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क्रिकेट प्रतियोगिता के लाभार्थियों के नाम जानना भी जरूरी-हिन्दी लेख (cricket and terrism-hindi article)


आखिर सच कहने में बुद्धिजीवी लोग डर क्यों रहे हैं? विश्व भर में फैला आतंकवाद-चाहे भले ही वह जाति, भाषा, धर्म तथा क्षेत्रवाद का लबादा ओढ़े हुए हो-अवैध धन के सहारे चल रहा है। कहीं कहीं तो उसके सरगना स्वयं ही अवैध धंधों  में  लिप्त हैं और कहीं ऐसे धंधे  करने वालों से सुरक्षा और न्याय प्रदान कर फीस के रूप में भारी धन वसूल करते हैं।
अभी भारत में क्रिकेट की क्लब स्तरीय प्रतियोगिता में विदेश स्थित एक माफिया के पैसा लगे होने की बात सामने आ रही है। एक पूर्व सरकारी अधिकारी ने तो यह तक आरोप लगा दिया कि इस प्रतियोगिता में  शामिल टीमों के स्वामी उस माफिया के एजेंट की तौर पर काम कर रहे हैं जिस पर देश के अन्दर आतंकवादियों को आर्थिक सहायता देने का आरोप है।
सच तो यह है कि संगठित प्रचार माध्यम-टीवी चैनल, रेडियो तथा समाचार पत्र पत्रिकायें-जहां इस प्रतियोगिता के विज्ञापनों से लाभान्वित होकर इसे अधिक महत्व दे रहे हैं पर उंगलियां इशारों में उठा रहे हैं। इस प्रतियोगिता में काले पैसे को सफेद करने के प्रयास तथा मैचों पर सट्टेबाजों की पकड़ होने के आरोप इन्हीं प्रचार माध्यमों में लगे हैं। मगर यह काफी नहीं है। धन कहां से आया इस पर तो कानून की नज़र है पर अब इस बात पर भी चर्चा करना चाहिये कि यह धन जा कहां रहा है। जो लोग प्रत्यक्ष इससे लाभान्वित हैं उन पर सरकार के आर्थिक विषयों से संबंधित विभाव कार्यवाही करेंगे पर जिनको अप्रत्यक्ष से लाभ मिला उनको देखा जाना भी जरूरी है।
जिन अपराधियों और माफियाओं पर भारत में आतंकवाद के प्रायोजित होने का आरोप है उन्हीं का पैसा इस क्लब स्तरीय प्रतियोगिता में लगे होने का आरोप है। इसका आशय यह है कि वह यहां से पैसा कमा कर फिर आतंकवादियों को ही देंगे। जिन सफेदपोशों पर इन माफियाओं से संबद्ध होने का आरोप है स्पष्टतः वह भी इसी दायरे में आते हैं।
याद रखिये अमेरिका में 9/11 हमले में कल्कत्ता के अपहरण कांड में वसूल की गयी फिरौती का धन लगने का भी आरोप लगा था। उसके बाद भारत में भी 26/11 के हमले में भी हमलावारों को माफिया और अपराधी के द्वारा धन और हथियार देने की बात सामने आयी। जब भारत में आतंकवाद फैलाना तथा प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से संबंध रखना अपराध है तब आखिर वह सफेदपोश लोग कैसे उससे बचे रह सकते हैं। इस तरह की चर्चा में संगठित प्रचार माध्यम इन सफेदपाशों पर इस तरह उंगली उठाने से बच रहे हैं क्योंकि यह कहीं न कहीं प्रत्यक्ष रूप से उनके विज्ञापनों का आधार है। जब किसी आतंकवादी की सहायता को लेकर कोई सामान्य आदमी पकड़ा जाता है तो उसकी खूब चर्चा होती है पर जिन पर आतंकवादियों के घोषित भामाशाह के होने का आरोप है उनसे प्रत्यक्ष साझेदारी के संबंध रखने वालों की तरफ कोई भी उंगली नहीं  उठती। इतना ही नहीं उस अपराधी के दरबार में नृत्य कर चुके अनेक अदाकार तो जनप्रतिनिधि होने का भी गौरव प्राप्त कर चुके हैं।
संगठित प्रचार माध्यमों के ही अनुसार इस क्लब स्तरीय प्रतियोगिता से देश के अनेक युवक सट्टा खेलकर बर्बाद हो रहे हैं। इस पर चिंता होना स्वाभाविक है। अगर प्रतियोगिता में ऐसा हो रहा है तो उसे रोका जाना चाहिए। मगर इस बात की भी जांच करना चाहिए कि इसका लाभ किसे मिल रहा है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस देश में कहीं कोई आर्थिक लेनदेन करने पर अपना सरकार की नज़र से छिपाने का प्रयास नहीं  करना चाहिऐ। विनिवेश गुप्त रखना वह भी राज्य से कभी स्वीकार नहीं किया जा सकता। दान गुप्त हो सकता है पर देने वाला अपना नाम रख सकता है लेने वाले को इससे बरी नहीं किया जा सकता। जिस तरह इन टीमों के स्वामियों के नाम पर गोपनीयता बरती गयी हैं वह उसे अधिक संदेहपूर्ण बनाती है। कथित रूप से क्रिकेट को सभ्य लोगों का खेल कहा जा सकता है पर इसके धंधेबाज केवल इसलिये सभ्य नहीं हो जाते।
जिस तरह संगठित प्रचार माध्यम इस घटना पर नज़र रखे हुए हैं और केवल आर्थिक पक्ष पर ही अपने विचार व्यक्त कर रहे हैं उससे तो लगता है कि उनमें अनुभव की कमी है या अपने सफेदपोश दानदाताओं-अजी, इस क्लब स्तरीय प्रतियोगिता में कथित रूप से चैरिटी भी शामिल की गयी है इसलिये हम विज्ञापनदाताओं को इस नाम से भी संबोधित कर सकते हैं-के मासूम चेहरे देखकर आतंक जैसा घृणित शब्द उपयोग  करने से बच रहे हैं। जबकि सच यही है कि अगर इस प्रतियोगिता में काला धन है, काले लोग कमाई कर रहे हैं और सफेदपोश उनके अभिकर्ता की तरह काम रहे हैं तो यह भी देखा जाना चाहिए कि उनकी कमाई का हिस्सा आतंकवादियों के पास भी जाता है। कभी कभी यह बात अपने सफेदपोशों को बता दिया करें कि उनकी इस मासूम चेहरे पर हमेशा ही नहीं पिघला जा सकता है क्योंकि जिस काले आदमी से उनके संबंधों की बात आती है और हर कमाऊ धंधे में उसका नाम जुड़े होने के साथ ही उस आतंकवादियों का प्रायोजक होने की भी आरोप हैं।

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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com

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महान बुझे चिराग-व्यंग्य चिंतन (mahan bujhe chira-hindi vyangya chitan)


महान होने का मतलब क्या होता है? कम से कम हम इसका आशय तो उसी व्यक्ति से लेते हैं जिसने अपनी मेहनत, लगन तथा चिंतन के आधार पर कोई ऐसी उपलब्धि हासिल की हो जिससे समाज का भला हुआ हो या उसे फिर गौरवान्वित किया हो। अगर किसी ने नित्य प्रतिदिन अपना स्वाभावाविक कर्तव्य पूरा करते हुए केवल अपने लिये ही उपलब्धि प्राप्त की हो तो उसे महान कतई नहीं माना जा सकता। समाज हमेशा ही अपनी रक्षा, विकास तथा निर्देशन के लिये महान आत्माओं का धारण करने वाली देहों को देखकर अपना मन प्रसन्न करना चाहता है।
यही से शुरु होता है वह खेल जिसे बाजार अपने ढंग से खेलता है। अपने देश में महान लोगों की इज्जत होती है पर महान होना कोई आसान काम नहीं है। महान बनते बनते लोगों ने अपने घर और व्यवसाय तक त्याग डाले। उनकी तपस्या ने समाज को जो दिया वह एक अक्षुण्ण संपदा बन गया। मगर हमेशा ऐसा नहीं होता। कहते हैं न कि हजारों साल धरती जब तरसती है तब कहीं जाकर उसकी झोली में एक दो दिलदार आकर गिरता है।
मगर बाजार क्या करे? उसे तो रोज कोई न कोई महान आदमी चाहिए। देवता नहीं तो राक्षस, दानी न मिले तो अपराधी और समाज को लिये कुछ न करने वाला न मिले तो अपने लिये करने वाला भी चलेगा। बाजार की ताकत इतनी अधिक है कि अगर कोई स्वयं वाकई महान काम कर चुका हो तो भी उसके मुंह से दूसरे का नाम महान के रूप में रखवा ले।
किसी अपराधी को खूंखार कहना भी उसकी एक तरह से प्रशंसा करना है। जब विदेश में बैठे अपराधी भारतीय प्रचार माध्यमों में अपने साथ ‘खूंखार’ की उपाधि लगते हुए देखतेे होंगे तो खुश होते होंगे। अपराधी तो अपराधी होता है-छोटा क्या बड़ा क्या, खूंखार क्या रहम दिल क्या?
अगर यहां चलते फिरते किसी दादा से कहो कि तुम अपराधी हो तो वह लड़ने दौड़ेगा। अगर आप उससे कहो कि तुम खूंखार अपराधी हो तो वह हंसकर कहेगा-‘तो मुझसे डरते क्यों नहीं।’
टीवी चैनलों पर रोज हर क्षेत्र में महानतम नाम आते हैं। बाजार अपने लिये ही कई ऐसी प्रतियोगितायें कराता है जिसमें विजेता के नाम पर उसे महानतम लोग मिल जाते हैं। विश्व सुंदरी और अन्य खेल प्रतियोगिताओं में उसे ऐसी महानतम हस्तियां हर वर्ष मिल जाती हैं। उनके देश को क्या मिला? इससे बाजार मतलब नहीं रखता। प्रचार तंत्र भी इसी बाजार का अभिन्न हिस्सा है। यही प्रचारतंत्र उससे विज्ञापन पाता है तो उसके सौदागरों को भी महान धनी, दानी, और होशियार बताकर प्रशंसा प्रदान करता है। ऐसे में यह कहना कठिन होता है कि प्रचार तंत्र बाजार को चला रहा है या बाजार उसको। कल्पित नायकों की फौज महानतम बन गयी है। फिल्मों के नायक और खेलों के खिलाड़ियों में अब अधिक अंतर नहीं दिखाई देता। फिल्मी हस्तियां क्रिकेट मैच करवा रही हैं तो क्रिकेट खिलाड़ी कही रैम्प पर नाचते हैं तो कहीं टीवी चैनलों पर हास्य प्रतियोगिताओं के निर्णायक बन रहे हैं। सब महानतम हैं। भारत में कोई पैदा हुआ पर काम करता है अमेरिका में। उसे नोबल पुरस्कार मिला तो बस प्रचारतंत्र लग जाता है उसे महानतम बताने में। जैसे कि उसे इस देश ने ही बनाया।
कई बार तो समझ में नहीं आता कि आखिर यह महान हो कैसे गये। अरे, भई अपने लिये तो सभी उपलब्धियां जुटाते हैं। कोई अधिक तो कोई कम! अभी उस दिन एक क्रिकेट खिलाड़ी के बीस बरस पूरा होने पर सारा प्रचारतंत्र फिदा था। अब भी उसे भुना रहा है। इधर हमें याद आ रहा है कि भारत ने एक दिवसीय क्रिकेट प्रतियोगिता में विश्व कप 1983 में जीता था जिससे 26 बरस हो गये। फिर भारत ने बीस ओवरीय प्रतियोगिता में विश्व कप जीता तो उसका वह सदस्य नहीं था। उसने एक बार भी भारत को विश्व कप नहीं जितवाया मगर उसे बाजार महान बना रहा है। उसके नाम पर एक भी बड़ी प्रतियोगिता नहीं है मगर वह महानतम है क्योंकि वह बड़े शहर में रहता है जहां फिल्मों में कल्पित नाायक का अभिनय करने वाले बड़े बड़े अभिनेता रहते हैं। यह बड़ा शहर मुंबई भारत की देश की आर्थिक राजधानी माना जाता है-यह विवादास्पद है क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था की बागडोर आज भी किसानों की पैदावर के हाथ में मानी जाती है, अगर बरसात समय पर न हो या अकाल पड़े तो उसके बाद इस देश की क्या हालत होगी यह समझी जा सकती है। कभी कभी तो लगता है कि देश का पैसा वहां जा रहा है न कि वहां से देश के अन्य भागों में आ रहा है। यह सही है कि नये अर्थतंत्र के आधार मुंबई में है और वही इस प्रचार तंत्र का आधार हैं। यही कारण है कि भारतीय बाजार और प्रचारतंत्र के मसीहा वहीं बसते हैं। इधर उस खिलाड़ी को महानतम बताने के लिये कोई ठोस वजह नहीं मिल रही थी तो उससे अपने भारतीय होने के गौरव का बयान दिलवाया फिर उसका विरोधी एक वयोवृद्ध शख्सियत से करवा लिया जिससे उसे खिलाड़ी से कहा कि‘ तुम तो अपनी पिच संभालो।’
बस प्रचारतंत्र में बवाल मच गया। मचना ही था क्योंकि यही तो बाजार चाहता था। अब उसे खिलाड़ी की राष्ट्रभक्ति के गुणगान किये जाने लगे। अगले ही दिन उस वयोवृद्ध शख्सियत का बयान आया कि उसने तो यह केवल प्रचारतंत्र में अपने ही एक प्रतिद्वंद्वी पर बढ़त बनाने के लिये दिया था। क्या गजब की योजनाएं बनती हैं कि देखकर दिल दिमाग दंग रह जाते हैं। एक भी विश्व कप उसके नाम पर नहीं है तो आखिर उस खिलाड़ी की महानता को आगे बाजार कैसे चलाता? सो उस पर देशभक्त का लेबल लगाकर उसके नायकत्व को आगे जारी रखने का यह प्रयास अद्भुत है! फिल्म अभिनेता महान, सुंदरियां महान, खिलाड़ी महान और धर्म का सौदा करने वाले संत महान! समाज जस का तस! अपने अंधेरों से जूझता हुआ इस इंतजार में कि ‘कब कोई उसको रौशनी देगा।
टीवी चैनलों और समाचार पत्र पत्रिकाओं अध्यात्मिक चर्चाएं और सड़कों पर सभायें होती हैं। नैतिकता और आदर्श का ऐसा प्रचार कि देखकर लगता है कि हम स्वर्ग में रह रहे हैं। जब सत्य से वास्ता पड़ता है तो लगता है कि यह कोई नरक हैं जहां गलती से आ गये। पिछले चार सौ सालों की एतिहासिक गाथाओं में अनेक महानतम लोगों की चर्चा आती है पर देश का क्या? जब रहीम, तुलसी, कबीर और गुरुनानक जी की वाणी को पढ़ते हैं तो लगता है कि समाज उस समय भी ऐसा ही था। इतना ही अंधेरा था। उनकी वाणी आज भी रौशनी की तरह जलती है पर लोगों को शायद अंधेरा ही पंसद है या उनको पता ही नहीं कि रौशनी होती क्या है?
किसे दोष दें। कल्पित नायकों की गाथा सुनाते हुए प्रचार तंत्र को या उसे सुनकर भावुक होते हुए आम लोगों को। बाजार तो वही बेचेगा जो लोगों को पंसद आयेगा। लोगों को क्या अंधेरा ही पसंद है। पता नहीं! मगर सभी अंधे नहीं है। कुछ लोगों में चिंतन है जो इस बात को समझते हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो संतों और महापुरुषों की वाणी की रौशनी इस तरह आगे चलती हुई नहीं जाती। बाजार के महानतम उसके सामने बुझे चिराग जैसे दिखते हैं।

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
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क्रिकेट मैच के लिये एक्शन सीन लिख देना-हास्य व्यंग्य


ब्लागर अपने कंप्यूटर पर बैठा था कि उसकी पत्नी ने उसे दूसरे ब्लागर के मिलने की खबर अंदर आकर सुनायी। उसने कहा-‘बोल दो घर पर नहीं है।’

तब तक दूसरा ब्लागर अंदर आ गया और बोला-‘भाई साहब हमसे क्या नाराजगी है?’

पहले ब्लागर ने कहा-‘‘नाराजगी तुमसे नहीं है। तुम्हारी भाभीजी से है तुम्हें अंदर न बुलाकर हमें यह बताने आयीं हैं कि तुम आ गये हो। वैसे हमारी नजरें बहुत तेज हैं और हमने देख लिया था कि तुम अंदर आये हो।’

वह आकर उसके पास रखी कुर्सी पर बैठ गया और बोला-‘‘भाभीजी, आप मुझे शिकंजी पिलाईये। भाई साहब जरूर शिकंजी पीते हैं-ऐसा मेरा विश्वास है।’

पहले ब्लागर ने कहा-‘पर यह बात हमने अपने किसी ब्लाग पर तो नहीं लिखी।’

दूसरा ब्लागर बोला-‘मैने अंदाजा कर लिया था। शिकंजी पीकर इंटरनेट पर ब्लाग पर अच्छी तरह लिखा जा सकता है।’

भद्र महिला चली गयी तो वह अपने असली रूप में आ गया और बोला-‘पर जरूरी नहीं है कि शिकंजी पीकर हर कोई ब्लाग पर अच्छा लिख सकता हो।’

पहले ब्लागर ने कहा-‘हां इसमें कोई शक नहीं है, अगर वह कुछ लिखता हो तो?’
दूसरे ने ब्लागर ने कहा-‘हम पर फब्तियां कस रहे हो!
पहले ब्लागर ने कहा-‘‘और तुम क्या कर रहे थे?वैसे इधर कैसे भटक गये।’
दूसरे ब्लागर ने कहा-‘‘मैं एक क्रिकेट प्रतियोगिता करा रहा हूं। जिसमें चार ब्लागर और चार कमेंटरों की टीमें हैं। मै चाहता हूं कि तुम उनके लिये कोई एक्शन सीन लिख दो।’

तब तक गृहिणी शिकंजी के ग्लास बनाकर लायी। उसने जब सुना कि कोई क्रिकेट के एक्शन सीन की बात हो रही है तो वह उत्सुकतावश वहीं एक तरफ बैठ गयी।
पहला ब्लागर-‘क्रिकेट मैच के लिये एक्शन सीन? और इतने सारे ब्लागर और कमेंटर तुम्हारे पास आये कहां से? क्या कहीं से नीलामी में ले आये क्या?’

दूसरा ब्लागर अब गृहिण की उपस्थिति के आभास होने पर सम्मान के साथ बोला-‘अरे भाईसाहब, आप भी कैसी बात करते हो। अरे, आजकल वह समय गया। आप देख नहीं रहे कहां का खिलाड़ी कहां खेल रहा है। शहर का वासी हो या न हो तो पर उस शहर की तरफ से खेल तो सकता है। वैसे ही ब्लागर हो या न हो, कमेंटर हो या न हो और उसने कभी इंटरनेट खोला भी न हो पर हमने कह दिया कि ब्लागर तो ब्लागर। हमें अपने काम और कमाई से मतलब है।’
दूसरा ब्लागर उसे हैरानी से देखने लगा। फिर वह बोला-‘‘आप तो कुछ एक्शन सीन लिख दो। आजकल तो क्रिकेट के साथ एक्शन भी जरूरी है। किसी खिलाड़ी को किससे लड़वाना है। लड़ाई के लिये वह कौनसा शब्द बोले यह लिखना है। थप्पड़ या घूसा किस तरह मारे और दूसरे के जोर से लगता दिखे पर लगे नहीं इसलिये मैं ही एक्शन डायरेक्टर तो मैं ही रहूंगा पर यह तो कोई पटकथा लेखक ही तय कर सकता है। फिर उसके लिये कमेटी होगी तो उसमें बहस के डायलाग लिखवाना है। सजा का क्या हिसाब-किताब हो यह भी लिखना है। एक-दो खिलाड़ी ऐसे है जिनको एक दो मैच बाद बाहर बैठने के लिये राजी कर लिया है। उसके लिये तमाम तरह का प्रचार कराना है।

गृहिणी ने पूछा-‘पर यह किसलिये?’

वह बोला-‘अपने शहर की इज्जत बढ़ाने के लिये। देखिये हमारे शहर की कोई टीम नहीं बुला रहा। इसलिये मैं अपने शहर में क्रिकेट के खेल के विकास के लिये यह कर रहा हूं। स्थानीय मीडिया मेंे भी इसके लिये संपर्क साध रहा हूं ताकि अधिक से अधिक लोग वहां पहुंचे। और हां, इटरवैल में नाच गाने का भी इंतजाम किया है।’

पहले ब्लागर ने कहा-‘‘मैने आज तक कोई नाटक नहीं लिखा।’
दूसरा ब्लागर बोला-‘इसमे लिखने लायक है क्या? यह तो सब आसानी से हो जायेगा। बस थोड़ा सोचना भर है। मुझे अन्य व्यवस्थायें देखनीं नहंी होतीं तो मैं ही इस पर लिखता।’’

पहले ब्लागर ने कहा-‘‘मेरे बूते का नहीं है। जब झगड़ा कराना है तो उसके लिये कुछ ऐसा वैसा लिखना जरूरी है, और इस मामले में तुम जितने दक्ष हो मैं तो हो ही नहीं सकता।’

गृहिणी ने दूसरे ब्लागर की तरफ देखकर कहा-‘आपने तो सारे सीन पहले ही सोच लिये है। एकदम जोरदार कहानी लग रही है। बस आपको तो शब्द ही तो भरने हैं। अभी आप यह सीन बताकर जा रहे हैं यह तो उसे भी याद नहीं रख पायेंगे।फिर लिखेंगे कहां से? आप कोशिश करो तो अच्छा लिख लोगे।’
दोनो ने शिकंजी का ग्लास खत्म किया तो वह दोनों ग्लास उठाकर चली गयी । दूसरा ब्लागर बोला-‘‘ठीक है जब क्रिकेट मैच कराना है और उसमें एक्शन के सीन रखने हैं तो यह भी कर लेता हूं। देखो भाभीजी ने हमारा हौंसला बढ़ाया। एक तुम हो जब तब ऐसी वैसी बातें करते हो। भाभीजी बहुत भले ढंग से पेश आतीं हैं और तुम……………………छोड़ो अब तुमसे क्या कहूं

पहले ब्लागर ने कहा-‘हां, पर याद रखना मैंने तुम्हारी उस तुम्हारी पहले और आखिरी कमेंट के बारे में उसे कुछ नहीं बताया। क्या इसके लिये मुझे धन्यवाद नहीं दोगे?
दूसरे ने कहा-‘‘अच्छा मैं चल रहा हूं। और हां, इस ब्लागर मीट पर भी कुछ अच्छा लिख देना ताकि मेरी प्रतियोगिता को प्रचार मिले। फिर देखो तुम्हें कैसे फ्लाप से हिट बनाता हूं।’

वह चला गया और गृहिण ने पूछा-‘‘क्या कहा उसने?’

पहले ब्लागर ने कहा-‘तुमने भी तो सुना! यही कहा‘क्रिकेट मैच के लिये एक्शन सीन लिख देना’।’’

फिर वह मन में सोचने लगा-‘मैने इस बार भी नहीं पूछा कि इंटरनेट पर बने ब्लाग पर मैं यह रिपोर्ट हास्य कविता के रूप में लिखूं या नहीं। चलो अगली बार पूछ लूंगा।
नोट-यह काल्पनिक हास्य-व्यंग्य रचना है और इसका किसी घटना या व्यक्ति से कोई लेना-देना नहीं है। अगर किसी की कारिस्तानी से मेल हो जाये तो वही इसके लिये जिम्मेदार होगा। इन पंक्तियों का लेखक किसी ऐसे दूसरे ब्लागर से नही मिला।