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फड़कते और गर्मागर्म हैडिंग लगाया करो


पहला ब्लोगर फ़िर उस दूसरे ब्लोग से मिलने निकला क्योंकि उसने उसके कहने से दो रिपोर्ट लिखी थी पर उसने कमेंट नहीं दी। इस बार उसकी गांव जाने वाली सड़क बरसात के पानी में बह गयी होगी इसका उसे अनुमान नही था। वह जैसे तैसे उसके घर के पास पहुचा तो उसने साइकिल बैठे ही उसे बाहर खडे हुए देख लिया। चूंकि नजर उसकी तरफ़ थी इसलिये उसे अपने सामने आया गड्ढा नहीं दिखाई दिया और उसका दिमागी संतुलन गड्बडा गया और वह साइकिल समेट उसमें गिर गया। गड्ढे में पानी भरा हुआ था और उसमें उसके कपडे भी खराब हो गये। दूसरा ब्लोगर उसके पास आया और उठाने की बजाये हंसने लगा। पहला ब्लोगर ने अपने को संभाला और उठते हुए बोला-“यार तुम्हें शर्म नहीं आती मुझे उठाने की बजाय हंसते हो।”

दूसरा ब्लोगर-पागल हुए हो, भला कोई गिरे हुए ब्लोगर को दूसरा ब्लोगर उठाता है, उल्टे जमे हुए को गिराता है। कम से कम मैने तुम्हें गिराया नही इसके लिये शुक्रिया अदा करना चाहिये। हाँ तुम कहों तो इस साइकिल को उठाने में मदद कर सकता हूँ’

पहला ब्लोगर-” कोई जरूरत नहीं खुद ही उठा जायेगी।तुम्हारे इधर आने वाले सडक कहां गुम हो गयी।”

दूसरा बोला-‘जिस दिन तुमने सडक पर हास्य कविता लिखी थी उसी दिन बह गयी। अब तुम यह मत पूछ्ना कि कैसे बह गयी? तुम्हारी कविता में सब लिखा हुआ है।’
पहला ब्लोगर-ठीक है, अब अंदर तो ले चलो कम से कम हाथ्-मूंह तो धो लूं।’

दूसरा ब्लोगर्-‘कोई जरूरत नहीं, घर में मेहमान आए हुए हैं, और वह भी ससुराल वाले। वैसे ही मेरी पत्नी और बच्चों ने इमेज वहां खराब कर रखी है और तुम कहीं अंदर गये तो बवाल भी मच सकता है। अभी वह समय नहीं आया कि कोई ब्लोगरों की इज्जत करे। यहीं इसी पत्थर पर बैठ्कर बातचीत करते हैं, और वह भी केवल पांच मिनट क्योंकि मैं अंदर सिगरेट लाने के बहाने बाहर आया हूं।

पहला ब्लोगर-‘तुमने वह रिपोर्ट देखी थी?’

दूसरा-‘नहीं। वही मैं तुमसे पूछ्ने वाला था। एक तो मैने अपने घर में इज्जत से बैठाकर चाय पिलाई, तुम्हारी पहचान छिपाई और फ़िर भी तुमने रिपोर्ट नहीं लिखी। अगर रिपोर्ट नहीं लिख सको तो मेरा समय खराब करने के लिये नहीं आया करो।

पहला-यार, मैने लिखी थी, तुमने क्यों नहीं देखी थी, थोडा ध्यान से देखा करो।’

दूसरा-“मैं इतने दिनों से देख रहा हूं तुमने कोई रिपोर्ट नही लिखी। हां मैने एक जोरदार रिपोर्ट देखी थी, क्या उसमें शानदार…………………..मेरा मतलब तुम्हारी भाषा में कहूं तो अभद्र शब्द थे।”

पहला-” उसके पास मेरी पोस्ट भी थी।”

दूसरा-‘तभी मैं कहूं कि मेरी नज़र में क्यों नहीं आयी। मेरा सारा ध्यान उस पर था। मैने वह रिपोर्ट दस बार पढी। तुम भी अपनी पोस्ट में फ़डकते हुई गर्मागर्म हैडिंग लगाया करो, तब तो मेरी नजर जायेगी और मैं कमेंट दूंगा।’

पहला-‘हैडिंग को फ़डकता हुआ कैसे बनाऊं, और गर्मागर्म किसमें करू? भगौने में या कढाई में।”

दूसरा ब्लोगर उठ कर खडा हो गया और बोला-‘अरे यार, तुम नहीं समझ सकते। तुम जाओ यहां से। मैं तो जा रहा हूं बीडी का बंडल लेने।”

पहला ब्लोगर-‘पर तुम तो यह कह कर आये हो कि सिगरेट खरीदने जा रहा हूं।’

दूसरा-‘अपनी ससुराल वालों के सामने क्या अपनी भद्द पिटवाता। वहां से बीडी पीकर आऊंगा और कहूंगा कि सिगरेट पीकर आया हूं। अब तुम जाओ………….जय ब्लोगिंग की……….”

पहला ब्लोगर ने गड्ढे से अपनी साइकिल उठायी और उसकी सीट को अपने रुमाल से साफ़ करने लगा, दूसरा ब्लोगर जाते-जाते बोला-‘और हां, इस बार अच्छी रिपोर्ट लिखना। वैसे नहीं भी लिखो तो फ़र्क क्या पडेगा। अब तो तुम यहां आओगे नहीं। इस तरह गिरने के बाद तो बिलकुल नहीं।”

पहला ब्लोगर-‘आना तो पडेगा न! तुम इस बार भी कमेंट नही लगाओगे तो पूछने और लगायी तो शुक्रिया अदा करने।”

दूसरा ब्लोगर अपना सिर पीट्ता हुआ चला गया, और पहला ब्लोगर भी साइकिल पर बैठकर वापस चला तब उसे ध्यान आया कि उसने यह तो पूछ ही नहीं कि इस बार हास्य कविता लिखे या नही।

वह उसे आवाज देना चाहता था पर उसमें खतरा यह था कि दूसरा ब्लोगर बहुत दूर चुका था और वह न भी सुनता पर उसके घर के अंदर आवाज जरूर जाती और वहां से किसी के बाहर आने का खतरा था। अपनी बुरी हालत देखकर पहले ब्लोगर ने सोचा अगली बार पूछ लूंगा।”

नॉट-यह हास्य व्यंग्य रचना है और इसका किसी व्यक्ति या घटना से कोई संबंध नहीं है, अगर किसी कई खुराफात से मेल खा जाये तो वही उसके लिए जिम्मेदार होगा।

गीत-संगीत और मोबाइल


मोबाइल का भला संगीत और गाने और बजाने से क्या संबंध हो सकता है? कभी यह प्रश्न हमने अपने आपसे ही नहीं पूछा तो किसी और से क्या पूछते? अपने आप में यह प्रश्न है भी बेतुका। पर जब बातें सामने ही बेतुकी आयेंगी तो ऐसे प्रश्न भी आएंगे।
हुआ यूँ कि उस दिन हम अपने एक मित्र के साथ एक होटल में चाय पीने के लिए गये, वहाँ पर कई लोग अपने मोबाइल फोन हाथ में पकड़े और कान में इयरफोन डालकर समाधिस्थ अवस्था में बैठे और खडे थे। हमने चाय वाले को चाय लाने का आदेश दिया तो वह बोला-” महाराज, आप लोग भी अपने साथ मोबाइल लाए हो कि नहीं?’
हमने चौंककर पूछा कि-”तुम क्या आज से केवल मोबाइल वालों को ही चाय देने का निर्णय किये बैठे हो। अगर ऐसा है तो हम चले जाते हैं हालांकि हम दोनों की जेब में मोबाइल है पर तुम्हारे यहाँ चाय नहीं पियेंगे। आत्म सम्मान भी कोई चीज होती है।”
वह बोला-”नहीं महाराज! आज से शहर में एफ.ऍम.बेंड रेडिओ शुरू हो गया है न! उसे सब लोग मोबाइल पर सुन रहे हैं। अब तो ख़ूब मिलेगा गाना-बजाना सुनने को। आप देखो सब लोग वही सुन रहे हैं। आप ठहरे हमारे रोज के ग्राहक और गानों के शौक़ीन तो सोचा बता दें कि शहर में भी ऍफ़।एम्.बेंड ” चैनल शुरू हो गये हैं।”
” अरे वाह!”हमने खुश होकर कहा-” मजा आ गया!”
“क्या ख़ाक मजा आ गया?” हमारे मित्र ने हमारी तरफ देखकर कहा और फिर उससे बोले-”गाने बजाने का मोबाइल से क्या संबंध है? वह तो हम दोनों बरसों से सुन रहे हैं । यह तो अब इन नन्हें-मुन्नों के लिए ठीक है यह बताने के लिए कि गाना दिखता ही नहीं बल्कि बजता भी है। इन लोगों नी टीवी पर गानों को देखा है सुना कहॉ है, अब सुनेंगे तो समझ पायेंगे कि गीत-संगीत सुनने के लिए होते हैं न कि देखने के लिए। “
हमारे मित्र ने ऐसा कहते हुए अपने पास खडे जान-पहचाने के ऐक लड़के की तरफ इशारा किया था। उसकी बात सुनाकर वह लड़का तो मुस्करा दिया पर वहां कुछ ऐसे लोगों को यह बात नागवार गुजरी जो उन मोबाइल वालों के साथ खडे कौतुक भाव से देख और सुन रहे थे। उनमें एक सज्जन जिनके कुछ बाल सफ़ेद और कुछ काले थे और उनके केवल एक ही कान में इयरफोन लगा था उन्होने अपने दूसरे कान से भी इयर फोन खींच लिया और बोले -”ऐसा नहीं है गाने को कहीं भी और कभी भी कान में सुनने का अलग ही मजा है। आप शायद नहीं जानते।”
हमारे मित्र इस प्रतिक्रिया के लिए तैयार नहीं था पर फिर थोडा आक्रामक होकर बोला-” महाशय! यह आपका विचार है, हमारे लिए तो गीत-संगीत कान में सुनने के लिए नहीं बल्कि कान से सुनने के लिए है। हम तो सुबह शाम रेडियों पर गाने सुनने वाले लोग हैं। अगर अब ही सुनना होगा तो छोटा ट्रांजिस्टर लेकर जेब में रख लेंगे। ऎसी बेवकूफी नहीं करेंगे कि जिससे बात करनी है उस मोबाइल को हाथ में पकड़कर उसका इयरफोन कान में डाले बैठे रहें । हम तो गाना सुनते हुए तो अपना काम भी बहुत अच्छी तरह कर लेते हैं।”
वह सज्जन भी कम नहीं थे और बोले-”रेडियो और ट्रांजिस्टर का जमाना गया और अब तो मोबाइल का जमाना है। आदमी को जमाने के साथ ही चलना चाहिए।”
हमारा मित्र भी कम नहीं था और कंधे उचकाता हुआ बोला-”हमारे घर में तो अभी भी रेडियो और ट्रांजिस्टर दोनों का ज़माना बना हुआ है।अभी तो हम उसके साथ ही चलेंगे।
बात बढ न जाये इसलिये उसे हमने होटल के अन्दर खींचते हुए कहा-”ठीक है! अब बहुत हो गया। चल अन्दर और अपनी चाय पीते हैं।”
हमने अन्दर भी बाहर जैसा ही दृश्य देखा और मेरा मित्र अब और कोई बात इस विषय पर न करे विषय बदलकर हमने बातचीत शुरू कर दीं। मेरा मित्र इस बात को समझ गया और इस विषय पर उसने वहाँ कोई बात भी नहीं की । बाद में बाहर निकला कर बोला-” एक बात मेरी समझ में नहीं आ रही कि यह लोग गीत-संगीत के शौक़ीन है या मोबाइल से सुनने के। देखना यह कुछ दिनों का हे शौक़ है फिर कोई नहीं सुनेगा हम जैसे शौकीनों के अलावा।”
हमने कहा-” यह न तो गीत-संगीत के शौक़ीन है और न ही मोबाइल के! यह तो दिखावे के लिए ही सब कर रहे हैं। देख-सुन समझ सब रहे हैं पर आनंद कितना ले रहे हैं यह पता नहीं।”
हमारे शहर में एक या दो नहीं बल्कि चार एफ।ऍम.बेंड रेडियो शुरू हो रहे है और इस समय उनका ट्रायल चल रहा है। जिसे देखो इसी विषय पर ही बात कर रहा है। मैं खुद बचपन से गाने सुनने का आदी हूँ और दूरदर्शन और अन्य टीवी चैनलों के दौर में भी मेरे पास एक नहीं बल्कि तीन रेडियो-ट्रांजिस्टर चलती-फिरती हालत में है और शायद हम जैसे ही लोग उनका सही आनद ले पायेंगे और अन्य लोग बहुत जल्दी इससे बोर हो जायेंगे। हम और मित्र इस बात पर सहमत थे कि संगीत का आनंद केवल सुनकर एकाग्रता के साथ ही लिया जा सकता है और सामने अगर दृश्य हौं तो आप अपना दिमाग वहां भी लगाएंगे और पूरा लुत्फ़ नहीं उठा पायेंगे।
गीत-संगीत के बारे में तो मेरा मानना है कि जो लोग इससे नहीं सुनते या सुनकर उससे सुख की अनुभूति नहीं करते वह अपने जीवन में कभी सुख की अनुभूति ही नहीं कर सकते। गीतों को लेकर में कभी फूहड़ता और शालीनता के चक्कर में भी नही पड़ता बस वह श्रवण योग्य और हृदयंगम होना चाहिए। गीत-संगीत से आदमी की कार्यक्षमता पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार अधिक टीवी देखने के बुरे प्रभाव होते हैं जबकि रेडियो से ऐसा नहीं होता। मैं और मेरा मित्र समय मिलने पर रेडियो से गाने जरूर सुनते है इसलिये हमें तो इस खबर से ही ख़ुशी हुई । जहाँ तक कानों में इयर फोन लगाकर सुनने का प्रश्न है तो मेरे मित्र ने मजाक में कहा था पर मैंने उसे गंभीरता से लिया था कि ‘ गीत-संगीत कानों में नहीं बल्कि कानों से सुना जाता है।’
बहरहाल जिन लोगों के पास मोबाइल है उनका नया-नया संगीत प्रेम मेरे लिए कौतुक का विषय था। घर पहुंचते ही हमने भी अपने ट्रांजिस्टर को खोला और देखा तो चारों चैनल सुनाई दे रहे थे। गाने सुनते हुए हम भी सोच रहे थे-’गीत संगीत का मोबाइल से क्या संबंध ?

सवाल आपके, जवाब दीपक बापू के


(यह एक काल्पनिक व्यंग्य रचना है किसी घटना या व्यक्ति से इसका कोई संबंध नहीं है)
प्रश्न- बापू, यह वियुज क्या होता है?
उत्तर -यह अंग्रेजी का शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है दृष्टि। वैसे इसको व्यूज कर लिखा जाता है पर अगर हिंदी के लेखक हो तो इस बात की फिक्र मत करो कि किस अंग्रेजी शब्द की टांग टूट रही है बस हिंदी शब्द की टांग नहीं तोड़ना , अलबत्ता अगर यूनीकोड में लिख रहे हो तो गलती चल सकती है, पर उसमें इतना ध्यान रखना कि कुछ शब्द बहुत अनर्थ कर देते हैं। जैसे किसी पुरुष के लिए लिखना है कि वह किस्मत वाला और और उसके लिख गये किस्मत वाली तो बुरा लगेगा। इतना जरूर ख़्याल रखा करें।
प्रश्न -बापू, अच्छी कमेन्ट लिखे कि अच्छा कमेन्ट?
उत्तर- यह तो किसी अंग्रेजी वाले से कभी हमने पूछा नहीं और हमारे हिंदी वाले गुरुजी ने कभी बताया नहीं! वैसे कोई अंग्रेजी वाला ही बता सकता है कि यह स्त्रीलिंग है या पुर्लिंग क्योंकि हमने कमेन्ट के साथ उन्हें इट का ही प्रयोग करते देखा है ही या शी नहीं। हिंदी में इसका आशय प्रतिक्रिया से है सो हम अच्छा कमेन्ट भी लिख सकते हैं पर हम जब लिखते हैं कि कमेन्ट तो भाव हमारा हिंदी जैसा ही हो जाता है और लिखते हैं अच्छी कमेन्ट। चल जाएगा!
प्रश्न-यह हिट और फ्लॉप क्या अन्तर होता है?
उत्तर -हिट से लोगों को कभी हेट* भी हो जाती है पर फ्लॉप से हमेशा सिम्पथी रहती है।
हेट*-चिढ
सिम्पथी*-सहानुभूति
शेष प्रश्नों का उत्तर अगले अंक में ।

सास-बहु का झगडा, पडोसियों के मत्थे पडा


उनके दोनो बेटे-बहु प्रतिवर्ष की भांति भी इस वर्ष अपने माता-पिता के पास रहने के लिए आये। अब पति-पत्नी अकेले ही रहते थे। पति अब रिटायर हो गये थे, और दोनों ही सुबह, दोपहर और शाम एक मंदिर में जाते थे। उनके दोनों लड़के पढने के बाद शहर से बाहर नौकरी कर रहे थे और उनकी अच्छी आय थी। अपने माता-पिता से मिलने वह साल में पांच-छ: बार जरूर आते थे पर विवाह के बाद पिछले तीन वर्षों में यह आगमन केवल एक वर्ष तक रह गया था। इधर उनके पिताजी भी रिटायर हो गये थे। रिटायर होने से पूर्व भी पति महोदय दिन में दो बार अपनी पत्नी को सुबह-शाम जरूर मंदिर गाडी पर बैठा कर जरूर ले जाते थे, अब वह क्रम तीन बार हो गया था। उनकी पत्नी अपने मंदिर जाने का प्रदर्शन पडोस में जरूर करतीं और बार-बार अपने धर्मभीरू होने की चर्चा अवश्य करती थी। और कभी-कभी बिना किसी आग्रह के ज्ञान भी देतीं देती थी। उनका मंदिर घर से दो किलोमीटर दूर था और किसी दिन गाडी खराब हो या पति महोदय का स्वास्थ्य ठीक न हो तो उन्हें अनेक ताने सुनने को मिलते। वह कभी घर से मंदिर तक पैदल नहीं गयीं।

उस दिन वह अपनी बहुओं पर अपना ज्ञान बघार रहीं थीं-“अपने शरीर को चलाते रहना चाहिए, वरना लाचार हो जाता है अब देखो तुम्हारे ससुर कभी नाराज होकर मंदिर नहीं ले जाते तो मैं पैदल ही चली जाती हूँ कभी भी झगडा नहीं करती- अपने पति से कभी भी झगडा नहीं करना चाहिए। बिचारे पुरुष तो जीवन भर कमाने में ही समय गंवाते हैं।” वगैरह……..वगैरह।

इधर वह अपने पति के साथ मंदिर गयी और उधर उनकी बहुओं ने पडोसियों से बातचीत शुरू की और फिर उसने सासके दावे की इस तरह सत्यता का पता लगाने का प्रयास किया कि वह बिचारे समझ नहीं पाए ।

एक पडोसन बोली -“हमने तो कभी भी तुम्हारी सास को पैदल जाते हुए नहीं देखा, अगर गाडी खराब हो या उनका मन न हो या उनके कोई रिश्तेदार आ गये हौं तो मंदिर न ले जाने के लिए उनको हजार ताने देतीं हैं। तुम्हारे ससुर तो सीधे हैं सब सह जाते हैं।”

बहुओं की ऑंखें खुल गयीं, उन्हें अपनी सास पर वैसे भी यकीन नहीं था- और अब तो पडोसियों से भी पुष्टि करा ली थी। उन्होने अपने-अपने पतियों को उनकी माँ की पोल बतायी-हालांकि पडोसन ने आग्रह किया था कि वह ऐसा न करे क्योंकि उनके जाने के बाद उनकी सास उनसे लडेगी।

इधर उनके बहु-बेटे अपने घरों को रवाना हुए और उधर वह अपने पडोसियों पर पिल पडी-“तुम लोगों से किसी का सुख देखा नहीं जाता। मेरी बहुओं को भड़काती हो। अब देखना जब तुम्हारे घर में बहुएँ आयेंगी तो मैं भी यही करूंगी।”

एक पडोसन बोली-“हमें क्या पता था कि तुम्हारी बहुएँ चालाकी करेंगी। पता नहीं तुमसे क्या बात नमक मिर्च लगाकर कह गयीं हैं।” मगर वह नहीं रुकीं और बोलतीं गयी-“तुम लोगों का क्या मतलब? मैं अपनी बहुओं से कुछ भी कहूं। तुन कौन होती हो बीच में दखल देने वाली …..”

उन्होने और भी बहुत कुछ कहा और इस तरह सास-बहु का झगडा पडोसियों के मत्थे आ चूका था।
नोट-यह कहानी काल्पनिक है

हकलाते हुए लिखना जारी है


अपने बारे में मुझे दो बातें पता है कि मेरी बुधिद एकदम मन्द है और दूसरा यह कि इस कारण हादसे होंगे ही और मुझे उन्हें झेलना होगा। इस मामले में तीक्ष्ण बुध्दी वालों से कुछ ज्यादा भाग्शाली हूँ कि मुझे अपने गलतियों का अवलोकन करने का अवसर मिल जाता है। कोई बात मेरे समझ में देर से आयेगी जा यह पता चला तो मैंने तय किया कि जब लक्ष्या तरफ तेजी से बढेंगे और इस प्रयास ने हमें उतावला बना दिया जो हमेशा ही दुर्घटनाओं का जनक होता है । यह बुरी आदत भी हमने बुध्दी के मन्द चलते पकड ली, और मान लिया कि जब हम संघर्ष करेंगे तो जीतेंगे ही और यही बात हमारे आत्मविश्वास को बनाए रखती है ।
मैंने जब ब्लोग बनाने का फैसला किया तो कोई योजना नहीं थी , बस यही था कि अपनी रचनाएँ इन्टरनेट पर रख देंगे और जिसे पढना होगा पढ़ लेगा । शराब के नशे से बचने के लिए हमने अपने लेखनी का पुराना नशा अपना लिया था और इसको लेकर भी संशय था कि हम इस मामले में अपनी पुरानी ख्याति वापस ला पायेंगे। मैं भाग्यवादी नहीं हूँ पर जब अपने ब्लोग देखता हूँ तो यही कहता हूँ कि होनी को कौन टाल सकता है-लोग हादसों में टूटते है और हमें हादसे ही बनाते हैं । कभी सोचता हूँ कि इस तरह हकलाते हुए लिखने से अच्छा है कि कुछ और करो, पर क्या यह समझ में नहीं आता सो तबतक लिख रहे है । जैसे ही मौका मिलता है लिखने बैठ जाता हूँ । अपनी हिंदी टायपिंग का ज्ञान उड़ता नज़र आने लगा। अगर यही हाल रहा तो मुझे अपने कई कागज किसी और से टाईप कराने के लिए कहीं और जाना पडेगा ।

जब से इस पर लिखा है किसी पत्रिका को कोई रचना नहीं भेजी । उनके संपादक फोन करने लगे हैं, तो कुछ लोग पूछने लगे हैं कि क्या बात है कि आजकल आपके लेख वगैरह पढने को नहीं मिल रहे । हम कहते हैं कि आजकल टाईम नहीं मिल रहा-इन्टरनेट पर लिखने की बात उन्हें बताना बेकार है क्योंकि वह इसे देखने वाले नहीं है।
उस दिन मेरा एक दोस्त अपने लड़के के साथ घर आया और कहने लगा कि-” यार मुझे एक पत्र भेजना है उसे कंप्युटर पर निकाल दो। “
मैंने कहा-“यार मैं इस समय अपना काम कर रहा हूँ , तुम्हें थोडा समय लग जाएगा। “
उसने अपने लड़के से मेरे घर पर रुकने के लिए कहा और स्वयं चला गया । लड़का बोला -“अंकल मैं थोडी देर बाहर खेल लूं ।”
मैंने उसे इजाजत दे दीं । वह बारह वर्ष का था और अक्सर हमारे घर आया जाया करता था, इसीलिये उसे कालोनी के दुसरे बच्चे भी जानते थे ।
वह बाहर गया तो मैंने सोचा कि पहले मित्र का पत्र टाईप कर लूं और फिर अपना ब्लोग लिखूं । उसका जब मैं पत्र हिंदी में टाईप करने बैठा तो ……पहले तो उंगली रखने की समस्या आयी , । उसे निजात पाई तो पता लगा कि श्री मान को ……आप समझ गये होंगे । पत्र बड़ा था और हम उसे पहले भी करते तो आधा घंटा तो लगता ही, अब इस हालत में तो …….एक घंटे से क्या कम समय लगना था । इस बीच लड़का बार-बार अन्दर आता और हमारे मिसेज से ओके रिपोर्ट माँगता , हमारी मिसेज कहतीं कि -‘अभी तुम्हारा कार्य प्रगति पर है ।
चार बार अन्दर और बाहर होकर वह भी झल्ला गया और बोला -“अंकल को आज बहुत देरी लग रही है पहले तो जल्दी कर देते थे। “
मिसेज बोलीं-“तुम्हारे अंकल हिंदी टाईप भूल गये हैं, इसीलिये देर लग रही है। “
वह अपनी पेंट के जेब में हाथ डालकर हमें देखने लगा और फिर बाहर चला गया। बहरहाल हम उस पत्र से डेढ़ घंटे में निजात पा सके ।
ब्लोग बनने के बाद हमें पता लगा कि इसमें कमेन्ट भी होते हैं, और कुछ इस तरह कि जैसे किसी के घर नमस्कार करने या हाथ जोड़कर प्रणाम करने जाते हैं । यह बात भी मुझे देर से समझ में आयी और जब आयी तो बिजली की समस्या शुरू हो गयी । अगर मैं यह कहूं कि लिखना एक नशा है तो कमेन्ट उसके साथ नमकीन खाने जैसा है । मैं नारद पर जब जाता हूँ तो उन लोगों के घर तलाशता हूँ जो मेरे घर कमेन्ट के रुप में उपहार रख आते हैं। कुछ नाम तो पर्चे पर लिख रखे हैं कुछ दिमाग में रखता हूँ । मैं बिना पढे कभी कमेन्ट नहीं लिखता और एक बात जो मुझे सबसे अच्छी लगी कि लोगों ने कमेन्ट रखने में कभी कोई अहंकार नहीं दिखाया जो कि आमतौर से थोडा बहुत ज्ञान आने पर हो जाता है ।

जब मैं किसी ऐसे ब्लोग पर जाता हूँ जहाँ पहले से ही लाईन लगी है तो सोचता हूँ जब इसके मालिक को फुर्सत होगी तब आऊंगा – अभी इनकी नज़र पडे कि नहीं -और यकीन करिये कुछ लोगों के ब्लोग बाद में फुर्सत में मिल भी जाते हैं , कुछ के मिलने बाकी हैं। कुछ ब्लोग ऐसे भी जिन पर मैं कमेन्ट रखने वाला पहला व्यक्ति होता हूँ और मुझे पता होता है कि इस पर लाईन लगने वाली है । एक वजह और है एक बार ब्लोग देखने और पढने के बाद मुझे उससे बाहर आना होता है , और फिर बिजली की समस्या भी आती है, क्योंकि मैंने अपना नेट कनेक्शन को सीधे उससे जोड़ रखा है ।
अभी तो मैं इस फ़िराक में हूँ कि कब कोई ब्लोग लेखक मेरे शहर आये तो उससे थोडा और ज्ञान प्राप्त करूं क्योंकि जितनी जानकारी मैं स्वयं हासिल कर सकता था कर ली अब लिखने का नशा ऐसा चढा है कि कोई नया प्रयोग कराने का मन भी नहीं होता। जानता हूँ कि हकलाते हुए लिख रहा हूँ……..फिर सोचता हूँ कि लिख तो रहा हूँ। मैं बढ़ी रचनाएँ लिखने का आदी हूँ और इस हालत में वह संभव नहीं है, और जब कोई मेरे कम्प्यूटर में हिंदी का फॉण्ट लोड करके दे जाएगा तभी कहानी और व्यंग्य लिख सकता हूँ । मैं स्वयं नहीं कर पाता क्योंकि मैं इसका इतना जानकार नहीं हूँ और भय भी लगता है कि कहीं कम्प्यूटर में खराबी न आ जाये और इससे भी चले जाएँ । तब तक हकलाते हुए लिखना जारी रहेगा।

मोबाइल है पर टाक टाईम नहीं


NARAD:Hindi Blog Aggregator
मित्रों, रिश्तेदारों और सहयोगियों के कहने पर हमने मोबाइल जरूर खरीद लिया, पर अब हमें लगता है कि लोगों ने हमें नया छात्र समझकर ख़ूब रैगिंग ले ली। ९९९ में लाईफ टाईम इन कमिंग और २५० के टाक टाईम की सिम हमने डलवायी और अब हमारा टाक टाईम केवल २१ रुपये का रह गया। इसमें आश्चर्य की क्या बात? आप सवाल उठाएँगे ?

जवाब यह कि हमने उसका उपयोग किसी खास काम के लिए नहीं किया क्योंकि लोगों के मिस काल फेस करते-करते ही पूरा टाक टाईम खत्म हो गया।हुआ यह कि हमने अपना नंबर उन सबको दे दिया जिनको हमारी और जिन्हें हमारी आवश्यकता होती थी पर सबने मिलकर ऐसा खेल खेला कि अब हम यह सोच रहे हैं कि नया टाक टाइम् अब लायें ही नहीं । लोग अपने काम तक की बात के लिए भी मिस काल देते हैं और उन्हें संकोच नहीं होता यह कहते हुए कि हमारे इसमें टाक टाईम नहीं है।

जिसे देखो वही मिस कल दे रहा है और हम फोन करके पूछते तो जवाब मिलता है हमने तो यों ही मिस काल दीं थी कि अगर बात करनी हो तो काल लगा लो । या कहेंगे कि हमारे इसमें टाक टाइम् ज्यादा नहीं है तो सोचा तुम्हें मिस काल दे दें तो तुम्हीं बात कर लोगे । घर पर रिश्तेदारों के बच्चे आये और उन्हें अपने माता-पिता से बात करनी थी तो हमसे फोन लेकर लगाने लगे ।

हमने कहा-“मिस काल लगा दो , तुम्हारे माँ-पिता स्वयं ही बात कर लेंगे “।

बच्चे बोले -” हमारे मोबाइल में टाक टाईम नहीं है ।”

हमने कहा-“पापा से कहों कि टाक टाईम डलवा लें । भाई ऐसा मोबाइल किस काम का जिसमें तक टाईम नहीं हो ।”

बच्चे बोले -“पापा कहते हैं कि अब मैं नहीं टाक टाईम नहीं डलवाऊंगा क्योंकि तुम लोग फ़ालतू बात ज्यादा करते हो।”

हमने उनको बात करने कि इजाजत दे दीं और हमारा बीस रूपये का टाक टाईम खत्म हो गया। हमारे घर से कई ऐसे रिश्तेदारों ने फोन किये जो हमें केवल मिस काल करते थे। हम उनसे कहते कि भई तुम अपने घर मिस काल ही लगाओ तो बस एक ही जवाब है कि उसमें टाक टाईम नहीं है । उस दिन तो हद हो गयी हमारे एक ऐसे अजीज रिश्तेदार ने फोन किया जिसे हम यह कह ही नहीं सकते कि तुमने मिस काल क्यों दीं, सीधे काल क्यों नहीं की ।

उनके मिस कल हमने उन्हें फोन किया तो वह बोले-“हम तो हैं गरीब आदमी , मोबाइल में केवल इतना ही टाक टाईम डलवाया है कि लोगों को मिस काल कर सकूं। “

वह सरासर झूठ बोल रहे थे पर रिश्ता ऐसा था कि हम कह नहीं सकते थे कि भाई बिना टाक टाईम का यह कैसा मोबाईल चला रहे हो , और फिर तुम्हारा काम था हम क्यों पैसा खर्च करे।

हालांकि हमने अब मिस कालों का जवाब देना ही बंद कर दिया है। अगर कोई घंटी चलकर बंद हो जाती है तो फिर हम नंबर भी नही पढ़ते कि किसने किया था सीधे डीलिट कर देते हैं । ऐसे मोबाइल वालों से क्या बात करना जिनके पास टाक टाईम नहीं है ।