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चाणक्य नीति:बिना पूछे दान देना अधर्म का कार्य



१.पाँव धोने का जल और संध्या के उपरांत शेष जल विकारों से युक्त हो जाता अत: उसे उपयोग में लाना अत्यंत निकृष्ट होता है। पत्थर पर चंदन घिसकर लगाना और अपना ही मुख पानी में देखना भी अशुभ माना गया है।
२.बिना बुलाए किसी के घर जाने की बात, बिना पूछे दान देना और दो व्यक्तियों के बीच वार्तालाप में बोल पडना भी अधर्म कार्य माना जाता है।
३.शंख का पिता रत्नों की खदान है। माता लक्ष्मी है फिर भी वह शंख भीख माँगता है तो उसमें उसके भाग्य का ही खेल कहा जा सकता है।
४.उपकार करने वाले पर प्रत्युपकार, मारने वाले को दण्ड दुष्ट और शठ के सख्ती का व्यवहार कर ही मनुष्य अपनी रक्षा कर सकता है। 1

चाणक्य नीति:निम्न कोटि के व्यक्ति से भी सीखना पडे तो संकोच न करें


1.ईर्ष्या असफलता का दूसरा नाम है। अपनी असफलता और दूसरे की सफलता से मनुष्य ईर्ष्यालु हो जाता। ईर्ष्याग्रस्त मनुष्य महत्वहीन होता है, अतएव ईर्ष्या करना अपना महत्व घटाता है,हजारों गायों के बीच बछ्दा केवल अपने माँ के पास जाता है, इसी प्रकार मनुष्य का कर्म भी उसी में पाया जाता है, जो उसका कर्ता होता है। कर्ता कर्म का फल भोगे बिना कैसे रह सकता है ।

2.ईश्वर ने सोने में सुगंध नहीं डाली, गन्ने में फल नहीं लगाए, चन्दन के पेड को फूलों से नहीं सजाया , विद्वान को धन से संपन्न नहीं बनाया और राजा को दीर्घायु प्रदान नहीं की। इनके साथ इस तरह के अभाव का रहस्य का कारण यही है इन वस्तुओं के उपयोग के साथ और मनुष्यों में उसकी प्रवृति में दुरूपयोग और अहंकार का भाव पैदा न हो। अगर इससे ज्यादा गुण होते तो यह दोनों के लिए घातक होता।

3.यदि गंदे स्थान पर सोना पडा है उसे उठाने में गुरेज नहीं करना नहीं चाहिए, क्योंकि वह कीमती हैं। यदि विद्या निम्न कोटि के व्यक्ति से भी सीखना पडे तो संकोच नहीं करना चाहिए, क्योंकि वह उपयोगी होती है। यदि विष से अमृत मिलता है जरूर प्राप्त करना चाहिए।
*इसका आशय यह है हमें अगर ज्ञान अपने लघु व्यक्ति से मिलता हो तो उसे ग्रहण करना चाहिऐ। सज्जन व्यक्ति से अगर वह गरीब भी है तो संपर्क करना चाहिए। आगे व्यक्ति गुणी है पर निम्न जति या वर्ग है तो भी उसकी प्रशंसा करना चाहिए।
युवावस्था में काम-क्रोध हावी होते हैं, इसी कारण व्यक्ति की विवेक शक्ति निष्क्रिय हो जाती है। काम वासना से व्यक्ति को कुछ नहीं सूझता। काम-क्रोध व्यक्ति को अँधा कर देता है।
4.धूर्तता, अन्याय और बैईमानी आदि से अर्जित धन से संपन्न आदमी अधिक से अधिक दस वर्ष तक संपन्न रह सकता है, ग्यारहवें वर्ष में मूल के साथ-साथ पूरा अर्जित धन नष्ट हो जाता है।

*इसका सीधा आशय यह है कि भ्रष्ट और गलत तरीके से कमाया गया पैसा दस वर्ष तक ही सुख दे सकता है, हो सकता है कि इससे पहले ही वह नष्ट हो जाय।

चाणक्य नीतिःविद्यार्थियों को ‘अतिसेवा’ से दूर रहना चाहिए


1.जिन व्यक्तियों के पास विद्या, दान, शील तप के गुण नहीं हैं वह व्यक्ति इस पृथ्वी पर बोझ है और वह पशु के समान ही जीवन व्यतीत करता है।
2.विद्याध्यन कर रहे व्यक्ति के लिये आवश्यक है कि अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए काम, क्रोध, लोभ, स्वाद,श्रृंगार, कौतुक, अतिनिद्रा और अतिसेवा से का त्याग कर दे।
3.धन संपत्ति अपनी होकर भी अगर वह दूसरे के पास पड़ी रहे और ऐन वक्त काम न आये तो ऐसे धनवान होने का क्या लाभ? उसी प्रकार पुस्तक में लिखी विद्या भी किस काम की जब तक पढ़कर उसका सदुपयोग न किया जाये।
4.जिस प्रकार पानी की बूंद से घड़ा भर जाता है उसी प्रकार नियमित रूप से अभ्यास करने से विद्या की प्राप्ति भी हो जाती है।

वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-शिक्षा के दौरान छात्रों को जीवन का आनंद उठाने के लिये आजकल अनेक अवसर प्रदान किये जाते हैं। कहीं पिकनिक तो कहीं पिक्चर दिखाने के लिए विद्यालयों की तरफ से कार्यक्रम बनाये जाते हैं। कठ विद्यालयों के विज्ञापन में छात्रों के शिक्षा और खेलकूद के अलावा अन्य सुविधाओं की जानकारी भी दी जाती है। अनेक बार ऐसे समाचार भी आते हैं कि अपने विद्यालय के साथी छात्रों और शिक्षकों के साथ बाहर घूमने गये छात्र-छात्राऐं हादसे के शिकार हो जाते हैं। कुछ लोग मानते हैं कि घूमने-फिरने और युवावस्था के आनंद उठाने के लिये भी वही आयु है जो छात्र जीवन की है। यह विचार गलत है। देखा जाये तो जीवन में आनंद के अवसर तो नितांत आते हैं नहीं तो छात्रों के साथ शिक्षक क्यों ऐसे कार्यक्रमों में जाते हैं? क्या वह आनंद नहीं उठाते। आज के बाजार युग में तो अनेक विज्ञापन ही छात्र-छात्राओं को उपभोक्ता मानकर फिल्माये जाते हैं जिसमें यह बताया जाता है कि किस तरह वह वस्तुओं उपभोग कर एश कर सकते हैं। इससे लोगों में यह भ्रम हो जाता है कि यह उम्र मजे करने के लिऐ हैं।

चाणक्य नीति:क्रोध है यमराज के समान


1.क्रोध यमराज के समान है, उसके कारण मनुष्य मृत्यु की गोद में चला जाता है। तृष्णा वैतरणी नदी की तरह है जिसके कारण मनुष्य को सदैव कष्ट उठाने पड़ते हैं। विद्या कामधेनु के समान है । मनुष्य अगर भलीभांति शिक्षा प्राप्त करे को वह कहीं भी और कभी भी फल प्रदान कर सकती है।
2.संतोष नन्दन वन के समान है। मनुष्य अगर अपने अन्दर उसे स्थापित करे तो उसे वैसे ही सुख मिलेगा जैसे नन्दन वन में मिलता है।

नोट-यह पत्रिका कहीं भी लिंक कर दिखाने की अनुमति नहीं है. दीपक भारतदीप, ग्वालियर

चाणक्य नीति:कार्य सिद्धि बगुले से सीखें


१.चलती हुई बैलगाडी से पांच हाथ, घोडे से दस हाथ और हाथी से सौ हाथ दूर रहें.
2. यदि आप सफलता हासिल करना चाहते हैं तो गोपनीयता रखना सीख लें. जब किसी कार्य की सिद्धि के लिए कोई योजना बना रहे हैं तो उसके कार्यान्वयन और सफल होने तक उसे गुप्त रखने का मन्त्र आना चाहिए. अन्य लोगों की जानकारी में अगर आपकी योजना आ गयी तो वह उसमें सफलता संदिग्ध हो जायेगी.

3.प्रत्येक व्यक्ति को स्वाध्याय अवश्य करना चाहिए. उसे प्रतिदिन धर्म शास्त्रों का कम से कम एक श्लोक अवश्य पढ़ना चाहिए. इससे व्यक्ति को ज्ञान प्राप्त होता है और उसका भला होता है.

4.विवेकवान मनुष्य को जन्मदाता, दीक्षा देकर ज्ञान देने वाले गुरु, रोजगार देने वाले स्वामी एवं विपत्ति में सहायता करने वाले संरक्षक को सदा आदर देना चाहिए.

5.मनुष्य को चाहिए की कोई कार्य छोटा हो या बड़ा उसे मन लगाकर करे. आधे दिल व उत्साह से किये गए कार्य में कभी सफलता नहीं मिलती. पूरी शक्ति लगाकर अपने प्राणों की बाजी लगाकर कार्य करने का भाव शेर से सीखना चाहिए.

6.अपनी सारी इन्द्रियों को नियंत्रण में कर स्थान, समय और अपनी शक्ति का अनुमान लगाकर कार्य सिद्धि के लिए जुटना बगुले से सीखना चाहिए.

समाज को काटकर कल्याण के लिए सजाते-व्यंग्य कविता


समाज को काटकर कल्याण के लिए सजाते-व्यंग्य कविता
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समाज को टुकडों-टुकडों में बांटकर
उसे अब दिखाने के लिए वह सजाते
हर टुकड़े पर लगते मिटटी का लेप
और रंग-बिरंगा बनाते

बालक, वृद्ध, महिला, युवा, और अधेड़ के
कल्याण की लगाते तख्तिया और
उनके कल्याण के लिए बस
तरह-तरह के नारे लगाते
इन्हीं टुकडों में लोग अपनी पहचान तलाशते
स्त्री से पुरुष का
जवान से वृद्ध का भी हित होगा
इस सोच से परे होकर
कर रहे हैं दिखावे का कल्याण
फिर भी समाज जस का तस है
चहूँ और चल रहा अभियान
असली मकसद तो अपने घर भरना
वाद और नारा है कल्याण
अगर समाज एक थाली की तरह सजा होता
तो दिखाने के लिए भरने पड़ते पकवान
टुकडों में बाँट कर छेडा है जोड़ने का अभियान
अब कोई पूछता है तरक्की का हिसाब तो
समाज के टुकडों को जोड़ता दिखाते

तोड़ने और बांटने की कला
देखकर अब तो अंग्रेज भी शर्माते
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जिन के सिर पर होता कोहिनूर चैन से होते वही दूर-कविता साहित्य
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कई लोग लड़ते हैं जंग
सभी को हमेशा सिंहासन
नसीब नहीं होता
अगर मिल भी जाये तो
उस पर बैठना कठिन होता
चारों तरफ फैला उनका नाम
कदम-कदम पर उनका चलता
दिखता है हुक्म
पर यह एक भ्रम होता

चैन और सब्र से होता दूर
मन का गरीब होता है
तारीख है गवाह इस बात की
खतरे में वही जीते हैं
जिन के सिर कोहिनूर होता
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कभी चले थे साथ-साथ-कविता साहित्य
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कभी चले थे हम साथ-साथ
थामें रहते थे एक-दूसरे का हाथ

एक दूसरे के दिल थे इतने पास
कभी अलग होंगे
यह हमने सोचा ही नहीं था
वक्त गुजरते-गुजरते दूर होते गए
हम पाले रहे याद उनकी
उनके बिना लम्हें खालीपन के साथ

यूं ही गुजरते रहे
कभी दिल भी इतनी दूर होंगे
यह हमने सोचा ही नहीं था
उनकी याद में हमें दिल में
चिराग उम्मीद के जगाये रखे
जब भी उनकी याद आयी
अधरों पर मुस्कान उभर आयी
हम अपने अंधेरों में भी
उनसे रौशनी उधर मांगें
यह हमने सोचा ही नहीं था
जो एक बार उनके
घर के बाहर रोशनी देखी
उस दिन कदम खिंच गए
वह अपनी खुशी में
वह हमें भूल जायेंगे
यह हमने कभी सोचा ही नहीं था
हमें देखकर भी उनके चेहरे पर
मुस्कान नहीं आयी
आखें थी उनकी पथराई
हम खडे थे स्तब्ध
उनके मेहमानों की फेहस्त में
हमारा नाम नहीं था
पास थे हम, पर दूर रहा उनका हाथ
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