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बहादुरों की असलियत-हिन्दी शायरियां (bahadri ki asaliyat-hindi shayariyan)
तुम ताक रहे हो उनके घर
अपनी उम्मीद अपने हाथ में फैलाये
जिनका पेट लूट के सामानों से
कभी भरता नहीं है,
पत्थर का ज़मीर पाले हैं वह लोग
जो कभी पैदा न हुआ
इसलिये मरता भी नहीं है।
———-
फुर्सत नहीं है उनके पास
लूट के सामान घर में भरने से,
इश्तहार जरूर देते हैं
अपनी बहादुरी के कारनामों से
मगर पल पल दिल में डरते हैं
अपने मरने से।
———–
अपनी उम्मीद अपने हाथ में फैलाये
जिनका पेट लूट के सामानों से
कभी भरता नहीं है,
पत्थर का ज़मीर पाले हैं वह लोग
जो कभी पैदा न हुआ
इसलिये मरता भी नहीं है।
———-
फुर्सत नहीं है उनके पास
लूट के सामान घर में भरने से,
इश्तहार जरूर देते हैं
अपनी बहादुरी के कारनामों से
मगर पल पल दिल में डरते हैं
अपने मरने से।
———–
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक ‘भारतदीप”,ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak ‘BharatDeep’,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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स्वाभिमान और दौलत की शान-हिन्दी कविता (svabhiman aur dualat ki shan-hindi poem)
कदम कदम पर
कांपने लगते हैं वह
अपने बुरे काम से,
फिर भी रिश्ता जोड़ लिया है स्वाभिमान से।
झूठ के पांव नहीं होते,
बेईमान हमेशा कायरता का बोझ ढोते,
देश और समाज की
इज्जत बचाने की बात अच्छी लगती है,
पर जिन पर जिम्मा है इसका
वही जिंदगी को जोड़ते केवल दौलत की शान से।
______________________
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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सर्वशक्तिमान के प्रतिनिधि-हिन्दी शायरी (brokar of religion-hindi satire peom)
भगवा, हरा, सफेद और नीले रंग के
तयशुदा परिधानों के धारण करने वाले
सर्वशक्तिमान के प्रतिनिधि कहलाने वाले
दलालों को अगर पहचाना नहीं,
समझो धर्म नहीं निभाया
ज्ञान कभी नहीं ।
रास्ते पर बेचने वाली शय नहीं है ज्ञान,
किताबें बेचने वाले कभी नहीं कहलाये महान,
उसके शब्द रटकर सुनाने वाले
फिर क्यों करते हैं अभिमान,
उनको खुद भी समझ आया नहीं।
मत मानो उनको देवता
सर्वशक्तिमान सभी का सगा है
किसी के लिये पराया नहीं।
———————-
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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ख्यालों के जुए में-हिन्दी शायरी (khyal ek juaa hai-hindi shayari)
मस्ती के कुछ पल
जीने की खातिर
जिंदगी दांव पर मत लगाना,
जाना उतना ही दूर
जहां से संभव हो घर लौट आना।
जिंदगी के मायने सभी नहीं जानते,
कायदों को बंधन की तरह मानते,
जज़्बात तो हवा के झौंके हैं
कभी हंसी तो कभी गम के,
ढेर सारे आते मौके हैं,
छोटे पल के लिये
पूरी जिंदगी उनमें न बहाना।
ललचाते हैं शयें बेचने वाले,
पुचकारते हैं, खून खींचने वाले,
सुनना सभी की बात,
विचार करना दिन और रात,
अपना दिल सस्ते में दाव पर न लगाना।
जिंदगी एक समंदर है,
विष और अमृत समाया इसके अंदर है,
मंथन के लिये अक्ल का होना जरूरी है,
जिंदा रहना भी एक मजबूरी है,
मोहब्बत के वायदे सस्ते होते हैं,
बाद में उनको महंगी जिंदगी में ढोते हैं,
इसलिये जब तक तय न कर लो
अपने मकसद और इरादे,
ख्यालों के जुए में अपने हाथ न आजमाना।
———
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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सोचने पर उठता है दिल में तूफान-हिन्दी शायरी (dil ka toofan-hindi shayri)
खून दूसरे का बहे
दर्द किसे होता है,
टूटते हैं जिनके घर
उनकर ही दिल रोता है।
अब तो किसी से हमदर्दी
जताते हुए भी डर लगता है
क्योंकि यहां हर हमदर्द भी
शक के दायरे में होता है।
जो बसे है ऊंचे शानदार महलों में
कौन नज़र डाले, उनके किले के फलों में
सड़कों में बहे खून, वह क्यों करेंगे परवाह
उनकी नज़र में, पैदल आदमी मवाद होता है।
सूख गये रोते कराहते हुए आंखों के आंसु
किसी का खून बह जाय,े
या दर्द सड़क पर टपक आये,
सोचने पर उठता है दिल में तूफान
इसलिये दिमाग लंबी तानकर सोता है।
———
अभी उनका खून बहा है
कमजोरों ने सारा दर्द सहा है
यह न समझना, तुम बच जाओगे।
पीठ पीछे वार करने वालों से
पीठ फेरने वालो,
उनके निशानों की तारीफ कर इतराने वालों
एक दिन खंजर की जद में तुम भी आओगे।
———–
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://rajlekh.blogspot.com
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अपना अपना दाव-हिन्दी व्यंग्य कवितायें (apna apna daav-hindi satire poem)
अंधों की तरह रेवड़ियां बांटने का
चलन अब आंख वालों में भी हो गया है।
कहीं पुजते दौलतमंद
कहीं सजते ऊंचे ओहदे वाले
कहीं जमते बाजुओं में दम वाले
तो कहीं उनके चाटुकार चमकते हैं
लोगों के हैं अपने अपने दाव
उजले नकाब पहनने पर हैं आमदा
क्योंकि चरित्र सभी का खो गया है।
——–
सम्मान बेचने वाले ने
एक कवि से कहा
‘कुछ जेब ढीली करो तो
हमसे सम्मान पाओ।
आजकल सब बिकता है बाजार में
शब्दों से खाली वाह वाह मिलती है,
कविता कागज पर लिखकर
पैसा खर्च करने की बजाय
हमारी जेब में पहुंचाओ।
कुछ अपना कुछ हमारा सम्मान बढ़ाओ।’
कवि ने कहा
‘पैसा होता तो कवितायें क्यों लिखता,
अभाव न होते तो कवि कैसे दिखता,
सम्मान खरीदने की ताकत होती
तो कवितायें भी खरीद कर लाता,
सम्मान के लिये सजाता,
फिर तुम जैसे तुच्छ प्राणी की
शरण क्यों कर लेता,
किसी बड़े आदमी पर चढ़ाता दाम
जो बड़ा ही सम्मान देता।
तुम सम्मान के छोटे सौदागर हो
अपने सम्मान को बड़ा न बताओ।
गली मोहल्ले के कवियों पर
अपना दाव लगाने से अच्छा है
अपना प्रस्ताव कविता के बाजार में
कवियों जैसे दिखने वालों को समझाओ।
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
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धर्म और अवतार-हिंदी हास्य कविता
फंदेबाज मिला रास्ते में
और बोला
‘चलो दीपक बापू
तुम्हें एक सम्मेलन में ले जायें।
वहां सर्वशक्तिमान के एक नये अवतार से मिलायें।
हमारे दोस्त का आयोजन है
इसलिये मिलेगा हमें भक्तों में खास दर्जा,
दर्शन कर लो, उतारें सर्वशक्तिमान का
इस जीवन को देने का कर्जा,
इस बहाने कुछ पुण्य भी कमायें।’
सुनकर पहले चौंके दीपक बापू
फिर टोपी घुमाते हुए बोले
‘कमबख्त,
न यहां दुःख है न सुख है
न सतयुग है न कलियुग है
सब है अनूभूति का खेल
सर्वशक्तिमान ने सब समझा दिया
रौशनी होगी तभी
जब चिराग में होगी बाती और तेल,
मार्ग दो ही हैं
एक योग और दूसरा रोग का
दोनों का कभी नहीं होगा मेल,
दृश्यव्य माया है
सत्य है अदृश्य
दुनियां की चकाचौंध में खोया आदमी
सत्य से भागता है
बस, ख्वाहिशों में ही सोता और जागता है
इस पूर्ण ज्ञान को
सर्वशक्मिान स्वयं बता गये
प्रकृति की कितनी कृपा है
इस धरा पर यह भी समझा गये
अब क्यों लेंगे सर्वशक्तिमान
कोई नया अवतार
इस देश पर इतनी कृपा उनकी है
वही हैं हमारे करतार
अब तो जिनको धंधा चलाना है
वही लाते इस देश में नया अवतार,
कभी देश में ही रचते
या लाते कहीं लाते विदेश से विचार सस्ते
उनकी नीयत है तार तार,
हम तो सभी से कहते हैं
कि अपना अध्यात्म्किक ज्ञान ही संपूर्ण है
किसी दूसरे के चंगुल में न आयें।
ऐसे में तुम्हारे इस अवतारी जाल में
हम कैसे फंस जायें?
यहां तो धर्म के नाम पर
कदम कदम पर
लोग किसी न किसी अवतार का
ऐसे ही जाल बिछायें।
………………………………
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
झगड़ा भी एक शय की तरह बिकता-हिन्दी व्यंग्य कविता
झगड़ा भी एक शय है जो
बड़ा पाव की तरह बाजार में बिकती।
अमन के आदी लोगों में चैन कहां
कहीं शोर देखने की चाहत उनमें दिखती।
इसलिये लिख वह चीज जो
बाजार में बड़े दाम पर बिकती।
अठखेलियां करती कवितायें
मन भाती कहानियां और
अमन के गीत लिखना है तो
अपने दिल के सुकूल के लिये लिख
शोर से दूर एक अजूबा दिख
दुनियां में उनके चाहने वाले
गुणीजनों की अधिक नहीं गिनती।
अमन का पैगाम लिखकर क्या करेगा
जब तक उसमें शोर नहीं भरेगा
सौदागरों ने रची है तयशुदा जंग
उस पर रख अपने ख्याल
जिससे बचे बवाल
सजा दिया है उन्होंने बाजार
वहां शब्दों की जंग महंगी बिकती।
सोचता है अपना
दूसरा ही है तेरा सपना
नहीं बहना विचारों की सतही धारा में
तो तू अपना ही लिख
गहरे में डूबकर नहीं ढूंढ सके मोती
वही नकली ख्याल बहा रहे हैं
सब तरफ बवाल मचा रहे हैं
अपनी सोच की गहराई में उतर जा
कभी न कभी तेरे नाम का भी बजेगा डंका
सच्चे मोती की माला
कोई यूं ही नहीं फिंकती।
………………………………
लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकाएं भी हैं। वह अवश्य पढ़ें।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप
जज़्बात एक शय है-.हिन्दी शायरी
इंसान के जज्ब़ात शर्त से
और समाज के सट्टे के भाव से
समझे जाते हैं।
नये जमाने में
जज़्बात एक शय है
जो खेल में होता बाल
व्यापार में तौल का माल
नासमझी बन गयी है
जज़्बात का सबूत
जो नहीं फंसते जाल में
वह समझदार शैतान समझे जाते हैं
……………………….
एक दोस्त ने फोन पर
दूसरे दोस्त से
‘क्या स्कोर चल रहा है
दूसरा बिना समझे तत्काल बोला
‘यार, ऐसा लगता है
मेरी जेब से आज फिर
दस हजार रुपया निकल रहा है।’
……………………………..
छायागृह में चलचित्र के
एक दृश्य में
नायक घायल हो गया तो
एक महिला दर्शक रोने लगी।
तब पास में बैठी दूसरी महिला बोली
‘अरे, घर पर रोना होता है
इसलिये मनोरंजन के लिये यहां हम आते हैं
पता नहीं तुम जैसे लोग
घर का रोना यहां क्यों लाते हैं
अब बताओ
क्या सास ने मारकर घर से निकाला है
या बहु से लड़कर तुम स्वयं भगी
जो हमारे मनोरंजन में खलल डालने के लिये
इस तरह जोर जोर से रोने लगी।’
……………………………….‘दीपक भारतदीप की हिन्दी-पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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आंसुओं का व्यापार-हिन्दी शायरी
हमदर्दी जताने की कला
हमें कभी नहीं आई
किसी का दर्द देखकर
मन रोया मन भर आंसु
पर आंखें दरिया न बन पाई।
शायद लोग दिमाग से सोचते हैं
इसलिये हमदर्दी के शब्द जल्दी ढूंढ लेते
दिल तक नहीं पहुंचता
दूसरे का दर्द
कर लेते हैं दिखावे में कमाई।
नहीं करना सीखा पाखंड
इसलिये दूसरे के घाव पर मरहम लगाकर भी
अपने लिये ओढ़ लेते हैं तन्हाई।
——————–
कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anantraj.blogspot.com
——————–
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तसल्ली के चिराग-हिन्दी शायरी (tasalli ke chirag-hindi shayri)
सर्वशक्तिमान का अवतार बताकर भी
कई राजा अपना राज्य न बचा सके।
सारी दुनियां की दौलत भर ली घर में
फिर भी अमीर उसे न पचा सके।
ढेर सारी कहानियां पढ़कर भी भूलते लोग
कोई नहीं जो उनका रास्ता बदल चला सके।
मालुम है हाथ में जो है वह भी छूट जायेगा
फिर भी कौन है जो केवल पेट की रोटी से
अपने दिला को मना सके।
अपने दर्द को भुलाकर
बने जमाने का हमदर्द
तसल्ली के चिराग जला सके।
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियरhttp://rajlekh.blogspot.com
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हमदर्दी जताने में कमाई-हिन्दी क्षणिका
हमदर्दी जताने की कला
हमें कभी नहीं आई
किसी का दर्द देखकर
मन रोया मन भर आंसु
पर आंखें दरिया न बन पाई।
शायद लोग दिमाग से सोचते हैं
इसलिये हमदर्दी के शब्द जल्दी ढूंढ लेते
दिल तक नहीं पहुंचता
दूसरे का दर्द
कर लेते हैं दिखावे में कमाई।
नहीं करना सीखा पाखंड
इसलिये दूसरे के घाव पर मरहम लगाकर भी
अपने लिये ओढ़ लेते हैं तन्हाई।
——————–
कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
http://anantraj.blogspot.com
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दुनियां का खात्मा और मनोरंजन-हिन्दी व्यंग्य कविता (duniya aur manoranjan-hindi vyangya kavita)
दुनियां की तबाही देखने के लिये
इंसान का दिल क्यों मचलता है
हमारी आंखों के सामने ही सब
खत्म हो जाये
फिर कोई यहां जिंदा न रह पाये
यही सोचकर उसका दिल बहलता है।
हम न होंगे पर यह दुनियां रहेगी
यही सोच उसका दिमाग दहलता है।
इसलिये ही दुनियां के खत्म होने की
खबर पर पूरा जमाना
मनोरंजन की राह पर टहलता है।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
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ज़माने सुधारने का वहम-व्यंग्य कविता (zamane ko sudharne ka vaham-vyangya kavita)
किताबों में लिखे शब्द
कभी दुनियां नहीं चलाते।
इंसानी आदतें चलती
अपने जज़्बातों के साथ
कभी रोना कभी हंसना
कभी उसमें बहना
कोई फरिश्ते आकर नहीं बताते।
ओ किताब हाथ में थमाकर
लोगों को बहलाने वालों!
शब्द दुनियां को सजाते हैं
पर खुद कुछ नहीं बनाते
कभी खुशी और कभी गम
कभी हंसी तो कभी गुस्सा आता
यह कोई करना नहीं सिखाता
मत फैलाओं अपनी किताबों में
लिखे शब्दों से जमाना सुधारने का वहम
किताबों की कीमत से मतलब हैं तुम्हें
उनके अर्थ जानते हो तुम भी कम
शब्द समर्थ हैं खुद
ढूंढ लेते हैं अपने पढ़ने वालों को
गूंगे, बहरे और लाचारा नहीं है
जो तुम उनका बोझा उठाकर
अपने फरिश्ते होने का अहसास जताते।।
————–
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