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तुम्हारे ब्लोग तो ‘अधपकी खिचडी श्रेणी’ के हैं


पहले ब्लोगर के घर के दरवाजे पर उसके पत्नी खडी सब्जी वाले से सामान लेकर अन्दर जा रही थी तभी दूसरा ब्लोगर वहाँ पहुचं गया। उसका चेहरा ऐसा लग रहा था जैसे गुस्से में है उसने लगभग फुफकारते स्वर में कहा-‘कहाँ है वो।’
उसका यह रवैया उस भद्र महिला को समझ में नहीं आया उसने पूछा-”कौन वो? और महाशय आप हैं कौन? एक बार आप आ चुके हैं पर परिचय नहीं दिया था।’
दूसरा ब्लोगर बोला-”आप तो उसको बाहर बुलाओ, कहो मैं आया हूँ।”
“अरे कौन वो बोलूँ?” उसने पूछा।
इतने में पहला ब्लोग बाहर आया और उसे देखते ही बोला-”अरे तुम? इधर अचानक कैसे आये।”
”यह है कौन? ऐसे अपने हाथ में जेब डालकर हाथ क्यों घुमा रहा है। यह आपकी तरह कोई ब्लोगर तो नहीं?” पत्नी ने सशंकित नजरों से पहले ब्लोगर से पूछा।
”नहीं यह भला आदमी मेरा दोस्त है।”पहला ब्लोगर ऐसा कहकर उसे घर से दूर ले गया।
फिर उससे बोला-”तुम इधर क्यों आये। यार तुम्हें पता नहीं अभी घर पर पता लग जाता कि तुम ब्लोगर हो तो हंगामा हो जाता।”
‘मैं बहुत गुस्से में हूँ। आज मैंने एक जगह तुम्हारे ब्लोग के नाम देखे। उनको कला और समाज की श्रेणी में रखा गया है। मुझे बताओ तुम ऐसा क्या लिखते हो जिससे उसे कला और समाज से जोडा जाये। अरे, यह किताबों से उठाकर लिखना तो मैं भी जानता हूँ। पर हम हैं असली ब्लोगर।”ऐसा कहकर वह अपने जेब से बीडी का बंडल निकाला और पीने लगा।
पहले ब्लोगर ने कहा-‘यहाँ से थोडा दूर पार्क है वहीं चलकर बैठते हैं और बीडी वहीं पीना। क्या इमेज खराब करवाओगे। अडोस-पड़ोस वाले कहेंगे की बीडी वाले से दोस्ती करता हूँ।’
दूसरा गुस्से में बोला-‘मैं दोस्त हूँ? अरे, तुम सबको धोखा दे सकते हो पर मुझे नहीं, अरे तुम कला और समाज श्रेणी के ब्लोगर कैसे हो सकते हो? ज़रा समझाना तो सही।
पहला-‘पहले यह बताओ के तुमने मेरा ब्लोग देखा कहाँ था?’
दूसर ब्लोगर इस प्रश्न से चकरा गया और हकलाते हुए बोला-”अरे वो।। अरे मैंने आज कुछ फोटो वगैरह देखने के लिए सर्च किया था। वहाँ पता नहीं कोई बहुत सारे फोटो थी और उसमें तुम्हारे ब्लोग का नाम कला और समाज में देखकर गुस्सा आ गया। मेरा तू मूड ही खराब हो गया।
”पहले ब्लोगर-कहीं कोई चौपाल होगी, अरे वह भी आजकल कुछ चौपालें भी लाइब्रेरी जैसी हो गयीं हैं।”
दूसरा ब्लोगर कुछ हो गया-”हाँ याद आया, अरे वह लाइब्रेरी जैसी नहीं फोटो स्टूडियों जैसी चौपाल थी। वह तो गनीमत थी तुम्हारा फोटो नहीं दिखा। नहीं तो फाड़ देता।
पहले ब्लोगर ने पूछा’-क्या कंप्यूटर।”
”नहीं अपने पास रखा पुराना अखबार। पर पहले यह बताओं तुम जैसे घटिया ब्लोगर को कला और समाज की श्रेणी में क्यों रखा गया है?”
पहले ब्लोगर ने कहा-”हाँ, मुझे भी लग रहा है। पर मेरे ब्लोग को कहाँ रखते “खिचडी श्रेणी” में, मुझे भी अपे लिए यही श्रेणी ठीक लगती है।
”दूसरा ब्लोगर बोला-”क्या बकवास करते हो। खिचडी श्रेणी तो बहुत अच्छी लगती है तुम्हारा ब्लोग “अधपकी खिचडी श्रेणी” में रखा जाना चाहिए।”
अब तो पहले ब्लोगर को भी गुस्सा आने लगा था वह बोला-”अधकचरा श्रेणी में अपने ब्लोग रखने के लिए उनको कहूं तो कैसा रहेगा।
”दूसरा बोला-”नहीं, मैं पढ़ते हुए शर्म महसूस करूंगा, और कभी अपना रुत्वा दिखाने किसी को वहाँ ले गया तो अच्छा नहीं लगेगा। हाँ, तुम्हारे सभी ब्लोग ‘अधपकी खिचडी’ श्रेणी के लायक हैं। और तुम अपना फोटो मत भेजना तुम्हारी सूरत देखकर मैं डर जाऊंगा।”
पहला ब्लोग मुस्कराया और बोला-”वैसे तुम्हारा ब्लोग किस श्रेणी में है ज़रा बताओगे? क्या लिखते हो आजकल?”
दूसरा ब्लोगर बोला-”मैं तुमसे सीनियर हूँ मुझसे कोई सवाल मत पूछो। बस अपने ब्लोग अधपकी खिचडी श्रेणी में रखवा दो, मैं तुम्हें इतनी इज्जत से नहीं पढ़ सकता।
पहले ब्लोगर को भी थोडा ताव आने लगा था और वह उसकी आंखों में आँखें डालकर बोला-”तुम दूसरों के ब्लोग पढ़ते हो?”
दूसरा ब्लोगर बीडी फैंक कर खडा हो गया और बोला-‘अब मैं जा रहा हूँ।”
उसने पहले ब्लोगर की तरफ देखा भी नहीं और चला गया। पहला ब्लोगर उसे देखता रहा। वह जब चला गया तो उसे यह ख्याल आया कि उसने यह तो पूछा ही नहीं कि इस ब्लोगर मीट पर हास्य कविता लिखनी है कि नहीं। फिर उसने सोचा चलो इस बार भी हास्य आलेख लिखने में मेहनत कर लेते हैं।

नोट-यह हास्य-व्यंग्य काल्पनिक है और किसी व्यक्ति या घटना से इसका कोई लेना-देना नहीं है और किसी की कारिस्तानी से मेल खा जाये तो वही इसके लिए जिम्मेदार है। इन पंक्तियों का लेखक किसी ऐसे दूसरे ब्लोगर से नहीं मिला।

ब्लोगर ने ऐसे मनाई दीपावली


ब्लोगर के रूप में उसकी यह पहली दीपावली थी और उसके दिमाग में ब्लोगरी स्टाइल में मनाने का विचार था। पत्नी बहुत देर से बाजार से पूजा सामग्री और मिठाई लाने की कह रही थी और वह कंप्यूटर के पास रखी कुर्सी पर बैठा टीवी पर समाचार देख रहा था-कंप्यूटर खुला हुआ था पर उसका ध्यान टीवी की तरह ही था। आखिर जब उसे टीवी पर भी लिखने का आइडिया नहीं मिला तो वह घर से निकलने लगा तो पत्नी ने कहा-”पूजा सामग्री और मिठाई लेना जा रहे हो न? जल्दी ले आओ। देखो कालोनी में सबने पूजा कर ली है और सब पटाखे जला रहे हैं। हमने ही देर कर दी है।”
ब्लोगर ने कहा-हाँ, जल्दी आऊँगा पर पहले कालोनी में सबको दीपावली की कमेन्ट दे आऊँ।”
वह चला गया और पीछे से कहती रह गई-”किसी को दीपावली की कमेन्ट नहीं बधाई देना।”
उसने सुना ही नहीं और चल पडा लोगों को दीपावली की कमेन्ट देने. उसने देखा बच्चे पटाखे जला रहे हैं तो लग गया अपनी कमेन्ट लगाने. बच्चे एक पटाखा जलाते तो वह तालियाँ बजाता और फिर उनसे कहता कि-”लाओ यार एक पटाखा मुझे दे दो तो मैं जलाकर तुम्हें दीपावली की कमेन्ट दे दूं।”
बच्चे पटाखा देते और कहते-” अंकल, एक ही देंगे, हमारे पास अधिक नहीं है।”
ब्लोगर कहता’-अरे कमेन्ट तो एक ही दूंगा, मुझे और लोगों के पास भी जाना है। मुझे और जगह भी तो दीपावली की कमेन्ट देनी है।
बच्चे अवाक होकर सोचते कि यह कमेन्ट क्या बला है? कुछ बच्चों ने इसलिए नहीं पूछा कि उनके समझ में नहीं आया तो कुछ अपना अज्ञान न प्रकट हो इसलिए नहीं पूछा। जिन बडे बच्चों को मालुम था तो वह उनके सम्मान करने की वजह से यह समझे कि मजाक कर रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह थी कि ब्लोगर इतने वर्षों से कालोनी में रह रहा था पर उसका यह मिलनसार रूप पहली बार सामने आया था। एक बच्चे के पास पटाखे काम थे उसने कहा-”अंकल, अपने ताली बजाकर कमेन्ट दे तो दी, अब पटाखा चलाने से क्या फायदा?”
ब्लोगर ने कहा-”अरे, उसका मतलब तो यह है कि कमेंट का कालम खोला। इतने बच्चे जला रहे हैं पर ताली तो मैंने तुम्हारे लिए ही बजाई थी।”
ऐसे ही वह चलता रहा और किसी जानपहचान वाले के घर के बाहर खडा होकर देखता लोग बुलाते–आईये, भाईसाहब। मुहँ मीठा कर जाइये।”
ब्लोगर अन्दर घुस जाता और दीपावली की कमेन्ट देता और मिठाई खाकर चला आता। उधर दूर से उनकी श्रीमती सब देख रहीं थीं और जब देखा कि वह सब चीजें आनी ही नहीं है तो वह खुद ही कालोनी की दुकानों से सब सामान खरीद लाई। उधर ब्लोगर अपना कमेन्ट कार्यक्रम समाप्त कर घर लौटा तो पत्नी की आंखों में गुस्सा देखकर डर गया और उल्टे पाँव घर से बाहर जाने को उद्यत होते हुए बोला-”अरे! मैं अपना सामान लाना तो भूल गया। अभी लाता हूँ।”
“क्या जरूरत है?”पत्नी ने कहा-”सबके घर तुम कमेन्ट दे आये अब अपने घर कौन आयेगा?’
”कोई आया तो?” ब्लोगर ने कहा।
पत्नी ने व्यंग्यात्मक रूप से कहा-”कह देना। मैंने दीपावली पर कोई पोस्ट बनायी नहीं तो कमेन्ट कहाँ से दोगे? कहाँ से मुहँ मीठा कराऊँ।तुम सबको कमेंट दे कर पटाखे जलाते और मिठाई खाते रहे, यह सोचा कि कोई तुम्हारे घर दीपावली की कमेन्ट देने भी आ सकता है। क्या जरूरत है सोचने की। ”
ब्लोगर सोच में पड़ गया और बोला-”नहीं, इससे तो अपना नाम फ्लॉप हो जायेगा।”
पत्नी ने दोनों हाथ नचाते हुए व्यंग्यात्मक लहजे में कहा-”तो अभी कौनसा हिट चल रहा है?”
ब्लोगर फिर सोच में पड़ गया। फिर बोला-”नहीं, पर हमें अपनी पोस्ट तो तैयार रखनी चाहिए हो सकता है की कोई कमेन्ट देने आ आजाये। मैं जा रहा हूँ।” पत्नी ने कहा-”मत जाओ। जब तुम लोगों को केम्न्त देने में लगे थे तब मैं ले आई, आओ पहले पूजा करते हैं। फिर पोस्ट और कमेन्ट के मामले पर भी चर्चा करते हैं।
दोनों ने शांति से पूजा की। पूजा करने के बाद पत्नी फिर व्यंग्यात्मक लहजे में बोली-”अब लोगों को यह मिठाई अपनी पोस्ट मत बताना। मैं खुद ले आयी हूँ और कोई कमेन्ट देने आये मैं ही संभाल लूंगी तुम अपने कंप्यूटर रूम में ही रहना, बैठक में मत आना।”
ब्लोगर चुप हो गया और मन में यह सोचने लगा-”पोस्ट किसकी भी हो ब्लोग तो मेरा ही है। किसको पता चलेगा कि पोस्ट किसकी है। सब कमेन्ट तो मेरे नाम पर ही जायेंगे। अरे, अपने ब्लोग पर मैं कितने बडे लोगों के नाम की पोस्ट रखता हूँ पर कमेन्ट तो मुझे ही मिलते हैं। ” उसने कंधे उचकाए और लिखने बैठ गया।
नोट-यह काल्पनिक हास्य रचना है और किसी व्यक्ति या घटना से इसका कोई संबंध नहीं है। अगर किसी की कारिस्तानी इससे मेल खा जाये तो वही इसके लिए जिम्मेदार होगा।

पहले वह सुधरे


पहले कौन सुधरे? यहाँ हर कोई एक दूसरे से सुधर जाने की उम्मीद करता है पर कोई स्वयं सुधरना नहीं चाहता। सामने वाला सुधर जाये तो हम भी सुधर जाएं यही शर्त हर कोई लगाता है। बरसों से अनेक प्रकार से विश्व में सुधार वादी आन्दोलन चलते रहे हैं पर कोई सुधार कहीं परिलक्षित नहीं हो रहा है। लोगों को सुधारने के लिए अनेक पुस्तकें लिखीं गयीं हैं और वह इतनी बृहद रचनाएं हैं कि उन्हें कोई पढ़ना ही नहीं चाहता और इसलिए जो इनको पढ़ते हैं वह विद्वान् बन जाते हैं लोगों का मार्गदर्शन करते हुए वाह-वाही लूटते हैं। अपने हिसाब से उसकी व्याख्या कर लोगों को बताते हैं और लोग उनकी बात सुनकर खुश हो जाते हैं और मान लेते हैं कि उसमें यही लिखा होगा। ऐसी हालत में लोगों का सुधारने और मार्ग दर्शन का ठेका लेने वालों की हमेशा चांदी रही है। दिन-ब-दिन लोगों में नैतिक,वैचारिक और सामाजिक आचरण में गिरावट आयी है उसे देखकर यह कहा जा सकता है कि बिगाड़ अधिक आ रहा है।
ग्राहक कहता है कि व्यापारी सुधर जाये और अच्छी चीज दे और दाम भी सही बताये। व्यापारी कहता है कि ग्राहक सुधर जाये। जनता कहती है कि हमारे नेता सुधर जाये, और नेता कहते हैं कि लोग अपने आप में सुधार लायें क्योंकि वही तो सबको चुनती है और सही चुनाव करे तो हमें भी ऐसे लोग मिलेंगे तो हम सही काम करेंगे। गुरु कहे चेला सुधरे तो सही शिक्षा दें सकें और चेले कहते हैं कि गुरु अगर सही शिक्षा दे तो हम भटके ही क्यों?
पाकिस्तान की जनता कहे मुशर्रफ जाएं तो शांति हो और मुशर्रफ कहते हैं कि शांति हो मुझे जिन्दगी की गारंटी हो जाये तो में चला जाऊंगा। इराक़ में लोग कहें अमेरिका की सेना हमारे यहाँ से चली जाये तो हम खामोश हो जायेंगे और अमेरिका कहता हैकि पहले लोग खामोश हो जाएं तो हम अपनी सेना वहां से हटा लें। मतलब सुधार का कहीं से छोर पकड़ सकते हो पर उसे अपने हाथ में अधिक देर नहीं रख सकते। महात्मा गांधी ने कहा अहिंसक आन्दोलन के जरिये सब किले फतह कर सकते हैं पर जिनके हाथ में बंदूकें हैं वह कहते हैं है कि पहले किला फतह कर लें तो अहिंसक हो जायेंगे। अब भला किस्में साहस है कि उन्हें समझाए कि यही तो वक्त है गांधी जी के मार्ग का अनुसरण करने का। ऐसा इसलिए सब जगह हो रहा है कि लोग अपने धर्म ग्रंथों को नहीं पढ़ते और उनके पढे हुए तथाकथित विद्वानों की बात को सच मानते हैं। लोग कहते हैं कि टाइम नहीं है। वैसे टीवी देखने, अखबार पढ़ने और परनिंदा करने में लोग कितना समय नष्ट करते हैं पर धर्म ग्रंथों की बात करो तो कहेंगे उसमे क्या है पढ़ने को? वह तो बुढापे में पढेंगे। वह स्वयं नहीं पढ़ते तो बच्चों की रूचि भी नहीं होती। नतीजा सामने है। लोग बातें तो संस्कारों कें करते हैं पर वह कहाँ से आयें यह कोई नहीं बताता।
कोई कहता है कि ‘संस्कारवान बहू चाहिए’ तो कोई कहता है कि हमें ‘संस्कारवान दामाद चाहिए’। पहली तो यह बात कि संस्कार का क्या मतलब है? यह कोई स्पष्ट नहीं करता। दूसरे उनसे पूछों कि क्या तुमने अपने घर परिवार में संस्कार स्थापित करने का क्या प्रयास किया है?
लोग अपनी सफाई में कुछ कहते रहें पर यह वास्तविकता यह है कि लोग अपने घर में इंजीनियर, डाक्टर, और अफसर बनाने के कारखाने तो लगाना चाहते हैं पर कोई ‘संस्कारवान’ बनाने का प्रयास नहीं करते। सब एक दूसरे से यह आशा करते हैं कि वह सुधर जाये। ससुराल वाले कहें बहू और दामाद सुधर जाएं और वह कहें ससुराल वाले सुधर जाएं। पति कहे पत्नी सुधर कर सब सहती जाये और पत्नी कहे पति अपने आप में सुधार लाये और मूहं बंद और कान खोलकर हमारी पूरी बात सुनता जाये।
सुधार का कोई सिरा पकडो तो लोग शिकायतों का पुलिंदा थमा देते है, जिन्हें देखकर दिमाग चकरा जाये और सच्चे सुधारक तो अपने कान पकड़ लेते हैं शायद इसलिए सुधार लाना अब एक पेशा हो गया है। समाज में सुधार लाने के लिए तमाम लोग अपनी दूकान खोले बैठे हैं। नतीजा यह है कि कहीं भी बातें खूब होती हैं पर सुधार कहीं दिखाई नहीं देता।

नाम क्या और काम क्या


रास्ते चलते हुए कई बार विभिन्न इमारतों पर लगे होर्डिंग पर जब नजर जाती है तो उसे पढ़ लेते हैं-चाहे अनचाहे पढ़ते हुए एक तरह से समय भी पास होता है ध्यान बाँटने से थोडा मानसिक राहत भी मिलती है, और जब पढ़ते हैं तो फिर चिंतन भी करते हैं।
मैं खासतौर से हिन्दी और संस्कृत निष्ठ नाम देखकर यह सोचता हूँ की यह क्या है ज़रा आगे पढें। नाम तो होते हैं बढे प्यारे जैसे -वात्सल्य, संस्कार, जीवनधारा, निरोग, स्नेह, अंकुर,सुरभि,सुरुचि और सहज आदि। कई बार तो ऐसा लगता है की शायद किसी पत्र-पत्रिका के दफ्तर हों और क्या कोई लोगों की सेवा करने वाला संस्थान हो। इमारत का बाहरी स्वरूप और वहाँ खडी गाड़ियों का जमघट देखकर लगता है जैसे कोई बड़ा होटल हो। पर नहीं साहब वहाँ तो होते हैं नर्सिंग होम या अल्ट्रासाउंड सेंटर या कोई पेथलोजी लैब । तब लगता है कि इतने प्यारे नाम होना आश्चर्य की बात है। इसकी वजह यह है कि इन स्थानों पर आदमी कभी स्वस्थ होने की स्थिति में तो जाता नहीं है। इतना ही नहीं नाम पढ़ने के बाद तो नाम और इमारत का भव्य आकर्षण भूलकर आदमी भगवान से याचना करता है कि कभी इन अस्पतालों की तरफ न भेजे।

कई बार किसी शहर में जाते हैं और पैदल चलते हुए दूर-दूर तक नजर दौडाते चलते हुए किसी भव्य और ऊंची इमारत पर नजर दृष्टि पड़ती और मन में विचार आता है कि शायद किसी बडे आदमी की रिहायश होगी, या कोई होटल होगा या कोई मार्केट होगा और जब पास आते है नाम पर नजर पड़ती है तो मन में प्रफुल्लता का भाव आता है पर आगे जब दृष्टि जाती है-नर्सिंग होम या अस्पताल का बोर्ड देखकर पूरा जायका बिगड़ जाता है।

उस दिन मैं और मेरा मित्र एक जगह खडे बातचीत कर रहे थे तो हमने देखा एक महिला और पुरुष पास से गुजरे तो हमने महिला को कहते सुना-”हम वहाँ दूर से देख कर कह रहे थे कि इस बिल्डिंग में यह होगा और वह होगा यहाँ तो अस्पताल है। भगवान् न करे कभी ऐसे अस्पतालों में आना पड़े आदमी का यहाँ इतना पैसा खर्च हो जायेगा कि ठीक भी होगा तो घर लौटने के बाद भूखा मर जाएंगा। नाम भी देखो कितना प्यारा रखा है।

उसके जाने के बाद हम दोनों ने उस इमारत को ध्यान से देखा तो हंसने लगे। मित्र ने कहा-”ऐसा धोखा कई बार हमारे साथ भी हो चुका है. अक्सर जब ऐसा होता है तो सोचता हूँ कि इनके नाम क्या हैं और काम क्या है?”

सम्मान तो मेरा, असम्मान तो तुम्हारा


पहला ब्लोगर उस दिन बाजार में सब्जी खरीद रहा था कि दूसरा ब्लोगर पुराने स्कूटर पर सवार होकर गुजरा और उसे देखकर रुक गया। उसने पहले ब्लोगर के कंधे पर पीछे से हाथ रख और बोला -“यार, सुबह से तुम्हें कितने ईमैल भेज चुका हूं और तुमने कोई जवाब नहीं दिया।”

पहला ब्लोगर बोला-“वैसे तो मैने तुम्हें बता दिया था कि मैं सुबह कंप्यूटर पर काम नहीं करता। अगर आज करता तो भी मैं तुम्हारा ईमैल नहीं पढ़ता। आखिर मेरी भी कोई इज्जत हैं कि नहीं। मेरे से रिपोर्ट लिखवा लेते हो पर कमेन्ट नहीं देते।”

दूसरा ब्लोगर-“अरे यार अब छोडो पुरानी बातों को अब मेरे साथ चलो। आज मेरा सम्मान हो रहा है। मैने सोचा तुम मेरे साथ रहोगे तो अपनी इज्जत बढ़ेगी।”

पहला-“क्या मुझे तुमने फालतू समझ रखा है जो तुम्हारी इज्जत बढ़वाने के लिए अपना समय खराब करूंगा।”

दूसरा -“नहीं तुम तो हिन्दी को अंतर्जाल पर फ़ैलाने के लिये प्रतिबद्ध हो। इसलिए तुम्हें तो खुश होना चाहिये कि एक ब्लोगर सम्मानित हो रहा है। तुम्हारा कर्तव्य है कि ऐसे कार्यक्रम की शोभा बढ़ाना चाहिए।”

पहला ब्लोगर खुश हो गया-“चलो ठीक है। तुम कह्ते हो तो चलता हूं। हो सकता है तुम्हें सदबुद्धि आ जाये, कुछ अच्छी कमेन्ट लिखने लगो।”

दूसरा-“इस सम्मान का लिखने से कोई मतलब नहीं है। यार, तुम कभी समझोगे नहीं। वैसे तुम वहां मेरे लिखे-पढ़े की चर्चा मत करना। यह भी मत बताना कि तुम एक ब्लोगर हो।”

पहला ब्लोगर्-”तो तुम्हें एक चमचा चाहिऐ , यह दिखाने के लिये तुम कितने बडे ब्लोगर और तुम्हारा लिखा कोई पढता भी है।

दूसरा-“नहीं यार एक से भले दो होते हैं, हो सकता है कि आगे तुम्हें भी कभी सम्मानित किया जाये। तब मैं तुम्हारे साथ चलूंगा।

पहला ब्लोगर बोला-”वैसे तो इसकी संभावना लगती नहीं है पर तुम कह रहे हो तो चलता हूँ।’

दोनों स्कूटर पर उस स्थान की ओर रवाना हुए जहां सम्मान होना था। वहां और भी बहुत लोग जमा थे पर हाल का दरवाजा बंद था। दोनों वहां खड़े उस भीड़ को देख रहे थे।वहां खड़े एक सज्जन से दुसरे ब्लोगर ने पूछा-“अभी कार्यक्रम शुरू होने में कितनी देर है।”

तब वह सज्जन बोले-“आज का कार्यक्रम तो स्थगित हो गया है, हम सबने अपने सम्मान के लिये जिस आदमी को पैसे दिये थे वह अपने किसी रिश्तेदार के यहां सगाई में शामिल होने बाहर चला ग्या है।उसने फोन कर माफ़ी मांगी है और अब यह कार्यक्रम बाद में कब होगा यह पता नहीं, क्या आप भी सम्मानित होने आये हैं।”

दूसरे ब्लोगर ने फ़ट से अपनी ऊँगली पहले ब्लोगर की तरफ़ उठाई और कहा-“मेरा नहीं इनका सम्मान होना है।”

पहला ब्लोगर हक्का बक्का रह गया। इससे पहले वह कुछ बोले दूसरे ने उसका हाथ खींच लिया और बोला-“चलो यार आज का दिन खराब हो गया।

पहला ब्लोगर थोडी दूर चलकर बोला-”यह क्या मतलब है तुम्हारा?सम्मान तुम्हारा और असम्मान मेरा। तुम उससे क्या कह रहे थे?”

दूसरा बोला-”यार, तुम समझते नहीं? जब हम किसी से बात कर रहे हैं तो अपना अच्छा या बुरा पक्ष नहीं रख सकते। अगर तुम उससे बात करते हुए मेरे सम्मान की बात करते तो ठीक रहता। मुझे अपनी बात करते हुए अपनी नजरें नीचीं करनी पड़ती और बिचारों जैसा चेहरा बनाना पड़ता जो कि मुझे मंजूर नहीं। तुम्हें इसकी कोई जरूरत नहीं पड़ती।

पहले ब्लोगर ने कहा-“इसमें पक्ष और विपक्ष की क्या बात थी? वैसे क्या तुमने अपने सम्मान के लिये पैसे दिये हैं।”

दूसरा-“नहीं! तुमने क्या मुझे पागल समझ रखा है? सम्मान करने वाले का मुझ पर उधार है इसलिए उसे वसूल करने के लिये वह सम्मान कर रहा है। वह कोई अपना खर्च थोडे ही करेगा, वह इन अन्य सम्मानीय लोगों के पैसे से ही एडजस्ट करेगा। अब तुम जाओ मुझे दूसरा काम निपटाना है।”

पहला ब्लोगर गुस्से में बोला-“कमाल करते हो यार! यह मैं झोला लेकर कहां घूमूंगा। पहले मुझे मेरे घर तक पहुंचाओ फ़िर कहीं भी जाओ।”

दूसरा बोला-“यार जिस काम के लिये तुम्हें लाया था वह तो हुआ ही नहीं। बताओ मैं कैसे अब तुम्हें छोड्ने के लिये इतनी दूर कैसे चल सकता हूं, तम अभी टेम्पो से निकल जाओ बाद में तुम्हें पैसे दे दूंगा।”

पहला ब्लोगर समझ गया कि इससे माथा मच्ची करना बेकार है, और वह चलने को हुआ तो पीछे से दूसरा ब्लोगर बोला-“और हां सुनो। यह ब्लोगर मीट नहीं थी इसका मतलब यह नहीं है कि तुम रिपोर्ट नहीं लिखो। इस सम्मान समारोह पर जरूर लिखना, भूलना नहीं। तुम तो ऐसे ही लिख देना….यार कुछ भी लिख देना।

“पहले ब्लोगर ने व्यंग्य और गुस्से में पूछा-‘इसका शीर्षक क्या लिखूं? मेरे ख्याल से ‘सम्मान मेरा और असम्मान तुम्हारा’ शीर्षक ठीक रहेगा।”

दूसरा ब्लोगर बोला-“यार!इतना मैं कहाँ जानता हूँ तुम खुद ही सोच लेना।”

इससे पहले कुछ और बात पहला ब्लोगर उससे पूछ्ता वह स्कूटर से चला गया। इधर सामान्य होने के बाद पहला ब्लोगर सोच रहा था कि-मैने यह तो पूछा ही नहीं कि इस पर हास्य कविता लिखूं या नहीं? ठीक है इस बार भी हास्य आलेख ही लिखूंगा।”

ब्लोगर चला क्रिकेट मैच खेलने


ब्लोगर की कालोनी में क्रिकेट टीम में एक खिलाडी काम पड़ रहा था और उनकों दूसरी कालोनी से फेस्टिवल मैच खेलना था. पडोसियों को पता था कि ब्लोगर जब घर में होता है तो कंप्यूटर पर बैठा रहता है और शायद वह न चले. चूंकि मैच फेस्टिवल था और उसमें बड़ी उम्र के खिलाडी ही शामिल होने थे और लोग चाहते थे कि एकदम बड़ी उम्र के खिलाडियों की बजाय मध्यम उम्र के खिलाडी मैदान में उतारे जाएं और फिर उनकी कुछ अलग से पहचान हो। डाक्टर, वकील, प्रोफेसर और फिर उसमें एक ब्लोगर हो तो……इस ख्याल की वजह से ब्लोगर को टीम में खेलने के लिए राजी कर लिया गया।

अपनी कालोनी की प्रतिष्ठा के लिए प्रतिबद्ध एक लड़का उनके पास गया और तमाम तरह की बातें कर उनसे बोला-‘लोग तो और भी हैं पर आप तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर के ब्लोगर हैं यह बात हमें उन कालोनी वालों को बताना है। अरे! इस पूरे इलाके के आप अकेले ब्लोगर हैं और हमारी कालोनी में रहते हैं और जब आप क्रिकेट खेलेंगे तो सब दंग रह जायेंगे। आप पहले क्रिकेट खेलते रहे हैं हमें यह बात पता है।’

ब्लोगर ने कहाँ-‘यार तुम लोग तो कभी मेरा लिखा पढ़ते नहीं हो और वहाँ इस बात को मानेगा कौन? कभी कमेन्ट वगैरह तो देते नहीं हो।”

लड़के के कहा-”आप क्या बात करते हैं। यहाँ कई लोग आपका लिखा पढ़ते हैं।पर यह कमेंट क्या होता है आपने बताया ही नहीं।”

ब्लोगर ने कहा-‘अगर तुम पढ़ते होते तो मैं फ्लॉप ब्लोगर नहीं कहलाता। खैर! तुम कह रहे हो तो चलूँगा।’

निर्धारित दिन को वह मैदान में पहुंचा। उसकी कालोनी के कप्तान ने टास जीता और ओपनिंग में ब्लोगर को इसलिए भेजा कि वह पुराना खिलाडी है कुछ रन तो बना ही लेगा। ब्लोगर भी पूरी तैयारी के साथ अपने पुराने पैड, दास्ताने, और टोपी पहनकर बल्ला लेकर मैदान में पहुचा। उधर गेंदबाज गें फैंकने की तैयारी में था इधर विकेटकीपर ने उससे कहा-‘क्या आप ब्लोगर हैं?’

ब्लोगर ने उसकी बात को सुना और जवाब देने की बजाय इधर उधर देखा कहीं भी दर्शक दीर्घा में कालोनी के लोगों कोई दिखाई नहीं दिया। वह वापस लौट पडा। पीछे-पीछे प्रतिपक्षी टीम के खिलाड़ी चिल्ला रहे थे-‘जनाब कहाँ जा रहे हैं?’ अरे, मैच शुरू हो रहा है।’

मगर ब्लोगर ने किसी की नहीं सुनी और पैविलियन में अपने कप्तान के पास पहुच गया और बोला-” अभी मैच शुरू मत करो। यहाँ मेरे लिए कमेन्ट देने वाला कोई नहीं है। मेरे दो शिष्य और दो शिष्याएं अभी आने वाले है।उनको मैंने कमेन्ट देने के लिए बुलाया है।’

सब हक्के-बक्के रह गए और एक दूसर से बोले-यह ब्लोगर है यह तो हमने सुना है, पर कमेन्ट का क्या लफडा है।’

इतने में उसके शिष्य और शिष्याएं वहाँ कमेंट के होर्डिंग लेकर पहुचं गए। उन पर लिखा था-‘बहुत सुंदर’, ‘मजा आ गया’, ‘बहुत खूब’ और आदि। एक शिष्य बोला-‘सर!वह पेंटर ने हमें बहुत लेट से यह सामग्री दी। इसलिए हमें देरी हो गयी।’

ब्लोगर ने उनकी भी नहीं सुनी और होर्डिंग पढ़ने लगा और बोला-‘इसमे ”वाह क्या जोरदार हिट है’ वाला होर्डिंग नहीं दिखाई दिया। मैंने उसे पैसे तो पूरे दिए थे।”

उसकी एक शिष्या सहमते हुए बोली-‘सर, उस पर गलत लिख गया था।’ वाह क्या जोरदार हेट है’ लिखा था। पेंटर ने कहा मैं ठीक कर देता हूँ पर हमें सोचा कि देरी हो जायेगी।”

ब्लोगर का मूड उखड गया फिर भी मैदान में उतरा। अब मैच भी जिस तरह होना था हुआ। ब्लोगर ने रन तो बनाए दो, पर गेंद फैंकने वाले इधर-उधर फैंकते कि वह वाइड होकर बाहर चली जाती और उस पर उनकी टीम को चार-चार रन कई बार मिले-पर इससे क्या? उसके दूर बैठे शिष्य यही सोच कर होर्डिंग लहराते रहे कि उनके गुरूजी का शाट है। उसकी वजह से दर्शकों को भी गलतफहमी हो जाती कि ब्लोगर ही रन बना रहा है। वह आउट होकर लौट रहा था तब भी होर्डिंग लहराये जा रहे थे। उसके लौटने पर कप्तान ने कहा-क्या खूब रन बनाए।’

ब्लोगर ने बोलिंग नहीं की पर उनकी टीम जीत गयी। वापस लौटते हुए एक शिष्या अपने साथी से कहा-‘हमारे सर ने रन तो दो ही बनाए। मैंने स्कोरर से पूछा था।’

एक शिष्य ने उससे कहा-चुप! तुझे ब्लोग बनाना सीखना है कि नहीं, और सीख गयी है तो बाद में कमेन्ट चाहिए कि नहीं।

शिष्या चुप हो गयी और ब्लोगर विजेता की तरह सीना ताने चलता रहा।

नये सच का पर्दाफाश


ब्लोगर धड़धडाता घर के अन्दर घुसा और अपने कंप्यूटर पर जम गया। पत्नी ने पूछा-‘क्या बात है इतनी तेजी से घर में घुसे और सीधे कंप्यूटर पर बैठ गए। सब ठीक तो हैं न!’
‘सब ठीक है’-ब्लोगर ने कहा’-आज मैं सच का पर्दाफाश करके रहूँगा। तुम्हें याद हैं न! पिछले सप्ताह मैं बाहर साइकिल पर किराना खरीदने गया था और सामान लेकर बिना साइकिल लिए घर चला आया। याद आने पर जब वापस गया तो देखा साइकिल गिरी पडी है। वहाँ दुकानदार ने बताया की उसे एक भैंस गिरा कर गई। मैं जब भैस वाले के घर गया तो कहने लगा की मेरी भैस तो वहाँ गयी ही नहीं थी वह मेरे पड़ोस में काली गाय रहती है वही गिराकर आयी होगी। मैं गाय वाले के पास गया तो वह कहने लगा की मेरे पीछे वाले मकान में एक काली बकरी है वह गिराकर आयी होगी। मैं उसके पास गाता तो उसने बताया की उसको बकरी बेचे ही दो महीने हो गए हैं। आज मैं पता लगाकर आया हूँ की मेरी साइकिल को तो भैंस ही गिरा कर गई थी। आज मैं सारे हिन्दुस्थान को बता दूंगा की मेरी साइकिल को भैंस गिरा कर गई थी।’
पत्नी ने कहा-”यह भला क्या सच है जो कोई नहीं जानता। सब बता रहे हैं की तुम्हारी साइकिल को भैंस गिराकर गयी है। तुम उसका क्या कर लोगे? उसके मालिक से झगडा करके तो आये और उसने माफ़ी भी मांग ली। अब बचा क्या है?’
‘ नहीं! अभी सच सामने नहीं आया था। वह कह रहा था कि ‘अगर मेरी भैसं गिराकर गयी है तो मैं माफ़ी मांगता हूँ’। यह नहीं चलेगा। उस दिन एक लड़के ने अपने मोबाइल कैमरे से उसकी भैंस द्वारा मेरी साइकिल गिराने का दृश्य शूट किया था आज उसने मुझे वह दिया है। उसे अपने ब्लोग पर रखूंगा। सबके सामने सच आ जायेगा।’
पत्नी ने कहा-‘पता नहीं कितनी बार उस पर लिख चुके हो। अब उसमें नया क्या है? जो लोग तुम्हारा लिखा पढ़ते हैं सबको पता है कि तुम्हारी साइकिल कोई भैंस गिराकर गई थी।’
”नही। अब सबूत समेत रखूंगा। एक दम नये तरह से और लिखूंगा ‘ नये सच का पर्दाफाश’।
पत्नी ने पूछा-” पर इसमें नया क्या है?’
‘यह तुम नहीं समझोगी।’ब्लोग लेखक ने कहा और लिखने बैठ गया।

प्रभावशाली लोग और चाटुकारिता


अमेरिका के कुछ पत्रिकाएँ विश्व के प्रभावशाली लोगों की सूची जारी करती हैं और उनके प्रभाव के अनुसार उनका क्रम होता है। इसमें किसी देश के राष्ट्र प्रमुख का नाम नही होता बल्कि सभी नामी उधोगपति और पूंजीपतियों के नाम होते हैं। इसका सीधा अर्थ यही है कि जिसके पास जितना पैसा है वही प्रभावशाली हो सकता है। सभी धनपति और उधोगपति प्रभावशाली नहीं हो सकते पर प्रभावशाली का धनपति और उधोगपति होना जरूरी है।
इन सूचियों में जो नाम होते हैं उनकी चर्चा आम लोगो में नहीं होती क्योंकि उनका इन लोगों से कोई सीधे सरोकार नहीं होता पर जो उनके ‘प्रभाव क्षेत्र’ में होते हैं वह आम आदमी का ही नही बल्कि समाज और देश का भविष्य तय करते हैं। कई लोगों को गलतफ़हमी होती है कि अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य यूरोपीय देशो के राज प्रमुख दुनिया से सबसे ताक़तवर और प्रभावशाली लोग हैं उन्हें ऎसी रिपोर्ट बडे ध्यान से पढ़ना चाहिए।

हमारे देश में अगर आप किसी व्यक्ति से प्रभावशाली लोगों के बारे में सवाल करेंगे तो वह अपने विचार के अनुसार अलग-अलग तरह के प्रभाव के रुप बताएंगे। आम आदमी की दृष्टि में प्रभाव का सीधा अर्थ है ‘पहुंच’। किसी को अपनी गाडी के लिए आर.टी.ओ.से नंबर लेना है तो वह बाहर बैठे दलाल को ही प्रभावशाली मानने लगता है। छोटा व्यापारी सरकारी दफ्तरों में अपने काम के लिए ऐसे लोगों को ढूँढते हैं जो वहां से उनका काम सरलता से और मन के मुताबिक हो सकें। अब क्लर्क हो या चपरासी वह भी उनके लिए प्रभावशाली होता है। सडक पर अपना काम चलाने वाले गरीब लोगों के लिए वही व्यक्ति प्रभावशाली वाला है जो उनका ठीया और धंधा बनाए रखने में सहायक हो और भले ही इसके लिए वह कुछ लेता हो।

सरकारी कामों में कठिनाई और लंबी प्रक्रिया के चलते इस देश में उसी व्यक्ति को प्रभावशाली माना जाता रहा है जो जिसकी वहाँ पहुंच रहा हो और मैंने देखा है कि दलाल टाईप के लोग भी ‘प्रभावशाली ‘ जैसी छबि बना लेते हैं। अब जैसे-जैसे निजीकरण बढ़ रहा है वैसे ही उन लोगों की भी पूछ परख बढ़ रही है जो धनाढ्य लोगों के मुहँ लगे हैं, क्योंकि वह भी अपने यहाँ लोगों को नौकरी पर लगवाने और निकलवाने की ताक़त रखने लगे हैं। हर जगह तथाकथित रुप से प्रभावशाली लोगों का जमावड़ा है और तय बात है कि वहाँ चाटुकारिता भी है। प्रभावशीलता और चाटुकारिता का चोली दामन का साथ है। सही मायने में वही व्यक्ति प्रभावशाली है जिसके आसपास चाटुकारों का जमावड़ा है-क्योंकि यही लोगों वह काम करके लाते हैं जो प्रभावी व्यक्ति स्वयं नहीं कर सकता है। वैसे भी हमारे देश में बचपन से ही अपने छोटे और बड़ी होने का अहसास इस तरह भर दिया जाता है कि आदमी उम्र भर इसके साथ जीता है और इसी कारण तो कई लोग इसलिये प्रभावशाली बन जाते हैं क्योंकि वह लोगों के ऐसे छोटे-मोटे कम पैसे लेकर करवा देते हैं जो वह स्वयं ही करा सकते हैं-जिसे दलाल या एजेंट काम भी कहा जाता है और लोग उनका इसलिये भी डरकर सम्मान करते हैं कि पता नहीं कब इस आदमी में काम पड़ जाये और ऐसे छद्म लोगों की कोई संख्या कम नहीं है।
मुझे याद है कि जब मैं छोटा था तो प्रभावशाली व्यक्ति की दुकान हमारे पास ही थी जिसके पास अनेक सरकारी महकमों के कर्मचारी और अधिकारी आते थे। इसी कारण उसे पहुंच वाला माना जाता था। मेरे ताऊ अपने सरकारी कामों के लिए उसके पास जाते थे-वह काम तो करा था पर साथ में पैसे भी लेता था।। मेरे पिताजी को शक था कि वह उसमें से कमा रहा है। मेरे पिताजी ताऊ जीं से कहते कि ‘लाओ मैं काम कराकर लता हूँ’ तो ताऊ कहते थे कि नही’तुम उसे उलझा और दोगे हम न तो पढे-लिखे हैं न जानकार। वह भी पढ-लिखा नहीं है पर पहुंच वाला तो है’।
मेरे पिताजी ज्यादा पढे लिखे नहीं थे पर जीवन से संघर्ष करने का मादा उनमें ख़ूब था और वह कहते थे कि ‘कई लोग ऐसे हैं जो लोगों के अपढ़ और सीधे होने का फायदा उठाते हैं। लग अपने अक्ल , मेहनत और ताक़त पर यकीन करें तो उन्हें किसी की चाटुकारिता की जरूरत नहीं है।’
मैं बड़ा हुआ और पिताजी के स्वभाव और भगवन भक्ति ने जहाँ संघर्ष करने के शक्ति दीं और वहीं लेखक भी बन गए। कई अखबारों में जब रचनाएं छपतीं तो उन्हें पढ़कर उसी तथाकथित प्रभावशाली आदमी का भतीजा मेरे मित्र बन गया और उसने जो अपने चाचा की पोल खोली तब मेरे समझ में आया कि उसका प्रभाव छलावे से अधिक कुछ नहीं था और मेरे पिताजी का अनुमान सही था। तब से तय किया कि अपने से उम्र में बडे, अधिक ज्ञानी, गुणी और सज्जन का सम्मान तो करेंगे पर चाटुकारिता नहीं करेंगे क्योंकि इस धरती पर उस ‘सर्वशक्तिमान’ के अलावा और कोई प्रभावशाली हो नहीं सकता जिसने सबको जीवन दिया है।
हमारे देश के पत्र-पत्रिकाओं में ऐसी सूचियां नही छपती। हमारे देश के लोग कितनी भी गरीबी, बीमारी और कठिनाई से जूझ रहे हों पर उस’सर्वशक्तिमान’ के अलावा किसी दूसरे व्यक्ति को प्रभावशली नहीं मान सकते-इस सत्य को सब जानते है। अगर हमारे देश के पत्र-पत्रिकाएं ऐसी सूचियां छापेंगे तो वह लोग नाराज हो जायेंगे जिनको खुश रखने लिए यह जारी की जायेंगी-क्योंकि उनको लगेगा कि देश की जनता उनका मजाक उडा रही है। इसलिये विदेशी अखबारों की कतरनों का छाप कर काम चला रहे हैं।

फड़कते और गर्मागर्म हैडिंग लगाया करो


पहला ब्लोगर फ़िर उस दूसरे ब्लोग से मिलने निकला क्योंकि उसने उसके कहने से दो रिपोर्ट लिखी थी पर उसने कमेंट नहीं दी। इस बार उसकी गांव जाने वाली सड़क बरसात के पानी में बह गयी होगी इसका उसे अनुमान नही था। वह जैसे तैसे उसके घर के पास पहुचा तो उसने साइकिल बैठे ही उसे बाहर खडे हुए देख लिया। चूंकि नजर उसकी तरफ़ थी इसलिये उसे अपने सामने आया गड्ढा नहीं दिखाई दिया और उसका दिमागी संतुलन गड्बडा गया और वह साइकिल समेट उसमें गिर गया। गड्ढे में पानी भरा हुआ था और उसमें उसके कपडे भी खराब हो गये। दूसरा ब्लोगर उसके पास आया और उठाने की बजाये हंसने लगा। पहला ब्लोगर ने अपने को संभाला और उठते हुए बोला-“यार तुम्हें शर्म नहीं आती मुझे उठाने की बजाय हंसते हो।”

दूसरा ब्लोगर-पागल हुए हो, भला कोई गिरे हुए ब्लोगर को दूसरा ब्लोगर उठाता है, उल्टे जमे हुए को गिराता है। कम से कम मैने तुम्हें गिराया नही इसके लिये शुक्रिया अदा करना चाहिये। हाँ तुम कहों तो इस साइकिल को उठाने में मदद कर सकता हूँ’

पहला ब्लोगर-” कोई जरूरत नहीं खुद ही उठा जायेगी।तुम्हारे इधर आने वाले सडक कहां गुम हो गयी।”

दूसरा बोला-‘जिस दिन तुमने सडक पर हास्य कविता लिखी थी उसी दिन बह गयी। अब तुम यह मत पूछ्ना कि कैसे बह गयी? तुम्हारी कविता में सब लिखा हुआ है।’
पहला ब्लोगर-ठीक है, अब अंदर तो ले चलो कम से कम हाथ्-मूंह तो धो लूं।’

दूसरा ब्लोगर्-‘कोई जरूरत नहीं, घर में मेहमान आए हुए हैं, और वह भी ससुराल वाले। वैसे ही मेरी पत्नी और बच्चों ने इमेज वहां खराब कर रखी है और तुम कहीं अंदर गये तो बवाल भी मच सकता है। अभी वह समय नहीं आया कि कोई ब्लोगरों की इज्जत करे। यहीं इसी पत्थर पर बैठ्कर बातचीत करते हैं, और वह भी केवल पांच मिनट क्योंकि मैं अंदर सिगरेट लाने के बहाने बाहर आया हूं।

पहला ब्लोगर-‘तुमने वह रिपोर्ट देखी थी?’

दूसरा-‘नहीं। वही मैं तुमसे पूछ्ने वाला था। एक तो मैने अपने घर में इज्जत से बैठाकर चाय पिलाई, तुम्हारी पहचान छिपाई और फ़िर भी तुमने रिपोर्ट नहीं लिखी। अगर रिपोर्ट नहीं लिख सको तो मेरा समय खराब करने के लिये नहीं आया करो।

पहला-यार, मैने लिखी थी, तुमने क्यों नहीं देखी थी, थोडा ध्यान से देखा करो।’

दूसरा-“मैं इतने दिनों से देख रहा हूं तुमने कोई रिपोर्ट नही लिखी। हां मैने एक जोरदार रिपोर्ट देखी थी, क्या उसमें शानदार…………………..मेरा मतलब तुम्हारी भाषा में कहूं तो अभद्र शब्द थे।”

पहला-” उसके पास मेरी पोस्ट भी थी।”

दूसरा-‘तभी मैं कहूं कि मेरी नज़र में क्यों नहीं आयी। मेरा सारा ध्यान उस पर था। मैने वह रिपोर्ट दस बार पढी। तुम भी अपनी पोस्ट में फ़डकते हुई गर्मागर्म हैडिंग लगाया करो, तब तो मेरी नजर जायेगी और मैं कमेंट दूंगा।’

पहला-‘हैडिंग को फ़डकता हुआ कैसे बनाऊं, और गर्मागर्म किसमें करू? भगौने में या कढाई में।”

दूसरा ब्लोगर उठ कर खडा हो गया और बोला-‘अरे यार, तुम नहीं समझ सकते। तुम जाओ यहां से। मैं तो जा रहा हूं बीडी का बंडल लेने।”

पहला ब्लोगर-‘पर तुम तो यह कह कर आये हो कि सिगरेट खरीदने जा रहा हूं।’

दूसरा-‘अपनी ससुराल वालों के सामने क्या अपनी भद्द पिटवाता। वहां से बीडी पीकर आऊंगा और कहूंगा कि सिगरेट पीकर आया हूं। अब तुम जाओ………….जय ब्लोगिंग की……….”

पहला ब्लोगर ने गड्ढे से अपनी साइकिल उठायी और उसकी सीट को अपने रुमाल से साफ़ करने लगा, दूसरा ब्लोगर जाते-जाते बोला-‘और हां, इस बार अच्छी रिपोर्ट लिखना। वैसे नहीं भी लिखो तो फ़र्क क्या पडेगा। अब तो तुम यहां आओगे नहीं। इस तरह गिरने के बाद तो बिलकुल नहीं।”

पहला ब्लोगर-‘आना तो पडेगा न! तुम इस बार भी कमेंट नही लगाओगे तो पूछने और लगायी तो शुक्रिया अदा करने।”

दूसरा ब्लोगर अपना सिर पीट्ता हुआ चला गया, और पहला ब्लोगर भी साइकिल पर बैठकर वापस चला तब उसे ध्यान आया कि उसने यह तो पूछ ही नहीं कि इस बार हास्य कविता लिखे या नही।

वह उसे आवाज देना चाहता था पर उसमें खतरा यह था कि दूसरा ब्लोगर बहुत दूर चुका था और वह न भी सुनता पर उसके घर के अंदर आवाज जरूर जाती और वहां से किसी के बाहर आने का खतरा था। अपनी बुरी हालत देखकर पहले ब्लोगर ने सोचा अगली बार पूछ लूंगा।”

नॉट-यह हास्य व्यंग्य रचना है और इसका किसी व्यक्ति या घटना से कोई संबंध नहीं है, अगर किसी कई खुराफात से मेल खा जाये तो वही उसके लिए जिम्मेदार होगा।

गीत-संगीत और मोबाइल


मोबाइल का भला संगीत और गाने और बजाने से क्या संबंध हो सकता है? कभी यह प्रश्न हमने अपने आपसे ही नहीं पूछा तो किसी और से क्या पूछते? अपने आप में यह प्रश्न है भी बेतुका। पर जब बातें सामने ही बेतुकी आयेंगी तो ऐसे प्रश्न भी आएंगे।
हुआ यूँ कि उस दिन हम अपने एक मित्र के साथ एक होटल में चाय पीने के लिए गये, वहाँ पर कई लोग अपने मोबाइल फोन हाथ में पकड़े और कान में इयरफोन डालकर समाधिस्थ अवस्था में बैठे और खडे थे। हमने चाय वाले को चाय लाने का आदेश दिया तो वह बोला-” महाराज, आप लोग भी अपने साथ मोबाइल लाए हो कि नहीं?’
हमने चौंककर पूछा कि-”तुम क्या आज से केवल मोबाइल वालों को ही चाय देने का निर्णय किये बैठे हो। अगर ऐसा है तो हम चले जाते हैं हालांकि हम दोनों की जेब में मोबाइल है पर तुम्हारे यहाँ चाय नहीं पियेंगे। आत्म सम्मान भी कोई चीज होती है।”
वह बोला-”नहीं महाराज! आज से शहर में एफ.ऍम.बेंड रेडिओ शुरू हो गया है न! उसे सब लोग मोबाइल पर सुन रहे हैं। अब तो ख़ूब मिलेगा गाना-बजाना सुनने को। आप देखो सब लोग वही सुन रहे हैं। आप ठहरे हमारे रोज के ग्राहक और गानों के शौक़ीन तो सोचा बता दें कि शहर में भी ऍफ़।एम्.बेंड ” चैनल शुरू हो गये हैं।”
” अरे वाह!”हमने खुश होकर कहा-” मजा आ गया!”
“क्या ख़ाक मजा आ गया?” हमारे मित्र ने हमारी तरफ देखकर कहा और फिर उससे बोले-”गाने बजाने का मोबाइल से क्या संबंध है? वह तो हम दोनों बरसों से सुन रहे हैं । यह तो अब इन नन्हें-मुन्नों के लिए ठीक है यह बताने के लिए कि गाना दिखता ही नहीं बल्कि बजता भी है। इन लोगों नी टीवी पर गानों को देखा है सुना कहॉ है, अब सुनेंगे तो समझ पायेंगे कि गीत-संगीत सुनने के लिए होते हैं न कि देखने के लिए। “
हमारे मित्र ने ऐसा कहते हुए अपने पास खडे जान-पहचाने के ऐक लड़के की तरफ इशारा किया था। उसकी बात सुनाकर वह लड़का तो मुस्करा दिया पर वहां कुछ ऐसे लोगों को यह बात नागवार गुजरी जो उन मोबाइल वालों के साथ खडे कौतुक भाव से देख और सुन रहे थे। उनमें एक सज्जन जिनके कुछ बाल सफ़ेद और कुछ काले थे और उनके केवल एक ही कान में इयरफोन लगा था उन्होने अपने दूसरे कान से भी इयर फोन खींच लिया और बोले -”ऐसा नहीं है गाने को कहीं भी और कभी भी कान में सुनने का अलग ही मजा है। आप शायद नहीं जानते।”
हमारे मित्र इस प्रतिक्रिया के लिए तैयार नहीं था पर फिर थोडा आक्रामक होकर बोला-” महाशय! यह आपका विचार है, हमारे लिए तो गीत-संगीत कान में सुनने के लिए नहीं बल्कि कान से सुनने के लिए है। हम तो सुबह शाम रेडियों पर गाने सुनने वाले लोग हैं। अगर अब ही सुनना होगा तो छोटा ट्रांजिस्टर लेकर जेब में रख लेंगे। ऎसी बेवकूफी नहीं करेंगे कि जिससे बात करनी है उस मोबाइल को हाथ में पकड़कर उसका इयरफोन कान में डाले बैठे रहें । हम तो गाना सुनते हुए तो अपना काम भी बहुत अच्छी तरह कर लेते हैं।”
वह सज्जन भी कम नहीं थे और बोले-”रेडियो और ट्रांजिस्टर का जमाना गया और अब तो मोबाइल का जमाना है। आदमी को जमाने के साथ ही चलना चाहिए।”
हमारा मित्र भी कम नहीं था और कंधे उचकाता हुआ बोला-”हमारे घर में तो अभी भी रेडियो और ट्रांजिस्टर दोनों का ज़माना बना हुआ है।अभी तो हम उसके साथ ही चलेंगे।
बात बढ न जाये इसलिये उसे हमने होटल के अन्दर खींचते हुए कहा-”ठीक है! अब बहुत हो गया। चल अन्दर और अपनी चाय पीते हैं।”
हमने अन्दर भी बाहर जैसा ही दृश्य देखा और मेरा मित्र अब और कोई बात इस विषय पर न करे विषय बदलकर हमने बातचीत शुरू कर दीं। मेरा मित्र इस बात को समझ गया और इस विषय पर उसने वहाँ कोई बात भी नहीं की । बाद में बाहर निकला कर बोला-” एक बात मेरी समझ में नहीं आ रही कि यह लोग गीत-संगीत के शौक़ीन है या मोबाइल से सुनने के। देखना यह कुछ दिनों का हे शौक़ है फिर कोई नहीं सुनेगा हम जैसे शौकीनों के अलावा।”
हमने कहा-” यह न तो गीत-संगीत के शौक़ीन है और न ही मोबाइल के! यह तो दिखावे के लिए ही सब कर रहे हैं। देख-सुन समझ सब रहे हैं पर आनंद कितना ले रहे हैं यह पता नहीं।”
हमारे शहर में एक या दो नहीं बल्कि चार एफ।ऍम.बेंड रेडियो शुरू हो रहे है और इस समय उनका ट्रायल चल रहा है। जिसे देखो इसी विषय पर ही बात कर रहा है। मैं खुद बचपन से गाने सुनने का आदी हूँ और दूरदर्शन और अन्य टीवी चैनलों के दौर में भी मेरे पास एक नहीं बल्कि तीन रेडियो-ट्रांजिस्टर चलती-फिरती हालत में है और शायद हम जैसे ही लोग उनका सही आनद ले पायेंगे और अन्य लोग बहुत जल्दी इससे बोर हो जायेंगे। हम और मित्र इस बात पर सहमत थे कि संगीत का आनंद केवल सुनकर एकाग्रता के साथ ही लिया जा सकता है और सामने अगर दृश्य हौं तो आप अपना दिमाग वहां भी लगाएंगे और पूरा लुत्फ़ नहीं उठा पायेंगे।
गीत-संगीत के बारे में तो मेरा मानना है कि जो लोग इससे नहीं सुनते या सुनकर उससे सुख की अनुभूति नहीं करते वह अपने जीवन में कभी सुख की अनुभूति ही नहीं कर सकते। गीतों को लेकर में कभी फूहड़ता और शालीनता के चक्कर में भी नही पड़ता बस वह श्रवण योग्य और हृदयंगम होना चाहिए। गीत-संगीत से आदमी की कार्यक्षमता पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार अधिक टीवी देखने के बुरे प्रभाव होते हैं जबकि रेडियो से ऐसा नहीं होता। मैं और मेरा मित्र समय मिलने पर रेडियो से गाने जरूर सुनते है इसलिये हमें तो इस खबर से ही ख़ुशी हुई । जहाँ तक कानों में इयर फोन लगाकर सुनने का प्रश्न है तो मेरे मित्र ने मजाक में कहा था पर मैंने उसे गंभीरता से लिया था कि ‘ गीत-संगीत कानों में नहीं बल्कि कानों से सुना जाता है।’
बहरहाल जिन लोगों के पास मोबाइल है उनका नया-नया संगीत प्रेम मेरे लिए कौतुक का विषय था। घर पहुंचते ही हमने भी अपने ट्रांजिस्टर को खोला और देखा तो चारों चैनल सुनाई दे रहे थे। गाने सुनते हुए हम भी सोच रहे थे-’गीत संगीत का मोबाइल से क्या संबंध ?