दौलत बनाने निकले बुत
भला क्या ईमान का रास्ता दिखायेंगे।
अमीरी का रास्ता
गरीबों के जज़्बातों के ऊपर से ही
होकर गुजरता है
जो भी राही निकलेगा
उसके पांव तले नीचे कुचले जायेंगे।
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उस रौशनी को देखकर
अंधे होकर शैतानों के गीत मत गाओ।
उसके पीछे अंधेरे में
कई सिसकियां कैद हैं
जिनके आंसुओं से महलों के चिराग रौशन हैं
उनको देखकर रो दोगे तुम भी
बेअक्ली में फंस सकते हो वहां
भले ही अभी मुस्कराओ।
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियरhttp://rajlekh.blogspot.com
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