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आंदोलक पुरुष-हिन्दी लघु हास्य व्यंग्य (aandoka purush-hindi laghu hasya vyangya)


    आंदोलक पुरुष बहुत दिन से खाली बैठे थे। कोई उनको घास नहीं डाल रहा था। ऐसे में वह बाज़ार के सौदागरों के सरदार के पास पहुंच गये। उससे बोले-‘महोदय, आप तो अब काले तथा सफेद दोनों धंधों से खूब कमा रहे हैं। बहुत दिन से आपने मेरी सामाजिक संस्था को न तो चंदा दिया है न काम दिया है। अब मैं खाली बैठा हूं! आप मेरे बारे में कुछ सोचिये।’’
      बाज़ार के सरदार ने कहा-‘‘आप अब गये गुजरे ज़माने का चीज हो गये हैं। जितना आपको आंदोलन का धंधा और चंदा देना था दे दिया। अब आप उसी के ब्याज पर खाईये।’
      आंदोलक पुरुष ने कहा कि ‘‘अब तक तो ठीक था। बुढ़ा गया हूं। बीमारी के इलाज का खर्चा कम पड़ता है अगर आप चंदा या धंधा नहीं देंगे तो फिर आपके खिलाफ प्रत्यक्ष आंदोलन छेड़ दूंगा। वैसे ही डाक्टर ने रोटी कम खाने को कहा है इसलिये भूख हड़ताल पर बैठ जाऊंगा।’’
     बाज़ार के सरदार उनका मजाक उड़ाते हुए कहा-‘अगर आप मर गये तो आपकी अर्थी बड़े जोरदार ढंग से सजा देंगे। यह हमारा वादा रहा।’
     आंदोलक पुरुष उठकर खड़ा हो गया और बोला-‘ठीक है, चलता हूं फिर अगर कोई बात हो तो मेरे पीछे समाज सेवा के अपने दलाल समझौते के लिये मत भेजना।’
     सरदार घबड़ा गया उसने उनसे थोड़ी देर बाहर बैठने को कहा और अपने सचिव को बुलाकर उससे बात की। वह बोला-‘साहब, आप इनको भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन चलाने को कहिये।
     सरदार ने कहा-‘‘क्या बात करते हो? इससे तो हमारे मातहत समाज सेवक परेशान हो जायेंगे।’
सचिव ने कहा-‘अगर देश में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन नहंी चलवायेंगे तो आपके विदेशी आका नाराज हो जायेंगे। सारी दुनियां में भ्रष्टाचार और अनाचार पर हलचल मची हुई है पर अपना देश खामोश है। ऐसा लगता है कि मुर्दा कौमें यहां रहती है। आखिर शक्तिशाली और चेतन समाज से ही उसके शिखर पुरुष की इज्जत अन्यत्र बनती है। अगर अपने देश में ऐसा नहीं हुआ तो विदेश में आपकी इज्जत कम हो जायेगी।’
      सरदार ने कहा-‘मगर यह आदमी भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन चलायेगा तो सारी भीड़ उसके पास चली जायेगी और यह हमारे लिये खतरनाक हो सकता है।’
     सचिव ने कहा-‘आप चिंता मत करिये। इसके पीछे और साथ रहने वाले करीबी लोग अपने ही प्रायोजित और पेशेवर आंदोलनकारी होंगे। उनको चाहे जो आंदोलन हो हम उसमें ठांस देते हैं। वह अच्छा प्रबंध कर लेंगे। आंदोलन चलेगा, रैलियां होंगी पर चलेगा सब कुछ वैसा ही जैसा हम चाहते हैं। वैसे भी आजकल अपने प्रचारक भौंपूओं के पास सैक्स, फिल्म, योग, रोग, ज्योतिष तथा कामेडी के बासी कार्यक्रम रह गये हैं। यह भ्रष्टाचार विरोधी आदोलन नया है सो वह इसमें अपने विज्ञापन चलाकर खूब कमायेंगे। उसमें भी अपने ही बाज़ार की कंपनियों के नये उत्पाद और सेवायें प्रसिद्ध होंगी।’
     बाज़ार के सौदागर ने कहा-‘ठीक है, तुम उसे समझाओ वरना वह भूख हड़ताल पर बैठ जायेगा।’
सचिव ने कहा-‘वह तो उसे दो दिन तक बैठने के लिये कहना ही है। तभी तो बासी कड़ी में उबाल आयेगा। उसने बहुत दिन से कोई आंदोलन नहीं किया इसलिये उसका नाम बासी हो गया है। भूख हड़ताल से उसके आंदोलन को अच्छा प्रचार मिलेगा।’
     सौदागर ने आंदोलक पुरुष को बुलाया और कहा-‘हमारे सचिव से आप बात कर लेना। आप तो आंदोलन चलाईये। बाकी सब हम देख लेंगे। हमारे लोग ही आपके साथ होंगे। आप भाषण करेंगे तो आपकी तरफ से बहस वही लोग बहस करेंगे। यह सचिव उनसे आपको मिला देगा।’
     आंदोलक पुरुष ने कहा-‘इसकी जरूरत नहीं है। मुझे किसी को नहीं जानना। बस मेरा धंधा चलने के साथ ही चंदा आने का सिलसिला जारी रहना चाहिए।’
    सरदार ने कहा-‘आप उनसे मिल तो लीजिये। जब आंदोलन चलायेंगे तो उस पर कुछ लोग नाराज होंगे। हमारे लोगों पर भी कुछ छोटे मोटे आरोप हैं जिनकी चर्चा आपके विरोधी करेंगे। तब उनका जवाब तो आपको ही देना पड़ेगा।’
    इस पर आंदोलक पुरुष ने कहा-‘कह दूंगा कि मै तो उनको जानता ही नहीं वह तो मेरे आंदोलन में आये हैं और पिछले इतिहास में कुछ भी किया होगा पर अब उनका हृदय परिवर्तन हो गया है।’
बाजार का सरदार खुश हो गया और अब आंदोलन चालु आहे।’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक ‘भारतदीप”,ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak ‘BharatDeep’,Gwalior

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आओ दंगा फिक्स करें-हिन्दी हास्य व्यंग्य ( danga fixing-hindi hasya vyangya)


वह समाज सेवक निठल्ले घूम रहे थे। दरअसल अब कंप्यूटर और इंटरनेट आने से चंदा लेने देने का धंधा आनलाईन हो गया था और वह इसमें दक्ष नहीं थे। फिर इधर लोग टीवी से ज्यादा चिपके रहते हैं इसलिये उनके कार्यक्रमों के बारे में सुनते ही नहीं इसलिये चंदा तो मिलने से रहा। पहले वह अनाथ आश्रम के बच्चों की मदद और नारी उद्धार के नाम पर लोगों से चंदा वसूल कर आते थे। पर इधर टीवी चैनलों ने ही सीधे चैरिटी का काम करने वाले कार्यक्रम प्रस्तुत करना शुरु कर दिये हैं तो उनके चैरिटी ट्रस्ट को कौन पूछता? इधर अखबार भी ऐसे समाज सेवकों का प्रचार नहीं करते जो प्रचार के लिये तामझाम करने में असमर्थ हैं।
उन समाज सेवकों ने विचार किया कि आखिर किस तरह अपना काम बढ़ाया जाये। उनकी एक बैठक हुई।
उसमें एक समाज सेवक को बहुत तीक्ष्ण बुद्धि का-सीधी भाषा में कहें तो शातिर- माना जाता था। उससे सुझाव रखने का आग्रह किया गया तो वह बोला-आओ, दंगा फिक्स कर लें।
बाकी तीनों के मुंह खुले रह गये।
दूसरे ने कहा-‘पर कैसे? यह तो खतरनाक बात है?
पहले ने कहा-‘नहीं, दंगा नहीं करना! पहले भी कौनसा सच में समाज सेवा की है जो अब दंगा करेंगे! बस ऐसे तनावपूर्ण हालत पैदा करने हैं कि दंगा होता लगे। बाकी काम मैं संभाल लूंगा।’
तीसरे ने पूछा-‘ पर इसके लिये चंदा कौन देगा।’
पहले ने कहा-‘अरे, इसके लिये परेशान होने की जरूरत नहीं है। हमारे पूर्वज समाज को टुकड़ों में केक की तरह बांट कर रख गये हैं बस हमें खाना है।’
तीसरे ने कहा-‘मगर, इस केक के टुकड़ों में अकल भी है, आखें भी हैं, और कान भी हैं।’
पहला हंसकर बोला-‘यहीं तो हमारी चालाकी की परीक्षा है। अब करना यह है कि दूसरा और तीसरा नंबर जाकर अपने समाजों में यह अफवाह फैला दें कि विपक्षी समाज अपने इष्ट की दरबार सड़क के किनारे बना रहा है। उसका विरोध करना है। सो विवाद बढ़ाओ। फिर अमन के लिये चौथा दूसरे द्वारा और पहले के द्वारा आयोजित समाज की बैठकों मैं जाऊंगा। तब तक तुम दोनो गोष्ठियां करो तथा अफवाहें फैलाओ। समाज के अमीर लोगों के वातानुकूलित कमरों में बैठकें कर उनका माल उड़ाओ। पैसा लो। सप्ताह, महीना और साल भर तक बैठकें करते रहो। कभी कभी मुझे और चौथे नंबर वाले को समाज की बैठकों बुला लो। पहले विरोध के लिये चंदा लो। फिर प्रस्ताव करो कि उसी सड़क के किनारे दूसरे समाज के सामने ही अपने इष्ट का मंदिर बनायेंगे। हम दोनों हामी भरेंगे। संयुक्त बैठक में भले ही दूसरे लोगों को बुलायेंगे पर बोलेंगे हम ही चारों। समझौता करेंगे। दोनों समाजों के इष्ट की दरबार बनायेंगे। फिर उसके लिये चंदा वसूली करेंगे।’
दूसरे ने कहा-‘पर हम चारों ही सक्रिय रहेंगे तो लोगों का शक होगा।’
पहला सोच में पड़ गया और फिर बोला-‘ठीक है। पांचवें के रूप में हम अपने वरिष्ठ समाज सेवक को इस तरह उस बैठक में बुलायेंगे जैसे कि वह कोई महापुरुष हो। लोगों ने उनके बारे में सुना कम है इसलिये मान लेंगे कि वह कोई निष्पक्ष महापुरुष होंगे।’
तीसरे ने कहा-‘पर सड़कों का चौड़ीकरण हो रहा है। अब इतना आसान नहीं रहा है अतिक्रमण करना। अदालतें भी ऐसे विषय पर सख्त हो गयी हैं। कहीं फंस गये तो। इसलिये किसी भी समाज के इष्ट का दरबार नहीं बनेगा।’
पहला हंसकर बोला-‘इसलिये ही मुझे तीक्ष्ण बुद्धि का माना जाता है। अरे, दरबार बनाना किसे है। सड़क पर एक कंकड़ भी नहंी रखना। सारा झगड़ा फिक्स है इसलिये दरबार बनाने का सपना हवा में रखना है। बरसों तक मामला खिंच जायेगा। हम तो इसे समाजसेवा में बदलकर काम करेंगे। अब बताओ कपड़े, बर्तन तथा किताबें गरीबों और मजदूरों में बांटने के लिये कितना रुपया लिया पर एक पैसा भी किसी को दिया। यहां एक पत्थर पर भी खर्च नहीं करना। सड़क पर एक पत्थर रखने का मतलब है कि दंगा करवाना। जब पानी सिर के ऊपर तक आ जाये तब कानूनी अड़चनों का बहाना कर मामला टाल देंगे। फिर कहीं   किसी दूसरी जगह कोई नया काम हाथ में लेंगे। अब जाओ अपनी रणनीति के अनुसार काम करो।’
चारों इस तरह तय झगड़े और समझौते के अभियान पर निकल पड़े।

सूचना-यह लघु व्यंग्य काल्पनिक है तथा इसे मनोरंजन के लिये लिखा गया है। इसका किसी घटना या व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। अगर किसी की कारिस्तानी से मेल खा जाये तो वही इसके लिये जिम्मेदार होगा।
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
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पितृ दिवस पर नारियों की सहानुभुति-हास्य व्यंग्य


नारी स्वतंत्रता समिति की बैठक आनन फानन में बुलाई गयी। अध्यक्षा का फोन मिलते ही कार्यसमिति की चारों सदस्य उनके घर बैठक करने पहुंच गयी। चारों को देखकर अध्यक्षा बहुत खुश हो गयी और बोली-‘इसे कहते हैं सक्रिय समाज सेवा! एक फोन पर ही कार्यसमिति की चारों सदस्यायें पहुंच गयी।’
एक ने कहा-‘क्या बात है? आपने अचानक यह बैठक कैसे बुलाई। मैं तो आटा गूंथ रही थी। जैसे ही आपका मोबाइल पर संदेश मिला चली आयी। जब से इस समिति की कार्यसमिति मैं आयी हूं तब से हमेशा ही बैठक में आने को तैयार रहती हूं। बताईये काम क्या है?’
अध्यक्षा ने कहा-‘हां आपकी प्रतिबद्धता तो दिख रही है। आपने अपने हाथ तक नहीं धोये। आटे से सने हुए हैं, पर कोई बात नहीं। दरअसल आज मुझे इंटरनेट पर पता लगा कि आज ‘पितृ दिवस’ है। इसलिये सोचा क्यों न आज पुरुषों के लिये कोई सहानुभूति वाला प्रस्ताव पास किया जाये।’
यह सुनते ही दूसरी महिला नाराज हो गयी और वह अपने हाथ में पकड़ा हुआ बेलन लहराते हुए बोली-‘कर लो बात! पिछले पांच साल से पुरुष प्रधान समाज के विरुद्ध कितने मोर्चे निकलवाये। बयान दिलवाये। अब यह सफेद झंडा किसलिये दिखायें। इससे तो हमारी समिति का पूरा एजेंडा बदल जायेगा। आपकी संगत करते हुए इतना तो अहसास हो गया है कि जो संगठन अपने मूल मुद्दे से हट जाता है उसकी फिल्म ही पिट जाती है।’
अध्यक्षा ने उससे पूछा-‘क्या तुम रोटी बेलने की तैयारी कर रही थी।’
उसने कहा -‘हां, पर आप चिंता मत करिये यह बेलन आपको मारने वाली नहीं हूं। इसके टूटने का खतरा है। कल ही अपने पड़ौसी के लड़के चिंटू की बाल छत पर आयी मैंने उस गेंद को गुस्से में दूर उड़ाने के लिये बेलन मारा तो वह टूट गया। अब यह पुराना अकेला बेलन है जो मैं आपको मारकर उसके टूटने का जोखिम नहीं उठा सकती। वैसे आपके प्रस्ताव पर मुझे गुस्सा तो खूब आ रहा है।’
अध्यक्षा ने कहा-‘देखो! जरा विचार करो। आजकल वह समय नहीं है कि रूढ़ता से काम चले। अपनी समिति के लिये चंदा अब कम होता जा रहा है इसलिये कुछ धनीमानी लोगों को अपने ‘स्त्री पुरुष समान भाव’ से प्रभावित करना है। फिर 364 दिन तो हम पुरुषों पर बरसते हैं। यहां तक वैलंटाईन डे और मित्र दिवस जो कि उनके बिना नहीं मनते तब भी उन्हीं पर निशाना साधते हैं। एक दिन उनको दे दिया तो क्या बात है? मुद्दों के साथ अपने आर्थिक हित भी देखने पड़ते हैं। अच्छा तुम बताओ? क्या तुम अपने बच्चों के पिता से प्यार नहीं करती?’
तीसरी महिला-जो फोन के वक्त अपने बेटे की निकर पर प्र्रेस कर रही थी-उसे लहराते हुए बोली-‘बिल्कुल नहीं! आपने समझाया है न! प्यार दिखाना पर करना नहीं। बस! प्यार का दिखावा करती हैं। वैसे यह निकर सफेद है पर हमसे यह आशा मत करिये कि ‘पितृ दिवस’ पर इसे फहरा दूंगी। पहले तो यह बताईये कि इस पितृ दिवस पर पुरुषों के लिए हमदर्दी वाला प्रस्ताव पास करने का विचार यह आपके दिमाग में आया कैसे?’
अध्यक्षा ने कहा-‘ पहली बात तो यह है कि तुम मेरे सामने ही मेरे संदेश को उल्टा किये दे रही हो। मैंने कहा है कि अपने बच्चों के पिता से प्यार करो पर दिखाओ नहीं। दूसरी बात यह कि आजकल हमारी गुरुमाता इंटरनेट पर भी अपने विचार लिखती हैं। उन्होंने ही आज उस पर लिखा था ‘पितृ दिवस पर सभी पुरुषों के साथ हमदर्दी’। सो मैंने भी विचार किया कि आज हम एक प्रस्ताव पास करेंगे।’
चौथी महिला चीख पड़ी। उसके हाथ मे कलम और पेन थी वह गुस्सा होते हुए बोली-‘आज आप यह क्या बात कर रही हैं। आपकी बताई राह पर चलते हुए मैंने एक वकील साहब के यहां इसलिये नौकरी की ताकि उनके सहारे अपने आसपास पीड़ित महिलाओं की कानूनी सहायता कर सकूं। देखिये यह एक पति के खिलाफ नोटिस बना रही थी।’
अध्यक्षा ने एकदम चौंकते हुए कहा-‘अरे, क्या बात कर रही हो। पति तो एक ही होता है? उसे नोटिस क्यों थमा रही हो? मेरे हिसाब से तुम्हारा पति गऊ है।’
‘‘उंह…उंह….मैं अपने पति को बहुत प्यार करती हूं पर आपके कहे अनुसार दिखाती नहीं हूं। पर वह गऊ नहीं है। हां, यह नोटिस एक पीड़ित महिला के पति के लिये बना रही हूं।’चौथी महिला ने हंसते हुए कहा-‘खाना बनाते समय कई बार जब मेरे रोटी पकाते वक्त पीछे से बेलन दिखाते है और जब सामने देखती हूं तो रख देते है। मेरे बेटे ने एक बार उनकी अनुपस्थिति में बताया।’
अध्यक्षा ने कहा-‘पहले तो तुम रोटी पकाती थी न?’
चौथी वाली ने कहा-‘आपकी शिष्या बनने के बाद यह काम छोड़ दिया है। मेरे पति सुबह खाना बनाने और बच्चों को स्कूल भेजने के बाद काम पर जाते हैं और मैं सारा दिन समाज सेवा में आराम से बिताती हूं। आपने जो राह दिखाई उसी पर चलने में आनंद है पर यह आप आज क्या लेकर बैठ गयीं। हमें यह मंजूर नहीं है। अब अगर सफेद झंडे दिखाये तो मुझे रोटी पकानी पड़ेगी। नहीं बाबा! न! आप आज यह भूल जाईये। 364 दिन मुट्ठी कसी रही तो ठीक ही है। एक दिन ढीली कर ली तो फिर अगले 364 दिन तक बंद रखना कठिन होगा।’
अध्यक्षा ने कहा-‘तुम अपने घर पर यह मत बताना।’
पहली वाली ने कहा-‘पर अखबार में तो आप यह सब खबरें छपवा देंगी। हमारे पति लोग पढ़ लेंगे तो सब पोल खुल जायेगी।’
अध्यक्षा ने पूछा-‘कैसी नारी स्वतंत्रता सेनानी हो? क्या पति से छिपकर आती हो?’
दूसरी वाली ने कहा-‘नहीं! उनको पता तो सब है पर अड़ौस पड़ौस में ऐसे बताते हैं कि पतियों से छिपकर बाहर जाते हैं। अरे, भई इसी तरह तो हम बाकी महिलाओं को यह बात कह सकते हैं कि हम कितनी पीड़ित हैं और उनको अपने ही घरों में विद्रोह की प्रेरणा दे सकते हैं। अपना घर तो सलामत ही रखना है।’
अध्यक्षा ने कहा-‘भई, इसी कारण कह रही हूं कि आज पुरुषों के लिये संवेदना वाला प्रस्ताव करो। ताकि उनमें कुछ लोग हमारी मदद करने को तैयार हो जायें। यह सोचकर कि 364 दिन तो काले झंडे दिखाती हैं कम से कम एक दिन तो है जिस दिन हमारे साथ संवेदनाऐं दिखा रही हैं।’
तीसरी वाली ने अपनी हाथ में पकड़े सफेद नेकर फैंक दी और बोली-‘नहीं, हम आपकी बात से सहमत नहीं हैं।’
चौथी वाली ने कहा-‘आपके कहने पर इतना हो सकता है कि यह नोटिस आज नहीं कल बना दूंगी पर आप मुझसे किसी ऐसे प्रस्ताव पर समर्थन की आशा न करें।’
अध्यक्षा ने कहा-‘अच्छा समर्थन न करो। कम से कम कम एक प्रस्ताव तो लिखकर दो ताकि अखबार में प्रकाशित करने के लिये भेज सकूं। तुम्हें पता है कि मुझे केवल गुस्से में ही लिखना आता है प्रेम से नहीं।’
चौथी वाली महिला तैयार नहीं थी। इसी बातचीत के चलते हुए एक बुजुर्ग आदमी ने अध्यक्षा के घर में प्रवेश किया। वह उसके यहां काम करने वाली लड़की का पिता था। अध्यक्षा ने उसे देखकर अपने यह काम करने वाली लड़की को पुकारा और कहा-‘बेटी जल्दी काम खत्म करो। तुम्हारे पिताजी लेने आये हैं।’
वह लड़की बाहर आयी और बोली-‘मैडम मैंने सारा खत्म कर दिया है। बस, आप चाय की पतीली उतार कर आप स्वयं और इन मेहमानों को भी चाय पिला देना।’
लड़की के पिता ने कहा-‘बेटी, तुम सभी को चाय पानी पिलाकर आओ। मैं बाहर बैठा इंतजार करता हूं। आधे घंटे में कुछ बिगड़ नहीं जायेगा।’
लड़की ने कहा-‘बापू, आप भी तो मजदूरी कर थक गये होगे। घर देर हो जायेगी।’
लड़की के पिता ने कहा-‘कोई बात नहीं।
वह बाहर चला गया। लड़की चाय लेकर आयी। अध्यक्षा ने कहा-‘तुम एक कप खुद भी ले लो और पिताजी को भी बाहर जाकर दो।’
लड़की ने कहा-‘मैं तो किचन में चाय पीने के बाद कप धोकर ही बाहर जाऊंगी। मेरे बापू शायद ही यहां चाय पियें। इसलिये उनको कहना ठीक नहीं है। वह मुझसे कह चुके हैं कि किसी भी मालिक के घर लेने आंऊ तो मुझे पानी या चाय के लिये मत पूछा करो।’
लड़की और उसके पिताजी चले गये। उस समिति की सबसे तेजतर्रार सदस्या च ौथी महिला ने बहुत धीमी आवाज में अध्यक्षा से कहा-‘आप कागज दीजिये तो उस पर प्रस्ताव लिख दूं।’
फिर वह बुदबुदायी-‘पिता क्या कम तकलीफ उठाता है।’
ऐसा कहकर वह छत की तरफ आंखें कर देखने लगी। तीसरी वाली महिला ने वह सफेद निकर अपने हाथ में ले ली। दूसरी वाली महिला ने अपना बेलन पीछे छिप लिया और पहली वाली ग्लास लेकर अपना हाथ धोने लगी।
नोट-यह एक काल्पनिक व्यंग्य रचना है। इसका किसी व्यक्ति या घटना से कोई लेना देना नहीं है। अगर किसी की कारिस्तानी से मेल खा जाये तो वही इसके लिये जिम्मेदार होगा। यह लेखक किसी भी नारी स्वतंत्रता समिति का नाम नहीं जानता है न उसकी सदस्या से मिला है।
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आम भक्त,विशिष्ट भक्त-लघु हास्य व्यंग्य


गुरुजी टूथपेस्ट कर रहे थे और खास चेला पास में खड़ा था। गुरुजी ने पूछा-‘बाहर की क्या खबर है?’
चेले ने कहा-‘गुरुजी, आज तो बहुत सारे विशिष्ट भक्त आये हैं। आपसे मिलने को आतुर हो रहे हैं। मैंने सबसे कह दिया कि गुरु जी तो इस समय ध्यान कर रहे हैं। इसलिये देर से दर्शन होंगे।
गुरुजी ने कहा-‘कल तुम्हारे चक्कर में अधिक पी ली तो आज देर से नींद खुली है। अभी चाय पीकर टूथपेस्ट कर रहा हूं। फिर नहाधोकर आता हूं। तब तक लोगों से कहो कि गुरुजी आज खास ध्यान कर रहे हैं। वैसे बाहर कितनी भीड़ है?’
चेले ने कहा-‘भीड़ से क्या मतलब? विशिष्ट भक्तों में पान वाले सेठजी, दारूवाले साहब और कई साहूकार आये हैं। आम भक्त से क्या मिलता है? आप तो पहले विशिष्ट भक्तों से मिलें। मेरे विचार से आम भक्तों से मिलने का आपको आज समय ही नहीं मिल पायेगा। आम भक्तोें से कह देता हूं कि आप आज ध्यान में पूरे दिन लीन रहेंगे।
गुरुजी ने कहा-‘तुम पगला गये हो। हमारे विरोधियों ने कभी हमारे खिलाफ प्रचार किया तो हम अपने आश्रम को कैसे बचायेंगे? हमें तब धर्म पर हमला कहकर बचाने के लिये इन्हीं आम भक्तों की जरूरत पड़ती है। इसलिये उनको भी दर्शन देना जरूरी है। आम भक्त केवल उसी समय संक्रमण काल मेंबरगला कर अपने साथ लाने के लिये है। इसलिये उनको पहले पांच मिनट दर्शन देकर विशिष्ट भक्तों से मिल लेते हैं। उनके लिये तो पूरा दिन है।’
चेला बोला-‘वाह गुरुजी! आप वाकई महान हैं।
गुरु ने कहा-‘अगर ऐसा न होता तो क्या तुम गुरु मानते। आम भक्त तो केवल दिखाने के लिये है। असली काम तो विशिष्ट भक्तों से है। आम भक्त यह देखकर आता है कि हमारे पास विशिष्ट भक्त हैं और विशिष्ट भक्त इसलिये आता है कि इतने सारे आम भक्त हैं। जिनको दोनों का सानिध्य मिलता है उनके ही आश्रम हिट होते हैं नहीं तो फ्लाप शो हो जाता है।
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