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लेखक की स्मरण शक्ति मित्र भी होती है और शत्रु भी-चिंतन


होली का हल्ला थम चुका है। कोई नशे में मदहोश होकर तो कोई रंग खेलते हुए थककर सो रहा है तो कोई मस्ती में अभी भी झूम रहा है कि उसके खुश होने का कोटा पूरा हो जाये। सब इस दुनिया से बेखबर होना चाहते हैं मगर कुछ लोग फिर भी हैं जो चिन्त्तन करते हैं। आम आदमी की याददाश्त कमजोर होती है पर एक लेखक की स्मरण शक्ति ही उसकी मित्र होती है-कुछ मायनों में दुश्मन भी।

चेतावनियों के स्वर कानों में गूँज रहे हैं और आंखों के सामने अखबारों में छपे गर्मी के आसन्न संकट के शब्द घूम रहे हैं। इस होली पर पानी खूब उडाया गया होगा। इसमें किसी ने कोई हमदर्दी नहीं दिखाई। अब आरही है गर्मी। पहले से ही दस्तक दे चुकी है और उसका जो भयानक रूप सामने आने वाला है वह हर वर्ष हम देखते हैं। गर्मी में पानी की कमीं के हर जगह से समाचार आयेंगे। कहीं आन्दोलन होगा। लोगों के हृदय में उष्णता उत्पन्न होगी और उसका ध्यान बंटाने के लिए बहुत सारे अन्य अर्थहीन विषय उठाये जायेंगे।

कभी-कभी लगता है देश में कोई समस्या ही नहीं है केवल दिखावा है। लोग पानी को रोते हैं पर फैलाते भी खूब हैं। देश के शहरों में सबके पास मोबाइल दिखता है उस पर बातें करते हैं। कौन है जो देश की हालत पर रोता है। कहीं से किसानों की आत्महत्या की खबर आती है पर कहीं कोई प्रतिक्रिया नहीं होती। सब कुछ सामान्य चलता दिख रहा है। लोग घुट-घुटकर जी रहे हैं पर बाहर से दिखता है कि सामान्य हैं। लोग चीख रहे हैं पर कोई किसी की नहीं सुन रहा है। किसी से ज्ञान चर्चा करना निरर्थक लगता है क्योंकि वह अगले ही पर अपने अज्ञान का परिचय देता है।

वैचारिक रूप से दायरों में सिमट गए लोगों से अब बात करना मुश्किल लगता है। जिसके पास जाओ वह या तो अपने घर की परेशानी बताता है या वह उसकी किसी भौतिक उपलब्धि का बयान करता है। में खामोश होकर सुनता हूँ। मुझे अपने घर-परिवार के जो काम करने हैं उनको करता हूँ। जो चीजें लाना होता है लाता हूँ पर उनका बखान नहीं करता।
”सुनो कल मैं मेले गया था वहाँ से नया फ्रिज ले आया।”
”मैंने अपने बेटे को गाडी दिलवा दी।”
”मैंने अपनी बेटी को मोबाइल दिलाया है।”
सब सुनता हूँ। फिर करते हैं देशकाल और राजनीति की बातें-जैसे कि बहुत बडे ज्ञाता हों। जब बताओ कि किस तरह सब जगह तयशुदा कार्यक्रम के अनुसार उनकी बुद्धि को संचालित किया जा रहा है। समाचार उनको इस तरह दिए जा रहे हैं कि देश, समाज और लोगों की यथास्थिति बनी रहे और वह उसमें बदलाव की नहीं सोचें। बदलाव की बात कोई सोच कर वह कई लोगों के लिए परेशानी पैदा करेंगे। व्यवस्था में सुधार की बातें पर बहुत की जातीं हैं पर बदलाव की नहीं। तमाम तरह के वादे और नारे गढे गए और भी गढे जायेंगे।

कभी-कभी उकता जाता हूँ, फिर सोचता हूँ कि सब मेरी तरह नहीं हो सकते। अपने जैसे लोगों का संपर्क ढूँढता हूँ और जब वह मिलते हैं तो लगता है कि वह भी इस दुनिया से क्षुब्ध हैं पर बदलाव की बात पर वह भी उदास हो जाते हैं उनको नहीं लगता कि वह उसे बदल सकते हैं और खुद को भी बदलने पर अपने साथ जुडे लोगों के विद्रोह का भय उन्हें सताता है-जिसे मोह भी कह सकते हैं।

कहीं एकांत मंदिर में जाकर बैठता हूँ और ध्यान लगाता हूँ। श्रीगीता में श्री कृष्ण जी के यह शब्द ”गुण ही गुण को बरतते हैं” मुझे याद आते है। मेरे अधरों पर मुस्कराहट खेल जाती है। मन प्रसन्न हो जाता है। भला मैं दूसरों से क्या अपेक्षा करूं। दूसरे के अन्दर गुणों का मैं नियंत्रणकर्ता नहीं हो सकता। जो गुण उसमें है नहीं और वह पैदा भी नहीं कर सकता उससे भला मैं क्यों कोइ अपेक्षा करूं। मैं निर्लिप्त भाव को प्राप्त होता हूँ। यह दुनिया मेरी नहीं है बल्कि मैं इसमें हूँ। वह चलती रहेगी उसके साथ मुझे चलना है और उसे दृष्टा बनकर चलते देखना है। लोगों को अपने मन ,बुद्धि और अहंकार के वश में पडा देख कर उनका अभिनय देखना है। धीरे-धीरे मन की व्यग्रता ख़त्म हो जाती है।

ऐसी जोरदार कविता लिखो-कविता साहित्य


तुम्हारे अंतर्मन में पल रहे दर्द
तुम्हारे मस्तिष्क चल रहे द्वंद से
बन रहे काव्यात्मक शब्द
चौराहे पर जब सुने जाएं
तो लोग स्तब्ध रह जाएं
ऐसी जोरदार कविता लिखो

फल सब्जी की तरह शब्दों की
दलाली करने वालों के तंबू
तुम्हारे तेज से उखाड़ने लगें
असल माल की जगह
नक़ल माल बेचने की तरह
अपने शब्द बेचने वालों को
तुमसे होने लगे ईर्ष्या
ऐसी जोरदार कविता लिखो

दिखते हैं बाहर से ताक़तवर
अन्दर से हैं एकदम खोखले
लोग उनकी छबि से व्यर्थ डरते है
इसलिए उधार के लिए शब्दों लेकर
कुछ लोग उन पर राज्य करते हैं
तुम अपने पसीन से नहाए
जो तुम्हारे दिल में गायें
छद्म रूप धरने वालों को डरा सकें
ऐसी जोरदार कविता लिखो

जजबातों का व्यापार करते हैं
उनके दिल होते हैं खाली
लिखने-पढ़ने के लिए
शब्दों को ऐसे बिछाएं जैसे भोजन की थाली
तुम्हारे शब्दों के प्रहार से
विचलित हो जाएं
जहाँ से निकलें तुहरे शब्द निकलें
उस रास्ते को वह छोड़ दें
ऐसी जोरदार कविता लिखो

प्रभावशाली लोग और चाटुकारिता


अमेरिका के कुछ पत्रिकाएँ विश्व के प्रभावशाली लोगों की सूची जारी करती हैं और उनके प्रभाव के अनुसार उनका क्रम होता है। इसमें किसी देश के राष्ट्र प्रमुख का नाम नही होता बल्कि सभी नामी उधोगपति और पूंजीपतियों के नाम होते हैं। इसका सीधा अर्थ यही है कि जिसके पास जितना पैसा है वही प्रभावशाली हो सकता है। सभी धनपति और उधोगपति प्रभावशाली नहीं हो सकते पर प्रभावशाली का धनपति और उधोगपति होना जरूरी है।
इन सूचियों में जो नाम होते हैं उनकी चर्चा आम लोगो में नहीं होती क्योंकि उनका इन लोगों से कोई सीधे सरोकार नहीं होता पर जो उनके ‘प्रभाव क्षेत्र’ में होते हैं वह आम आदमी का ही नही बल्कि समाज और देश का भविष्य तय करते हैं। कई लोगों को गलतफ़हमी होती है कि अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य यूरोपीय देशो के राज प्रमुख दुनिया से सबसे ताक़तवर और प्रभावशाली लोग हैं उन्हें ऎसी रिपोर्ट बडे ध्यान से पढ़ना चाहिए।

हमारे देश में अगर आप किसी व्यक्ति से प्रभावशाली लोगों के बारे में सवाल करेंगे तो वह अपने विचार के अनुसार अलग-अलग तरह के प्रभाव के रुप बताएंगे। आम आदमी की दृष्टि में प्रभाव का सीधा अर्थ है ‘पहुंच’। किसी को अपनी गाडी के लिए आर.टी.ओ.से नंबर लेना है तो वह बाहर बैठे दलाल को ही प्रभावशाली मानने लगता है। छोटा व्यापारी सरकारी दफ्तरों में अपने काम के लिए ऐसे लोगों को ढूँढते हैं जो वहां से उनका काम सरलता से और मन के मुताबिक हो सकें। अब क्लर्क हो या चपरासी वह भी उनके लिए प्रभावशाली होता है। सडक पर अपना काम चलाने वाले गरीब लोगों के लिए वही व्यक्ति प्रभावशाली वाला है जो उनका ठीया और धंधा बनाए रखने में सहायक हो और भले ही इसके लिए वह कुछ लेता हो।

सरकारी कामों में कठिनाई और लंबी प्रक्रिया के चलते इस देश में उसी व्यक्ति को प्रभावशाली माना जाता रहा है जो जिसकी वहाँ पहुंच रहा हो और मैंने देखा है कि दलाल टाईप के लोग भी ‘प्रभावशाली ‘ जैसी छबि बना लेते हैं। अब जैसे-जैसे निजीकरण बढ़ रहा है वैसे ही उन लोगों की भी पूछ परख बढ़ रही है जो धनाढ्य लोगों के मुहँ लगे हैं, क्योंकि वह भी अपने यहाँ लोगों को नौकरी पर लगवाने और निकलवाने की ताक़त रखने लगे हैं। हर जगह तथाकथित रुप से प्रभावशाली लोगों का जमावड़ा है और तय बात है कि वहाँ चाटुकारिता भी है। प्रभावशीलता और चाटुकारिता का चोली दामन का साथ है। सही मायने में वही व्यक्ति प्रभावशाली है जिसके आसपास चाटुकारों का जमावड़ा है-क्योंकि यही लोगों वह काम करके लाते हैं जो प्रभावी व्यक्ति स्वयं नहीं कर सकता है। वैसे भी हमारे देश में बचपन से ही अपने छोटे और बड़ी होने का अहसास इस तरह भर दिया जाता है कि आदमी उम्र भर इसके साथ जीता है और इसी कारण तो कई लोग इसलिये प्रभावशाली बन जाते हैं क्योंकि वह लोगों के ऐसे छोटे-मोटे कम पैसे लेकर करवा देते हैं जो वह स्वयं ही करा सकते हैं-जिसे दलाल या एजेंट काम भी कहा जाता है और लोग उनका इसलिये भी डरकर सम्मान करते हैं कि पता नहीं कब इस आदमी में काम पड़ जाये और ऐसे छद्म लोगों की कोई संख्या कम नहीं है।
मुझे याद है कि जब मैं छोटा था तो प्रभावशाली व्यक्ति की दुकान हमारे पास ही थी जिसके पास अनेक सरकारी महकमों के कर्मचारी और अधिकारी आते थे। इसी कारण उसे पहुंच वाला माना जाता था। मेरे ताऊ अपने सरकारी कामों के लिए उसके पास जाते थे-वह काम तो करा था पर साथ में पैसे भी लेता था।। मेरे पिताजी को शक था कि वह उसमें से कमा रहा है। मेरे पिताजी ताऊ जीं से कहते कि ‘लाओ मैं काम कराकर लता हूँ’ तो ताऊ कहते थे कि नही’तुम उसे उलझा और दोगे हम न तो पढे-लिखे हैं न जानकार। वह भी पढ-लिखा नहीं है पर पहुंच वाला तो है’।
मेरे पिताजी ज्यादा पढे लिखे नहीं थे पर जीवन से संघर्ष करने का मादा उनमें ख़ूब था और वह कहते थे कि ‘कई लोग ऐसे हैं जो लोगों के अपढ़ और सीधे होने का फायदा उठाते हैं। लग अपने अक्ल , मेहनत और ताक़त पर यकीन करें तो उन्हें किसी की चाटुकारिता की जरूरत नहीं है।’
मैं बड़ा हुआ और पिताजी के स्वभाव और भगवन भक्ति ने जहाँ संघर्ष करने के शक्ति दीं और वहीं लेखक भी बन गए। कई अखबारों में जब रचनाएं छपतीं तो उन्हें पढ़कर उसी तथाकथित प्रभावशाली आदमी का भतीजा मेरे मित्र बन गया और उसने जो अपने चाचा की पोल खोली तब मेरे समझ में आया कि उसका प्रभाव छलावे से अधिक कुछ नहीं था और मेरे पिताजी का अनुमान सही था। तब से तय किया कि अपने से उम्र में बडे, अधिक ज्ञानी, गुणी और सज्जन का सम्मान तो करेंगे पर चाटुकारिता नहीं करेंगे क्योंकि इस धरती पर उस ‘सर्वशक्तिमान’ के अलावा और कोई प्रभावशाली हो नहीं सकता जिसने सबको जीवन दिया है।
हमारे देश के पत्र-पत्रिकाओं में ऐसी सूचियां नही छपती। हमारे देश के लोग कितनी भी गरीबी, बीमारी और कठिनाई से जूझ रहे हों पर उस’सर्वशक्तिमान’ के अलावा किसी दूसरे व्यक्ति को प्रभावशली नहीं मान सकते-इस सत्य को सब जानते है। अगर हमारे देश के पत्र-पत्रिकाएं ऐसी सूचियां छापेंगे तो वह लोग नाराज हो जायेंगे जिनको खुश रखने लिए यह जारी की जायेंगी-क्योंकि उनको लगेगा कि देश की जनता उनका मजाक उडा रही है। इसलिये विदेशी अखबारों की कतरनों का छाप कर काम चला रहे हैं।