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शिखर के चरम पर


मन ने कहा उस शिखर पर
चढ़ जाओ
जहाँ से तुम सबको दिख सको
लोग की जुबान और तुम्हारा नाम चढ़ जाये
चल पडा वह उस ऊंचाई पर
जो किसी-किसी को मिल पाती है
जो उसे पा जाये
दुनिया उसी के गुण गाती है
जो देखे तो देखता रह जाये
मन को फिर भी चैन नही आया
शिखर के चरम पर
उसने अपने को अकेला पाया
अब मन ने कहा
‘उस भीड़ में चलो
यहाँ अकेलेपन का
डर और चिंता के बादल छाये’

वह घबडा गया
बुद्धि ने छोड़ दिया साथ
उसने सोचा
‘जब तक इस शिखर पर हूँ
लोग कर रहे हैं जय-जयकार
उतरते ही मच जायेगा हाहाकार
जो जगह छोड़ दी अब वहाँ क्यों जाये’
अब अंहकार भी अडा है सामने
शिखर के चरम पर खडा है वह
अपने ही मन से लड़ता जाये

भीड़ में अकेलापन


घर में उसे अकेलापन डराने लगा
और वह भीड़ में पहुंचा
उससे बचने के लिए
वहाँ भी उसने सबको अकेले
अपने लिए ही सोचते देखा
भीड़ में सब बोल रहे थे
पर कोई खडा नहीं था सुनने के लिए
उसने सोचा वही
जब सब अपना दर्द सूना रहे हैं तो
स्वयं हीसबकी सुन लेता है
शायद बाद में कोई तैयार हो जाये
उसकी बात सुनने के लिए
सबकी बात सुनते वह हैरान हो गया
भूल गया कि उसका दर्द क्या था
जिसको लेकर वह इतना परेशान हो गया
वह चल पडा फिर अपने घर
दूसरों के दर्द की तस्वीर लिए
अब वह अकेला नहीं था
दूसरों की आपबीती भी उसके साथ थी
उसे अकेलेपन में समझाने के लिए

खुद से बेवफाई


जब भी मिले राह पर चलते हुए
कभी हमने उनके घर का पता पूछा नहीं
कई बार मुलाकात अकस्मात ही हुई
उनका हिसाब हमने रखा नहीं
जब भी मिले बहुत गर्मजोशी दिखाई
हर मौके पर काम आने की कसम खाई
रिश्ते का नाम दिया कभी मोहब्बत और
तो कभी कहा दोस्ती
हमने कभी नहीं मांगी सफाई
मिलना फिर बंद हो गया
समय-दर समय गुजरता रहा
हम राह तकते रहे
चेहरा उनका कभी नजर नहीं आया
हमने समझा हो गई जुदाई
कई बरस बाद फिर मिले उसी राह पर
चेहरा बुझा हुआ और
उम्र से अधिक लग रही थी काया
हमने जब वजह पूछी तो कहा
‘किसी के कहने पर बदला था रास्ता
चले उसी के कहने पर
ठोकरे थी नसीब में वही पायी
अपना नाम तक भूल गए
अपनी पहचान तक गंवाई
अपनी देह और दिल से उठाते रहे
अपने ही सपनों का बोझ
जो कभी नही बने सच्चाई
वह एक चमकीला पत्थर था जिसके पीछे
हमने अपनी उम्र गंवाई
वह क्या देता
हमने की खुद से बेवफाई

छोड़ जाते हैं अपना साथ


यूं तो चले थे साथ-साथ
थामे थे एक-दूसरे के हाथ
जीवन भर निभाने का वादा था
मझधार में थे दोनों
किनारा बहुत दूर था
कुछ हमने कहा कुछ उसने
बात करते ऐसा लगता था
जैसे बरसों पुराना है और
कई बरस रहेगा साथ
जो किनारे पर आये
वह मुहँ फिर कर चल दिए
अभी तक अपना समझ कर
खूब उन्होने किये थे वादे
और अभी हम हो गए
अजनबी उनके लिए
सच है रास्ते के साथी
नाव पर सवार मझधार से
किनारे तक ही होते हैं अपने
अपनी मंजिले और किनारे आते ही
छोड़ जाते हैं अपना साथ
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