पैसे की भूख में इंसान
दिल के जज़्बातों से नीयत चुराकर
नालायकी से हाथ मिला देता है।
दूसरे की भूख मिटाने के लिये
जिस हाथ से बनाता खाना
उसी से कंकड़ मिला देता है।
अपनी जिम्मेदारी के लिये
थामे है जिस हाथ में कलम
वही रिश्वत से मिला देता है।
कहें दीपक बापू अपने हाथ में
आदर्श का झंडा उठाये है हर इंसान
मौका पड़ते ही बेईमानी से मिला देता है।
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मुट्ठी में अगर आता सुख तो हम कई किलो भर लेते,
खरीदे गये सामान से मिलता मजा तो ढेर घर में भर लेते।
कहें दीपक बापू सोए तो आलस चले तो थकान ने घेरा
रोज पैदा होती नयी चाहत पर कामयाबी से मन भरता नहीं
वरना हम उम्मीदों का भारी बोझ अपने कंधे पर धर लेते।
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टकटकी लगाये हम उनकी नज़रों में आने का इंतजार करते हैं,
वह उदासीन हैं फिर भी हम उस यार पर मरते हैं।
कहें दीपक बापू कोई हमदर्द बने यह चाहत नहीं हमारी
दिल से घुटते लोग सीना तानते पर तन्हाई से डरते है।ं
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रिश्ते बनते जरूर कुदरत से मगर निभाये मतलब से जाते हैं,
कहीं काम से दाम मिलते कहंी दाम से काम बनाये जाते हैं।
नीयत के खेल में खोटे लोग भी खरे सिक्के जैसे सजते
वफा की चाहत में बदहवास लोग शिकार बनाये जाते हैं।
कहें दीपक बापू दिल के सौदागर जिस्मफरोशी नहीं करते
मोहब्बत के जाल में कमजोर दिमाग लोग फंसाये जाते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja “Bharatdeep”,Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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