर राहत से कमाई की उम्मीद में
उनका चेहरा अधिक खिल जाता है।
———–

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फिर दुनियां हैरान क्यों, जरा बताना-हिन्दी व्यंग्य कविता


दूसरे की आस्था को कभी न आजमाना,
शक करता है तुम पर भी यह ज़माना।
अपना यकीन दिल में रहे तो ठीक,
बाहर लाकर उसे सस्ता न बनाना।
हर कोई लगा है दिखाने की इबादत में
फिर दुनियां हैरान क्यों, जरा बताना।
सिर आकाश में तो पांव जमीन पर हैं,
हद में रहकर, अपने को गिरने से बचाना।।
अपनी राय बघारने में कुशल है सभी लोग,
जिंदगी की हकीकत से हर कोई अनजाना।
——-

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लोहप्रेम-व्यंग्य कविताऐं


जब नदी बनकर बही समंदर
लोहे का बना हो गया लकड़ी का
हर घर उसमें बह गया,
जिस जीवन का मतलब नहीं समझते थे,
तबाही का परवाना लेकर आया
बाढ़ का पानी कह गया।
पैट्रोल गाड़ी चला सकता है
पर जीवन नहीं,
लोहे लंगर के बने ढांचे
फंसे रहे सड़क पर
अपने पैसे पर इतराने वालों!
जिसे रौंदा तुमने हर पल अपने पांव तले
चढ़कर आया वह पानी तुम्हारे सिर
जिसमें तुम्हारा लोहप्रेम ढह गया।
———
जल को तुम न जलाओ
वरना वह तुम्हें बहा ले जायेगा,
जिंदगी के आधार को सस्ता न समझना
वरना आग की तरह जलाने लगेगा
जब सिर पर चढ़ा चला आयेगा।
———

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पसीने की सुगंध-हिन्दी व्यंग्य क्षणिकायें


अकल से भैंस कभी बड़ी नहीं होती,
अगर होती तो, खूंटे से नहीं बंधी होती।
यह अलग बात है कि इंसान नहीं समझते
इसलिये उनकी अक्ल भी अमीरों की खूंटी पर टंगी होती।
भैंस चारा खाकर, संतोष कर लेती है,
मगर इंसान की अकल, पत्थरों की प्रियतमा होती।
————-
कभी मेरे बहते हुए पसीने पर
तुम तरस न खाना,
यह मेरे इरादे पूरे करने के लिये
बह रहा है मीठे जल की तरह,
इसकी बदबू तुम्हें तब सुगंध लगेगी
जब मकसद समझ जाओगे।
सिमट रहा है ज़माना वातानुकुलित कमरे में
सूरज की तपती गर्मी से लड़ने पर
जिंदगी थक कर आराम से सो जाती,
खिले हैं जो फूल चमन में
पसीने से ही सींचे गये
वरना दुनियां दुर्गंध में खो जाती,
जब तक हाथ और पांव से
पसीने की धारा नहीं प्रवाहित कर करोगे
तब अपनी जिंदगी को हाशिए पर ही पाओगे।

——————-

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ऊंचे ओहदेदार-हिन्दी हास्य कविता (oonche ohdedar-haysa kavita in hindi)


फिल्म निर्माता ने कहा
कहानीकार से
‘कोई ऐसी कहानी लिखकर लाओ,
जिसमें पुराने राजाओं जैसे रात को वेश बदलकर
जनता के दुःखदर्द जानने की कोशिश करते हुए
आज के किसी ऊंचे ओहदेदार का पात्र दिखाओ।
अपने ही बेटे को नायक बना रहा हूं
तो भतीजे को गायक के रूप में ला रहा हूं,
घिसी पिटी कहानियों से दर्शक अब नहीं फंसता
अमीरों की कहानियों को देखने से बचता,
अपना बेटा है इसलिये मज़दूर का अभिनय
उससे कराना कठिन है,
आखिर छबि का सवाल है
उसके यह इस धंधे में शुरुआती दिन है,
इसलिये कोई चमकदार पात्र सजाओ।’

सुनकर कहानीकार ने कहा
‘ भारत में और वह भी हिन्दी में यह संभव नहीं है
कोई अंग्रेजी कहानी हो तो आप बताओ।
उसका अनुवाद मैं लिख दूंगा,
पात्र की पृष्ठभूमि अमेरिका या ब्रिटेन में रख लूंगा,
यहां ऐसी कहानी नहीं लिखी जा सकती,
ऊंचे ओहदेदार रात मे क्या दुःखदर्द देखेंगे,
दिन में ही जनता उनके दर्शन नहीं करती,
फिर भेष बदलकर सड़क पर निकलने की बात
यहां जम नहीं पायेगी,
कमांडो तय करते हैं जिनका रास्ता
वह खुद क्या
उनकी पालतू कुतिया भी सड़क पर नहीं आयेगी,
अपने ही पहरेदारों के जो बंधक हैं
वह ऊंचे ओहदेदार
जनती की व्यववस्था के जरूर प्रबंधक हैं,
पर लोगों के भला करने की बात वह
तभी तो सोच पायेंगे
जब अपने घर भरने से फुरसत पायेंगे,
वैसे भी मैं बेमतलब की प्रेम कहानियां
लिखने का अभ्यस्त हूं,
आजकल तो बहुत ज्यादा व्यस्त हूं,
इसलिये या तो कहानी का पात्र बदलो
या कहानीकार ही बदलकर लाओ।’
———–

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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असली दोस्त वही जो महंगाई में निभाता है-हिन्दी हास्य कविता (asli dost aur mahanagai-hindi hasya kavita)


आशिक ने अपने दोस्त से कहा
‘‘यार, महंगाई बढ़ गयी है,
माशुका की मांगें पूरी करते करते
जेब कंगाली की सीढ़िया चढ़ रही है,
अब पेट्रोल होता जा रहा है महंगा,
होटलों में बैरे पेश करते हैं महंगे बिल
तब हो जाता है उनसे पंगा,
यह महंगाई तो मोहब्बत को मार डालेगी,
इस संसार में केवल नफरत को ही पालेगी
मुझे अपनी चिंता नहीं
माशुका का ख्याल आता है,
कैसे करेगी मेरे बिना गुजर
यह सोचकर दिल भर आता है।’’

दोस्त ने कहा
‘‘कैसी बात करते हो यार,
अपनी दोस्ती है, न कि व्यापार,
महंगाई में मोहब्बत महंगी हो सकती है
पर दोस्ती कभी नहीं थकती है,
तुम्हारा दर्द सुनकर मेरा दिल भर आया
इतने दिन तुमने क्यों छिपाया,
घबड़ाओ नहीं अपनी माशुका के घर का पता दो,
‘मैं उससे निभाऊंगा’ तुम जाकर उसे अभी बता दो,
जो तुमने उसे ऐश कराए,
मैं उससे ज्यादा कराऊंगा
ताकि उसे तुम्हारी याद न आए,
अरे, वही दोस्त संसार में नाम पाता है,
जो महंगाई में भी दिल के साथ दोस्ती  निभाता है।’’
—————

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धरती पर छोटे कांटे भी हैं-हिन्दी व्यंग्य कविता


अपने दिल में उठे तमन्नाओं के तूफान से
आकाश में इतना क्यों उछल रहे हो,
अपने लंबे भारी भरकम पांवों के नीचे
क्यों बेबसों को कुचल रहे हो,
हमेशा आकाश की तरफ देखकर
न चला करो
धरती पर छोटे कांटे भी हैं,
जो चुभ गये कभी तो
औकात बता देंगे
सभी की तरह तुम भी जहर फैला रहे हो
अपने अनोखे होने का अहसास न दिलाओ
तुम भी उन लाखों लोगों में एक हो
जो ज़माने के लिये आग उगल रहे हो।

कवि,लेखक,संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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स्वाभिमान और दौलत की शान-हिन्दी कविता (svabhiman aur dualat ki shan-hindi poem)


कदम कदम पर
कांपने लगते हैं वह
अपने बुरे काम से,
फिर भी रिश्ता जोड़ लिया है स्वाभिमान से।
झूठ के पांव नहीं होते,
बेईमान हमेशा कायरता का बोझ ढोते,
देश और समाज की
इज्जत बचाने की बात अच्छी लगती है,
पर जिन पर जिम्मा है इसका
वही जिंदगी को जोड़ते केवल दौलत की शान से।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com

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अपनी जिंदगी-हिन्दी शायरी (apni zindagi-hindi shayari)


यकीन करो दूसरों के अधिकार और उद्धार की
लड़ाई लड़ने की बात जो करते हैं
वह संजीदा नहीं है,
क्योंकि उधार के ख्याल पर
गुजारी है उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी।

सारी उम्र लगा दी लोगों का भला करते हुए
पर एक बंदा भी वह खुश नहीं दिखा सकते,
ज़माने के कमजोर मोहरे ही
सोच रूपी शतरंज की बिसात पर वह मारते हैं,
अमन के लिये करते हैं कलह,
पैगाम सुनाते हुए दहाड़ते हैं।

इसलिये अपने दर्द
दिल में रखना सीख लो,
वरना बिक जायेंगे जज़्बात बीच बाज़ार,
न दिल भरेगा न जेब
हो जाओगे बेजार,
भलाई करने वाले जिंदा ही
नहीं मरों को भी हक दिलाते हैं,
धंधा है उनका कहीं देते भाषण तो
कहीं शब्दों की जंग सिखाते हैं।
अपनी लड़ाई के अकेले सिपाही
अपनी ताकत से ही जीतोगे अपनी जिंदगी।
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कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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चिराग और शमां-हिन्दी शायरी (chirag aur shama-hindi shayari)


चिराग के सहारे शमां खड़ी है,
पर अपनी आजादी के लिये हमेशा लड़ी है।
मुश्किल यह है कि
चिराग और शमां के मिलाप से पैदा होती रौशनी का
हिसाब कोई नहीं करता,
बस, थोड़ी हवो से हिचकौले खाती
शमां की गुलामी पर हर कोई आहें भरता,
लोग देखना चाहते हैं
दोनों के अलग अलग होने का मंजर
शैतान बैठा है सभी के अंदर,
हो जाये जमाने में हादसा तो,
दर्द भरे बयान लिख कर जज़्बात बटोरे जायें,
कुछ नाम तो कुछ नामा पायें,
इसलिये अंधेरों से कई शायरियां भरी पड़ी हैं
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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