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भगवान के नाम पर माया का खेल-आलेख


सांई बाबा के नाम पर रायल्टी वसूलने की बात सुनकर मैं बिल्कुल नहीं चौंका क्योंकि अभी और भी चौंकाने वाली खबरें आऐंगी क्योंकि जैसे-जैसे लोगों की बुद्धि पर माया का आक्रमण होगा सत्य के निकट भारतीय अध्यात्म उनको याद आयेगा उसके लिए अपना धीरज बनाये रखना जरूरी है। मैं प्रतिदिन अंर्तजाल पर चाणक्य, विदुर, कबीर, रहीम और मनु के संदेश रखते समय एकदम निर्लिप्त भाव में रहता हूं ताकि जो लिख रहा हूं उसे समझ भी सकूं और धारण भी कर सकूं। सच माना जाये तो योगसाधना के बाद मेरा वह सर्वश्रेष्ठ समय होता है उसके बाद माया की रहा चला जाता हूं पर फिर भी वह समय मेरे साथ होता है और मेरा आगे का रास्ता प्रशस्त करता है।

मुझे अपने अध्यात्म में बचपन से ही लगाव रहा है पर कर्मकांडों और ढोंग पर एक फीसदी भी वास्ता रखने की इच्छा नहीं रखता। सांई बाबा के मंदिर पर हर गुरूवार को जाता हूं और मेरा तो एक ही काम है। चाहे जहां भी जाऊं ध्यान लगाकर बैठ जाता हूं। सांईबाबा के मंदिर में हजारों भक्त आते और जाते हैं और सब अपने विश्वास के साथ माथा टेक कर चले जाते हैं। सांई बाबा के बचपन में कई फोटो देखे थे तो उनके गुफा या आश्रम के बाहर एक पत्थर पर बैठे हुए दिखाए जाते थे। मतलब उनके आसपास कोई अन्य आकर्षक भवन या इमारत नहीं होती थी। आज सांईबाबा के मंदिर देखकर जब उन फोटो को याद करता हूं तो भ्रमित हो जाता हूं। फिर सोचता हूं कि मुझे इससे क्या लेना देना। सांई बाबा की भक्ति और मंदिर अलग-अलग विषय हैं और मंदिरों में जो नाटक देखता हूं तो हंसता हूं और सोचता हूं कि क्या कभी उन संतजी ने सोचा होगा कि उनके नाम पर लोग हास्य नाटक भी करेंगे। अपनी कारें और मोटर सायकलें वहां पुजवाने ले आते हैं। वहां के सेवक भी उस लोह लंगर की चीज की पूजा कर उसको सांईबाबा का आशीर्वाद दिलवाते हैं। इसका कारण यह भी है कि सांईबाबा को चमत्कारी संत माना जाता है और लोगों की इसी कारण उनमें आस्था भी है।

अधिक तो मैं नहीं जानता पर मुझे याद है कि मुझे शराब पीने की लत थी और एक दिन पत्नी की जिद पर उनके मंदिर गया तो उसके बाद शुरू हुआ विपत्ति को दौर। पत्नी की मां का स्वास्थ्य खराब था वह कोटा चलीं गयीं और इधर मैं उच्च रक्तचाप का शिकार हुआ। अपनी जिंदगी के उस बुरे दौर में मैं हनुमान जी के मंदिर भी एक साथी को ढूंढकर ले गया। आखिर मैं स्वयं भी कोटा गया क्योंकि यहां अकेले रहना कठिन लग रहा था। वहां सासुजी का देहांत हो गया।

उसके बाद लौटे तो फिर हर गुरूवार को मंदिर जाने लगे। इधर मेरी मानसिक स्थिति भी खराब होती जा रही थी। ऐसे में पांच वर्ष पूर्व (तब तक बाबा रामदेव की प्रसिद्धि इतनी नहीं थी)एक दिन भारतीय योग संस्थान का शिविर कालोनी में लगा। संयोगवश उसकी शूरूआत मैंने गुरूवार को ही की थी।

यह मेरे जीवन की दूसरी पारी है। जिन दिनों शराब पीता था तब भी मैं भगवान श्री विष्णु, श्री राम, श्री कृष्ण, श्री शिवजी, श्रीहनुमान और श्रीसांईबाबा के के मंदिर जाता रहा और बाल्मीकि रामायण का भी पाठ करता । योगसाधना शुरू करने के बाद श्रीगीता का दोबारा अध्ययन शुरू किया और देखते देखते अंतर्जाल पर लिखने भी आ गया। मतलब यह कि ओंकार के साथ निरंकार की ही आराधना करता हूं। अपना यह जिक्र मैंने इसलिये किया कि इसमें एक संक्षिप्त कहानी भी है जिसे लोग पढ़ लें तो क्या बुराई है।

असल बात तो मैं यह कहना चाहता हूं कि भारतीय अध्यात्म का मूल रहस्य श्रीगीता में है और इस समय पूरे विश्व में अध्यात्म के प्रति लोगों का रुझान बढ़ रहा है। ‘अध्यात्म’ यानि जो वह जीवात्मा जो हमारा संचालन करता है। उससे जुडे विषय को ही अध्यात्मिक कहा जाता है। कई लोग सहमत हों या नहीं पर यह एक कटु सत्य है कि हमारे प्राचीन मनीषियों ने आध्यात्म का रहस्य पूरी तरह जानकर लोगों के सामने प्रस्तुत किया और कहीं अन्य इसकी मिसाल नहीं है। भारत की ‘अध्यात्मिकता’ सत्य के निकट नहीं बल्कि स्वयं सत्य है। यह अलग बात है कि विदेशियों की क्या कहें देश के ही कई कथित साधु संतों ने इसकी व्याख्या अपने को पुजवाने के लिये की । दुनियों में श्रीगीता अकेली ऐसी पुस्तक है जिसमें ज्ञान सहित विज्ञान है और उसमें जो सत्य है उससे अलग कुछ नहीं है। लोग उल्टे हो जायें या सीधे चाहे खालीपीली नारे लगाते रहें, तलवारे चलाये या त्रिशूल, पत्थर उड़ाये या फूल पर सत्य के निकट नही जा सकते। अगर सत्य के निकट कोई ले जा सकता है तो बस श्रीगीता और भारतीय आध्यात्मिक ग्रंथ। अपने देश के लोग कहीं पत्थरमार होली खेलते हैं तो कहीं फूल चढ़ाते हैं तो कही पशु की बलि देने जाते है कही कही तो शराब चढ़ाने की भी परंपरा है। श्रीगीता को स्वय पढ़ने और अपने बच्चों को पढ़ाने से डरते है कहीं मन में सन्यास का ख्याल न आ जाये जबकि भगवान श्रीकृष्ण ने तो सांख्ययोग (सन्यास) को लगभग खारिज ही कर दिया है। हां उसे पढ़ने से निर्लिप्त भाव आता है और ढेर सारी माया देखकर भी आप प्रसन्न नहीं होते और यही सोचकर आदमी घबड़ाता है कि इतनी सारी माया का आनंद नही लिया तो क्या जीवन जिया। अभी मैंने श्रीगीता पर लिखना शुरू नहीं किया है और जब उसके श्लोकों की वर्तमान संदर्भ में व्याख्या करूंगा तो वह अत्यंत दिल्चस्प होगी। यकीन करिये वह ऐसी नहीं होगी जैसी आपने अभी तक सुनी। आजकल मैं हर बात हंसता हूं क्योंकि लोगों को ढोंग और पाखंड मुझे साफ दिखाई देते है। कहता इसलिये नहीं कि भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि भक्त के अलावा इस श्रीगीता का ज्ञान किसी को न दें।

मंदिरों मे भगवान का नाम लेने जरूर लोग जाते हैं पर मन में तो माया का ही रूप धारण किये जाते हैं। मन में भगवान है तो माया भी वहीं है उसी तरह मंदिर में भी है वहां भी आपके मन के अनुसार ही सब है। अपनी इच्छा की पूर्ति के लिये लोग वहां जाते हैं तो कुछ लोग दर्शन करने चले जाते हैं तो कुछ लोग ऐसे ही चले जाते है। खेलती माया है और आदमी को गलतफहमी यह कि मै खेल रहा हूं । काम कर रही इंद्रियां पर मनुष्य अपने आप को कर्ता समझता है।

असल बात बहुत छोटी है। सांईबाबा संत थे और एक तरह से फक्कड़ थे। उनका रहनसहन और जीवन स्तर एकदम सामान्य था पर उनका नाम लेलेकर लोगों ने अपने घर भर लिये और अब अगर यह रायल्टी का मामला है तो भी है तो माया का ही मामला। कई जगह उनके मंदिर है और मैं अगर किसी दूसरे शहर में गुरूवार को होता हूं तो भी उनके मंदिर का पता कर वहां जरूर जाता हूं। मंदिरों में तो बचपन से जाने की आदत है पर मैं केवल इसलिये भगवान की भक्ति करता हूं कि मेरी बुद्धि स्थिर रहे और किसी पाप से बचूं। फिर तो सारे काम अपने आप होते है। कई मंदिरों पर संपत्ति के विवाद होते हैं और तो और वहां के सेवकों के कत्ल तक हो जाते हैं। यह सब माया का खेल है। अब अगर यह मामला बढ़ता है तो बहुत सारे विवाद होंगे। कुछ इधर बोलेंगे तो कुछ उधर। हम दृष्टा बनकर देखेंगे। वैसे भारतीय अध्यात्मिक ज्ञान सोने की खदान है और कुछ लोग इसको बदनाम करने के लिये भी ऐसे मामले उठा सकते हैं जिससे यह धर्म और बदनाम हो कि देखो इस धर्म को मानने वाले कैसे हैं? जानते हैं क्यों? अध्यात्म और धर्म अलग-अलग विषय है और जिस तरह विश्व में लोग माया से त्रस्त हो रहे हैं वह इसी ज्ञान की तरफ या कहंे कि श्रीगीता के ज्ञान की तरफ बढ़ेंगे। उनको रोकना मुश्किल होगा। इसीलिये उनके मन में भारतीय लोगों की छबि खराब की जाये तो लोग समझें कि देखो अगर इनका ज्ञान इस सत्य के निकट है तो फिर यह ऐसे क्यों हैं?
मैं महापुरुषों के संदेश भी अपने विवेक से पढ़कर लिखता हूंे ताकि कल को कोई यह न कहे कि हमारे विचार चुरा रहा है। यकीन करिय एक दिन ऐसा भी आने वाला है जब लोग कहेंगे कि हमारा इन महापुरुषों के संदशों पर भी अधिकार है क्योंकि हमने ही उनको छापा है। यह गनीमत ही रही कि गीताप्रेस वालों ने भारत के समस्त ग्रंथों को हिंदी में छाप दिया नहीं तो शायद इनके अनुवाद पर भी झगड़े चलते और हर कोई अपनी रायल्टी का दावा करता। जिस तरह यह मायावी विवाद खड़े किये जा रहे हैं उसके वह आशय मै नहीं लेता जो लोग समझते हैं। मेरा मानना है कि ऐसे विवाद केवल भारत के आध्यात्मिक ज्ञान को बदनाम करने के लिये किये जाते है। मुख्य बात यह है कि इसके लिये प्रेरित कौन करता है? यह देखना चाहिए। पत्रकारिता के मेरे गुरू जिनको मैं अपना जीवन का गुरू मानता हूं ने मुझसे कहा था कि तस्वीर तो लोग दिखाते और देखते हैं पर तुम पीछे देखने की करना जो लोग छिपाते हैं। देखना है कि यह विवाद आखिर किस रूप में आगे बढ़ता है क्योंकि श्री सत्य सांई बाबा विश्व में असंख्य लोगों के विश्व के केंद्र में है और जिस तरह यह मामला चल रहा है लोगों को उनसे विरक्त करने के प्रयासों के अलावा कुछ नहीं कहा जा सकता।

मरे मुद्दों की राख अंतर्जाल पर मत सजाओ-आलेख


प्रचार माध्यमों पर निरंतर आ रही जानकारियों ने देश के लोगों को आंदोलित किया है। सभी कहते हैं कि अंतर्जाल का जमाना है। सब इस परिवर्तन को दर्शाती कहानियों, आलेखों और कविताओं को पढ़ना चाहते हैं। वह अपनी आंखों से बदलते इस विश्व को देखने के साथ उसके बारे में पढ़ना चाहते है।
अंतर्जाल पढ़ने वाले लोग निराश है। जो लिख रहे हैं वह सारी सुविधाओं होने के बावजूद पुराने विषयों पर ही लिख रहे हैंं। वही वाद और नारे लगाने के साथ उसमें लिपटी कवितायें और कहानियां लिखे रहे हैं। लिखने वालों के पास ज्ञान की गहराई का अभाव है। टीवी चैनलों और अखबारों में अनेक लेखक चर्चित हैं मगर आम आदमी की वाणी पर किसी का नहीं है।
कई कवि और शायर अपनी रचनाओं को जबरन हृदयस्पर्शी बनाने का प्रयास करते हैं-उनके शब्दों का उपयोग यह स्पष्ट कर देता है। चंद घटनाओं को कविता का रूप देते हैं जिनको पहले ही लोग समाचारों पढ़ कर भूल चुके हैं। वह इन घटनाओं को ऐसे लिखते हैं जैसे उससे देश का इतिहास बदला हो। लोग अपनी कहानियों और व्यंग्यों में उन हिंसक मुद्दों को जीवंत बनाने का प्रयास कर रहे हैं जो चंद जगहों पर हुईं। देश के बहुत से लोगों ने उसे केवल समाचारों में पढ़ा। कई लेखक और कवि अभी भी उन पर लिख रहे हैं। उनको मुगालता है कि अतर्जाल पर लोकप्रियता मिल जायेगी। कुछ लोग उनकी किताबों की चर्चा करते हैं कि शायद उन्हें भी उसका कुछ अंश यहां मिल जायें। वह अंतर्जाल पर लिख रहे कवियों और लेखकों को अपने जैसा ही मानते हैं और उनका प्रचार करने से भय लगता है।
आखिर उनका उद्देश्य क्या है? वह खुद नहीं जानते। बस लिखना है। लोगों की संवेदनाओं को उबारने से शायद उनको लोकप्रियता मिल जाये। बेकार की कोशिश! लोगों की संवेदनायें मरी नहीं हैं यह एक सच है पर इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि लोगों ने प्रचार माध्यमों से इस सच का जान लिया है कि यहां कई घटनायें पहले से तय की जाती हैं। लड़ाईयों भी फिक्स होती हैंं। एक लेखक, कवि या शायर किसी समाचार पर एक कविता लिख देता है। वह कहता है कि मैं सैक्यूलर हूं और यह घटना उसके लिये खतरा है। दूसरा उस पर उबलता है। कहीं गुस्से और तो कहीं झगड़े होते हैं। कहीं विवाद होते हैं। ऐसे कवियों और शायरों के नाम अखबारों मे आते हैं जिनको कोई जानता नहीं। उनके विरोधी भी ऐसे ही हैं। मगर लोग सच जानते हैं कि आजकल सभी जगह फिक्सिंग है।

किसी आम आदमी से पूछिये तो वह बेहिचक कह देगा कि‘यह सब नाटक है।
मगर कवि और शायर है कि मुगालते में लिखे जा रहे हैं। लोग उम्मीद कर रहे थे कि अंतर्जाल पर कुछ नया पढ़ने को मिलेगा। मगर नही,ं यहां तो उन्हीं घिसे पिटे वाद और नारों पर चलने वाले गुरूओं के शिष्यों की जमात आ गयी है-जिनके पास न स्वतंत्र विचार हैं न मौलिकता से लिखने की क्षमता। समाचार पत्रों से उठाये गये विषयों को ही यहां रख रहे हैं। ऐसे लोग आत्ममुग्ध हैं उनको पता ही नहीं है कि लोगों की सोच में बदलाव आ रहा है। वह कुछ नया पढ़ना चाहते हैं। मगर इस पर उन्हें सोचने की फुरसत ही कहां? वह तो अखबार पढ़ा और फिर उस पर लिखने बैठ जाते हैं। अंतर्जाल पर कई नये लेखक बहुत अच्छा लिख रहे हैं पर कोई उनका लिखा अपने अंतर्जालीय पृष्ठों पर नहीं लिखता। कहीं से किताबों के अंश ले आये तो कभी किसी विदेशी कि कविता छाप दी। बस! वही ढर्रा! जिस पर देश चलता आ रहा है।

आम आदमी जानता है कि जहां तक अध्यात्म का प्रश्न है हमारे पुराने ग्रंथों में अपार सामग्री है। उसके बाद भी संतगण-तुलीसदास, कबीरदास, मीरा, रहीम और सूर- उनके लिये बहुत कुछ लिख गये हैं। अब और क्या लिख पायेगा पर वर्तमान सामाजिक परिवेश और अंतर्जाल से संबंधित अच्छी कहानियां, व्यंग्य और लेख पढ़ने को मिल जाये तो अच्छा है-लोग ऐसा सोचते हैं।
अंतर्जाल पर लिखने वाले इस नयी विधा पर कोई कहानी क्यों नहीें लिखते? क्या अंतर्जाल पर उनके पास कोई पात्र नहीं हैं या वहां कोई कहानियां नहीं बनती। मगर वाद और नारों पर चले इस देश का समाज चला तो फिर लेखक भी ऐसे ही हैं। कोई नई कल्पना करने की बजाय वह उपलब्ध विषयों पर ही लिखते हैं। अपने देश के किसी व्यक्ति द्वारा सुझाया गया विषय उनको मंजूर नहीं है। उन्हें तो अमेरिका और ब्रिटेन के अंग्रेज लेखकों द्वारा खोजे गये विषयों पर ही लिखना पसंद है। अंतर्जाल पर पढ़ने वाले लोगों को यह देखकर निराशा होती है कि अभी वहां स्वतंत्र रूप से कोई नहीं लिख पा रहा जबकि उसे यहां उस पर कोई बंधन नहीं है। अंतर्जाल लेखकों को पुराने विषयों से हटकर नये विषय चुने होंगे। उन्हें अपना मौलिक लेखन करना होगा वरना वह पिछड़ जायेंगे। ध्यान देने की बात है कि अब आप लिख किसी भी भाषा में रहे हैं पर उसे अन्य किसी भाषा का व्यक्ति भी पढ़ सकता है। पुराने वाद और नारों से दूर हो जाओ। पुराने हिंसक और तनाव के मुद्दों पर अब इस देश का आदमी नहीं भड़कता। वह जानता है कि आजकल कई मुद्दे बनाये जाते हैं। उन मरे मुद्दों की राख उठाकर अंतर्जाल पर मत सजाओ।

आखिर दलाई लामा ने भी लगाया चीन पर तिब्बत की स्थिति बिगाड़ने का आरोप


आखिर तिब्बत के निर्वासित धार्मिक नेता दलाई लामा ने भी वहां की बिगड़ी हालत के लिये चीन को ही जिम्मेदार ठहरा दिया। इससे पूर्व मैंने अपने लेख में यह संदेह जाहिर किया था कि चीन के शासक वहां के हालत बिगाड़ कर अपने सैन्य ठिकानों सुदृढ़ एवं विस्तृत करने का बहाना ढूंढ रहे हो सकते हैं। अब दलाई लामा ने जिस तरह उनका जिस तरह कटघरे में खड़ा किया है उसे जरूर देखना चाहिए।

दलाई लामा ने तो यहां बैठकर वहां के लोगों से शांति की अपील की थी फिर भी वहां क्यों हिंसा हो रही है? चीन के सम्राज्यवादी शासकों ने सांस्कृतिक क्रांति के बाद से ही चारों तरह एक तरह से आतंक की अभेद्य दीवार अपने देश में बना रखी है और उसे देख कर नहीं लगता कि वहां उसके शासकों की नजर के बिना किसी आंदोलन को चलाना तो दूर उसकी सोच भी नही सकता होगा। उसके पड़ौसी देशों में भी किसी की हिम्मत नहीं है कि उसके अंदर चल रही असंतुष्ट गतिविधियों को प्रत्यक्ष क्या अप्रत्यक्ष समर्थन भी दे सके।

एसा लगता है कि चीन की जनता को भले ही बाहर की हवा न लगी हो पर उसके नेता अब दूसरे देश के नेताओं से राजनीति का सबक सीख गये हैं। जब संपूर्ण देश में अशांति का माहौल हो तो किसी क्षेत्र विशेष में फैले अंसतोष को हवा दो ताकि लोगो का ध्यान उस ओर चला जाये। वहां फिर बलप्रयोग करो ताकि देश की जनता वाहवाही करे और दुश्मन डर जाये। यह आंदोलन चीनी नेताओं के इशारे पर उन नेताओं ने शुरू किया होगा जिन्हें चीन के राजनयिकों ने उपकृत किया होगा या ऐसा करने का आश्वासन दिया होगा-हालांकि इसमें उनके लिये जोखिम भी कम नहीं है क्योंकि जब चीन जब वहां अपना काम पूरा कर लेगा तब उनका भी वैसा ही हश्र होगा जैसा अन्य विरोधियों का होता आया है।

वैसे भी इस समय तिब्बतियों को स्वतंत्रता मिलना तो दूर स्वायत्ता मिलना भी कठिन है और अगर ऐसा कोई आंदोलन वहां चल रहा है तो उसे केवल पश्चिमी राष्ट्रों का मूंहजुबानी समर्थन ही मिल सकता है इससे अधिक कुछ आशा नही की जा सकती। भारत से बड़ा उपभोक्ता बाजार चीन का है और उसे पाने की होड़ सभी पश्चिमी राष्ट्रों में है। इसके अलावा सामरिक दृष्टि से चीन इतना ताकतवर है कि कोई उस पर हमला नहीं कर सकता। ऐसे में तिब्बत की चीन से मुक्ति अभी तो संभव नहीं है। ऐसे में वहां चल रहे कथित आंदोलन का लंबे समय तक चलना संभव नहीं है। इसके बावजूद विश्व के सभी देशों को उस पर नजर रखना ही चाहिए क्योंकि वह अपनी सामरिक शक्ति बढ़ायेगा जो कि विश्व के लिये हितकर नहीं है। अभी तक चीन ने तिब्बत को अपनी सैन्य छावनी बनाकर रखा हुआ है और अब वह वहां अपने देश के अन्य इलाकों से लोग लाकर अपनी ताकत बढ़ाना चाहता है। उसके कथित विकास के दावे खोखले हैं और चूंकि अब प्रचार माध्यम इतने व्यापक हो गये हैं इसलिय कोई देश अपने लोगों को दूसरे देशों से मिलने वाली जानकारी रोक नहीं सकता और निश्चित रूप से वहां की सरकार की जनता में असलियत अब खुल रही होगी और उससे विचलित वहां की सरकार उनका ध्यान बंटाने के लिये यह नाटक कर रही है-दलाई लामा के आरोप से तो यही लगता है।

तिब्बत मामले पर चीन से सतर्क रहना जरूरी-आलेख


तिब्बत में चीन के खिलाफ कथित आन्दोलन मुझे तो एक छद्म मामला लग रहा है। चीन में नाम मात्र की भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है और ऐसे आन्दोलन वहीं पनपते हैं जहाँ थोडी बहुत कोई बोलने और समझने की गुंजायश हो। चीन में जिस तरह लोगों की बोलने की आजादी को कसकर दबाया गया है उसके चलते यह संभव भी नहीं है।

चीन एक भयभीत राष्ट्र है और भय से क्रूरता का जन्म होता है। चीन ने इलेक्ट्रोनिक क्षेत्र में काफी तरक्की है और ऐसे में उसके न चाहने के बावजूद विदेशी प्रचार माध्यमों की पहुंच वहाँ के लोगों तक हुई है, और अब सामान्य लोग जागरूक हो रहे हैं। चीन के बारे में विश्व बहुत कम जानकारी उपलब्ध है पर जितनी उपलब्ध है वह उसकी कड़वी जमीनी वास्तविकताओं को दर्शाती है। उसकी विकास दर बहुत अधिक हैं पर उसमें कितना काला और सफ़ेद है यह अलग चर्चा का विषय है। कुल मिलाकर चीन में भी एक आम जनता का एक बहुत बड़ा वर्ग नाखुश है और लगता है कि तिब्बत में चीन के प्रमुख एक काल्पनिक दुश्मन खडा कर जनता का ध्यान बंटाने का प्रयास कर रहे है। भारत में रह रहे दलाई लामा ने वहाँ के लोगों से हिंसा से दूर रहने की अपील की है पर चीन तो शांति प्रदर्शन को भी सेना से कुचलने में लगा है। उसे शांतिपूर्ण आन्दोलन भी स्वीकार्य नहीं है। चीन को भय ने क्रूर बना दिया है।

चीन ने जिस तरह तिब्बत में भारत के रवैये का स्वागत किया है और यह चौंकाने वाले बात है और इसमें सतर्कता रखने वाली बात है। हो सकता है कि चीन ने राजनीतिक दावपेंच का इस्तेमाल करते हुए तिब्बत में तनाव पैदा किया हो और वहाँ इस बहाने अपना सैन्य तंत्र मजबूत कर रहा हो ताकि कभी उसका भारत के विरुद्ध इस्तेमाल किया जा सके।
वहाँ चीन अपनी सैन्य ताकत को इस तरह स्थापित कर सकता है कि भारत में घुसना आसान हो। बीच बीच में वह अरुणांचल पर अडियल रवैया अपनाकर वह इस बात का संकेत भी देता है कि उसका धीरज जवाब दे रहा है। यह इसलिए भी संदेहास्पद लग रहा है क्योंकि चीन में जो कठोर व्यवस्था है उसके चलते कोई भी उसके विद्रोहियों मदद नहीं कर सकता।

लेखक की स्मरण शक्ति मित्र भी होती है और शत्रु भी-चिंतन


होली का हल्ला थम चुका है। कोई नशे में मदहोश होकर तो कोई रंग खेलते हुए थककर सो रहा है तो कोई मस्ती में अभी भी झूम रहा है कि उसके खुश होने का कोटा पूरा हो जाये। सब इस दुनिया से बेखबर होना चाहते हैं मगर कुछ लोग फिर भी हैं जो चिन्त्तन करते हैं। आम आदमी की याददाश्त कमजोर होती है पर एक लेखक की स्मरण शक्ति ही उसकी मित्र होती है-कुछ मायनों में दुश्मन भी।

चेतावनियों के स्वर कानों में गूँज रहे हैं और आंखों के सामने अखबारों में छपे गर्मी के आसन्न संकट के शब्द घूम रहे हैं। इस होली पर पानी खूब उडाया गया होगा। इसमें किसी ने कोई हमदर्दी नहीं दिखाई। अब आरही है गर्मी। पहले से ही दस्तक दे चुकी है और उसका जो भयानक रूप सामने आने वाला है वह हर वर्ष हम देखते हैं। गर्मी में पानी की कमीं के हर जगह से समाचार आयेंगे। कहीं आन्दोलन होगा। लोगों के हृदय में उष्णता उत्पन्न होगी और उसका ध्यान बंटाने के लिए बहुत सारे अन्य अर्थहीन विषय उठाये जायेंगे।

कभी-कभी लगता है देश में कोई समस्या ही नहीं है केवल दिखावा है। लोग पानी को रोते हैं पर फैलाते भी खूब हैं। देश के शहरों में सबके पास मोबाइल दिखता है उस पर बातें करते हैं। कौन है जो देश की हालत पर रोता है। कहीं से किसानों की आत्महत्या की खबर आती है पर कहीं कोई प्रतिक्रिया नहीं होती। सब कुछ सामान्य चलता दिख रहा है। लोग घुट-घुटकर जी रहे हैं पर बाहर से दिखता है कि सामान्य हैं। लोग चीख रहे हैं पर कोई किसी की नहीं सुन रहा है। किसी से ज्ञान चर्चा करना निरर्थक लगता है क्योंकि वह अगले ही पर अपने अज्ञान का परिचय देता है।

वैचारिक रूप से दायरों में सिमट गए लोगों से अब बात करना मुश्किल लगता है। जिसके पास जाओ वह या तो अपने घर की परेशानी बताता है या वह उसकी किसी भौतिक उपलब्धि का बयान करता है। में खामोश होकर सुनता हूँ। मुझे अपने घर-परिवार के जो काम करने हैं उनको करता हूँ। जो चीजें लाना होता है लाता हूँ पर उनका बखान नहीं करता।
”सुनो कल मैं मेले गया था वहाँ से नया फ्रिज ले आया।”
”मैंने अपने बेटे को गाडी दिलवा दी।”
”मैंने अपनी बेटी को मोबाइल दिलाया है।”
सब सुनता हूँ। फिर करते हैं देशकाल और राजनीति की बातें-जैसे कि बहुत बडे ज्ञाता हों। जब बताओ कि किस तरह सब जगह तयशुदा कार्यक्रम के अनुसार उनकी बुद्धि को संचालित किया जा रहा है। समाचार उनको इस तरह दिए जा रहे हैं कि देश, समाज और लोगों की यथास्थिति बनी रहे और वह उसमें बदलाव की नहीं सोचें। बदलाव की बात कोई सोच कर वह कई लोगों के लिए परेशानी पैदा करेंगे। व्यवस्था में सुधार की बातें पर बहुत की जातीं हैं पर बदलाव की नहीं। तमाम तरह के वादे और नारे गढे गए और भी गढे जायेंगे।

कभी-कभी उकता जाता हूँ, फिर सोचता हूँ कि सब मेरी तरह नहीं हो सकते। अपने जैसे लोगों का संपर्क ढूँढता हूँ और जब वह मिलते हैं तो लगता है कि वह भी इस दुनिया से क्षुब्ध हैं पर बदलाव की बात पर वह भी उदास हो जाते हैं उनको नहीं लगता कि वह उसे बदल सकते हैं और खुद को भी बदलने पर अपने साथ जुडे लोगों के विद्रोह का भय उन्हें सताता है-जिसे मोह भी कह सकते हैं।

कहीं एकांत मंदिर में जाकर बैठता हूँ और ध्यान लगाता हूँ। श्रीगीता में श्री कृष्ण जी के यह शब्द ”गुण ही गुण को बरतते हैं” मुझे याद आते है। मेरे अधरों पर मुस्कराहट खेल जाती है। मन प्रसन्न हो जाता है। भला मैं दूसरों से क्या अपेक्षा करूं। दूसरे के अन्दर गुणों का मैं नियंत्रणकर्ता नहीं हो सकता। जो गुण उसमें है नहीं और वह पैदा भी नहीं कर सकता उससे भला मैं क्यों कोइ अपेक्षा करूं। मैं निर्लिप्त भाव को प्राप्त होता हूँ। यह दुनिया मेरी नहीं है बल्कि मैं इसमें हूँ। वह चलती रहेगी उसके साथ मुझे चलना है और उसे दृष्टा बनकर चलते देखना है। लोगों को अपने मन ,बुद्धि और अहंकार के वश में पडा देख कर उनका अभिनय देखना है। धीरे-धीरे मन की व्यग्रता ख़त्म हो जाती है।

मूर्ख लिखते हैं और समझदार पढ़ते हैं-हास्य व्यंग्य


ब्लोगर अपने घर के बाहर पोर्च पर अपनी पत्नी के साथ खडा था। उसी समय दूसरा ब्लोग आकर दरवाजे पर खडा हो गया। पहला ब्लोगर इससे पहले कुछ कहता उसने अभिवादन के लिए हाथ उठा दिए-”नमस्ते भाभीजी।

पहला ब्लोगर उसकी इन हरकतों का इतना अभ्यस्त हो चुका था कि उसने अपनी उपेक्षा को अनदेखा कर दिया। वह कुछ उससे कहे गृहस्वामिनी ने उसका स्वागत करते हुए कहा-”आईये ब्लोगरश्री भाईसाहब। बहुत दिनों बाद आपका आना हुआ है।”

पहले ब्लोगर ने प्रतिवाद किया और कहा-”हाँ, अगर उस सम्मानपत्र की बात कर रही हो जो यह कहीं से छपवाकर लाया और तुमसे हस्ताक्षर कराकर ले गया था तो मैं बता दूं उससे यह तय करना मुश्किल है कि यह ब्लोगश्री है कि ब्लोगरश्री। अभी उस भ्रम का निवारण नहीं हुआ है। अभी इसके नाम के आगे किसी पदवी का उपयोग करना ठीक नहीं है।”

गृहस्वामिनी ने दरवाजा खोल दिया। दूसरा ब्लोगर अन्दर आते हुए बोला-”यार, आज तुमसे जरूरी काम पड़ गया इसलिए आया हूँ।”
पहले ब्लोगर ने कहा-”तुम कल आना। आज मुझे एक जरूरी पोस्ट लिखनी है।
गृहस्वामिनी ने बीच में हस्तक्षेप किया और कहा-”आप कंप्यूटर के पास बैठकर बात करिये। मैं तब तक चाय बनाकर लाती हूँ। घर आये मेहमान से ऐसे बात नहीं की जाती है। ”
पहले ब्लोगर को मजबूर होकर उसे अन्दर ले जाना पडा। दूसरे ब्लोगर ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा–”मैं होली पर मूर्ख ब्लोगर सम्मेलन आयोजित करना चाहता हूँ। अपने शहर में तो बहुत कम लोग लिखते हैं कोई ऐसा शहर बताओ जहाँ लिखे वाले अधिक हों तो वहीं जाकर एक सम्मेलन कर लूंगा। तुम तो इंटरनेट पर लिखने वाले अधिकतर सभी ब्लोगरों को जानते हो.”
पहले ब्लोगर ने शुष्क स्वर में कहा-”हाँ, यहाँ तो तुम अकेले मूर्ख ब्लोगर हो। इसलिए कोई सम्मेलन नहीं हो सकता। किस शहर में मूर्ख ब्लोगर अधिक हैं मैं कैसे कह सकता हूँ।

दूसरा ब्लोगर बोला-”मैंने तुमसे कहा नहीं पर हकीकत यह है कि मेरी नजर में तुम एक मूर्ख ब्लोगर हो। जो ब्लोगर लिखते हैं वह मूर्ख और जो पढ़ते हैं वह समझदार हैं। समझदार ब्लोगर पढ़कर कमेन्ट लगाते हैं और कभी-कभी नाम के लिए लिखते हैं।”
पहले ब्लोगर ने कहा-”ठीक है। फिर इस मूर्ख ब्लोगर के पास क्यों आये हो? अपना काम बता दिया अब निकल लो यहाँ से।

दूसरा ब्लोगर बोला-”यार, मैं तो मजाक कर रहा था। जैसे होली पर मूर्ख कवि सम्मेलन होता है उसमें भारी-भरकम कवि भी मूर्ख कहलाने को तैयार हो जाते हैं। वैसे ही मैं ब्लोगरों का सम्मेलन करना चाहता हूँ।तुम तो मजाक में कहीं बात का बुरा मान गए.”

इतने में गृहस्वामिनी चाय लेकर आ गए, साथ में प्लेट में बिस्किट भी थे।
दूसरा ब्लोगर बोला-”भाभीजी की मेहमाननवाजी का मैं कायल हूँ। बहुत समझदार हैं।
पहले ब्लोगर ने कहा-”हाँ, हम जैसे मूर्ख को संभाल रही हैं।”
दूसरा ब्लोगर ने कहा–”नहीं तुम भी बहुत समझदार हो। वर्ना इंटरनेट पर इतने सारे ब्लोग पर इतना लिख पाते। ”
वह चली गयी तो दूसरा ब्लोगर बोला-”देखो, तुम्हारी पत्नी के सामने तुम्हारी इज्जत रख ली।”
पहले ब्लोगर ने कहा–”मेरी कि अपनी। अगर तुम नहीं रखते तो अगली बार की चाय का इंतजाम कैसे होता।
दूसरे ब्लोगर ने कहा–”अब यह तो बताओं किस शहर में अधिक ब्लोगर हैं।
पहले ने कहा-”यहाँ कितने असली ब्लोगर हैं और कितने छद्म ब्लोगर पता कहाँ लगता है। ”
दूसरे ने कहा-”ठीक है मैं चलता हूँ। और हाँ इस ब्लोगर मीट पर एक रिपोर्ट जरूर लिख देना।तुम्हारे यहाँ आकर अगर कोई काम नहीं हुआ। मुझे मालुम था नहीं होगा पर सोचा चलो एक रिपोर्ट तो बन जायेगी।”
पहला ब्लोगर इससे पहले कुछ कहता, वह कप रखकर चला गया। गृहस्वामिनी अन्दर आयी और पूछा-”क्या बात हुई?”
पहले ब्लोगर ने कहा-”कह रहा था कि मूर्ख ब्लोगर लिखते हैं और समझदार पढ़ते हैं?”
गृहस्वामिनी ने पूछा-”इसका क्या मतलब?”
ब्लोगर कंधे उचकाते और हाथ फैलाते हुए कहा-”मैं खुद नहीं जानता। पर मैं उससे यह पूछना भूल गया कि इस ब्लोगर मीट पर हास्य कविता लिखनी है कि नहीं। अगली बार पूछ लूंगा।”

नोट-यह हास्य-व्यंग्य रचना काल्पनिक है और किसी घटना या व्यक्ति से इसका कोई संबंध नहीं है. अगर किसी से मेल हो जाये तो वही इसके लिए जिम्मेदार होगा. इसका रचयिता किसी दूसरे ब्लोबर से नहीं मिला है।

पाकिस्तान में ऊहापोह की स्थिति


पाकिस्तान में लोकतंत्र की वापसी अभी हुई हैं यह मानना कठिन है। जिस तरह वहाँ के समीकरण बन रहे हैं उससे तो ऐसा लगता है कि पुराने नेताओं के आपसी विवाद फ़िर उभर का आयेंगे। वहाँ पीपीपी (पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी) की संभावना लग रही हैं। हालांकि नवाज शरीफ की पार्टी का अभी पीपीपी को समर्थन है पर उसके प्रमुख आसिफ जरदारी की कोशिश अन्य दलों को भी अपने साथ लेकर चलने की है। इस प्रयास में उन्होंने एम क्यू एम (मुहाजिर कौमी मूवमेंट) के प्रमुख अल्ताफ हुसैन से बातचीत की है। ऐसा लगता है कि इससे उनका अपने प्रांत सिंध में इसका विरोध हो रहा है।

वर्डप्रेस के ब्लॉग पर मेरी कुछ श्रेणियां अंग्रेजी में हैं जहाँ से जाने पर पाकिस्तानी ब्लोगरों के ब्लॉग दिखाई देते हैं। कल मैंने उनके एक ब्लॉग को पढा उसमें आसिफ जरदारी से एम क्यू एम को साथ न चलने चलने का सुझाव दिया गया। नवाज शरीफ से चूंकि चुनाव पूर्व ही सब कुछ तय है इसलिए पीपीपी के लिए अपने सबसे जनाधार वाले क्षेत्र में इसका कोई विरोध नहीं है पर एम क्यू एम का सिंध में बहुत विरोध है क्योंकि सिंध मूल के लोगों से मुहजिरों से धर्म के नाम पर एकता आजादी के बाद कुछ समय तक रही पर साँस्कृतिक और भाषाई विविधता से अब वहाँ संघर्ष होता रहता है। मुहाजिर उर्दू को प्रधानता देते हैं जबकि सिन्धी अपनी मातृभाषा को प्यार करते हैं। इसके अलावा सिंध मूल के लोगों में मुस्लिम सूफी विचारधारा से अधिक प्रभावित रहे हैं और उन पर पीर-पगारो का वर्चस्व रहा है। इसलिए सांस्कृतिक धरातल पर सिन्धियों और मुहाजिरों में विविधता रही है। इसलिए ही सिंध में मुहाजिरों की पार्टी एम.क्यू.एम. से किसी प्रकार का तात्कालिक लाभ के लिए किया गया तालमेल पीपीपी को अपने जनाधार से दूर भी कर सकता है और हो सकता है अगले चुनाव में-जिसकी संभावना राजनीतिक विशेषज्ञ अभी से व्यक्त कर रहे हैं- अपने लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ सकता है।
पाकिस्तानी ब्लोगरों के विचारों से तो यही लगता है कि वह लोग एम.क्यू.एम से पीपीपी का समझौता पसंद नहीं करेंगे। इधर यह भी संकट है कि अगर नवाज शरीफ पर ही निर्भर रहने पर पीपीपी की सरकार को उनकी वह मांगें भी माननी पड़ेंगी जिनका पूरा होना पार्टी को पसंद नहीं है। शायद यही वजह है कि अभी तक वहाँ ऊहापोह के स्थिति है।
इन चुनावों का मतलब यह कतई नहीं है कि पाकिस्तान में लोकतंत्र बहाल होने के बावजूद स्थिर रहेगा। इसके लिए पाकिस्तान के नेताओं को लोकतंत्र की राजनीति के मूल सिद्धांत पर चलना होगा’ लोकतंत्र में अपने विरोधी को उलझाए रहो पर उसे ख़त्म मत करो, क्योंकि उसे ख़त्म करोगे तो दूसरा आ जायेगा और हो सकता है कि वह पहले से अधिक भारी भरकम हो’।
मियाँ नवाज शरीफ ने बेनजीर को बाहर भागने के लिए मजबूर किया। राष्ट्रपति पद से लेघारी को हटाया और अपना एक रबर स्टांप राष्ट्रपति बिठाया पर नतीजा क्या हुआ? मुशर्रफ जैसा विरोधी आ गया जिसने लोकतंत्र को ही ख़त्म कर दिया। इसलिए अब राजनीति कर रहे नेताओं का यह सब चीजे समझनी होंगी क्योंकि अभी वहाँ लोकतंत्र मजबूत होने बहुत समय लगेगा और नेताओं के आपसी विवाद फ़िर सेना को सत्ता में आने का अवसर प्रदान करेंगे।

कुछ इधर-उधर की-आलेख


जब अपने ब्लोग पर कोई टिप्पणीनहीं होती तो एक निराशा मन में घर कर जाती है और ऐसा लगता है कि हम व्यर्थ ही लिख रहे हैं। अगर मुझे शुरू से ही टिप्पणियाँ नहीं मिली होती तब शायद इस बारे में नहीं सोचता और न लिखता। शुरू में जब मैंने लिखना शुरू किया तो मुझे यह मालुम भी नहीं था कि इस तरह टिप्पणियाँ मिलेंगी और मैं भी लिखूंगा। फिर जब टिप्पणियाँ आनी शुरू हुईं तो मुझे हिन्दी में लिखने का आईडिया भी नहीं था। बाद में ब्लोग स्पॉट पर टाईप कर दूसरेब्लोग पर टिप्पणियाँ करने लगा। शुरू में मैं केवल औपचारिक रूप से कमेंट रखता पर अब पूरा पढ़कर उसके अंशों पर टिप्पणियाँ करता हूँ। टिप्पणियों को लेकर मेरे अन्दर कोई दुराग्रह नहीं है। जिस ब्लोग को पढता हूँ और उससे अगर प्रभावित होता हूँ तो इस बात की परवाह नहीं करता कि उस ब्लोगर ने मुझे कभी टिप्पणी दी कि नहीं और आगे देगा कि नहीं। मैंने आत्ममंथन किया और पाया कि यह विचार अपने अन्दर एक प्रकार की कुंठा पैदा करता है और उससे अपना रचना कर्म प्रभावित होता है।
मैं बहुत लिखने वालों में हूँ इसलिए यह आशा तो बिलकुल नहीं करता कि मेरे मित्र मुझे हर लिखे पर टिप्पणी दें क्योंकि मेरा यहाँ उद्देश्य अपनी बात आम पाठक तक पहुँचना है। इसके बावजूद अपनी लिखी पोस्ट पर कमेन्ट आयेगी कि नहीं मुझे पता होता है। कुछ पोस्ट लिखते ही मुझे पता लग जाता है कि इस पर कोई टिप्पणी नहीं आयेगी क्योंकि वह भले ही मेरी दृष्टि से बहुत अच्छी और उसे पढ़ने वालों की संख्या भी कमनहीं होती परउसमें कुछ ऐसी विवादस्पद बातें होतीं है कि लोग उनसे टिप्पणी करने से बचते हैं । हाँ कुछ ऐसी कवितायेँ हास्य या गंभीर सन्देश का भाव से सराबोर होतीं हैं और उनको पोस्ट करते समय मुझे पता लग जाता है कि कोई न कोई टिप्पणी जरूर आयेगी। आखिर जब मैं किसी से प्रभावित होकर दूसरों को कमेन्ट देने में परवाह नहीं करता तो कई और लोग भी हैं जो इस बात के परवाह नहीं करते कि मैं उनको कमेन्ट देता हूँ किनहीं।
अब मैं अपने लिखे पर ही अधिक ध्यान देता हूँ कि वह पढ़ने वालों को प्रभावित कर सके। कई बार कुछ लोगों को कमेन्ट न मिलने के शिकायत होती है उन्हें एक बात मैं कहना चाहता हूँ कि वह इस बात की परवाह न करें क्योंकि कमेन्ट न आना इस बात का प्रमाण नहीं है कि लोग हमसे चिढे हुए हैं या उपेक्षा कर रहे हैं। इसका कारण पोस्ट का प्रभावपूर्ण न होना भी हो सकता है और दिन और समय भी। दिन के समय ब्लोगर कम ही सक्रिय दिखते हैंकभी तो ऐसा लगता है कि सुबह और शाम अधिक उपलब्ध होते हैं दूसरे शादी और क्रिकेट के दिनों और समय में भी उनके सक्रियता कम दिखती है। ऐसे में कमेन्ट लगाने वालों की संख्या कम हो जाती है।
आखिरी बात यह कि जिन लोगों को यह शिकायत है कि कमेन्ट कम मिल रहीं है उन्हें यह भी सोचना चाहिए कि वह स्वयं कमेन्ट कितनी देते हैं। अगर उनको लगता है कि उनको कम पढा जा रहा है तो इसके लिए भी वह खुद ही जिम्मेदार हैं क्योंकि वह स्वयं भी ब्लोग को नहीं पढ़ रहे वरना उनको यह पता लगता कि यहाँ किस तरह के पाठक है और उनके प्रिय विषय क्या हैयहाँ एक बात समझ लेना चाहिऐ कि अधिकतर ब्लोगर उच्च शिक्षा प्राप्त हैं और हल्का-फुल्का लिखकर उनको प्रभावित नहीं कर सकते-भले ही कुछ लोगों को औपचारिक रूप से कमेन्ट देते हों। कुछ लोग दूसरों के ब्लोग अपने यहाँ दिखाते हैं। शीर्षक के साथ अपनी एक लाइन जोड़ देते हैं। उनको एक नहीं बारह कमेन्ट होते हैं पर जिनके ब्लोग वहाँ है उनको कोई देखता भी नहीं है। एक प्रतिष्ठत ब्लोग पर मेरे एक नहीं तीन ब्लोग के शीर्षक थे पर मेरे ब्लोग पर एक भी पाठक वहाँ से नहीं आया और उस पर पंद्रह कमेन्ट थे। मतलब यह कि जिस तरह कमेन्ट आना अच्छी रचना होने का प्रमाण नहीं है उसी तरह उसका न आना भी खराब होने का प्रमाण नहीं है। हाँ अगर बहुत अच्छी है तो कई लोग बिना हिचक कमेन्ट देंगे ही-यही सोचकर लिखता जाता हूँ। लिखना और कमेन्ट लेना-देना दो अलग विधाएं हैं अत: दोनों के बारे में अपना दृष्टिकोण अलग-अलग समय पर अलग रखना होगा। कमेन्ट लिखने के लिए हम जैसे खुद हैं वैसे ही सब हैं । हिन्दी लेखन के लिए यह एक अलग और नया विषय है और इसमें किसी से उम्मीद करने की बजाय हमें भी इसलिए लिए तैयार करना होगा। हाँ अपने लिखे पर अवश्य ध्यान दें क्योंकि यह आगे आम पाठक द्वारा भी पढा जाने वाला है अत: अपने विषय का चयन करते समय इस बात का ध्यान भी अवश्य रखें ।

वह चला क्रिकेट मैच देखने


अपने गंजू को भी पता नहीं क्या धुन सवार हुई कहने लगा-”क्रिकेट मैच देखने स्टेडियम जाऊंगा। आप चलेंगे”
हमने कहा-”अखबार पढ़ते हो?”
वह बोला-”नहीं! इस बेकार के काम में मैं नहीं पड़ता, और जो पड़ते हैं उन पर रहम खाता हूँ। क्या सुबह-सुबह बुरी खबरें पढ़ना?”
हमने पूछा-”टीवी पर न्यूज चैनल देखते हो।”
गंजू बोला-”नहीं। उस पर इतने सारे मनोरंजक चैनल आते हैं, मुझ जैसा व्यक्ति क्यों समाचार देखने में वक्त गंवायेगा।”
हमने कहा-”हमारा दुर्भाग्य है की हम यह बेकार के काम करते हैं और उसमें मैचों को देखने वालों की जो हालत सुनते हैं उसके मद्देनजर स्टेडियम पर जाकर मैच देखने का साहस नहीं कर सकते।”
गंजू बोला-”ठीक है और कोई साथ ढूंढता हूँ। वह तो मेरा एक दोस्त बाहर चला गया इसलिए कोई साथ पाने के लिए आपके सामने प्रस्ताव रखा।”
हमने कहा-”इसके लिए शुक्रिया! तुम्हारा वह दोस्त भाग्यशाली है जो बच गया।”गंजू बोला-”आप नहीं चल रहे तो कोई और साथी ढूंढ लूंगा।”
हमने कहा-”हमारी तरफ से शुभकामनाएं स्वीकार कर लो। क्योंकि आजकल स्टेडियम के अन्दर जाकर क्रिकेट मैच देखना कोई सरल काम नहीं है।”
वह चला गया। हम भी भूल गए। मैच के अगले दिन हम सुबह देखा एक लड़का हाथ और सिर में पट्टी बांधे चला आ रहा है। वह हमारे सामने आकर खडा हो गया और नमस्कार की। पहले तो हमने उसे पहचाना नहीं फिर जब गौर से देखा तो एकदम मुहँ से चीत्कार निकल गई-”अरे गंजू तुम। यह क्या हाल बना रखा है। कहीं किसी ने पीट तो नहीं दिया।”
वह रुआंसे स्वर में बोला-”अपने यह नहीं बताया था कि इस तरह इतना बवाल भी मच सकता है। लोगों की इतनी भीड़ थी कि अन्दर जाने का मौका ही नहीं मिल पाया। पुलिस ने लाठीचार्ज किया।” ”क्या तुम्हें भी मारा-“
हमने पूछा वह बोला-” नहीं, भागमभाग में गिर गया। इससे तो अच्छा तो घर पर मैच देखता। वहाँ तो सारा समय अन्दर घुसने की सोचता निकल गया।”
”तुमने अखबार या टीवी देखा, हो सकता है उसमें तुम्हारे गिर कर घायल होने का फोटो छपा हो।”
हमने पूछा वह एक दम खुश हो गया और बोला-”ऐसा हो सकता है। मैं अभी जाकर देखता हूँ। मैं मैदान में कोई मैच-वैच थोडे ही देखना चाहता था, बल्कि यह सोचकर जाना चाहता था कि कहीं दर्शकों में मेरा फोटो आ गया तो अपनी गर्ल फ्रेंड पर रुत्वा जमाऊंगा। इसलिए इतनी मेहनत की। अब अगर आप कह रहे हैं तो देखता हूँ अखबार या टीवी में अगर मेरी फोटो आयी होगी तो मजा आयेगा।”
वह चला गया और हम हैरानी से सोचते रहे कि वह क्रिकेट के बारे में जानता भी है कि नहीं क्योंकि इससे पहले कभी उसने क्रिकेट पर चर्चा नहीं की।”

मिठाई और जुदाई


वह सड़क पर रोज खडा होकर उस लड़की से प्रेम का इजहार करता था और कहता”-आई लव यू।
”कभी कहता-”मेरे प्रपोजल का उत्तर क्यों नहीं देती।”वह चली जाती और वह देखता रह जाता था। आखिर एक दिन उसने कहा कहा-”मुझे ना कर दो, कम से कम अपना वक्त खराब तो नहीं करूं।”
वह लडकी आगे बढ़ गयी और फिर पीछे लौटी-”तुम्हारे पास प्यार लायक पैसा है।
”वह बोला-”हाँ, गिफ्ट में मोबाइल, कान की बाली और दो ड्रेस तो आज ही दिलवा सकता हूँ।
”लड़की ने पूछा-”तुम्हारे पास गाडी है।
”लड़के न कहा-”हाँ मेरे पास अपनी मोटर साइकिल है, वैसे मेरी मम्मी और पापा के पास अलग-अलग कार हैं। मम्मी की कार मैं ला सकता हूँ।”
लड़की ने पूछा-“तुम्हारे पास अक्ल है?”
लड़के ने कहा-”हाँ बहुत है, तभी तो इतने दिन से तुम्हारे साथ प्रेम प्रसंग चलाने का प्रयास कर रहा हूँ। और चाहो तुम आजमा लो।”

लड़की ने कहा-”ठीक है। धन तेरस को बाजार में घूमेंगे, तब पता लगेगा की तुम्हें खरीददारी की अक्ल है कि नहीं। हालांकि तुम्हें थोडा धन का त्रास झेलना पडेगा, और बात नहीं भी बन सकती है।”
लड़का खुश हो गया और बोला-”ठीक, आजमा लेना।
धन तेरस को दोनों खूब बाजार में घूमें। लड़के ने गिफ्ट में उसे मोबाइल,कान की बाली और ड्रेस दिलवाई। जब वह घर जाने लगी तो उसने पूछा-”क्या ख्याल है मेरे बारे में?”
लड़की ने कहा-”अभी पूरी तरह तय नहीं कर पायी। अब तुम दिवाली को घर आना और मेरी माँ से मिलना तब सोचेंगे। वहाँ कुछ और लोग भी आने वाले हैं।”
लड़का खुश होता हुआ चला गया। दीपावली के दिन वह बाजार से महंगी खोवे की मिठाई का डिब्बा लेकर उसके घर पहुंचा। वहाँ और भी दो लड़के बैठे थे। लड़की ने उसका स्वागत किया और बोली-”आओ मैं तुम्हारा ही इन्तजार कर रही थी, आओ बैठो।”
लड़का दूसरे प्रतिद्वंदियों को देखकर घबडा गया था और बोला -”नहीं मैं जल्दी में हूँ। मेरी यह मिठाई लो और खाओ तो मेरे दिल को तसल्ली हो जाये।”
लड़की ने कहा-”पहले मैं चेक करूंगी की मिठाई असली खोये की की या नकली की। यह दो भी बैठे हैं इनके भी चेक कर करनी है। यही तुम्हारे अक्ल की परीक्षा होगी। ”
लड़के ने कहा-”असली खोवे की है, उसमे बादाम और काजू भी हैं। ”
लडकी ने आँखें नाचते और उसकी मिठाई की पेटी खोलते हुए पूछा-”खोवा तुम्हारे घर पर बनता है।” लड़का सीना तान कर बोला-”नहीं, पर मुझे पहचान है।”लडकी ने मिठाई का टुकडा मुहँ पर रखा और फिर उसे थूक दिया और चिल्लाने लगी-”यह नकली खोवे की है।”
लड़का घबडा गया और बोला-”पर मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ।”
लडकी ने कहा-‘तभी यह नकली खोवे की मिठाई लाये हो। तुम फेल हो गए। अब तुम जाओ इन दो परीक्षार्थियों की भी परीक्षा लेनी है।”
लड़का अपना मुहँ लेकर लौट आया और बाहर खडा रहा। बाद में एक-एक कर दोनों प्रतिद्वंद्वी भी ऐसे ही मुहँ लटका कर लौट आये। तीनों एक स्वर में चिल्लाए-”इससे तो मिठाई की जगह कुछ और लाते, कम से कम जुदाई का गम तो नहीं पाते।”
हालांकि तीनों को मन ही मन में इस बात की तसल्ली थी की उनमें से कोई भी पास नहीं हुआ था।
नोट-यह एक काल्पनिक व्यंग्य है और किसी व्यक्ति या घटना से इसका कोई लेना-देना नहीं है और किसी की कारिस्तानी से मेल खा जाये तो वही इसके लिए जिम्मेदार होगा।

मनु स्मृति:जिसके सामने प्रजा लुटे वह राजा मृतक समान


१.उस राजा को जीवित रहते हुए भी मृतक समान समझना चाहिए जिसके स्वयं या राज्य के अधिकारियों के सामने चीखती-चिल्लाती प्रजा डाकुओं द्वारा लूटी जाती है।
२.प्रजा का पालन करना ही राजा का धर्म होता है। जो इस धर्म का पालन करता है वाही राज्य सुखों को भोगने का धिकारी है।

३.यदि राजा रोग आदि या किसी अन्य कारण से राज्य के सभी विषयों का निरीक्षण करने में समर्थ न हो तो उसे अपनी जगह धर्मात्मा , बुद्धिमान, जितेन्द्रिय, सभी और श्रेष्ट व्यक्ति को मुख्य अमात्य(मंत्री) का पदभार सौंपना चाहिऐ।

४.मूर्ख, अनपढ़(जड़बुद्धि वाले व्यक्ति),गूंगे-बहरे आदि हीन भावना की ग्रंथि से पीड़ित होने के कारण, पक्षी स्वभाव से ही(तोते आदि पक्षी रटी-रटाई बोलने वाले) अभ्यस्त होने के कारण मन्त्र(मंत्रणा) को प्रकट कर देते हैं। कुछ स्त्रियाँ स्वभाववश (चंचल मन और बुद्धि के कारण) मंत्रणा को प्रकट कर सकती हैं। इसके अलावा अन्य व्यक्ति भी जिन पर राजा को अपनी मंत्रणा प्रकट करने का संदेह हो उन्हें मंत्रणा स्थल से हटा देना चाहिऐ।