रहिमन मारग प्रेम को, मत मतिहीन मझाव
जो डिगिहै तो फिर कहूं, नहिं धरने को पाँव
कवि रहीम कहते हैं कि प्रेम-पाथ पर बुद्धिहीन होकर मत चलो। यदि प्रेम मार्ग में कहीं पग डगमगा गए फ़ो फिर कहीं पैर रखने के लिए स्थान भी नहीं मिलेगा।
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