यकीन करो दूसरों के अधिकार और उद्धार की
लड़ाई लड़ने की बात जो करते हैं
वह संजीदा नहीं है,
क्योंकि उधार के ख्याल पर
गुजारी है उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी।
सारी उम्र लगा दी लोगों का भला करते हुए
पर एक बंदा भी वह खुश नहीं दिखा सकते,
ज़माने के कमजोर मोहरे ही
सोच रूपी शतरंज की बिसात पर वह मारते हैं,
अमन के लिये करते हैं कलह,
पैगाम सुनाते हुए दहाड़ते हैं।
इसलिये अपने दर्द
दिल में रखना सीख लो,
वरना बिक जायेंगे जज़्बात बीच बाज़ार,
न दिल भरेगा न जेब
हो जाओगे बेजार,
भलाई करने वाले जिंदा ही
नहीं मरों को भी हक दिलाते हैं,
धंधा है उनका कहीं देते भाषण तो
कहीं शब्दों की जंग सिखाते हैं।
अपनी लड़ाई के अकेले सिपाही
अपनी ताकत से ही जीतोगे अपनी जिंदगी।
———–
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका
दीपक भारतदीप द्धारा
|
हिन्दी, India, internet में प्रकाशित किया गया
|
Also tagged दीपक भारतदीप, मनोरंजन, मस्त राम, मस्ती, संदेश, हिन्दी, हिन्दी साहित्य, Deepak Bharatdeep, hindi sahitya, India, internet, shayari, sher, vyangya kavita
|
भगवा, हरा, सफेद और नीले रंग के
तयशुदा परिधानों के धारण करने वाले
सर्वशक्तिमान के प्रतिनिधि कहलाने वाले
दलालों को अगर पहचाना नहीं,
समझो धर्म नहीं निभाया
ज्ञान कभी नहीं ।
रास्ते पर बेचने वाली शय नहीं है ज्ञान,
किताबें बेचने वाले कभी नहीं कहलाये महान,
उसके शब्द रटकर सुनाने वाले
फिर क्यों करते हैं अभिमान,
उनको खुद भी समझ आया नहीं।
मत मानो उनको देवता
सर्वशक्तिमान सभी का सगा है
किसी के लिये पराया नहीं।
———————-
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
दीपक भारतदीप द्धारा
|
मनोरंजन, मस्तराम, मस्ती, व्यंग्य कविता, समाज, हिन्दी साहित्य, hindi poem, parsonal, society में प्रकाशित किया गया
|
Also tagged मनोरंजन, मस्तराम, मस्ती, समाज, हिन्दी साहित्य, hindi poem, parsonal, society
|
दिल लगाने के ठिकाने
अब नहीं ढूंढते
क्योंकि दिल्लगी बाज़ार की शय बन गयी है,
मोहब्बत का पाखंड अब
खुश नहीं कर पाता
क्योंकि जहां बहता है जज़्बातों का दरिया
वह मतलब की बर्फ जम गयी है।
———
आसमान के उड़ने की चाहत में
इतनी ऊंची छलांग मत लगाओ
कि जमीन पर गिरने पर
शरीर को इतने घाव लग जायें
जिन्हें भर न पाओ।
दूर जाना अपने मकसद के लिये उतना ही
कि साबित अपने ठिकाने पर लौट आओ।
———
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
दीपक भारतदीप द्धारा
|
मनोरंजन, व्यंग्य कविता, समाज, हिन्दी साहित्य, hindi sahitya, society, vyangya kavita में प्रकाशित किया गया
|
Also tagged मनोरंजन, समाज, हिन्दी साहित्य, hindi sahitya, society, vyangya kavita
|
जमीन पर बिखरे खून पर भी
अपने ख्यालों की वह तलवार चलायेंगे,
कातिलों से जिनका दिल का रिश्ता है
वह उनके जज़्बातों का करेंगे बखान
लाश के चारों ओर बिखरे लाल रंग को
पानी जैसा बतायेंगे।
———-
गम भी बिकता है तो
खुशी भी बाजार में सजती है।
खबरफरोशों को तो बस
खबर परोसने में आती मस्ती है।
पेट की भूख से ज्यादा खतरनाक है
परदे पर चमकने का लालच
मांगने पर भीख में रोटी मिल सकती है
पर ज़माने में चांद जैसे दिखने के लिये
सौदागरों की चौखट पर जाना जरूरी है
उनके हाथ के नीचे ही इज्जत की बस्ती है।
————-
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com
यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
दीपक भारतदीप द्धारा
|
मनोरंजन, व्यंग्य कविता, संदेश, समाज, हिन्दी साहित्य, hindi shayri, sher, society में प्रकाशित किया गया
|
Also tagged बाज़ार, मनोरंजन, संदेश, समाज, हिन्दी साहित्य, hindi shayri, sher, society
|
फरिश्तों की दरबार में
क्यों हाजिरी लगाने जाते हो,
हो सकता है वहां रोज सुबह फर्श धोया जाता हो
रंगीन रात के जश्न की धूल धोने के लिये
तुम सफेद चेहरों की
काली नीयत क्यों नहीं समझ पाते हो।
पत्थर के बुतों की तरह खड़े हैं फरिश्ते वहां
सांसें लेने के लिये नहीं है, दिल की इबादत जहां
अपने दिल और दिमाग की
जगह साफ कर
फरिश्तों की दरबार अपने अंदर ही
क्यों नहीं सजाते हो।
अपनी रूह से ही
अपनी जिंदगी की रोशनी क्यों नहीं जलाते हो।
————
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका
दीपक भारतदीप द्धारा
|
मस्त राम, हिन्दी, internet में प्रकाशित किया गया
|
Also tagged दीपक भारतदीप, मनोरंजन, मस्त राम, मस्ती, समाज, हिन्दी, हिन्दी पत्रिका, हिन्दी साहित्य, Deepak Bharatdeep, hindi satire comic poem, internet, masti, society, web bhaskar, web dunia, web duniya, web express, web jagran, web panjabkesri
|
दूसरों के दाग देखने की आदत
कुछ इस तरह हो गयी है कि
अपने कसूर दिखाई नहीं देते।
किसी के घावों को देखकर
खुश होने का रिवाज बन गया है
लोग अपनी जिंदगी के
स्याहा धब्बे इसी तरह छिपा लेते।
——–
कौन कहता है कि
जिंदगी के रिश्ते
ऊपर से तय होकर आते हैं।
सच तो यह है कि
इस धरती पर सारे इंसानी रिश्ते
हालातों से मोलभाव कर
तय किये जाते हैं।
————-
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com
यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका
सिक्कों के पहाड़ पर ही
उम्मीदों की बस्ती बसी दिखती है,
पर वह तो धातु से बने हैं
जिनकी ताकत कितनी भी हो
सच पर खरे नहीं उतरते
बैठे हैं वहां तंगदिल लोग
अपने घर बसाकर
जिनकी कलम वहां रखी हर पाई
बस, अपने ही खाते में लिखती है।
———-
नाव के तारणहार खुद नहीं
उस पर चढ़े हैं,
क्योंकि दिल उनके छोटे
नीयत में ख्याल खोटे
पर उनके चरण बड़े हैं।
उड़ने के लिये उन्होंने
विमान जुटा लिये हैं
गरीब की कमाई के सिक्के
अमीर बनाने में लुटा दिये हैं
नदिया में डूब जाये नाव तो
हमदर्दी बेचने के लिये भी वह खड़े हैं
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com
यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप का चिंतन’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.अनंत शब्दयोग
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
4.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान पत्रिका