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साहित्य आखिर होता क्या है-आलेख (article on hindi sahitya)


हिंदी की विकास यात्रा नहीं रुकेगी। लिखने वालों का लिखा बना रहेगा भले ही वह मिट जायें। पिछले दिनों कुछ दिलचस्प चर्चायें सामने आयीं। हिंदी के एक लेखक महोदय प्रकाशकों से बहुत नाखुश थे पर फिर भी उन्हें ब्लाग में हिंदी का भविष्य नहीं दिखाई दिया। अंतर्जाल लेखकों को अभी भी शायद इस देश के सामान्य लेखकों और प्रकाशकों की मानसिकता का अहसास नहीं है यही कारण है कि वह अपनी स्वयं का लेखकीय स्वाभिमान भूलकर उन लेखकों के वक्तव्यों का विरोध करते हुए भी उनके जाल में फंस जाते हैं।
एक प्रश्न अक्सर उठता है कि क्या ब्लाग पर लिखा गया साहित्य है? जवाब तो कोई नहीं देता बल्कि उलझ कर सभी ऐसे मानसिक अंतद्वंद्व में फंस जाते हैं जहां केवल कुंठा पैदा होती है। हमारे सामने इस प्रश्न का उत्तर एक प्रति प्रश्न ही है कि ‘ब्लाग पर लिखा गया आखिर साहित्य क्यों नहीं है?’

जिनको लगता है कि ब्लाग पर लिखा गया साहित्य नहीं है उनको इस प्रश्न का उत्तर ही ढूंढना चाहिए। पहले गैरअंतर्जाल लेखकों की चर्चा कर लें। वह आज भी प्रकाशकों का मूंह जोहते हैं। उसी को लेकर शिकायत करते हैं। उनकी शिकायतें अनंतकाल तक चलने वाली है और अगर आज के समय में आप अपने लेखकीय कर्म की स्वतंत्र और मौलिक अभिव्यक्ति चाहते हैं तो अंतर्जाल पर लिखने के अलावा कोई चारा नहीं है। वरना लिफाफे लिख लिखकर भेजते रहिये। एकाध कभी छप गयी तो फिर उसे दिखा दिखाकर अपना प्रचार करिये वरना तो झेलते रहिये दर्द अपने लेखक होने का।
उस लेखक ने कहा-‘ब्लाग से कोई आशा नहीं है। वहां पढ़ते ही कितने लोग हैं?
वह स्वयं एक व्यवसायिक संस्थान में काम करते हैं। उन्होंने इतनी कवितायें लिखी हैं कि उनको साक्षात्कार के समय सुनाने के लिये एक भी याद नहीं आयी-इस पाठ का लेखक भी इसी तरह का ही है। अगर वह लेखक सामने होते तो उनसे पूछते कि ‘आप पढ़े तो गये पर याद आपको कितने लोग करते हैं?’
अगर ब्लाग की बात करें तो पहले इस बात को समझ लें कि हम कंप्यूटर पर काम कर रहे हैं उसका नामकरण केल्कूलेटर, रजिस्टर, टेबल, पेन अल्मारी और मशीन के शब्दों को जोड़कर किया गया है। मतलब यह है कि इसमें वह सब चीजें शामिल हैं जिनका हम लिखते समय उपयोग करते हैं। अंतर इतना हो सकता है कि अधिकतर लेखक हाथ से स्वयं लिखते हैं पर टंकित अन्य व्यक्ति करता है और वह उनके लिये एक टंकक भर होता है। कुछ लेखक ऐसे भी हैं जो स्वयं टाईप करते हैं और उनके लिये यह अंतर्जाल एक बहुत बड़ा अवसर लाया है। स्थापित लेखकों में संभवतः अनेक टाईप करना जानते हैं पर उनके लिये स्वयं यह काम करना छोटेपन का प्रतीक है। यही कारण है अंतर्जाल लेखक उनके लिये एक तुच्छ जीव हैं।
इस पाठ का लेखक कोई प्रसिद्ध लेखक नहीं है पर इसका उसे अफसोस नहीं है। दरअसल इसके अनेक कारण है। अधिकतर बड़े पत्र पत्रिकाओं के कार्यालय बड़े शहरों में है और उनके लिये छोटे शहरों में पाठक होते हैं लेखक नहीं। फिर डाक से भेजी गयी सामग्री का पता ही नहीं लगता कि पहुंची कि नहीं। दूसरी बात यह है अंतर्जाल पर काम करना अभी स्थापित लोगों के लिये तुच्छ काम है और बड़े अखबारों को सामगं्री ईमेल से भी भेजी जाये तो उनको संपादकगण स्वयं देखते हों इसकी संभावना कम ही लगती है। ऐसे में उनको वह सामग्री मिलती भी है कि नहीं या फिर वह समझते हैं कि अंतर्जाल पर भेजकर लेखक अपना बड़प्पन दिखा रहा इसलिये उसको भाव मत दो। एक मजेदार चीज है कि अधिकतर बड़े अखबारों के ईमेल के पते भी नहीं छापते जहां उनको सामग्री भेजी जा सके। यह शिकायत नहीं है। हरेक की अपनी सीमाऐं होती हैं पर छोटे लेखकों के लिये प्रकाशन की सीमायें तो अधिक संकुचित हैं और ऐसे में उसके लिये अंतर्जाल पर ही एक संभावना बनती है।
इससे भी हटकर एक बात दूसरी है कि अंतर्जाल पर वैसी रचनायें नहीं चल सकती जैसे कि प्रकाशन में होती हैं। यहां संक्षिप्तीकरण होना चाहिये। मुख्य बात यह है कि हम अपनी लिखें। जहां तक हिट या फ्लाप होने का सवाल है तो यहां एक छोटी कहानी और कविता भी आपको अमरत्व दिला सकती है। हर कविता या कहानी तो किसी भी लेखक की भी हिट नहीं होती। बड़े बड़े लेखक भी हमेशा ऐसा नहीं कर पाते।
एक लेखिका ने एक लेखक से कहा-‘आपको कोई संपादक जानता हो तो कृपया उससे मेरी रचनायें प्रकाशित करने का आग्रह करें।’
उस लेखक ने कहा-‘पहले एक संपादक को जानता था पर पता नहीं वह कहां चला गया है। आप तो रचनायें भेज दीजिये।’
उस लेखिका ने कहा कि -‘ऐसे तो बहुत सारी रचनायें भेजती हूं। एक छपी पर उसके बाद कोई स्थान हीं नहीं मिला।‘
उस लेखक ने कहा-‘तो अंतर्जाल पर लिखिये।’
लेखिका ने कहा-‘वहां कौन पढ़ता है? वहां मजा नहीं आयेगा।
लेखक ने पूछा-‘आपको टाईप करना आता है।’
लेखिका ने नकारात्मक जवाब दिया तो लेखक ने कहा-‘जब आपको टाईप ही नहीं करना आता तो फिर अंतर्जाल पर लिखने की बात आप सोच भी कैसे सकती हैं?’
लेखिका ने कहा-‘वह तो किसी से टाईप करवा लूंगी पर वहां मजा नहीं आयेगा। वहां कितने लोग मुझे जान पायेंगे।’
लेखन के सहारे अपनी पहचान शीघ्र नहीं ढूंढी जा सकती। आप अगर शहर के अखबार में निरंतर छप भी रहे हैं तो इस बात का दावा नहीं कर सकते कि सभी लोग आपको जानते हैं। ऐसे में अंतर्जाल पर जैसा स्वतंत्र और मौलिक लेखन बेहतर ढंग से किया जा सकता है और उसका सही मतलब वही लेखक जानते हैं जो सामान्य प्रकाशन में भी लिखते रहे हैं।
सच बात तो यह है कि ब्लाग लिखने के लिये तकनीकी ज्ञान का होना आवश्यक है और स्थापित लेखक इससे बचने के लिये ऐसे ही बयान देते हैं। वैसे जिस तरह अंतर्जाल पर लेखक आ रहे हैं उससे पुराने लेखकों की नींद हराम भी है। वजह यह है कि अभी तक प्रकाशन की बाध्यताओं के आगे घुटने टेक चुके लेखकों के लिये अब यह संभव नहीं है कि वह लीक से हटकर लिखें।
इधर अंतर्जाल पर कुछ लेखकों ने इस बात का आभास तो दे ही दिया है कि वह आगे गजब का लिखने वाले हैं। सम सामयिक विषयों पर अनेक लेखकों ने ऐसे विचार व्यक्त किये जो सामान्य प्रकाशनों में स्थान पा ही नहीं सकते। भले ही अनेक प्रतिष्ठत ब्लाग लेखक यहां हो रही बहसें निरर्थक समझते हों पर यह लेखक नहीं मानता। मुख्य बात यह है कि ब्लाग लेखक आपस में बहस कर सकते हैं और आम लेखक इससे बिदकता है। जिसे लोग झगड़ा कह रहे हैं वह संवाद की आक्रामक अभिव्यक्ति है जिससे हिंदी लेखक अभी तक नहीं समझ पाये। हां, जब व्यक्तिगत रूप से आक्षेप करते हुए नाम लेकर पाठ लिखे जाते हैं तब निराशा हो जाती है। यही एक कमी है जिससे अंतर्जाल लेखकों को बचना चाहिये। वह इस बात पर यकीन करें कि उनका लिखा साहित्य ही है। क्लिष्ट शब्दों का उपयोग, सामान्य बात को लच्छेदार वाक्य बनाकर कहना या बड़े लोगों पर ही व्यंग्य लिखना साहित्य नहीं होता। सहजता पूर्वक बिना लाग लपेटे के अपनी बात कहना भी उतना ही साहित्य होता है। शेष फिर कभी।
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

अंतर्जाल पर हिंदी का वैश्विक काल-आलेख


अंतर्जाल पर हिंदी अब ‘वैश्विक काल’ में प्रवेश कर चुकी है। अभी तक हिंदी का आधुनिक काल चल रहा था पर ‘वैश्विक काल‘ में हिंदी की रचनाओं के स्वरूप की कल्पना करना अभी सहज नहीं लगता पर इतना जरूर है कि वह वैसा नहीं होगा जैसा कि अब तक था। अभी अनेक ब्लाग लेखक ऐसी बहसों में उलझ जाते हैं जिसमें उनको अपनी पहचान ही याद नहीं रहती। लेखक ब्लागर और ब्लाग लेखक के बीच का अंतर सभी ने समझ लिया है पर हिंदी के वैश्विक काल में उसका कोई महत्व नहीं रहने वाला है।
सवाल यह है कि कौन लोग इस वैश्विक काल में हिंदी का ध्वज वाहक होंगे? यकीनन वही लोग जिनका लिखने के प्रति समर्पण होगा मगर यहां नये लेखकों को लाना आसान काम नहीं है खासतौर से जब आर्थिक लाभ न हो। यह मामला भी चल जाये पर जब शाब्दिक या तकनीकी ज्ञान का प्रचार पर्याप्त न हो तब यह काम और कठिन लगता है।
वह नौजवान इंजीनियर मेरा कंप्यूटर ठीक करने आया था। दरअसल मेरा कंप्यूटर मेरी गल्तियों के कारण खराब हुआ। पड़ौस का एक लड़का उसे अनावश्यक रूप से फारमेट कर दे गया। उसके बाद मैंने कंप्यूटर बेचने वाले साफ्टवेयर इंजीनियर को बुलाया तो उसने सारे प्रोग्राम लोड कर दिये पर वह उस कमी को दूर नहीं कर सका और हार्डवेयर इंजीनियर को लाने का वादा कर चला गया। उसके जाने के बाद कंप्यूटर की वह कमी तो दूर हो गयी जिसकी वजह से परेशान होकर मैंने उसे स्वयं ही खराब कर दिया था पर आशंका बनी हुई थी। वह साफ्टवेयर इंजीनियर उस 16 साल के लड़के को ले आया। उसने कुछ टांके लगाये ओर मुझे लगा कि वह दिखाने के लिये अधिक समय ले रहा है क्योंकि उस लाने वाले लड़के का शायद यही उसे निर्देश था। उन्होंने काम खत्म कर मुझसे सात सौ रुपये मांगे पर मैंने पांच सौ दिये। वह रकम भी मुझे अधिक लगी।
काम खत्म होने के बाद उस 16 वर्षीय इंजीनियर लड़के ने मुझसे पूछा कि ‘आखिर आप इस कंप्यूटर का उपयोग क्या करते हैं?’
मैंने कहा-‘कुछ नहीं? एैसी फिल्में देखता हूं जो कहीं देखने को नहीं मिलती!’
साफ्टवेयर इंजीनियर ने जो उस समय दलाल की भूमिका में था बोला-‘अंकल मजाक कर रहे हैं यह अपना ब्लाग लिखते हैं।’
वह लड़का बोला-‘सर, आपका ब्लाग कौनसा है?’
मैंने उससे कहा-‘कभी इंटरनेट पर हिंदी में लिखी सामग्री पढ़ी है तो बताऊं।
उसने कहा-‘हां, मैं वेब दुनिया में पढ़ता हूं। जब मुझे हिंदी में पढ़ने में होता है तो वहीं जाता हूं। इस समय हिंदी में पढ़ने वाले लोग उसका ही उपयोग अधिक कर रहे हैं।
तब मेरे समझ में आया कि वर्डप्रेस के ब्लाग पर इतने हिट कहां से आ रहे हैं? मैंने मैंने उससे मजाक में कहहा-‘क्या तुम जानते हो कि तुम विश्व प्रसिद्ध हिंदी लेखक ब्लागर का कंप्यूटर ठीक करने आये हो?’
उसने पूछा-‘आप किस नाम से लिखते हो?’
मैंने उसे अपना नाम बताया और पूछा कि क्या कभी यह नाम उसके सामने आया है?
वह सोच में पड़े गया और बोला-‘मुझे याद नहीं आ रहा है। वैसे मैंने कई लोगों को पढ़ा है पर नाम पर कभी ध्यान नहीं दिया!’
मैंने उससे कहा-‘तुम कंप्यूटर पर हिंदी में ब्लाग लिख सकते हो?’
उसने मना करते हुए कहा-‘पर वहां हिंदी में कैसे लिखा जा सकता है।’
मैंने उसे इंडिक टूल खोलकर उस पर अपना नाम लिखने को कहा। उसने अंग्रेजी में टाईप कर जैसे ही स्पेस दबाया वह हिंदी में हो गया। उसके मूंह से निकल गया‘वाह’।
वह बोला-‘सर, मुझे पेन दीजिये मैं इस वेबसाईट को नोट करूंगा।’
मैंने उसे पेन देते हुए कहा-‘अगर तुम जीमेल पर काम करोगे तो वहां भी अब हिंदी लिखने की सुविधा है जो मुझे कल ही मिली है।’
उसने कहा-‘मैं अब जाकर जीमेल पर अपना खाता बनाऊंगा। अभी तक याहू पर ही काम चला रहा था।’
साफ्टवेयर इंजीनियर बहुत समय से कंप्यूटर लाईन में है पर वह भी हिंदी लिखने के टूल से अनभिज्ञ था। कहने का तात्पर्य यह है कि हिंदी में इंटरनेट कनेक्शन बहुत हैं पर लोगों को यह पता नहीं कि उसका हिंदी उपयोग कैसे हो सकता है। देखा यह गया है कि हिंदी के ब्लाग लेखक ही जीमेल का अधिक उपयोग करते हैं क्योंकि उसने ही हिंदी के टूल लिखने की सुविधा उपयोगार्थ प्रस्तुत की है जबकि याहू का इस मामले में कोई भूमिका नहीं है। यह आश्चर्य की बात है कि मेरे आसपास के जिन लोगों ने इंटरनेट कनेक्शन लिये उन्होंने अपने ईमेल याहू पर ही बनाये। याहू के मामले में लोगों को पता नहीं क्यों उसके स्वदेशी होने का भ्रम है। बहुत पहले यह बात उड़ाई गयी थी कि यह एक भारतीय अभिनेता के स्वामित्व में है।
इस धीमी प्रगति के बावजूद अंतर्जाल पर हिंदी का वैश्विक काल उज्जवल रहने वाला है। जैसे जैसे हिंदी में लिखने के टूल का प्रचार होता जायेगा वैसे ही ढेर सारे लेखक यहां आयेंगे। हालांकि अभी जो हिंदी में लिख रहे हैं वह अपने को भाग्यशाली मानते हैं पर कुछ समय बाद यह प्रसन्नता समाप्त हो जायेगी। मैं अपने से मिलने वाले इंटरनेट कनैक्शनधारी लोगों को जब हिंदी के बारे में बताता हूं तो वह यकीन नहीं करते कि हिंदी में वहां लिखा जा रहा है।
जाते समय उस लड़के ने पूछा-‘सर, आपकी वेबसाईट का नाम क्या है?’
मैंने उससे कहा-‘तुम तो वेबदुनियां पर पढ़ो। जहां तुम्हें अपनी पसंद की सामग्री दिखे उसे पढ़ो और दोस्तों को भी पढ़ाओ।’
उसने फिर पूछा-‘आपके ब्लाग का नाम क्या है?’
मैंने उसस कहा-‘तुम तो ब्लागवाणी, नारद, चिट्ठाजगत और हिंदी ब्लाग पर जाओ और जो भी अच्छा लगे पढ़ो। केवल मेरा लिखा तुम पढ़ो और कहीं निराश हुए तो तुम्हारा मन टूट सकता है। हां, पढ़ते पढ़ते कहीं मेरा नाम जरूर आ जायेगा।’
उसने जाते जाते यही कहा-‘आपने यह मुझे बहुत बढ़िया टूल बताया। अब मैं वेबदुनियां पर सर्च कर अधिक पढ़ा करूंगा।’
शायद वह टूल उसके लिये बहुत उपयोगी होता अगर वह ब्लाग लिखता पर जीमेल पर ही उसके उपलब्ध होने के बाद उसके लिये इस इंडिक टूल की क्या उपयोगिता हो सकती है-मैं सोच रहा था।
बहरहाल उसकी बातों से हिंदी के वैश्विक काल में प्रवेश होने के संकेत समझे जा सकते थे ओर यकीनन अंतर्जाल से पूर्व के अनेक विचार, शैलियां और रुचियां परिवर्तित होंगी और उससे हिंदी के साहित्य का स्वरूप भी नहीं बच सकेगा। याद रखन वाली बात यह है कि अंतर्जाल पर उसी लेखक को सफलता मिलेगी जो संक्षिप्त रूप से अपनी बात कहेगा। वह इतनी भी संक्षिप्त भी ं न हो कि चार लाईनें अनावश्यक रूप से थोप दीं और समझा लिया कि हो गये लेखक या कवि। सार्थक, विचारप्रद और शिक्षाप्रद रचनाओं की अपेक्षा तो पाठक करेगा पर वह इतनी लंबी न हों कि वह अपनी आंखों इतना कष्ट दे कि उसकी चिंतन क्षमता प्रभावित हो।
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यह आलेख मूल रूप से इस ब्लाग ‘अनंत शब्दयोग’पर लिखा गया है । इसके अन्य कहीं प्रकाशन के लिये अनुमति नहीं हैं। इस लेखक के अन्य ब्लाग।
1.दीपक भारतदीप का चिंतन
2.दीपक भारतदीप की हिंदी-पत्रिका
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मौलिक तथा स्वतंत्र लेखन के प्रोत्साहन के प्रयास जरूरी-आलेख


जब सामाजिक विषयों पर कुछ लिखा जाता है और वह व्यंजना विद्या में है तो अच्छा लगता है। सामाजिक विषयों में व्यापकता होती है इसलिये उस पर हर तरह से लिखा और पढ़ा जाता है पर कठिनाई यह है कि हिंदी ब्लाग जगत को लेकर अनेक बार ऐसी बातें आती हैं जो यह सोचने को मजबूर करती हैं कि आखिर संगठिन होकर हिंदी ब्लाग जगत क्यों नहीं चल पा रहा है? इस समय हिंदी ब्लाग जगत में कई ऐसे ब्लाग लेखक हैं जो चार सालों से लिख रहे हैं पर उनका नाम क्यों नहीं लोगों की जुबान पर चल रहा है? सच बात तो यह है कि हिंदी ब्लाग जगत का नियमित लेखन चालीस से अधिक लोगों के आसपास ही सिमटा लगता है।

एक समाचार के अनुसार भारत में सामाजिक विषयों में अब यौन संबंधी सामग्री के मुकाबले बढ़ी रही है। दरअसल इंटरनेट का भविष्य ही सामजिक विषयों पर टिका हआ है। यौन सामग्री से लोग बहुत जल्दी उकता जाते हैं।

अखबार में अनेक बार ब्लाग के बारे में पढ़ता हैं। यह चर्चा हिंदी के बारे में नहीं लगती बल्कि ‘ब्लाग’ शब्द तक सिमटी रहती है। जब ज्वलंत विषयों पर ब्लाग की चर्चा होती है तो अक्सर अंग्रेजी ब्लोग का नाम दिया जाता है पर हिंदी ब्लाग को एक भीड़ की तरह दिखाया जाता है। जिन हिंदी ब्लाग की चर्चा प्रचार माध्यमों में हुई है वह पक्षपातपूर्ण हुई है इसलिये दूर से हिंदी ब्लाग जगत देखने वाले इसे संदेह की दृष्टि से देखते हैं। इस हिंदी ब्लाग जगत में सम सामयिक विषयों पर अनूठा लिखा गया पर उसे देखा कितने लोगों ने-इसका अनुमान सक्रिय ब्लाग लेखक कर सकते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि जो लोग चाहते हैं कि हिंदी में अधिक से अधिक ब्लाग लिखें जायें और इसके लिये वह अपनी तरफ से शौकिया या पेशेवर प्रयास करते हुए केवल अपने चेहरे और नाम ही आगे रखना चाहते हैं-अधिक हुआ तो अपने ही किसी आदमी का नाम बता देते हैं।
भारत के लोगों में चाहे जितना तकनीकी ज्ञान,धन,तथा सामाजिक हैसियत हो पर उनका प्रबंध कौशल एक खराब हैं-यह सच सभी जानते हैं। इस प्रबंध कौशल के खराब होने का कारण यह है कि जो उच्च स्तर पर इस काम के लिये हैं वह हाथ से काम करने वाले को महत्वहीन समझते है। फिर उनकी एक आदत है कि वह उस आदमी का नाम नहीं लेना चाहते जिसने स्वयं नहीं कमाया हुआ हो। खिलाड़ी,अभिनेता,पत्रकार,और उच्च पदस्थ लोगों के साथ प्रतिष्ठत नामों का उपयोग करना चाहते हैं। ऐसे में भाग्य से कोई आम आदमी ही प्रसिद्धि के शिखर पर पहुंच सकता है। कभी कभी तो ऐसा लगता है कि स्वयं अपने हाथ से मौलिक लिखने वाले लेखकों को यहां एक तरह से प्रयोक्ता की तरह समझा जा रहा है शायद यही कारण है कि कोई उनके नाम तक नहीं लेता।

मैंने कुछ वेबसाईट संचालकों तथा प्रचार प्रमुखों के बयान समाचार पत्रों में देखे हैं। वह हिंदी में ब्लाग बढ़ाने के अभियान में लगे होेने का दावा करते हैं और साथ ही उम्मीदें भी जगाते हैं। समाचार पत्रों में उनको अपना नाम देखकर शायद उनको प्रसन्नता होती है। इसमें कोई बुराई नहीं है पर क्या उनकी नजर में कोई ऐसा ब्लाग लेखक नहीं है जिसका नाम लेकर वह कह सकें कि ‘देखो अमुक अमुक ब्लाग लेखक हैं जो हिंदी में बहुत अच्छा लिख रहे हैं।’ वह ऐसा नहीं कहेंगे कि क्योंकि अगर उन्होंने दस या पंद्रह नाम लिये तो लोगों की जुबान पर चढ़ जायेंगे तब उनको अधिक पाठक मिलना तय है।

अभी हाल ही में पब और चड्डी विवाद में अंग्रेजी वेबसाईट का नाम दिया पर हिंदी वालों को एक भीड़ की तरह निपटा दिया। क्या यह खौफ नहीं था कि अगर नाम लिखा तो वह हिट पा लेंगे। अपनी वेबसाईटों के संचालक अपने ब्लाग का प्रचार खूब करते हैं पर उनके साथ पाठकों का कितना वर्ग जुड़ता है वह जानते हैं। जो हिंदी ब्लाग जगत में सक्रिय हैं वह जानते हैं कि कुछ ब्लाग अगर लोगों की नजर में पड़ जायें तो उसे पाठक अधिक मिलेंगे और उसका लाभ अंततः हिंदी ब्लाग जगत को ही मिलेगा। मगर उनका नाम सार्वजनिक रूप से लेने से कतराना प्रबंध कौशल का अभाव ही कहा जा सकता है।

कुछ लोग कहते हैं कि प्रसिद्ध सितारों और अन्य लोगों को लिखने के लिये प्रयोजित किया जा रहा है-पता नहीं यह सच है कि नहीं-पर इससे हिंदी ब्लाग जगत को कोई लाभ नहीं होने वाला है। अगर एक आम ब्लाग लेखक को प्रायोजित न करें तो उनके ब्लाग का ही थोड़ा प्रचार कर लिया जाये तो कौनसी बड़ी बात हो जाती। वैसे हम सामान्य प्रयोक्ता ही हैं और इंटरनेट कनेक्शन का भुगतान प्रतिमाह करते हैं और प्रसिद्ध होकर कहीं उससे कटवा न लें शायद यही एक भय रहता होगा। एक बात सत्य है कि भारत में ब्लाग का भविष्य हिंदी से ही जुड़ा है और जिस तरह ब्लाग के पाठों की संख्या बढ़ रही है वह संतोषप्रद नहीं है। हिंदी ब्लाग जगत को स्वतंत्र और मौलिक लिखने वाले ब्लाग लेखकों की सख्त जरूरत है पर इस भौतिकवादी युग में उनकों बिना किसी प्रश्रय के लंबे समय तक नहीं चलाया जा सकता। जहां तक पश्चिमी देशों की तुलना में भारतीयों की सामाजिक विषयों में कम रुचि का सवाल है तो उसका सीधा जवाब है कि भारत में हिंदी में सामाजिक विषयों में मौलिक तथा स्वतंत्र लेखकों के लिये कोई प्रश्रय नहीं है। अंग्रेजी में तो पाठकों की सीधे पहुंच होती है इसलिये उसके ब्लाग लेखकों को पाठक मिलना कोई कठिन काम नहीं है पर हिंदी की हालत यह है कि अभी ब्लाग लेखक फोरमों में अपने ही मित्रों से ही पाठक जुटाते हैं।
अभी उस दिनं एक वेबसाईट के संचालक का बयान अखबार में पढ़ने को मिला। मध्यप्रदेश में हिंदी के पाठक मिलने की उम्मीद उसने जताई थी पर उसने इस प्रदेश के किसी एक लेखक का नाम नहीं लिया जो लिख रहा है।
तब बड़ा आश्चर्य हुआ। हिंदी के लिये पाठक जुटाने की बात करने वाला वह शख्स क्या नहीं जानता कि हिंदी में मध्य प्रदेश से लिखने वाले कितने हैं और साथ में प्रसिद्ध भी हैं। ले देकर वहीं बात आ जाती है। कहते हैं कि हिंदी लेखन जगत में नहीं सभी जगह एक दूसरे को प्रोत्साहन देने की बजाय लोग टांग घसीटी में अधिक लगते हैं। अंतर्जाल पर सक्रिय प्रबंधक भी इस भाव से मुक्त नहीं हो पाये हैं। यह कोई शिकायत नहीं है। जिसकी मर्जी है वैसा करे फिर यहां ब्रह्मा होने का दावा भी तो कोई नहीं कर सकता। हां, एक बात स्पष्ट करना जरूरी है कि वह गलतफहमियों में न रहें। यहां वही ब्लाग लेखक डटकर लिखेंगे जिनको पाठक चाहेंगे। यह कोई अखबार नहीं है कि सुबह हाकर डालकर चला आयेगा तो पाठक वही पढ़ेंगे जो संपादक ने छापा हैं। वैसे भी अखबार खोलने में कम मेहनत होती है और खर्चा कम आता है। ब्लाग का मतलब है कि इंटरनेट पर एक बहुत बड़ी रकम खर्च करना। ऐसे में पाठक चाहेंगे बाहर से अलग कोई विषय या अनूठी सामग्री। जब तक आम पाठक को यहां के हिंदी ब्लाग जगत से परिचय नहीं कराया जायेगा तब तक इसके शीघ्र उत्थान की बात तो भूल ही जाईये। अनेक प्रतिष्ठित ब्लाग लेखक भी मानते हैं कि चार पांच वर्ष तक हिंदी ब्लाग जगत में कोई अधिक सुधार नहीं होने वाला। जिन लोगों ने हिंदी ब्लाग जगत का प्रबंध अपने हाथ में-शौकिया या पेशेवर रूप से-अपने हाथ में लिया है उन्हेें यह समझना चाहिये कि इसमें उन्नति और स्थिरता केवल स्वतंत्र और मौलिक ब्लाग लेखकों के हाथों से ही संभव है। अगर वह सोच रहे है कि बड़े और प्रसिद्ध नामों से प्रभावित लोग हिंदी ब्लाग जगत पर सक्रिय हो जायेंगे तो उसे गलत नहीं कहा जा सकता पर आम पाठक के मन में स्थाई रुझान केवल आम लेखक के प्रसिद्ध होने पर होगा। वरना तो स्थिति दो वर्ष से तो मैं ही देख रहा हूं। अभी तक वही ब्लाग लेखक हम लोगों में लोकप्रिय हैं जो दो वर्ष पहले थे। जहां तक भारत में सामाजिक विषयों में यौन विषय से अधिक रुझान होने की बात है अभी ठीक नहीं लगती। अगर सामाजिक विषयों में लोगों के रुझान बढ़ाने की बात है तो फिर ब्लाग लेखकों से ही उम्मीद की जा सकती है पर उसे बनाये रखने का प्रयास कौन कर रहा है? शायद कोई नहीं। अगर इसी तरह चलता रहा तो दस वर्ष तक भी कोई सुधार नहीं होने वाला।
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