Tag Archives: शेर

अंधेरे की तरफ बढ़ता देश-हिन्दी क्षणिकायें


महंगाई पर लिखें या
बिज़ली कटौती पर
कभी समझ में नहीं आता है,
अखबार में पढ़ते हैं विकास दर
बढ़ने के आसार
शायद महंगाई बढ़ाती होगी उसके आंकड़ें
मगर घटती बिज़ली देखकर
पुराने अंधेरों की तरफ
बढ़ता यह देश नज़र आता है।
———–
सर्वशक्तिमान को भूलकर
बिज़ली के सामानों में मन लगाया,
बिज़ली कटौती बन रही परंपरा
इसलिये अंधेरों से लड़ने के लिये
सर्वशक्तिमान का नाम याद आया।
———–
पेट्रोल रोज महंगा हो जाता,
फिर भी आदमी पैदल नहीं नज़र आता है,
लगता है
साफ कुदरती सांसों की शायद जरूरत नहीं किसी को
आरामों में इंसान शायद धरती पर जन्नत पाता है।
———-

कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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महंगाई और बिज़ली कटौती-हिन्दी क्षणिकायें (mahangai aur bijli katauti-hindi vyangya kavitaen)

स्वतंत्रता दिवस का एक दिन-व्यंग्य कविता कविता (one day of independence-hidi satire poem)


अपने ही गुलामों की
भीड़ एकत्रित कर आज़ादी पर
शिखर पुरुष करते हैं झंडा वंदन।
अपने खून को पसीना करने वाले
मेहनतकशों के लिये हमदर्दी के
कुछ औपचारिक शब्द बोल देते हैं
उसके हाथ भी खोल देते हैं
बस! एक दिन
फिर उसके पसीने का तेल बनाने के लिए
डाल देते हैं पांव में बंधन।।
———-

कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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ऊंचे ओहदेदार-हिन्दी हास्य कविता (oonche ohdedar-haysa kavita in hindi)


फिल्म निर्माता ने कहा
कहानीकार से
‘कोई ऐसी कहानी लिखकर लाओ,
जिसमें पुराने राजाओं जैसे रात को वेश बदलकर
जनता के दुःखदर्द जानने की कोशिश करते हुए
आज के किसी ऊंचे ओहदेदार का पात्र दिखाओ।
अपने ही बेटे को नायक बना रहा हूं
तो भतीजे को गायक के रूप में ला रहा हूं,
घिसी पिटी कहानियों से दर्शक अब नहीं फंसता
अमीरों की कहानियों को देखने से बचता,
अपना बेटा है इसलिये मज़दूर का अभिनय
उससे कराना कठिन है,
आखिर छबि का सवाल है
उसके यह इस धंधे में शुरुआती दिन है,
इसलिये कोई चमकदार पात्र सजाओ।’

सुनकर कहानीकार ने कहा
‘ भारत में और वह भी हिन्दी में यह संभव नहीं है
कोई अंग्रेजी कहानी हो तो आप बताओ।
उसका अनुवाद मैं लिख दूंगा,
पात्र की पृष्ठभूमि अमेरिका या ब्रिटेन में रख लूंगा,
यहां ऐसी कहानी नहीं लिखी जा सकती,
ऊंचे ओहदेदार रात मे क्या दुःखदर्द देखेंगे,
दिन में ही जनता उनके दर्शन नहीं करती,
फिर भेष बदलकर सड़क पर निकलने की बात
यहां जम नहीं पायेगी,
कमांडो तय करते हैं जिनका रास्ता
वह खुद क्या
उनकी पालतू कुतिया भी सड़क पर नहीं आयेगी,
अपने ही पहरेदारों के जो बंधक हैं
वह ऊंचे ओहदेदार
जनती की व्यववस्था के जरूर प्रबंधक हैं,
पर लोगों के भला करने की बात वह
तभी तो सोच पायेंगे
जब अपने घर भरने से फुरसत पायेंगे,
वैसे भी मैं बेमतलब की प्रेम कहानियां
लिखने का अभ्यस्त हूं,
आजकल तो बहुत ज्यादा व्यस्त हूं,
इसलिये या तो कहानी का पात्र बदलो
या कहानीकार ही बदलकर लाओ।’
———–

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com

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विकास और कदाचार(उन्नति और भ्रष्टाचार) -हिन्दी व्यंग्य कवितायें (devlopment and corruption-hindi satire poem,hindi vyangya kavita)


रबड़ के चार पहियों पर सजी कार
विकास का प्रतीक हो गयी है,
चलते हुए उगलती है धुआं
इंसान बन गया मैंढक
ढूंढता है जैसे अपने रहने के लिये कुआं,
ताजी हवा में सांस लेती जिंदगी
अब अतीत हो गयी है।
———-
उन्होंने पूछा था अपने दोस्त से
खुशियां दिलाने वाली जगह का पता
उसने शराबखाने का रास्ता दिखाया,
चलते रहे मदहोश होकर उसी रास्ते
संभाला तब उन्होने होश
जब अस्पताल जाकर
बीमारों में अपना नाम लिखाया।
———-
हमने उनसे पूछा कदाचार के बारे में
उन्होंने जमाने भर के कसूर बताये,
भरी थी जेब उनकी भी हरे नोटों से
जो उन्होंने ‘ईमादारी की कमाई‘ जताये।
मान ली उनकी बात तब तक के लिये
जब तक उनके ‘चेहरे’
रंगे हाथ कदाचार करते पकड़े नज़र नहीं आये।
————

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
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अपना अपना दाव-हिन्दी व्यंग्य कवितायें (apna apna daav-hindi satire poem)


अंधों की तरह रेवड़ियां बांटने का
चलन अब आंख वालों में भी हो गया है।
कहीं पुजते दौलतमंद
कहीं सजते ऊंचे ओहदे वाले
कहीं जमते बाजुओं में दम वाले
तो कहीं उनके चाटुकार चमकते हैं
लोगों के हैं अपने अपने दाव
उजले नकाब पहनने पर हैं आमदा
क्योंकि चरित्र सभी का खो गया है।
——–
सम्मान बेचने वाले ने
एक कवि से कहा
‘कुछ जेब ढीली करो तो
हमसे सम्मान पाओ।
आजकल सब बिकता है बाजार में
शब्दों से खाली वाह वाह मिलती है,
कविता कागज पर लिखकर
पैसा खर्च करने की बजाय
हमारी जेब में पहुंचाओ।
कुछ अपना कुछ हमारा सम्मान बढ़ाओ।’
कवि ने कहा
‘पैसा होता तो कवितायें क्यों लिखता,
अभाव न होते तो कवि कैसे दिखता,
सम्मान खरीदने की ताकत होती
तो कवितायें भी खरीद कर लाता,
सम्मान के लिये सजाता,
फिर तुम जैसे तुच्छ प्राणी की
शरण क्यों कर लेता,
किसी बड़े आदमी पर चढ़ाता दाम
जो बड़ा ही सम्मान देता।
तुम सम्मान के छोटे सौदागर हो
अपने सम्मान को बड़ा न बताओ।
गली मोहल्ले के कवियों पर
अपना दाव लगाने से अच्छा है
अपना प्रस्ताव कविता के बाजार में
कवियों जैसे दिखने वालों को समझाओ।

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
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शब्दों की प्रेरणा-हिन्दी व्यंग्य कवितायें


दिन भर वह दोनों ज्ञानी

अपने शब्दों की प्रेरणा से

लोगों को लड़ाने के लिये

झुंडों में बांट रहे थे,

रात को

लूट में मिले सामान में

अपना अपना हिस्सा

ईमानदारी से छांट रहे थे।

——-

शब्द रट लेते हैं किताबों से,

सुनाते हैं उनको हादसों के हिसाबों से,

पर अक्लमंद कभी खुद जंग नहीं लड़ते।

नतीजों पर पहुंचना

उनका मकसद नहीं

पर महफिलों में शोरशराबा करते हुए

अमन की राह में उनके कदम

बहुत  मजबूती से बढ़ते।

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इश्क की भाषा-हिन्दी व्यंग्य कविता (ishq ki bhasha-hindi comic poem)


आशिक लिखता था अंग्रेजी में प्रेमपत्र

प्रेमिका भी देती थी उसी में जवाब।

इश्क ने दोनों को कर दिया था विनम्र

नहीं झाड़ते थे एक दूसरे पर रुआब।

एक दिन अखबार में पढ़ी

माशुका ने ‘भाषा के झगड़े’ की खबर,

खिंच गया दिमाग ऐसे, जैसे कि रबर,

उसने आशिक के सामने

मातृभाषा का मामला उठाया,

दोनों ने उसे अलग अलग पाया,

वाद विवाद हुआ  जमकर,

दोनों अपनी ही मातृभाषा को

इश्क की भाषा बताने लगे तनकर,

पहले मारे एक दूसरे को ताने,

फिर लगे डराने

बात यहां तक पहुंची कि

दोनों एक दूसरे से इतना चिढ़े गये कि

आशिक के लिये माशुका

और माशुका के लिये आशिक बन गया

बीते समय का एक बुरा ख्वाब।

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जज़्बात एक शय है-.हिन्दी शायरी


इंसान के जज्ब़ात शर्त से
और समाज के सट्टे के भाव से
समझे जाते हैं।
नये जमाने में
जज़्बात एक शय है
जो खेल में होता बाल
व्यापार में तौल का माल
नासमझी बन गयी है
जज़्बात का सबूत
जो नहीं फंसते जाल में
वह समझदार शैतान समझे जाते हैं
……………………….
एक दोस्त ने फोन पर
दूसरे दोस्त से
‘क्या स्कोर चल रहा है
दूसरा बिना समझे तत्काल बोला
‘यार, ऐसा लगता है
मेरी जेब से आज फिर
दस हजार रुपया निकल रहा है।’
……………………………..
छायागृह में चलचित्र के
एक दृश्य में
नायक घायल हो गया तो
एक महिला दर्शक रोने लगी।
तब पास में बैठी दूसरी महिला बोली
‘अरे, घर पर रोना होता है
इसलिये मनोरंजन के लिये यहां हम आते हैं
पता नहीं तुम जैसे लोग
घर का रोना यहां क्यों लाते हैं
अब बताओ
क्या सास ने मारकर घर से निकाला है
या बहु से लड़कर तुम स्वयं भगी
जो हमारे मनोरंजन में खलल डालने के लिये
इस तरह जोर जोर से रोने लगी।’
……………………………….
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लेखक संपादक-दीपक भारतदीप

आंसुओं का व्यापार-हिन्दी शायरी


हमदर्दी जताने की कला
हमें कभी नहीं आई
किसी का दर्द देखकर
मन रोया मन भर आंसु
पर आंखें दरिया न बन पाई।
शायद लोग दिमाग से सोचते हैं
इसलिये हमदर्दी के शब्द जल्दी ढूंढ लेते
दिल तक नहीं पहुंचता
दूसरे का दर्द
कर लेते हैं दिखावे में कमाई।
नहीं करना सीखा पाखंड
इसलिये दूसरे के घाव पर मरहम लगाकर भी
अपने लिये ओढ़ लेते हैं तन्हाई।

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सिक्कों के पहाड़-हिन्दी शायरी (sikkon ke pahad-hindi shayri)


सिक्कों के पहाड़ पर ही

उम्मीदों की बस्ती बसी दिखती है,

पर वह तो धातु से बने हैं

जिनकी ताकत कितनी भी हो

सच पर खरे नहीं उतरते

बैठे हैं वहां तंगदिल लोग

अपने घर बसाकर

जिनकी कलम वहां रखी हर पाई

बस, अपने ही खाते में लिखती है।

———-

नाव के तारणहार खुद नहीं

उस पर चढ़े हैं,

क्योंकि दिल उनके छोटे

नीयत में ख्याल खोटे

पर उनके चरण बड़े हैं।

उड़ने के लिये उन्होंने

विमान जुटा लिये हैं

गरीब की कमाई के सिक्के

अमीर बनाने में लुटा दिये हैं

नदिया में डूब जाये नाव तो

हमदर्दी बेचने के लिये भी वह खड़े हैं

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अमीरी का रास्ता-हिन्दी शायरी (amiri ka rasta-hindi shayri)


दौलत बनाने निकले बुत

भला क्या ईमान का रास्ता दिखायेंगे।

अमीरी का रास्ता

गरीबों के जज़्बातों के ऊपर से ही

होकर गुजरता है

जो भी राही निकलेगा

उसके पांव तले नीचे कुचले जायेंगे।

———–

उस रौशनी को देखकर

अंधे होकर शैतानों के गीत मत गाओ।

उसके पीछे अंधेरे में

कई सिसकियां कैद हैं

जिनके आंसुओं से महलों के चिराग रौशन हैं

उनको देखकर रो दोगे तुम भी

बेअक्ली में फंस सकते हो वहां

भले ही अभी मुस्कराओ।

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
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तसल्ली के चिराग-हिन्दी शायरी (tasalli ke chirag-hindi shayri)


सर्वशक्तिमान का अवतार बताकर भी

कई राजा अपना राज्य न बचा सके।

सारी दुनियां की दौलत भर ली घर में

फिर भी अमीर उसे न पचा सके।

ढेर सारी कहानियां पढ़कर भी भूलते लोग

कोई नहीं जो उनका रास्ता बदल चला सके।

मालुम है हाथ में जो है वह भी छूट जायेगा

फिर भी कौन है जो केवल पेट की रोटी से

अपने दिला को मना सके।

अपने दर्द को भुलाकर

बने जमाने का हमदर्द

तसल्ली के चिराग जला सके।

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कोपेनेहेगन में धरती के नये फरिश्तों का मिलन-व्यंग्य कवितायें (naye fariste-hindi vyangya kavita)


अब संभव नहीं है
कोई कर सके
सागर का मंथन
या डाले हवाओं पर बंधन।
इसलिये नये फरिश्ते इस दुनियां के
रोकना चाहते हैं
जहरीली गैसों का उत्सर्जन
जिसे छोड़ते जा रहे हैं खुद
समंदर से अधिक खारे
विष से अधिक विषैले
नीम से अधिक कसैले अपनी
उन फरिश्तों ने महफिल सजाने के लिये
ढूंढ लिया है कोपेनहेगन।।
——–
वह समंदर मंथन कर
अमृत देवताओं को देंगे
ऐसे दैत्य नहीं हैं।
पी जायें विष ऐसे शिव भी नहीं हैं।
कोपेनहेगन में मिले हैं
इस दुनियां के नये फरिश्ते,
गिनती कर रहे हैं
एक दूसरे द्वारा फैलाये विष के पैमाने की,
अमृत न पायेंगे न बांटेंगे,
बस एक दूसरे के दोष छाटेंगे,
धरती की शुद्धि तो बस एक नारा है
उनके हृदय का भाव खारा है,
क्या करें इसके सिवाय वह लोग
सारा अमृत पी गये पुराने फरिश्ते
अब तो विष ही हर कहीं है।।
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हमदर्दी जताने में कमाई-हिन्दी क्षणिका


हमदर्दी जताने की कला
हमें कभी नहीं आई
किसी का दर्द देखकर
मन रोया मन भर आंसु
पर आंखें दरिया न बन पाई।
शायद लोग दिमाग से सोचते हैं
इसलिये हमदर्दी के शब्द जल्दी ढूंढ लेते
दिल तक नहीं पहुंचता
दूसरे का दर्द
कर लेते हैं दिखावे में कमाई।
नहीं करना सीखा पाखंड
इसलिये दूसरे के घाव पर मरहम लगाकर भी
अपने लिये ओढ़ लेते हैं तन्हाई।

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कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
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दुनियां का खात्मा और मनोरंजन-हिन्दी व्यंग्य कविता (duniya aur manoranjan-hindi vyangya kavita)


दुनियां की तबाही देखने के लिये
इंसान का दिल क्यों मचलता है
हमारी आंखों के सामने ही सब
खत्म हो जाये
फिर कोई यहां जिंदा न रह पाये
यही सोचकर उसका दिल बहलता है।
हम न होंगे पर यह दुनियां रहेगी
यही सोच उसका दिमाग दहलता है।
इसलिये ही दुनियां के खत्म होने की
खबर पर पूरा जमाना
मनोरंजन की राह पर टहलता है।

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