दूसरे ने जवाब दिया-”लगता है तुम अखबार नहीं पढ़ते हो वरना यह सवाल तुम कभी नहीं करते। बहुमूल्य वाली तो बात जाओ भूल। हीरों से नल की टोंटी नहीं बनती इसलिए लोग उसे नहीं खरीदते। और जिसे इनवेस्टमेंट कह रहे हो उसे तो केवल अपनी आय छिपाने और उससे भी और पैसा कमाने की विधा है। अब कुछ लोग अपनी आय छिपाने के लिए सोने की टोंटी लगाते हैं ताकि बाहर से आने वाले को पीतल के लगें। कुछ जगह छापे डालने वाले लोगों ने यह देखा है मैंने ऐसी खबरें टीवी पर देखीं और अखबारों में पढी हैं।”
ऐसी खबरें कुछ दिन पहले टीवी पर आयीं थीं और लोगों को हैरानी हुई थी। कहाँ तो पहले लोग पीतल का सामान इस तरह इस्तेमाल करते थे जैसे वह सोने के हों और अब सोने की नल टोंटियाँ इस तरह बनायी जा रहीं जैसे की वह पीतल की लगें और उनके अमीर होने का शक किसी को न हो। हीरे का व्यापार मंदा है पर सोने का नहीं है उससे तो यही लगता है कि सामान्य आदमी के पास इतना पैसा नहीं है और जिनके पास है वह उसे छिपाने के लिए प्रयासरत हैं और हीरा बहुत चमकदार होता है उसे कहीं भी रखें अपनी चमक नहीं खोयेगा और आदमी कि पोल खोल देगा। और सोने की टोंटियाँ बनाए या कुर्सी के हत्थे धीरे-धीरे सोना अपनी चमक खोने लगता है इसलिए किसी को अधिक संदेह नहीं होता है। हाँ, जो लगवा रहे हैं उन्हें बड़ा आनंद मिलता होगा। अपने घर आया मेहमान जब नल से हाथ धोता होगा और कहता होगा-”क्या अच्छी टोंटी है। क्या सोने की है।”
मालिक जबाब देता होगा-”नहीं पीतल की हैं. मैंने ठेकेदार से कहा था कि नल की टोंटी ऐसी लाना कि सोने की तरह लगें. मैंने खुद खडे होकर मकान बनवाया इसलिए हर माल बढिया क्वालिटी का लगा है.”
मेहमान को टोंटी सोने जैसे लगी उसने पूछा। फिर उससे झूठ बोला और फिर अपनी आत्म प्रवंचना की वह अलग। इस तरह तीन प्रकार से सुख मिला। सोने की टोंटी होना , झूठ बोलना और आत्मप्रवंचना तीनों बातों से आदमी को बहुत सुखद लगता है। सोने के आभूषण लोग इसलिए पहनते हैं अन्य व्यक्ति उसे देखकर और आकर्षित हों-और जब सोना दिख ही रहा है और वह धन छिपाने में मदद भी कर रहा है तो सुख तो दूना हो ही जाता है।
जिन लोगों ने सोने की टोंटियाँ बनवाईं होंगीं उन्हें नल खोलकर पानी पीने से अधिक शीतलता तो इस अनुभूति से होगी कि सोने की टोंटी से निकला पानी पी रहे हैं। यह अलग बात है कि दूसरे को वह डर के मारे पीतल की बताते होंगे-और झूठ बोलने का आनंद भी उठाते होंगे। समय की बलिहारी है कभी लोग सोने की जगह पीतल का उपयोग करते थे और अब यहाँ कुछ लोग पीतल की जगह सोने को लगवा रहे हैं और सच बताने का साहस नहीं करते। वैसे आजकल हमारे जैसे अज्ञानी लोगों की संख्या अधिक है जिन्हें सोने और पीतल का अंतर एक अनजाने में पता नहीं चलता और अगर कहीं पीतल की जगह सोने की लगी हो तो उस पर ध्यान नहीं देंगे। अब जब कुछ ऐसे समाचार देखे और सुने हैं तो कहना ही पड़ता है कि माया का खेल निराला है वह आदमी के सिर पर चढ़ती है तो उसे मायावी बना देती है और सोने को पीतल जैसा और पानी से अधिक शीतल बना देती है।