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दर्द कितना था और कितने जाम पिये -हिंदी शायरी



यूं तो शराब के कई जाम हमने पिये
दर्द कम था पर लेते थे हाथ में ग्लास
उसका ही नाम लिये
कभी इसका हिसाब नहीं रखा कि
दर्द कितना था और कितने जाम पिये

कई बार खुश होकर भी हमने
पी थी शराब
शाम होते ही सिर पर
चढ़ आती
हमारी अक्ल साथ ले जाती
पीने के लिये तो चाहिए बहाना
आदमी हो या नवाब
जब हो जाती है आदत पीने की
आदमी हो जाता है बेलगाम घोड़ा
झगड़े से बचती घरवाली खामोश हो जाती
सहमी लड़की दूर हो जाती
कौन मांगता जवाब
आदमी धीरे धीरे शैतान हो जाता
बोतल अपने हाथ में लिये

शराब की धारा में बह दर्द बह जाता है
लिख जाते है जो शराब पीकर कविता
हमारी नजर में भाग्यशाली समझे जाते हैं
हम तो कभी नहीं पीकर लिख पाते हैं
जब पीते थे तो कई बार ख्याल आता लिखने का
मगर शब्द साथ छोड़ जाते थे
कभी लिखने का करते थे जबरन प्रयास
तो हाथ कांप जाते थे
जाम पर जाम पीते रहे
दर्द को दर्द से सिलते रहे
इतने बेदर्द हो गये थे
कि अपने मन और तन पर ढेर सारे घाव ओढ़ लिये

जो ध्यान लगाना शूरू किया
छोड़ चली शराब साथ हमारा
दर्द को भी साथ रहना नहीं रहा गवारा
पल पल हंसता हूं
हास्य रस के जाम लेता हूं
घाव मन पर जितना गहरा होता है
फिर भी नहीं होता असल दिल पर
क्योंकि हास्य रस का पहरा होता है
दर्द पर लिखकर क्यों बढ़ाते किसी का दर्द
कौन पौंछता है किसके आंसू
दर्द का इलाज हंसी है सब जानते हैं
फिर भी नहीं मानते हैं
दिल खोलकर हंसो
मत ढूंढो बहाने जीने के लिये
………………………

यह आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकाएं भी हैं। वह अवश्य पढ़ें।
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
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4.अनंत शब्दयोग
लेखक संपादक-दीपक भारतदीप

शायर और माशुका-हास्य कविता


माशुका ने शायर से कहा
‘बहुत बुरा समय था जब मैंने
अपनी सहेलियों के सामने
किसी शायर से शादी करने की कसम खाई
तुमने मेरे इश्क में कितने शेर लिखे
पर किसी मुशायरे में तुम्हारे शामिल होने की
खबर अखबार में नहीं आई
सब सहेलियां शादी कर मां बन गयीं
पर मैं उदास बैठी देखती हूं
अब तो कोई मशहूर शायर
देखकर शादी करनी होगी
नहीं झेल सकती ज्यादा जगहंसाई’

शायर खुश होकर बोला
‘लिखता बहुत हूं
पर सुनने वाले कहते हैं कि
उसमें दर्द नहीं दिखता
भला ऐसा कैसे हो
जब मैं तुम्हारे प्यार में
श्रृंगार रस में डुबोकर शेर लिखता
अब तो मेरे शेरों में दर्द की
नदिया बहती दिखेगी
जब शराब मेरे सिर पर चढ़कर लिखेगी
अपने प्यार से तुम नहीं कर सकी मुझे रौशन
मेहरबानी कर तोहफे में जल्दी दो जुदाई’

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उनको शराब पीती है


लोग तो बस अपनी खुशी की खातिर जीते हैं
गम हो या खुशी का मौका बस जाम पीते हैं
कोई ख्वाहिश हो जाती है पूरी तो
नहीं हो तो भी अफ़सोस में पीते हैं
कहीं से अपने लिए उम्मीद हो तो
न हो तो भी नाउम्मीन्दी में पीते हैं
किसी से सवाल का जवाब मिल जाये तो
नहीं तो भी ग़ुस्से में पीते हैं
कोई मौका नहीं छोड़ते पीने का
नहीं मिलता तो भी पीते हैं
हर जाम पर पीती है शराब उनको
पर ग़लतफ़हमी यह कि हम उसे पीते हैं