इस समय क्रिकेट जगत में जो खलबली मची है उसका कारण केवल एक ही लगता है वह यह कि कप्तान अनिल कुंबले का ही इसमें अधिक योगदान है। अगर यहाँ सचिन तेंदुलकर और राहुल द्रविड़ होते तो सब कुछ आराम से हो जाता। टीम अभी भी आगे चली गयी होती। खेल भावना के नाम पर इन खिलाडियों ने अपना अपमान कई बार सहा है और तनाव में कई बार विकेट भी गंवाए हैं। अगर सौरभ होते वहीं कह सुनकर बात खत्म कर देते भले ही उनके खिलाड़ी मनोबल के साथ अपनी विकेट भी गँवा बैठते। कुल मिला कर सब कुछ खामोशी से होता।
नवजोत सिददू सही कहते हैं कि यह केवल हरभजन सिंह के अपमान का प्रश्न नहीं है क्योंकि आस्ट्रेलिया के खिलाड़ी और प्रेस दोनों ही भारत का मजाक उडा रहे हैं। कुंबले कई बरसों से शांति से गेंदबाजी करते हैं और मैं उन्हें शेन वॉर्न और मुरलीधरन से अधिक अच्छा गेंदबाज मानता हूँ। वह न तो अपना समय अय्याशी में गुजारते हैं और न अधिक कोई नाटक करते हैं और आजकल मीडिया केवल उन्हीं लोगों का प्रचार करता है जो खेल से अधिक अन्य कार्यों में रूचि लेते हैं। बकनर ने एक बार नहीं कई बार भारतीय खिलाडियों के खिलाफ निर्णय दिए हैं और कई में मैच का रुख पलटा। अक्सर मैच फिक्सिंग को लेकर खिलाडियों पर संशय किया जाता है और कई खिलाड़ी अपनी सफाई भी देते हैं, पर अब यह संशय होता है कि कहीं दुनिया के कुछ अंपायर -जिनके गलत फैसले मानवीय गलती मान लिए जाते हैं-कहीं कुछ कारिस्तानी तो नहीं करते इस पर जांच होना चाहिए। एक नहीं ऐसे कई ऐसे मैच हैं जिनमें अंपायर के गलत फैसलों ने मैच का रुख पलटा है।
भारतीय टीम कभी भी कड़े फैसले नहीं ले पायी इसी कारण आज तक यह सब होता रहा है और क्रिकेट खेल अब यकीन करने लायक नहीं रहा है। अनिक कुंबले जो एक खामोश रहने वाले माने जाते है और ऐसे व्यक्ति बहुत खतरनाक होते हैं शायद आस्ट्रेलिया के खिलाड़ी और मीडिया इसको समझ नहीं पाए। उन्होने सचिन और राहुल और जैसा कमजोर खिलाड़ी मान लिया और अब ऐसी स्थिति निमित हो गयी है जहाँ आईसीसीआई के लिए निकलना इतना आसान नहीं होगा क्योंकि अब ऐसी हालत में खुद बीसीसीआई भी उसकी मदद नहीं कर सकती क्योंकि यहाँ नर्म का पड़ने का मतलब है कि लोगों का क्रिकेट से विमुख होना जो शायद इसके व्यवासायिक ढाँचे के लिए बहुत हानिप्रद होगा।
कुंबले जो कि कहा जाता है कि अपने कैरियर के अन्तिम मुकाम पर खडे थे एकदम हीरो बन गए हैं। सचिन, राहुल, और सौरभ से कहीं आगे निकल गए हैं। इन लोगों ने कभी इस तरह ध्यान नहीं दिया कि किस तरह देश को क्रिकेट में अपमानित किया जाता रहा है और इसकी वजह से ही कई जगह यह मान लिया गया है कि भारतीयों में रीढ़ की हड्डी ही नहीं है। अगर अब बीसीसीआई अपनी दृढ़ता दिखती है तो इस का अन्य क्षेत्रों में भी सम्मान बढेगा। आप कहेंगे क्रिकेट से इसका कया संबंध? जनाब जो देखते हैं वह सब क्रिकेट नहीं खेलते बल्कि हर अपने-अपने व्यवसायों में भी रहते हैं और अगर उनकी सोच वहाँ हमारे देश के लिए नकारात्मक बनती है और हर आदमी अपने रोजमर्रा के काम में अपनी तयशुदा सोच के अनुसार ही कार्य करता है ।
आस्ट्रेलिया में चल रही पांच दिवसीय क्रिकेट मैच में जिस तरह पहली पारी ढहने से अंपायर स्टीव बकनर ने जिस तरह कंगारुओं की जिस तरह बचाया उसे देखते हुए बहुत पहले पाकिस्तान की अंपायरिंग की याद आते है तब कहा जाता था की पाकिस्तान में तेरह खिलाडी खेलते हैं। जब से तीसरे देश के अंपायर रखने की परंपरा शुरू हुई है तब से उसके बारे में ऐसी चर्चा बंद हो गई पर अब किसी को विलेन तो रहना है वरना क्रिकेट में हीरो की कद्र कौन करेगा? किसी को विलेन बनाकर ही हीरो को लोगों के सम्मुख प्रस्तुत कर उनके जजबातों का फायदा उठाया जा सकता है।
क्रिकेट में आजकल स्टीव बकनर इस तरह का रोल निभाने के लिए तैयार हो रहे हैं। भारत और पाकिस्तान के खिलाड़ी उनके पक्षपात का शिकार रहे हैं। बस एक अंतर है वह यह की पाकिस्तान के खिलाड़ी मुखर होकर आरोप लगाते है और भारतीय खिलाड़ी अपनी व्यावसायिक मजबूरियों के कारण चुप रह जाते हैं। जबकि जानते हैं कि यह खेल ही भारत की आर्थिक शक्ति के दम पर चल रहा है। स्टीव बकनर ने कल तो हद ही कर दी पता नहीं क्यों इतना खौफ था कि एंड्रू साइमंस को दो बार आऊट नहीं दिया। लगता है कि अब खिलाड़ी जो रोल नहीं निभा पा रहे या उसका जिम्मा अंपायरों पर डाला जाने वाला है, कोई खिलाडी जो आऊट होना चाहता है पर अंपायर दे नहीं रहा और कोई अच्छा खेल रहा है तो उसे गलत आउट दे दो।
कल के किस्से पर एक और किस्सा याद आया। कोलंबो में एक प्रतियोगिता में आस्ट्रेलिया और पाकिस्तान दोनों ही मैच हारना चाहते थे। अखबारों में उस समय प्रकाशित चर्चा के अनुसार उस मैच में दोनों की रूचि मैच जीतने पर मिलने वाली राशि से अधिक हारने पर दो नंबर में मिलने वाली राशि में अधिक थी-इस आरोप पर अखबारों पर में खूब चर्चा हुई थी। मैंने इसे पढा तो हंसी आयी। कल और आज जो स्टीव बकनर और सायमंड को देखकर उसी की याद आयी।
सायमंड ने तय कर लिया होगा कि-” यार इंडिया के खिलाफ बहुत बार अच्छा खेल लिया और खराब खेल कर सबको चौंका दो। फिर कभी भारत जाना है, कहीं ऐसा न हो कुंबले एंड कंपनी डर के मारे क्रिकेट खेलना छोड़ दें तो आगे कमाई कैसी होगी आखिर क्रिकेट चल तो भारत की वजह से रहा है। इस बार मौका दो ताकि आगे भी खेलते रहें।”
बकनर सोच रहा होगा-”ऐसे कैसे? आज मैं भी अपनी ताकत दिखा दूं। ऐसा तो नहीं यह कहीं अपना आऊट होना फिक्स कर आया हो। अगर कर आया होगा तो भारी कमीशन मिला होगा। कुछ कमीशन दे दो में इसे जाने देता हूँ।
ऐसा भी हो सकता है कि क्रिकेट के लिए कोई विलेन की जुगाड़ करना हो और उसके लिए बकनर तैयार हुए हों क्योंकि अगर उनके इस तरह के फैसले होते रहे तो लोग चिढ जायेंगे, और कहीं इसके बावजूद भारत की टीम जीती तो बस आ गया मजा। क्रिकेट को लोगों के बीच फिर एक लाइफ लाइन मिल जायेगी-जैसे ट्वेन्टी-ट्वेन्टी में भारत के जीतने पर मिली। उसके बाद फिर भारत में क्रिकेट का खेल भारत में जनचर्चा का विषय बना था पर अब फिर लोग निराश हो गए हैं क्योंकि पुराने खिलाड़ी फिर उनके सामने आ गए हैं।
अब यह पता नहीं लग रहा है कि भारत के खिलाड़ी इस पर क्या करेंगे? कभी कहते हैं कि इसकी शिकायत करेंगे तो कभी कहते हैं नहीं करेगे? एक सवाल जो उठता है कि स्टीव बकनर का शिकार भारत के खिलाड़ी ही क्यों हो रहे हैं आस्ट्रेलिया के क्यों नहीं? इससे एक बात साफ जाहिर होती है कि वह समझता है कि विश्व की असली ताकत अभी गोरों के पास है और एशिया के देश कितने भी आर्थिक दृष्टि से शक्तिशाली हो जाएं पर नियंत्रण तो गोरों का ही चलेगा। इसलिए उनकी बजाते रहो ताकि काले लोगन को मौका मिलते रहें। उसके खिलाफ अधिक शिकायत करने वाले देश एशिया के हैं क्या इससे यह सिद्ध नहीं होता। शायद भारत के खिलाड़ी भी कुछ कहने में डरते होंगे क्योंकि इंग्लेंड में अंपायर का विरोध करने पर अपने पडोसी देश पाकिस्तान के कप्तान इंजमाम उल हक़ का जो हश्र हुआ सबने देखा है। बहरहाल इतना तो कहा जा सकता है कि पहले पाकिस्तान के बारे में कहा जाता अब आस्ट्रेलिया के बारे में भी यही कहा जा सकता है कि वह १३ खिलाडियों के साथ खेल रहा है।
दीपक भारतदीप द्धारा
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भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्द के भूतपूर्व अध्यक्ष श्री आई. एस. बिंद्रा ने कपिल देव पर आई. सी. एल. को पैसे के उद्देश्य से बनाने का आरोप लगाया। आजकल ऐक बात मजेदार बात यह है कि जिसे देखो वही पैसे कमाने में लगा हुआ है, पर बात नैतिकता की बात करता है। शायद यह हमारी मानसिकता है कि हम त्याग को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं पर चाह्ते हैं कि दूसरे ऐसा करे ताकि हम उसकी पूजा करें-ताकि हम स्वयं माया ऐकत्रित करते रहें और समाज में अपना लौकिक सम्मान बनाये रखें। मैं तो यह जानना चाहता हूं कि पैसे कौन नहीं चाह्ता है, यहां त्यागी कौन है।
अगर कपिल देव ने अपनी संस्था पैसे कमाने के लिये बनाई है तो उसमें बुराई क्या है? और क्या कपिल देव ही केवल पैसा कमाएंगे? उनके साथ क्या जो लोग होंगे वह पैसे नहीं कमाएंगे? शायद बिंद्रा साह्ब को पता नहीं कि कई प्रतिभाशाली क्रिकेट खिलाडी धनाभाव के कारण आत्महत्या कर चुके हैं। वह कह रहे हैं कि कपिल देव देश में क्रिकेट के विकास का बहाना कर रहे हैं। वैसे देखा जाये तो देश में क्रिकेट ने जो ऊंचाई प्राप्त की है उसका पूरा श्रेय कपिल देव को ही जाता है। अगर १९८३ में अगर वह विश्व कप जीतने में अपना योगदान नहीं देते तो शायद इस देश में यह खेल लोकप्रिय भी नहीं होता। उसके बाद ही भारत में ऐकदिवसीय लोकप्रिय हुआ और उससे साथ ही जो खिलाडी उसमे ज्यादा सफ़ल बने उनहें हीरो का दर्जा मिला और साथ में मिले ढेर सारे विज्ञापन और पैसा और समाज में फ़िल्मी हीरो जैसा सम्मान। यही कारण है कि उसके बाद जो भी नवयुवक इस खेल की तरफ़ आकर्षित हुए वह इसलिये कि उनहें इसमें अपना चमकदार भविष्य दिखा। ऐक मजेदार बात यह है कि क्रिकेट का आकर्षण जैसे ही बढता गया वैसे ही फ़िल्मों में काम करने के लिये घर से भागने वाले लोगों की संख्या कम होती गयी क्योंकि क्रिकेट में भी उतना गलैमर आ गया जितना फ़िल्मों में था।
ऐसा केवल इसमें खिलाडियों को मिलने वाले पैसे के कारण हुआ। अब यह पूरी तरह ऐक व्यवसाय बन चुका है। अगर कोई कहता है कि हम क्रिकेट के साथ नियमित रूप से सत्संग के कारण ही जुडे हैं तो सरासर झूठ बोल रहा है-चाहे वह खिलाडी हो या किसी संस्था का पदाधिकारी। फ़र्क केवल इतना होता है कि कुछ लोग अपने कमाने के साथ इस बात का भी ध्यान रखते हैं कि दूसरे को भी कमाने का अवसर दिया जाये और अपने व्यवसाय में नैतिक सिद्धांतों का भी पालन किया जाये और कुछ लोग ऐसे होते हैं कि उनका उद्देश्य केवल अपने लिये माया जुटाना होता है और किसी नैतिक नियम को मानने की बात तो वह सोचते भी नहीं। समाज में ऐसे ही लोगों के संख्या ज्यादा है।
जिस तरह पिछ्ले कई वर्षौं से भारतीय क्रिकेट टीम का चयन हुआ है उससे नवयुवक खिलाडियों में यह बात घर कर गयी है कि उसमें उनको आसानी से जगह नहीं मिल सकती। इंग्लैंड गयी टीम का खेल देखकर तो यह साफ़ लगता है कि कई खिलाडी उसमें अपनी जगह व्यवसायिक कारणौं से बनाये हुये है। मैं हमेशा कहता हूं कि अगर किसी क्रिकेट खिलाडी कि फ़िटनेस देखनी है तो उससे क्षेत्ररक्षण और विकेटों के बीच दौड में देखना चाहिये। जहां तक बोलिंग और बैटिंग का सवाल है तो आपने देखा होगा कि कई जगह बडी उमर के लोग भी शौक और दिखावे के लिये मैचों का आयोजन करते हैं और उसमें बोलिंग और बैटिंग आसानी से कर लेते हैं पर फ़ील्डिंग और रन लेते समय उनकी दौड पर लोग हंसते है। आप मेरी इस बात पर हंसेंगे पर मेरा कहना यह है कि हमारे इस विशाल देश में लाखों युवक क्रिकेट खेल रहे हैं और रणजी ट्राफ़ी तथा अन्य राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में खेल रहे हैं ऐसा संभव नहीं है कि उनमें कोई प्रतिभा नहीं है पर उनको मौका नहीं दिया जा रहा है। इंग्लैंड गयी टीम क्षेत्ररक्षण और रन लेने में बहुत कमजोर सबित हुई है जो कि विश्व कप में भारत की जीत के सबसे मजबूत पक्ष थे। देश में युवा बल्लेबाज और गेंदबाजों की कमी नहीं है और क्षेत्ररक्षण और रन लेने की शक्ति और हौंसला युवा खिलाडियों में ही संभव है। अगर साफ़ कहूं तो अच्छी गेंदबाजी और बल्लेबाजी तो कोयी भी युवा क्रिकेट खिलाडी कर लेगा पर तेजी से रन लेना और दूसरे के शाट मारने पर उस गेंद के पीछे दौडना हर किसी के बूते का नहीं है।
भारत में प्रतिभाशाली खिलाडियों की कमी नही है पर क्रिकेट के व्यवसाय से जुडे लोग केवल यही चाह्ते हैं कि वह सब उनके घर आकर प्रतिभा दिखायें तभी उन पर कृपा दृष्टि दिखायें।
कपिल देव कमायेंगे इसमें कोयी शक नही है पर मेरी जो इच्छा है कि वह देश के युवाओं में ही नये हीरो ढूंढें। शायद वह यही करने वाले भी हैं। अगर वह इन्हीं पुराने खिलाडियों में अपने लिये नयी टीम का सपना देख रहे हैं तो शायद उन्हें निराशा ही हाथ लगेगी-क्योंकि अत: यह क्रिकेट ऐक शो बिजिनेस बन चुका है उसमें अब नए चेहरे ही लोगों में अपनी छबि बना सकते हैं।। मेरा तो सीधा कहना है कि कपिल देव न केवल खुद कमायें बल्कि छोटे शहरों और आर्थिक दृष्टि से गरीब परिवारों के प्रतिभाशाली युवा खिलाडियों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चमका दें तो वह स्वयं भी सुपर हीरो कहलायेंगे-हीरो तो वह अब भी हैं क्योंकि १९८३ के बाद से भारत ने क्रिकेट में कोई विश्व कप नही जीता है। मैं कोई कपिल देव से कोई धर्मादा खाता खोलने की अपेक्षा नहीं कर रहा हूं क्योंकि क्रिकेट कोई दान पर चलने वाला खेल अब रहा भी नहीं है। विशेष रूप से कंपनियों के विज्ञापनों से होने वाले आय पर चलने वाले खेल में कम से कम इतनी व्यवसायिक भावना तो दिखानी चाहिये के खेलो, जीतो और कमाओ, न कि क्योंकि कमा रहे हो इसलिये खेलते रहो, टीम में बने रहो। यह ऐक गैर व्यवसायिक रवैया है यही कारण है कि दुनियां की किसी भी टीम से ज्यादा कमाने खिलाडी मैदान में फ़िसड्डी साबित हो रहे हैं। दुनियां में किसी भी देश में कोई भी ऐसी टीम खिलाडी बता दीजिये जो ज्यादा कमाते हैं और हारते भी हैं। मतलब साफ है कि क्रिकेट में कहीं भी किसी ने धर्मादा खाता नहीं खोल रखा है और यह संभव भी नहीं है। अत: कपिल देव को ऐसे आरोपों की परवाह भी नहीं करना चाहिऐ।