अपनी उम्मीद अपने हाथ में फैलाये
जिनका पेट लूट के सामानों से
कभी भरता नहीं है,
पत्थर का ज़मीर पाले हैं वह लोग
जो कभी पैदा न हुआ
इसलिये मरता भी नहीं है।
———-
फुर्सत नहीं है उनके पास
लूट के सामान घर में भरने से,
इश्तहार जरूर देते हैं
अपनी बहादुरी के कारनामों से
मगर पल पल दिल में डरते हैं
अपने मरने से।
———–
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका