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संबंध विच्छेद की प्रक्रिया आसान होना चाहिए-आलेख


कुछ ऐसी घटनाएँ अक्सर समाचारों में सुर्खियाँ बनतीं है जिसमें पति अपनी पत्नी की हत्या कर देता है
१। क्योंकि उसे संदेह होता है की उसके किसी दूसरे आदमी से उसके अवैध संबंध हैं।
२।या पत्नी उसके अवैध संबंधों में बाधक होती है।
इसके उलट भी होता है। ऐसी घटनाएँ जो अभी तक पाश्चात्य देशों में होतीं थीं अब यहाँ भी होने लगीं है और कहा जाये कि यह सब अपनी सभ्यता छोड़कर विदेशी सभ्यता अपनाने का परिणाम है तो उसका कोई मतलब नहीं है। यह केवल असलियत से मुहँ फेरना होगा और किसी निष्कर्ष से बचने के लिए दिमागी कसरत से बचना होगा।
हम कहीं न कहीं सभी लोग पश्चिमी सभ्यता का अनुकरण कर ही रहे हैं। फिर भी समाज में बदनामी का डर रहता है इसलिए पुराने आदर्शों की बात करते हैं पर विवाह और जन्म दिन के अवसर पर हम सब भूलकर उसी ढर्रे पर आ जाते हैं जिस पर पश्चिम चल रहा है।
मैं एक दार्शनिक की तरह समाज को जब देखता हूँ तो कई लोगों को ऐसे तनावों में फंसा पाता हूँ जिसमें आदमी का धन और समय अधिक नष्ट होता देखता हूँ। कई माँ-बाप अपने बच्चों की शादी कराकर अपने को मुक्त समझते हैं पर ऐसा होता नहीं है। लड़कियों की कमी है पर लड़के वालों के अंहकार में कमी नहीं है। हम इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि लडकी के बाप के रूप में आदमी झुकता है लड़के के बाप के रूप में अकड़ता है। अपने आसपास जब कुछ लोगों को बच्चों के विवाह के बाद भी उनके तनाव झेलते हुए पाता हूँ तो हैरानी होती है।

रिश्ते करना सरल है और निभाना और मुश्किल है और उससे अधिक मुश्किल है उनको तोड़ना। कई जगह लडकी भी लड़के के साथ रहना नहीं चाहती पर लड़के वाले दहेज़ और अन्य खर्च की वापसी न करनी पड़े इसलिए मामले को खींचते हैं। कई जगह कामकाजी लडकियां घरेलू तनाव से बहुत परेशान होती हैं और वह अपने पति से अलग होना चाहतीं है पर यह काम उनको कठिन लगता है। लंबे समय तक मामला चलता है। कुछ घर तो ऐसे भी देखे हैं कि जिनका टूटना तय हो जाता है पर उनका मामला बहुत लंबा चला जाता है। दरअसल अधिकतर सामाजिक और कानूनी कोशिशे परिवारों को टूटने से अधिक उसे बचाने पर केन्द्रित होतीं है। कुछ मामलों में मुझे लगा कि व्यर्थ की देरी से लडकी वालों को बहुत हानि होती है। अधिकतर मामलों में लडकियां तलाक नहीं चाहतीं पर कुछ मामलों में वह रहना भी नहीं चाहतीं और छोड़ने के लिए तमाम तरह की मांगें भी रखतीं है। कुछ जगह लड़किया कामकाजी हैं और पति से नहीं बनतीं तो उसे छोड़ कर दूसरा विवाह करना चाहतीं है पर उनको रास्ता नहीं मिल पाता और बहुत मानसिक तनाव झेलतीं हैं। ऐसे मामले देखकर लगता है कि संबंध विच्छेद की प्रक्रिया बहुत आसान कर देना चाहिए। इस मामले में महिलाओं को अधिक छूट देना चाहिऐ। जहाँ वह अपने पति के साथ नहीं रहना चाहतीं वह उन्हें तुरंत तलाक लेने की छूट होना चाहिए। जिस तरह विवाहों का पंजीयन होता है वैसे ही विवाह-विच्छेद को भी पंजीयन कराना चाहिए। जब विवाह का काम आसानी से पंजीयन हो सकता है तो उनका विच्छेद का क्यों नहीं हो सकता।

कहीं अगर पति नहीं छोड़ना चाहता और पत्नी छोड़ना चाहती है उसको एकतरफा संबंध विच्छेद करने की छूट होना चाहिए। कुछ लोग कहेंगे कि समाज में इसे अफरातफरी फ़ैल जायेगी। ऐसा कहने वाले आँखें बंद किये बैठे हैं समाज की हालत वैसे भी कौन कम खराब है। अमेरिका में तलाक देना आसान है पर क्या सभी तलाक ले लेते हैं। देश में तलाक की संख्या बढ रही हैं और दहेज़ विरोधी एक्ट में रोज मामले दर्ज हो रहे हैं। इसका यह कारान यह है कि संबंध विच्छेद होना आसान न होने से लोग अपना तनाव इधर का उधर निकालते हैं। वैसे भी मैं अपने देश में पारिवारिक संस्था को बहुत मजबूत मानता हूँ और अधिकतर औरतें अपना परिवार बचाने के लिए आखिर तक लड़ती है यह भी पता है पर कुछ अपवाद होतीं है जो संबध विच्छेद आसानी से न होने से-क्योंकि इससे लड़के वालों से कुछ नहीं मिल पाता और लड़के वाले भी इसलिए नहीं देते कि उसे किसी के सामने देंगे ताकि गवाह हों-तमाम तरह की नाटकबाजी करने को बाध्य होतीं हैं। कुछ लड़कियों दूसरों के प्रति आकर्षित हो जातीं हैं पर किसी को बताने से डरती हैं अगर विवाह विच्छेद के प्रक्रिया आसान हो उन्हें भी कोई परेशानी नहीं होगी।

कुल मिलकर विवाह नाम की संस्था में रहकर जो तनाव झेलते हैं उनके लिए विवाह विच्छेद की आसान प्रक्रिया बनानी चाहिऐ। हालांकि देश के कुछ धर्म भीरू लोग जो मेरे आलेख को पसंद करते है वह इससे असहमत होंगें पर जैसा मैं वाद और नारों से समाज नहीं चला करते और उनकी वास्तविकताओं को समझना चाहिऐ। अगर हम इस बात से भयभीत होते हैं तो इसका मतलब हमें अपने मजबूत समाज पर भरोसा नहीं है और उसे ताकत से नियंत्रित करना ज़रूरी है तो फिर मुझे कुछ कहना नहीं है-आखिर साठ साल से इस पर कौन नियंत्रण कर सका।

खाली समय परनिंदा में नहीं सत्संग बिताएँ


प्रात: हम जब नींद से उठते हैं तो हमारा ध्यान कल गुजरी बातों पर जाता है या पूरे दिन की योजना बनाने का विचार दिमाग में आता है। इस तरह जो हमने नींद से उर्जा अर्जित की होती है वह मिनट में समाप्त हो जाती है। इतना ही नहीं जा द्द्र्ता हमारे मस्तिषक में विश्राम की वजह से आयी होती है वह भी समाप्त हो जाती है।
हम अपनी उसी दुनिया में घूमने का आदी होते हैं जो हमने देखी होती है। अपनी तरफ से न तो कुश नया सोचते हैं न ही किसी नये सुख के कल्पना करते हैं। न ही कभी नये दोस्त बनाने का विचार आता है न ही कोइ नयी कल्पना करने का इरादा बनाते हैं। धीरे हमारे अंदर एक बौध्दिक ठहराव आने लगता है और हम बोरियत महसूस करने लगते हैं। हमारे मस्तिष्क में जड़ता का भाव आने लगता है। हम यह भूल जाते हैं कि हमारी देह की पूरी शक्ति मस्तिष्क में होती है और जैसे वह कमजोर होने लगता है हम न केवल स्वभाव से वर्ण देह से भी रुग्ण होते जाते हैं। हम ऎसी सिथ्ती में आते जाते हैं जहां अपना जीवन बोझिल लगाने लगता है- तब हम ऎसी हरकतें करने लगते हैं जो तकलीफ कम करने की बजाय बदती है। हमें जब कम खाना चाहिऐ तब ज्यादा खाने लगते हैं और जब जितना खाना चाहिऐ उससे कम खाते हैं। जो नहीं खाना चाहिऐ उसे खाते हैं और जो खाना चाहिऐ वह हमें पसंद नहीं आता। जो हजम नही होता वह खाने का मन करता है और जिससे पेट पचा नही सकता उसे जानते हुए भी केवल स्वाद के लिए खाते हैं।

मतलब हमारा अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण कम होते होते समाप्त हो जाता हिया। मानव को अन्या जीवों से सर्वश्रेष्ठ केवल उसकी बुध्दी की वजह से माना जाता है और जब हम उस पर से नियंत्रण खो बैठे तो हम स्वयं को मानव केवल देह से कह सकते हैं बाकी तो हमारे सारे कर्म पशु-पक्षियों की तरह सवाल अपने पेट भरने तक सीमित रह जाते हैं। इतना हे नही हमारे अन्दर मौजूद अंहकार यह जताता है कि हम दुनिया के सबसे बध्दिमान व्यक्ति हैं और हम उल्टी सीधी हरकतें करते रहते हैं। इसका पता हमें तब तक नहीं चलता जब तक हम किसी ज्ञानी आदमी से नहीं मिला करते। अपने आसपास जो लोग हैं वह भी अपनी तरह होते हैं तो जब उन्हें अपने को देखना नहीं आता वह दूसरों के व्यक्तित्व का अवलोकन क्या करेगा । यहां तो हर कोई अपनी बात चीख और चिल्ला कर कह रहा है कोई किसी की सुन कहॉ रहा है जो दुसरे की सुनाकर अपनी बात कह सके। सबके अपने दर्द हैं कोई भला दुसरे का हमदर्द कैसे बन सकता है। हमें अपने बारे में ज्ञानियों के बीच ही बैठकर ही जन सकते हैं कि हम कितने पानी में हैं। ज्ञानी एक एक व्यक्ति पकड़ कर नहीं बताते कि तुझमें यह गुण है या यह अवगुण है। वह एक फ्रेम बताते हैं कि इस प्रकार आदमी में गुण होना चाहिऐ और कैसा अवगुण है जिससे उसे दूर रहना चाहिऐ । अब पूछेंगे कि ऐसे ज्ञानी कहॉ मिलेंगे तो इसमें सोचने वाली बात नहीं है। जब हमें कोइ समन खरीदना होता है तो उसका ज्ञान हमें हाल हो जाता है पर देखिए इतनी जरा सी बात हमें पूछनी पड़ती है कि ज्ञानी कहाँ मिलेगा। ज्ञानियों के मिलने का स्थान है सत्संग। हमारे देश की बरसों पराने है सत्संग । हमारे पूर्वजों ने पहले ही यह जान लिया था कि सत्संग के बिना आदमी का काम चल जाये यह संभव नहीं है। इसीलिये उन्होने ऎसी जगहों का निर्माण कराया जहाँ आदमी दुनियां जहाँ की बातें छोडकर कवल भगवन में मन लगाने के लिए मिल सके । यह परम्परा आज भी चल रही है। अब थोडा रुप बदल गया है। अब दुनिया ने तरक्की की है और टीवी पर घर बैठे-बैठे ही सत्संग नसीब होता है फिर भी लोग सत्संगों में बहार जाती हैं क्योंकि घर पर सत्संग तो मिलता है और ज्ञानी भी मिलता है पर सत्संगी कोइ नही मिलता। अगर कोइ ज्ञानी जरूरी है तो साथ में सत्संगी भी जरूरी है । सत्संग का मतलब कवल सुनना ही नहीं है वरन गुनना भी है और वह तभी सम्भव है जब हमें कोइ सत्संग मिले
लोग कहते हैं कि सत्संग तो कवल बुदापे में ही करना चाहिऐ । में उसका उलटा ही देखता हूँ जिन्होंने युवास्था में सत्संग नहीं किया बुदापे में उनका मन सत्संग की तरफ जाता ही नहीं है। सत्संग में तो वह या तो इसीलिये जाते हैं कि घर पर बहुएँ बैठी हैं भला क्या बैठकर अपने घर पर अपनी भद्द पित्वाऊँ । या वह दुनियां वालों को यह दिखाने जाते हैं कि हम अब हम धार्मिक हो गए हैं अब हमारी दुनियादार्र में दिलचस्पी नही है। । सत्संग में भी जाकर उन्हें चेन नही पड़ता वहां भी वह निंदा और पर्निन्द्दा करने वालों को ढूंढते हैं या वहां सोते हैं। मतलब यह है कि युवावस्था में ही अपना ध्यान भगवन भक्ती में लगाना चाहिऐ ।